केरल के कोझिकोड में दिमाग खाने वाले अमीबा ने एक 14 साल के बच्चे की जान ले ली है। इस लड़के का नाम मृदुल है, और वह एक छोटे तालाब में नहाने गया था, जिसके बाद वह संक्रमित हो गया। इस बीमारी को “अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस” (पीएएम) कहा जाता है, जो नेगलेरिया फॉलेरी नामक अमीबा के कारण होती है। पानी के जरिए यह अमीबा शरीर में प्रवेश करता है, तो मात्र चार दिनों के अंदर यह इंसान के नर्वस सिस्टम (यानी दिमाग) पर हमला करने लगता है। इसके बाद 14 दिनों के अंतराल में यह दिमाग में सूजन पैदा कर देता है, जिससे मरीज की मौत हो जाती है।
इस साल केरल में यह तीसरी मौत है जो इस बीमारी के कारण हुई है। हालांकि इससे पहले भी देश के विभिन्न अस्पतालों में अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस के मामले सामने आए हैं। केंद्र सरकार के एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम (आईडीएसपी) के मुताबिक, अब तक केरल से लेकर हरियाणा और चंडीगढ़ तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें से छह मौतें 2021 के बाद दर्ज की गई हैं। केरल में पहला मामला 2016 में सामने आया था, तब से अब तक यहां आठ मरीजों की मौत हो चुकी है।
जलवायु संकट बाढ़ और सूखे जैसी चरम मौसमी घटनाओं (एक्सट्रीम वेदर कंडीशन) को भी बढ़ा रहा है, जो वातावरण में अधिक रोगाणुओं को शामिल कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि सूखे वाले क्षेत्रों में, रोगाणु जल निकायों में केंद्रित होंगे, जो मनुष्यों के जल निकायों के निकट संपर्क में आने पर रोगाणुओं से प्रभाव की बात देखी जा रही है। बाढ़ वाले क्षेत्रों में, पानी-पर्यावरण में रोगाणुओं को स्थानांतरित कर सकता है - उदाहरण के लिए, बाढ़ मिट्टी या जलीय वातावरण से रोगाणुओं को घरों और इमारतों में ला सकती है, या अपशिष्ट जल संग्रह को ओवरफ्लो कर सकती है और पर्यावरण में रोगाणुओं को फैला सकती है। साथ ही पानी का तापमान बढ़ने पर पानी में रोगाणुओं की संख्या बढ़ती जाएगी।
नेगलेरिया फाउलेरी एकल-कोशिका वाला जीव, जीवजगत का सबसे छोटा सदस्य है, इसको जलवायु परिवर्तन खासकर गर्मी बढ़ने से फैलने में मदद मिल रही है। बैज्ञानिक मानते है कि नेगलेरिया गर्म पानी में सबसे अच्छी तरह से बढ़ता है - 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान, और 46 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान सहन कर सकता है। यह इसे गर्म जलवायु में फैलने के लिए उपयुक्त बनाता है।
अमर उजाला की खबर के अनुसार आईसीएमआर की डॉ. निवेदिता बताती हैं...अभी तक इस बीमारी की कोई दवा या फिर बचाव के लिए टीका मौजूद नहीं है। बावजूद इसके भारत में अब तक सात मरीजों को मौत से बचाया है। इसके लिए अलग-अलग तरह की एंटीबायोटिक देकर इलाज किया जाता है जिसके लिए समय पर बीमारी का पता चलना बहुत जरूरी है।
सिरदर्द, ज्वर, मतली और उल्टी आना इसके प्रारंभिक लक्षण हैं जिनके बाद गर्दन में अकड़न, भ्रम, दौरे, मतिभ्रम और आखिर में कोमा की स्थिति देखी जाती है। लक्षण मिलने के 18 दिन के भीतर मरीज की मौत हो सकती हैै। उन्होंने यह भी बताया कि इलाज के बाद भी 97 प्रतिशत की दर्ज मृत्यु दर के साथ नेगलेरिया फाउलेरी संक्रमण से बचने की संभावना कम रहती है।
जब अमीबा युक्त पानी नाक के जरिए शरीर में प्रवेश करता है, तो यह लोगों को संक्रमित करता है। यह आमतौर पर तब होता है जब लोग झीलों और नदियों में तैरते हैं या गोता लगाते हैं। अमीबा नाक से घुसकर मस्तिष्क तक पहुंचता है, जहां यह मस्तिष्क के ऊतकों को नष्ट कर सकता है। इसे “प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस” (Primary amebic meningoencephalitis) कहा जाता है, और यह जानलेवा हो सकता है।
वैसे तो पानी की स्वच्छता का ध्यान रखकर इस अमीबा के संक्रमण से बच सकते हैं। मस्तिष्क को खाने वाले अमीबा से बचने के लिए गर्मियों के दौरान गर्म स्थिर पानी में गतिविधियाँ करने से बचना चाहिए। तैराकी, बोटिंग या गर्म पानी में खेलते समय नाक पर क्लिप लगाना भी समझदारी है। ऐसी गतिविधियों में भाग लेते समय कीचड़ से बचना भी एक अच्छा विचार है। नाक के माध्यम से नेगलेरिया फाउलेरी मानव शरीर में प्रवेश करता है। ध्यान रखें कि फिल्टर पानी से ही नाक साफ करें।
सच्चाई यह है कि जलवायु परिवर्तन रोगाणुओं के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण कर रहा है, इसी सच्चाई का एक हिस्सा यह है कि मस्तिष्क खाने वाले अमीबा का संक्रमण बढ़ रहा है - और इस विषय पर दुनिया के प्रमुख विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण समस्या और भी बढ़ सकती है।