दशकों से भारतीय अर्थव्यवस्था आयातित ऊर्जा स्रोतों की निर्भरता के साइड इफेक्ट से जूझती रही है। इसका प्रमुख कारण यही रहा। कि डीजल-पेटोल जैसे प्रचलित जीवाश्म ईंधन के स्वदेशी भंडार लगभग नगण्य हैं, ऐसे में आयात पर निर्भरता भारत की विवशता रही है। लेकिन जब भी किन्हीं कारणों से कच्चे तेल के दामों में उछाल आता है, भारत पर महंगाई की मुसीबत का खतरा मंडराने लगता है। ताजा उदाहरण इजरायल-ईरान संघर्ष के कारण तेल के दामों में जैसे ही तेजी की आशंका उत्पन्न हुई, भारतीय शेयर बाजार पर उसके दुष्प्रभाव नजर आने लगे। ऐसे में भारत का ध्यान आयातित उर्जा पर निर्भरता से निजात पाते हुए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
संसाधनों, खासकर बिजली ने मानव सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है। आज स्थिति यह है कि यदि बिजली उपलब्ध है तो आप 21वीं सदी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में सक्षम हैं। लेकिन यदि बिजली नदारद हो जाए तो आप तत्काल कई सदी पीछे की जीवन स्थितियों का अनुभव करने लगते हैं। लेकिन कोयले से उत्पादित बिजली और डीजल-पेटोल जैसे जीवाश्म उर्जा संसाधनों के उत्पादन की कीमत हमारे पर्यावरण को चुकानी पड़ी है। यदि आज हमारे समक्ष जलवायु परिवर्तन से उपजे खतरों का संकट सामने खड़ा है तो इसका एक प्रमुख कारण बिजली एवं अन्य ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया गया जीवाश्म ईंधनों का दोहन रहा।
पिछली सदी हाइड्रोकार्बन यानी पेट्रोलियम उत्पादों की रही, जिसने वैश्विक अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। इस दौरान दुनिया ने तेज गति से प्रगति की और उर्जा संसाधनों की बढ़ती उपलब्धता के कारण मानव जीवन के स्तर में बहुत सुधार आया। लेकिन इस प्रगति की एक बहुत बड़ी कीमत प्रदूषण एवं पर्यावरणीय संकट के रूप में चुकानी पड़ रही है। यही कारण है कि वैश्विक तापमान में हो रही निरंतर वृद्धि को थामने और कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए भारत सरकार, वैकल्पिक उर्जा के अक्षय और नवीकरणीय स्रोतों के विकास को निरंतर आगे बढ़ाने में जुटी है।
गैर-पारंपरिक ऊर्जा संसाधन न केवल स्वच्छ हैं, बल्कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के दृष्टिकोण से भी निर्णायक रूप से महत्वपूर्ण हैं। इसी प्रयास का परिणाम है कि भारत के कुल बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा का योगदान 2015 में मात्र 0.5 प्रतिशत था, वह अब 2023 तक बढ़कर 5.8 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। इतना ही नहीं, भारत सबसे सस्ती सौर ऊर्जा उत्पादन करने वाला देश भी है। वर्ष 2030 तक 450 गीगावाट के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक शुरुआत कर चुका है।
अक्षय उर्जा के उत्पादन के मामले में सौर उर्जा उत्पादन को लेकर भारत में सर्वाधिक अनुकूल स्थिति है। भारत में साल के औसतन 300 दिन सूर्य की रोशनी उपलब्ध रहती है और यह बात हमारे देश को स्वच्छ एवं अक्षय ऊर्जा के प्रमुख वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने का अवसर प्रदान करते हैं। अक्षय ऊर्जा के इन स्रोतों में सौर ऊर्जा एक आकर्षक और संभावनापूर्ण विकल्प के रूप में उभरी है। इस दिशा में प्रधानमंत्री मोदी की पहल पर फ्रांस के सहयोग से भारत ने 'अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन' की नींव रखी। इसमें सम्मिलित करीब 121 देश जीवाश्म ईंधनों से इतर ऊर्जा के विकल्पों को अपनाने के लिए एकजुट हुए। इस सौर गठबंधन पहल पर वर्ष 2030 तक विश्व में सौर ऊर्जा के माध्यम से विश्व में 1 ट्रिलियन वाट यानी 1000 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। सौर ऊर्जा के माध्यम से ऊर्जा के मोर्चे पर एक नई क्रांति की आधारशिला रखने के ठोस प्रयास आकार लेने लगे हैं
इस दृष्टि से भारत भाग्यशाली है। यहां वर्ष के औसतन 300 दिन सूर्य की रोशनी में नहाए होते हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत के भौगोलिक भाग पर पाँच हजार लाख किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर के बराबर सौर ऊर्जा आती है। वहीं, एक मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए करीब तीन हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता होती है। इस दृष्टिकोण से भारत में सौर ऊर्जा के मोर्चे पर विपुल संभावनाएं हैं। समय के साथ सौर ऊर्जा की लागत में भी कमी आयी है। आंकड़ें स्वयं इसकी पुष्टि करते हैं। वर्ष 2016 में 4.43 की दर वाली सौर यूनिट अब लगभग २ रुपये पर आ गई है।
देश में गुजरात, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सौर ऊर्जा क्रांति की जमीन तैयार हो रही है। इसमें सरकार और निजी क्षेत्र बराबर भागीदारी कर इस संभावना को भुनाने में जुटा है। आज भारत की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़कर ३६ प्रतिशत हो गई है। केवल बीते छह वर्षों में ही यह ढाई गुना बढ़ी है, और इसमें सौर ऊर्जा का योगदान 13 गुना तक बढ़ा है। बीते छह वर्षों में इस क्षेत्र में आया साढ़े चार लाख करोड़ से अधिक का निवेश दर्शाता है कि उद्यमियों को भी भारत के भविष्य की झलक अक्षय-सौर ऊर्जा में ही दिख रही है।
प्रदूषण से निपटना और पर्यावरण संरक्षण इस समय वैश्विक विमर्श का एक प्रमुख विषय है। अक्षय ऊर्जा के माध्यम से भारत वैश्विक पर्यावरणीय संकट के समाधान में भी निर्णायक भूमिका निभा रहा है। इस समय भारत अक्षय ऊर्जा उत्पादक विश्व के शीर्ष तीन देशों में शामिल है। अकेले रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर परियोजना से लगभग 15.7 लाख टन कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन रोका गया है। यह धरती पर ढाई करोड़ से अधिक पेड़ लगाने के समतुल्य है। भारत सरकार ने राष्ट्रीय सोलर मिशन लागू कर नीतिगत दिशा में भी सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन देने की औपचारिक पहल की है। केंद्र सरकार के अनुमान के अनुसार वर्ष 2030 तक भारत में अक्षय ऊर्जा की भागीदारी 40 प्रतिशत और वर्ष 2035 तक 60 प्रतिशत तक हो सकती है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए ऊंचे लक्ष्य तय किए हैं। इस पहल से विकास, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के मोर्चों पर अनुकूल परिणाम प्राप्त होने की संभावना बढ़ गई है।
सरकार की कोशिशों के कारण ही भारत में स्वच्छ ऊर्जा विशेषकर सौर ऊर्जा का क्षेत्र एक उभरते उद्योग का रूप ले चुका है और बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार मिल रहा है। परंपरागत ऊर्जा के विकल्पों से नवीकरणीय ऊर्जा बेहतर और सस्ता स्रोत है। इस कारण सौर ऊर्जा के लिए इस्तेमाल होने वाले सामानों की मांग बढ़ी है। आम लोग भी ऊर्जा के स्थायी विकल्प के तौर पर सोलर एनर्जी की तरफ रुख कर रहे हैं। 'पीएम सूर्यघर' योजना के बाद लगातार ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जिन्होंने अपने घर की छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित कर लिया है। ये सौर ऊर्जा संयंत्र देश में नई ऊर्जा क्रांति की नींव के पत्थर हैं। इन संयंत्रों से उत्पादित बिजली के जरिए लोग अपनी उर्जा जरूरत की पूर्ति के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं बन रहे हैं, बल्कि अपनी आवश्यकता से अतिरिक्त उत्पादित बिजली को ग्रिड में भेजकर आर्थिक लाभ भी प्राप्त कर रहे हैं। 'पीएम सूर्यघर' योजना के माध्यम से सरकार ने देश के करोड़ों घरों को सौर ऊर्जा से आवरित करने का अभियान आरंभ किया है। जनसामान्य ने इस योजना को हाथोंहाथ लिया है।
देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश इस योजना का अगुवा बन कर उभरा है। इस नई स्वच्छ ऊर्जा क्रांति का आधार स्मार्ट मीटर बन रहा है। दरअसल, कोई व्यक्ति सौर उर्जा संयंत्र स्थापित करने के बाद कितनी बिजली उत्पादित कर रहा है और कितनी बिजली वह ग्रिड से प्राप्त कर रहा है या वापस ग्रिड में डाल रहा है, इसके सटीक मापन के लिए स्मार्ट मीटर अनिवार्य है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश, बिहार और हरियाणा सहित देश के अनेक राज्यों में स्मार्ट मीटर की स्थापना की परियोजनाएं त्वरित गति से चलाई जा रही हैं। स्मार्ट मीटर के जरिए लोगों को अपनी बिजली खपत के प्रबंधन में भी सहायता मिल रही है क्योंकि इसके जरिए कोई भी उपभोक्ता अपनी बिजली खपत की हरसमय निगरानी कर सकता है। इस प्रकार स्मार्ट मीटर उपभोक्ताओं के लिए आर्थिक लाभ का उपक्रम बनने के साथ ही पारदर्शिता और सशक्तीकरण का माध्यम बनता जा रहा है। यही कारण है कि देश के अनेक महानगरों में घरों की छतों पर सौर उर्जा संयंत्रों की संख्या लगातार बढ़ती देखी जा रही है। यह देखते हुए विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि आगामी समय में भारत में ऐसे बिजली उपभोक्ताओं की संख्या करोड़ों में होगी, जो न केवल अपनी आवश्यकता भर बिजली स्वयं उत्पादित कर रहे होंगे, बल्कि अतिरिक्त उत्पादित बिजली को ग्रिड में डालकर देश की प्रदूषणमुक्त अक्षय उर्जा क्रांति में योगदान भी कर रहे होंगे।
रेलवे का शत-प्रतिशत विद्युतीकरण और बिजली चालित वाहनों को बढ़ावा मिलने से भी भारत का ऊर्जा परिदृश्य आत्मनिर्भर और सुदृढ़ होने वाला है। इससे पर्यावरण के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर व्यापक पैमाने पर बदल जाएगी। यह आत्मनिर्भर भारत बनाने के संकल्प को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।