कुशल ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का मुख्य उद्देश्य कूड़े-करकट से अधिकतम मात्रा में उपयोगी संसाधन प्राप्त करना और ऊर्जा का उत्पादन करना है ताकि कम-से-कम मात्रा में अपशिष्ट पदार्थों को लैंडफिल क्षेत्र में फेंकना पड़े। इसका कारण यह है कि लैंडफिल में फेंके जाने वाले कूड़े का भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। एक तो इसके लिए काफी जमीन की आवश्यकता होती है जो लगातार कम होती जा रही है, और दूसरे कूड़ा वायु, मिट्टी और जल-प्रदूषण का सम्भावित कारण भी है। अपशिष्ट पदार्थ पैदा करने वालों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे कूड़े की छंटाई करें, जो ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की मूल आवश्यकता है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन भारत में बहुत बड़ी समस्या का रूप ले चुका है क्योंकि शहरीकरण, औद्योगिकरण और आर्थिक विकास के परिणाम स्वरूप शहरी कूड़े-करकट की मात्रा बहुत बढ़ गई है। बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या और लोगों के जीवन स्तर में सुधार से यह समस्या और भी जटिल हुई है। देश में ठोस कूड़े-करकट का समुचित निस्तारण सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (प्रबंधन और निपटान) नियमावली, 2000 और पुनर्गठित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2000 अधिसूचित किए हैं। देश के विभिन्न भागों में इस दिशा में पहल की जा रही हैं। लेकिन ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से सम्बन्धित मसलों के व्यापक समाधान के लिए अब भी बहुत-कुछ किया जाना बाकी है। इस लेख में देश में कारगर ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए आवश्यक कानूनी ढाँचे, इसके महत्त्वपूर्ण घटकों और इसकी स्थिति, अब तक उठाए गए कदमों तथा चुनौतियों और आगे के रास्ते की चर्चा की गई है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली 2016, वन और जलवायु परिवर्तन, आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों, राज्यों के शहरी मामलों के विभागों, स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों तथा कूड़ा उत्पन्न करने वालों समेत विभिन्न भागीदारों की जिम्मेदारी रेखांकित करती है। दूसरी ओर आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय, राज्यों के शहरी मामलों के विभागों और स्थानीय निकायों को मुख्य रूप से अपशिष्ट प्रबंधन के लिए बुनियादी ढाँचे के विकास का उत्तरदायित्व सौंपा गया है। इसके अलावा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और प्रदूषण नियंत्रण समितियों को नियमों पर अमल की निगरानी करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। कूड़ा उत्पन्न करने वालों की मूल जिम्मेदारी यह है कि वे कूड़े की छंटाई करें क्योंकि यह ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की मुख्य आवश्यकता है। ये नियम ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली के महत्त्वपूर्ण घटकों की आवश्यकताओं को रेखांकित करने के साथ ही लक्ष्यों को प्राप्त करने की समय-सीमा भी निर्धारित करते हैं।
कुशल ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का मुख्य उद्देश्य कूड़े-करकट से उपयोगी पदार्थों को निकालना और बचे हुए अपशिष्ट से प्रसंस्करण केन्द्र में बिजली का उत्पादन करना है (चतुर्थ चरण) और लैंडफिल में डाले जाने वाले कूड़े की मात्रा को कम से कम करना है क्योंकि तेजी से सिमट रहे भूमि संसाधन पर इसका बहुत बुरा असर पड़ रहा है। इतना ही नहीं। इस तरह से फेंका गया कूड़ा-करकट वायु, मृदा और जल प्रदूषण का खतरा पैदा कर सकता है। सभी अपशिष्ट प्रसंस्करण केन्द्रों (चतुर्थ चरण) के लिए पहली जरूरत सूखे और गीले कूड़े को अलग करने की है। अगर कूड़ा-करकट एकत्र नहीं किया जा रहा है और छांट कर अलग-अलग करके प्रसंस्करण केन्द्र में ठीक से नहीं भेजा जा रहा है तो इसका प्रसंस्करण करना सम्भव नहीं है। इस स्थिति में अपशिष्ट लैंडफिल (पंचम चरण) में फेंक दिया जाता है। अगर कूड़े-करकट को इकट्ठा करके उसकी छंटाई किए बिना ही प्रसंस्करण केन्द्र में पहुँचा दिया जाता है तो उसका प्रसंस्करण बड़ा मुश्किल है क्योंकि ऐसे कूड़े के साथ भवन निर्माण और उनकी तोड़-फोड़ से निकला मलबा भी होता है जिसे प्रसंस्करण संयंत्र में सीधे उपयोग में नहीं लाया जा सकता। कूड़े को इकट्ठा करने, छांटने और परिवहन जैसी गतिविधियों के बीच पूरा तालमेल होना जरूरी है। तभी उसका उपयोग उस इलाके के प्रसंस्करण केन्द्र में किया जा सकता है। कूड़े के विभिन्न अवयवों से सम्बन्धित मुद्दे संक्षेप में टेबल-1 में दिए गए हैं।
राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/प्रदूषण नियंत्रण समितियों द्वारा प्रस्तुत वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार देश में रोजाना कुल 1,52,076 टन ठोस कूड़ा उत्पन्न होता है। रोजाना 1,49,748 टन कूड़ा, जो कि कूड़े की कुल मात्रा का 98.5 प्रतिशत इकट्ठा किया जाता है। लेकिन केवल रोजाना 55,759 टन (35 प्रतिशत) कूड़े का उपचार किया जाता है, 50,161 टन (33 प्रतिशत) लैंडफिल में फेंक दिया जाता है और 46,156 टन यानी रोजाना उत्पन्न होने वाले कुल कूड़े के एक तिहाई का कोई हिसाब नहीं रहता।
देश में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति का विहंगावलोकन इस प्रकार हैः
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जिस कूड़े का कोई हिसाब-किताब नहीं मिलता वह गलियों में पड़ा रहता है या कूड़ा फेंकने के स्थानों में डाल दिया जाता है। इस समय देश में कूड़ा फेंकने के 3,159 स्थान हैं जो भूमिगत जल और वायु के प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं। कूड़े के इन ढेरों में आग लगने, इनकी स्थिरता और कूड़े से इन स्थानों की खूबसूरती खराब होने की भी समस्या उत्पन्न होती है। हाल में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के हस्तक्षेप से 11 राज्यों में ऐसे स्थानों में कूड़े के ढेरों की बायोमाइनिंग शुरू हुई है। (बायोमाइनिंग कूड़े के ढेरों को स्थिर बनाने की विधि है ताकि उनसे पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल असर को कम-से-कम किया जा सके)।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने निम्नलिखित दिशा-निर्देश तैयार किए हैं जिन्हें वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया है-
इसके अलावा, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सम्बन्धित अधिकारियों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के नियमों का अनुपालन कराने और इसमें चूक करने वाले अधिकारियों से दंड के तौर पर पर्यावरण-मुआवजा वसूलने के निर्देश दिए हैं।
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दमन और दीव तथा गोवा जैसे कुछ राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के नियमों का अधिकतम अनुपालन किया है, लेकिन बाकी के मामले में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा की गई पहल इस प्रकार है-
देश में कूड़े से ऊर्जा प्राप्त करने वाले 4 संयंत्र स्थापित किए गए, जिनमें से 4 दिल्ली में हैं। इन संयंत्रों में उत्पन्न बिजली विद्युत नियामक द्वारा खरीद कर राष्ट्रीय विद्युत ग्रिड को सप्लाई कर दी जाती है। देश के विभिन्न भागों में इसी तरह के कई संयंत्रों का निर्माण किया जा रहा है।
पुणे (महाराष्ट्र), इंदौर (मध्य प्रदेश) और अम्बिकापुर (छत्तीसगढ़) को मॉडल शहरों के रूप में विकसित किया गया है। इन शहरों ने कूड़े-करकट का दक्षतापूर्ण संग्रह करने, उसकी छंटाई और प्रसंस्करण की सुविधाएँ विकसित की हैं। इन शहरों ने कूड़ा फेंकने से खराब हुए स्थानों को ठीक करने की विधियों को अपनाया है और जमीन को फिर से उपयोग योग्य बनाया है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के पारित होने के बाद पिछले कुछ वर्षों में न्यायिक हस्तक्षेप की वजह से विभिन्न भागीदार, खास तौर पर राज्यों के अधिकारी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियमावली के प्रावधानों का पालन सुनिश्चित कर रहे हैं। अधिकरण के कुछ प्रमुख आदेश इस प्रकार हैः-
भूमि की उपलब्धता, अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और वित्तीय संसाधनों की कमी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा हैं इसलिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का मुख्य जोर-कूड़े-करकट में से अधिक से अधिक उपयोगी संसाधनों को अलग करना है ताकि कुशल ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए इन संसाधनों की उपलब्धता आसान हो जाए, इस दिशा में प्रमुख कदमों में शामिल हैं:-
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