गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग रखने से बचेगा पर्यावरण, होगी बचत
हमारे देश में हर रोज 1.60 लाख मीट्रिक टन कचरा निकलता है। हजारों एकड़ जमीन डंपिंग ग्राउंड बन गई। हर शहर में कचरे के 80 से 100 फीट ऊँचे पहाड़ बन गए। हवा-पानी तक प्रदूषित हो रहे हैं। बीमारियां फैल रही हैं। लेकिन इसी कचरे को रिसाइकल करें तो 27 हजार करोड़ रुपए की खाद बन सकती है। 45 लाख एकड़ बंजर जमीन उपजाऊ हो सकती है। 90 लाख टन ज्यादा अनाज मिलेगा। दो लाख गैस सिलेंडर के बराबर गैस मिल सकती है।
यह दावा है आमिर खान के टीवी शो सत्यमेव जयते का। आमिर ने रविवार को अपने शो में देशभर में अपनाए जा रहे कचरे के निपटारे के तरीकों पर बात की। बेंगलुरू से अरुण कुमार ने बताया कि ‘किसान डंपिंग ग्राउंड की वजह से बेहाल हैं। चिकनगुनिया जैसी बीमारियां फैल रही हैं।’ सामाजिक कार्यकर्ता ऋषि अग्रवाल ने बताया कि ‘सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पैसा लूटने का जरिया बन गया है। इसके लिए नेता, ब्यूरोक्रेट और ठेकेदार ने गठजोड़ कर लिया है।’ आमिर ने पुणे की संस्था ‘स्वच्छ’ से जुड़ी सरुबाई वाघमारे से भी बात की। वह पुणे में आरबीआई के दफ्तर में कंपोस्ट प्लांट चलाती हैं। आंध्र के आईएएस अधिकारी बी. जनार्दन रेडडी और वारंगल के नगर निगम कमिश्नर विवेक यादव ने भी अपनी पहल की जानकारी दी।
1. कचरा जुटाने पर नगर निगम 200 से 800 रुपए प्रति टन खर्च करता है। एक ट्रक पर दस हजार रुपए सरकारी जमीन ठेकेदारों को दी। कचरा निपटाने के लिए करोड़ों रुपए ऊपर से।
2. मुंबई में कचरे का पहाड़ 80 फीट ऊंचा था। 2003 में बैक्टीरिया से एक हेक्टेयर क्षेत्र साफ किया गया। 3 करोड़ में सफाई हो जाती सरकार ने 69 करोड़ रु. में ठेका दिया।
3. उद्यमी नुरियल पेराजकर कहते हैं कि हम कचरा उठाते। गैस बनाते। निगम को पैसा भी देते। लेकिन मुंबई नगर निगम ने मना कर दिया। कहा कि हमारे पास कचरा नहीं है।
1. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज की कैंटीन के कचरे से वहीं मीथेन बनाते हैं। उसका इस्तेमाल कैंटीन में ही होता है।
2. श्रीनिवासन चंद्रशेखरन का कोयंबटूर में प्रयोग। फल-सब्जियों का कचरा गाय खाती है। 8 घंटे में गोबर तैयार। मीथेन निकालने के बाद केंचुए उसे 72 घंटे में खाद बना देते हैं।
3. प्रो. आर. वासुदेवन ने प्लास्टिक से सड़क निर्माण की तकनीक विकसित की है। प्लास्टिक का घोल पत्थर तारकोल को मजबूती से जोड़ता है। देशभर में प्रयोग हो सकता है।
दक्षिणी दिल्ली में 2 साल से कचरा जला रहे हैं। इससे जोड़ों का दर्द, सांस में तकलीफ और कैंसर का खतरा है। ‘टॉक्सिक लिंक’ के रवि अग्रवाल कहते हैं कि यह मॉडल यूरोप-अमेरिका के लिए है। हमारे लिए नहीं। यहां 70% कचरा गीला होता है। इसे जलाने पर डायोक्सिन जैसी खतरनाक गैस निकलती है।
1. हर घर में कचरे के दो डिब्बे रखे जाएं- सूखा अलग और गीला अलग।
2. गीले कचरे से कंपोस्ट बनाया जा सकता है। इससे पर्यावरण सुरक्षित रहेगा।
3. सूखे कचरे को रिसाइकिल किया जा सकता है। सरकार इस दिशा में पहल करे।
आमिर ने लोगों से सवाल किया- क्या आज से आप कसम खाते हैं कि गीले और सूखे कचरे को अलग रखेंगे और देश को खूबसूरत बनाने की दिशा में पहल करेंगे?