देश की ग्रामीण स्वच्छता कवरेज 99 प्रतिशत का आंकड़ा पार कर चुकी है और स्वच्छ भारत मिशन अपने अन्तिम चरण में है। 30 राज्य और केन्द्रशासित प्रदेश खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित कर चुके हैं। मिशन इस प्रगति के फायदों को निरन्तर बनाए रखने और ओडीएफ-प्लस चरण को गति देने पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है जिसमें ठोस और तरल अपशिष्ट का प्रबन्धन शामिल है। घनी आबादी के शहरी क्षेत्रों के बाहर की भूमि का एक क्षेत्र, गाँव या ग्रामीण क्षेत्र कहलाता है। भारत में ग्रामीण क्षेत्र की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी जाती है। ‘भारत का वह क्षेत्र जिसमें लोगों की आबादी 5000 तथा जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से कम हो तथा कृषि पर आश्रित कामकाजी लोगों की संख्या कम से कम 25 प्रतिशत हो, ऐसे क्षेत्र को ग्रामीण क्षेत्र की श्रेणी में लिया जाता है’। स्वच्छ पर्यावरण को बनाए रखने के लिए शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी भारत सरकार और निजी संस्थानों के द्वारा स्वच्छ पर्यावरण और साफ-सफाई हेतु अनेक योजनाएँ एवं कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब भारतीय ग्रामीण क्षेत्र भी स्वच्छता हेतु मिसाल कायम करेंगे।
वह वातावरण, जिसमें परिवार रहते हैं, परिवारों के सदस्यों के स्वास्थ्य और स्वच्छता को बनाए रखने में उस वातावरण की प्रमुख भूमिका है। ‘स्वच्छ पर्यावरण’ की पहचान तीन महत्त्वपूर्ण तत्वों से की जा सकती है- (1) स्वच्छता (2)पर्यावरणीय स्वच्छता और (3) घरेलू उपयोग के लिए सुरक्षित जल की स्थिति। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ द्वारा लाई गई वैश्विक जल आपूर्ति और स्वच्छता आकलन रिपोर्ट 2000 में स्वच्छता को एक सीवर या सेप्टिक टैंक प्रणाली, पौर-फ्लश लैट्रिन, साधारण गड्ढे या हवादार उन्नत गड्ढे वाले शौचालय, स्थानीय विकसित स्वीकार्य तकनीक हेतु प्रौद्योगिकियों के रूप में परिभाषित किया गया है।
पर्यावरणीय सफाई में अपशिष्ट जल और ठोस अपशिष्ट के उपचार और निपटान की विधि शामिल है। इस प्रकार, ऑपरेटिंग ड्रेनेज सिस्टम और कचरा संग्रहण प्रणाली पर्यावरणीय स्वच्छता के महत्त्वपूर्ण अंग हैं।
घरेलू उपयोग जैसे बर्तन धोना, स्नान करना आदि के लिए पानी की कमी (पीने के अलावा) स्वच्छता प्राप्त करने में बाधा डाल सकती है। शौचालय के उपयोग के सन्दर्भ में पानी की उपलब्धता आवश्यक है। अगर पर्याप्त पानी नहीं हो तो शौचालय का उपयोग गम्भीर रूप से बाधित हो सकता है। इसलिए पर्याप्त जल स्वच्छता के लिए आवश्यक है। एनएसएसओ द्वारा किए गए सर्वेक्षण से घरों के आस-पास के वातावरण की गुणवत्ता को कुछ संकेतकों द्वारा मूल्यांकित किया जा सकता है जैसे जल निकासी व्यवस्था, अपशिष्ट जल और कचरे के निपटान की प्रणाली आदि।
समाज को बड़े पैमाने पर स्वच्छ पर्यावरण में गिरावट की गम्भीरता का एहसास होने लगा है और पर्यावरणीय समस्याओं के निदान के लिए संगठन और व्यक्तिगत-स्तर पर कार्य किया जा रहा है। स्वच्छ पर्यावरण और पर्यावरण संरक्षण के बारे में लोगों में जागरुकता बढ़ाने के लिए भारत सरकार के प्रतिबद्ध मंत्रालयों, पर्यावरण निगरानी एजेंसियों, गैर-सरकारी संगठनों, शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों से जुड़े आउटरीच और शैक्षिक कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है।
पर्यावरण और वन मंत्रालय ने पर्यावरण निगरानी, मूल्यांकन और प्रदूषण नियंत्रण के राष्ट्रीय प्राथमिकता वाले कार्यक्रमों में अग्रणी भूमिका निभाई है। हमारे देश में, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पर्यावरण से सम्बन्धित कार्य के लिए स्वयंसेवी संगठनों और गैर-सरकारी संगठनों का अत्यधिक योगदान रहा है। 1991 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ‘पर्यावरण शिक्षा’ स्कूल और कॉलेज पाठ्यक्रम का अनिवार्य घटक बन गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों को प्रदूषण-मुक्त बनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार को प्राप्त सुझावों को राष्ट्रीय-स्तर पर लागू किया जा रहा है।
2 अक्टूबर, 2014 से स्वच्छ भारत मिशन को राष्ट्रीय आन्दोलन के रूप में देशभर में शुरू किया गया था। स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार का सबसे महत्त्वपूर्ण स्वच्छता अभियान है। दो उपमिशन, स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) और स्वच्छ भारत मिशन (शहरी) इसके अन्तर्गत आते हैं। दोनों मिशनों का उद्देश्य महात्मा गाँधी की 150वीं वर्षगांठ पर सही रूप में श्रद्धाजंलि देते हुए वर्ष 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना है। इस पहल से भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में ठोस और तरल अपशिष्ट पदार्थ प्रबंधन की गतिविधियों/कार्यक्रमों के माध्यम से स्वच्छता के स्तर में वृद्धि हुई है। देश के लाखों गाँवों को खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) बनाया जा चुका है। हालाकि अभी बहुत लम्बा सफर तय करना है।
साफ-सफाई हेतु राज्य सरकारों ने विशेष ध्यान दिया है, जिसमें विभिन्न मुद्दों के लिए आवश्यकताओं के अनुरूप कार्यक्रम तथा कार्यनीति बनाई गई है। मिशन को पूरा करने के लिए संकेन्द्रित कार्यक्रम के जरिए राज्य सरकारों के प्रयासों को सफल बनाने में भारत सरकार की अहम भूमिका है।
कार्यनीति के मुख्य तत्व
स्वच्छ भारत मिशन को भिन्न करने वाला कारक व्यवहारगत परिवर्तन है और इसीलिए व्यवहारगत परिवर्तन संवाद (बीसीसी) पर अत्यधिक बल दिया जा रहा है। जागरुकता सृजन, लोगों की मानसिकता को प्रेरित कर समुदाय में व्यवहारगत परिवर्तन लाने और घरों, स्कूलों, आंगनवाड़ियों, सामुदायिक समूहों के स्थलों में स्वच्छता की सुविधाओं की माँग सृजित करने तथा ठोस एवं तरल अपशिष्ट पदार्थ प्रबन्धन गतिविधियों पर बल दिया जा रहा है। चूँकि गांव के अधिकांश घरों पर वांछित व्यवहार अपनाने और खुले में शौच से मुक्ति की अपील अभियान के माध्यम से की गई है। इसका वर्तमान परिणाम यह है कि खुले में शौच में कमी आई है और स्वच्छ पर्यावरण का स्तर बढ़ गया है।
सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए स्वच्छता सम्बन्धित अनेक काम किए जा रहे हैं। स्वच्छता/स्वच्छ पर्यावरण के विषयों को लेकर भारत सरकार ने गाँवों और ग्रामीण इलाकों के लोगों के जीवन-स्तर को सुधारने के लिए कई कार्यक्रम और योजनाएँ प्रारम्भ की हैं।
पर्यावरण का ह्रास और इसके विनाशकारी परिणाम दुनिया भर की सरकारों के लिए चिन्ता का विषय रहे हैं। पर्यावरण के प्रबन्धन और संरक्षण के लिए कानूनी ढाँचा प्रदान करने के लिए कई कानून पारित किए गए हैं। 5 जून, 1972 को स्टॉकहोम में आयोजित ‘मानव पर्यावरण’ पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में पर्यावरण पर पहली बार चर्चा की गई, जिसमें 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ घोषित किया गया। यह प्रामाणिक है कि स्टॉकहोम में हुए ऐतिहासिक सम्मेलन के चार वर्षों के भीतर भारत ने पर्यावरण-संरक्षण के उद्देश्य से कानून बनाया, जो बाद में भारतीय संविधान का एक हिस्सा बना। हमारे संविधान के अनुच्छेद 48ए के 42वें संशोधन के अनुसार ‘राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार और देश में वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा’।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वैसे विद्यालयों को चिन्हित किया जिसमें लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए अलग-अलग शौचालयों की सुविधा नहीं है और गैर-कार्यशील शौचालयों को कार्यात्मक बनाने हेतु, नए शौचालय प्रदान कर स्वच्छ विद्यालय बनाने की पहल की। यह पहल व्यवहार परिवर्तन जैसे हाथ धोने, शौचालय का उपयोग करने और इसे बनाए रखने पर केन्द्रित है। छात्रों के साथ ही उनके माता-पिता और शिक्षकों के लिए जागरुकता सृजन कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। अगस्त 2014 में देशभर के 33 राज्यों में यह अभियान शुरू किया गया था। शुभारम्भ के समय, 2,61,400 से अधिक सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में पर्याप्त शौचालयों की सुविधा नहीं थी। यह आकलन किया गया था कि 4,10,000 से अधिक शौचालयों के निर्माण या मरम्मत की आवश्यकता होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हर बच्चे को शौचालय की सुविधा उपलब्ध हो।
स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की कायाकल्प योजना। इस योजना में निम्नलिखित उद्देश्य निहित हैं-
स्वच्छ भारत मिशन के उद्देश्यों को महिला और बाल विकास मंत्रालय की एकीकृत बाल विकास योजना के माध्यम से चलाया जा रहा है और इसका उद्देश्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्र, प्रत्येक आंगनवाड़ी केन्द्र में कार्यशील शौचालय प्रदान करना है। इस सम्बन्ध में, मंत्रालय ने बच्चों को साफ-सफाई और स्वच्छता के महत्व के बारे में जागरुक करने के लिए बाल स्वच्छता मिशन की शुरुआत की है। यह समुदायों के बीच व्यवहार परिवर्तन लाने और पीढ़ियों के बीच स्वच्छता की आदत को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है।
मंत्रालय ने एक अभियान के माध्यम से स्वच्छता के प्रयासों को बनाए रखने पर जोर दिया है। परिणामस्वरूप, बाल स्वच्छता मिशन के तहत निम्नलिखित राज्य-स्तरीय गतिविधियाँ बताई गई हैः
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के तहत काम करने वाली तेल कम्पनियों, गैर-केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों और संयुक्त कम्पनियों ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत निम्नलिखित गतिविधियाँ आयोजित की है:
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हरित कौशल विकास कार्यक्रम को पर्यावरण सूचना प्रणाली योजना के तहत प्रायोगिक तौर पर शुरू किया जिससे इस क्षेत्र में कुशल युवा को लाभप्रद रोजगार या स्वरोजगार प्राप्त हो। वर्तमान में, देशभर के 87 स्थानों पर 44 हरित कौशल विकास कार्यक्रम पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। 80 घंटे से लेकर 550 घंटे तक की अवधि के साथ वे विभिन्न क्षेत्रों को कवर करते हैं। इनमें निम्न शामिल हैं- प्रदूषण निगरानी (वायु, पानी, मिट्टी), उत्सर्जन सूची, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट संचालन और रखरखाव, कचरा प्रबन्धन, पर्यावरण प्रभाव आकलन, वन अग्नि प्रबन्धन, जल बजट और लेखा परीक्षा, नदी डॉल्फिन का संरक्षण, वन्यजीव प्रबन्धन, पैरा टैक्सोनॉमी जिसमें पीपुल्स बायो-डायवर्सिटी रजिस्टर शामिल है। मैंग्रोव संरक्षण, बाँस प्रबन्धन और आजीविका उत्पादन, पारिस्थितिकी-तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन आदि।
भारत में अनेक स्वैच्छिक संगठन/गैर-सरकारी संगठनों द्वारा ग्रामीण और पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान के लिए अनेक रणनीति विकसित की जाती हैं। पर्यावरण और वन के कार्य हेतु 20,521 तथा ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन के कार्य हेतु 19,599 संगठन भारत में मौजूद हैं जिनके उद्देश्य कुछ इस प्रकार है:-
स्वच्छता भूजल, सतही जल, मिट्टी या वायु सहित पर्यावरण के सभी पहलुओं और साथ ही साथ ओडीएफ क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित करती है। डब्ल्यूएचओ के 2018 के अध्ययन में अनुमान व्यक्त किया गया था कि भारत के खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) हो जाने पर स्वच्छ भारत मिशन 3 लाख से अधिक जिन्दगियाँ बचा पाने में समर्थ होगा। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के बारे में किए गए दो स्वतंत्र तृतीय पक्ष अध्ययनों को हाल ही में जारी किया गया। मिशन आने वाले लम्बे समय तक लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डालता रहेगा। यूनिसेफ और बिल एंड मेलिंडा गेट्स द्वारा कराए गए इन अध्ययनों का उद्देश्य क्रमशः स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के पर्यावरणीय प्रभाव और उनकी कम्युनिकेशन छाप का मूल्यांकन करना था। दोनों अध्ययनों की पूरी रिपोर्ट और साथ ही दोनों अध्ययनों की संक्षिप्त रिपोर्ट mdws.gov.in और sbm.gov.in
पर उपलब्ध है।
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