गौरतलब है कि स्वच्छ भारत अभियान जनमानस का अभियान रहा है। 1930 के दशक में इसके माध्यम से गांधी जी ने लोगों को जोड़ने का काम किया था। स्वच्छ भारत के उस समय के अभियान ने भारतीय एकजुटता प्रदान करके अंतत: देश को स्वतंत्रता दिलाई। जबकि आज का भारत तबसे बहुत कुछ अलग रूप लिए हुए है। अब के स्वच्छ भारत अभियान का आशय भिन्न है। इससे ताजगी मिलेगी, स्वास्थ्य मिलेगा, पर्यटन विकास होगा, आर्थिक मुनाफा होगा। लोग स्वच्छ और स्वस्थ होंगे तो मेडिकल खर्च में भी कमी आएगी। लेकिन इस अभियान की सघन निरंतरता बिना पूरी जागरूकता के संभव नहीं है। इतिहास के पन्नों में स्वच्छता को लेकर कितनी गहराई है, इसको गांधी युग में देखा जा सकता है। शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि शासकों ने स्वच्छता की इतनी गंभीर चिंता की हो। ब्रिटिश काल में बेहतरीन भारत के निर्माण का दौर कुछ कालों में देखा जा सकता है। जब 1928 में राजा राम मोहन राय ने ब्रह्म समाज की स्थापना की तो भारतीय समाज में फैली कुरीतियों की सफाई का बीड़ा उठाया गया। सती प्रथा का अंत, ठगी प्रथा का अंत और बाल विवाह पर रोक उनके मुख्य मिशन थे। दरअसल, ब्रिटिश काल का भारत अंग्रेजों की गिरफ्त में था। शायद यही कारण था कि अनेक भारतीय संगठनों ने सामाजिक बुराइयों को लेकर जो चिंता दिखाई, उसका मकसद सामाजिक परिवेश को स्वच्छ करना ही था। 20वीं शताब्दी में जब महात्मा गांधी का आगमन हुआ तो स्वच्छता कोई साधारण कार्य नहीं रहा। गांधी जी सामाजिक क्रांति और स्वाधीनता आंदोलन के अगुवा थे। सत्य और अहिंसा के हथियार से समाज में फैले छल-कपट, झूठ-फरेब तथा हिंसा से स्वच्छ बनाने का प्रयास किया।
इतना ही नहीं, गांधी ने मन के मैल को भी धोने की विचारधारा दी। एक अच्छे विचार और एक बुरे विचार का भी अंतर भी बताया। मन पर काबू रखना, मन का रख-रखाव करना और कुरीतियों के विरुद्ध मनस्थिति बनाना यह गांधी विचारधारा से निकले अचूक दर्शन हैं।
जब 1922 के दौर में असहयोग आंदोलन खत्म हो गया था, गांधी को जेल हो गई, हालांकि 1924 में जब बीमारी के चलते उनकी रिहाई हुई तो एक नए गांधी का भी अवतार हुआ। इस काल में गांधी अतिरिक्त स्वच्छता, भेद-भाव को समाप्त करना और समस्त भारतवासियों में एकता हेतु सारे कार्यक्रमों को आगे बढ़ाया। ऊंच-नीच के अंतर को समाप्त करने को लेकर उन्होंने सघन स्वच्छता अभियान चलाया। दरअसल, गांधी जी स्वच्छता को बड़ी गंभीर नजरों से देखते थे। इसका असल भाव यह भी था कि स्वच्छ भारत, स्वच्छ लोग और स्वच्छ मन न केवल आंदोलन में सहायक होंगे, बल्कि भारत की स्वतंत्रता हेतु यह एक सफल हथियार भी होगा। यह कहना सही है कि गांधी का स्वच्छता अभियान राष्ट्रीय एकीकरण के लिए कहीं अधिक उपयोगी था।
स्वतंत्रता के पश्चात काल और परिस्थितियों के चलते अपना देश अलग-अलग अभियानों को समेटते हुए चलता रहा। इसी क्रम में ग्रामीण और नगरीय स्वच्छता का संदर्भ भी भारत में देखा जा सकता है। मौजूदा मोदी सरकार से पहले यूपीए सरकार ने निर्मल योजना के तहत स्वच्छता अभियान को मूर्तरूप देने का प्रयास किया था। नरेंद्र मोदी के चार माह के कार्यकाल में कई चमकती हुई चीजें सामने देखने को मिली हैं। गंगा की स्वच्छता को लेकर उनकी चिंता पहले ही देखी जा चुकी है। अब 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन प्रधानमंत्री ने पूरे देश में स्वच्छता हेतु एक झाड़ू अभियान चलाया, साथ ही पूरा एक सप्ताह स्वच्छता अभियान के नाम समर्पित किया। मोदी का स्वच्छ भारत अभियान राजपथ से शुरू हुआ और जैसा कि कहा गया है यह पूरे पांच वर्ष तक चलता रहेगा। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद प्रतीकात्मक तौर पर झाड़ू लगाई और महात्मा गांधी को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इतना ही नहीं, स्वच्छता को लेकर लोगों को शपथ भी दिलाई। सप्ताह में दो घंटे और वर्ष में सौ घंटे सफाई हेतु नागरिकों का श्रमदान के लिए आह्वान किया। इसके अलावा यह कहा जाना कि मैं न गंदगी करूंगा और न किसी को करने दूंगा, मोदी की स्वच्छ भारत के प्रति गंभीर चिंता का ही द्योतक है।
गौरतलब है कि स्वच्छ भारत अभियान जनमानस का अभियान रहा है। 1930 के दशक में इसके माध्यम से गांधी जी ने लोगों को जोड़ने का काम किया था। स्वच्छ भारत के उस समय के अभियान ने भारतीय एकजुटता प्रदान करके अंतत: देश को स्वतंत्रता दिलाई। जबकि आज का भारत तबसे बहुत कुछ अलग रूप लिए हुए है। अब के स्वच्छ भारत अभियान का आशय भिन्न है। इससे ताजगी मिलेगी, स्वास्थ्य मिलेगा, पर्यटन विकास होगा, आर्थिक मुनाफा होगा। लोग स्वच्छ और स्वस्थ होंगे तो मेडिकल खर्च में भी कमी आएगी। लेकिन इस अभियान की सघन निरंतरता बिना पूरी जागरूकता के संभव नहीं है। सवाल तो यह भी है कि स्वच्छ भारत अभियान के चलते जो कचरा जमा होगा, उनका निस्तारण कहां और कैसे होगा? यानी इस अभियान की पूरी सफलता तभी संभव हो सकती है, जब कचरा निस्तारण केंद्र भी बढ़ाए जाएं। ध्यान देने की बात है कि सरकार की नीतियों में कचरा निस्तारण को लेकर अभी खास स्थान नहीं बनता दिखता। इसके अलावा स्वच्छता के मद्देनजर जो अतिरिक्त पूंजी खर्च होगी, उसके बंदोबस्त पर भी अभी पूरी बात सामने नहीं आई है। बड़ा सवाल यह भी है कि जो मानव संसाधन की कमी है, अभी उसको लेकर कोई आंकड़ा भी प्रदर्शित नहीं हो पाया है।
अब मुद्दा यह है कि क्या स्वच्छ भारत अभियान केवल सरकार की जिम्मेदारी है? इस यक्ष प्रश्न का उत्तर लोगों के मन में तभी पनपेगा, जब फिर से गांधी विचारधारा की देशव्यापी चर्चा चलाई जाएगी। यह भी गौरतलब है कि गांधी के स्वच्छता अभियान में मन की स्वच्छता एक प्रमुख हिस्सा था। क्या मोदी सरकार के स्वच्छ भारत अभियान में जनमानस के अंदर सफाई को लेकर सकारात्मक भाव पनप पाएंगे? सच यह भी है कि साफ-सफाई और स्वच्छता जैसे विचार के प्रति लोग उदासीन रहते हैं और इसे किसी और का काम समझते हैं। जबकि गांधी जी ने कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति में धोबी, साफ-सफाई करने वाला, भोजन पकाने वाला आदि निहित होते हैं। क्या आज का जनमानस इस अवधारणा को और गांधी द्वारा सुझाई गई बातों को अमल में ला पाएगा? यदि ऐसा हुआ तो स्वच्छ भारत अभियान अतिरिक्त ताकत के साथ सफल होगा अन्यथा मोदी सरकार की यह पहल महज प्रस्ताव बनकर रह जाएगी।
जिस प्रकार इतिहास में कई प्रकार के विलक्षण कार्य जनसमर्थन के चलते संपन्न हुए हैं, उसी प्रकार स्वच्छ भारत अभियान में जनमानस के जुड़ने से सफलता की गारंटी संभव है। इसके लिए जरूरी उपाय के तौर पर जागरूकता अभियान, सफाई से होनेवाले लाभ, इसके आर्थिक पहलू आदि को आमजन तक पहुंचाना होगा। इसे केवल गांधी जयंती का एक महोत्सव न समझा जाए बल्कि प्रत्येक दिन का एक जरूरी काम बनाया जाए। पूरी दिनचर्या में कुछ समय गैर-उत्पादक भी हो सकते हैं, उस समय को साफ-सफाई से जोड़ा जा सकता है। इसके अलावा छुट्टी के दिन या दिन के किसी हिस्से को स्वच्छता से जोड़कर इस अभियान को जीवित रखा जा सकता है। इन्हीं सब प्रयासों से स्वच्छ भारत अभियान निरंतरता पा सकेगा और प्रासंगिक भी बना रहेगा।
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