नीतियां और कानून

गारंटी विहीन मनरेगा

राजेन्द्र बन्धु और सारिका सिन्हा


वर्ष 2013 में जारी मनरेगा के नए दिशा-निर्देशों में ऐसे कामों को शामिल किया गया था, जिनसे गाँव में जल और मिट्टी संरक्षण हो सके और आजीविका विकास की दिशा में गाँव आगे बढ़ सकें। अत: मनरेगा में कई सार्वजनिक एवं हितग्राही मूलक कामों को जोड़ा गया। मनरेगा में शामिल हितग्राही मूलक कामों, जैसे खेतों में पालाबंदी, कंटूर ट्रेंच का निर्माण, खेत तालाब, आदि शामिल है। इससे खेती में सुधार होने और पानी तथा मिट्टी के संरक्षित होने की सम्भावना सामने आती है। एक दशक पहले देश में लागू हुए महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम से मजदूरों और लघु व सीमान्त किसानों के पक्ष में एक बड़ी उम्मीद की गई थी। ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक परिवार को एक वर्ष में 100 दिनों के रोजगार की गारंटी से मिलने वाली मजदूरी उसके भरण-पोषण के लिये अच्छा सहारा मानी जाती है। सूखे और अकाल की स्थिति में भी इससे बहुत उम्मीदें थीं। किन्तु पिछले एक दशक के अनुभव इस दिशा में ज्यादा बेहतर नहीं रहे।

बुन्देलखण्ड में सूखे के सन्दर्भ मे यह देखने की आवश्यकता है कि यहाँ मनरेगा का क्रियान्वयन किस तरह हो रहा है तथा क्या यह लोगों को रोजगार देकर राहत और पलायन से मुक्ति दे पा रही है? इस सन्दर्भ में विभिन्न अध्ययनों और सरकार के खुद के आँकड़ों से भी उत्साहजनक तस्वीर समाने नहीं आती। हालांकि सूखा प्रभावित क्षेत्र में सरकार द्वारा मनरेगा में काम के दिन 100 से बढ़ाकर 150 कर दिये गए हैं। अत: यह देखने की जरूरत है तक अब तक 100 दिनों के रोजगार की क्या स्थिति है और 150 दिनों का रोजगार लोगों को कैसे मिल पाएगा? ग्रामीण विकास मंत्रालय के वित्त वर्ष 2015-16 के आँकड़ों के अनुसार बुन्देलखण्ड के छह जिलों सागर, दमोह, पन्ना, टीकमगढ़, छतरपुर और दतिया में मनरेगा के तहत महज 25 प्रतिशत काम ही पूरे हो पाये। इस वर्ष पन्ना में 3620 और दमोह में 8620 काम शुरू किये गए थे। मगर पन्ना में 74 और दमोह में 627 काम ही पूरे हो सके। यही हाल बुन्देलखण्ड के अन्य जिलों का है। टीकमगढ़ में 27.3, छतरपुर 12.48, सागर 17.59 और दतिया में 25.1 प्रतिशत कार्य ही पूरे हो सके।

मनरेगा के तहत जिन लोगों ने काम किया उन्हें समय पर मजदूरी भी नहीं मिल पाई, जिससे लोगों का मनरेगा के प्रति आकर्षण खत्म हो गया। सागर जिले में मार्च माह तक मजदूरी और मटेरियल का 23 करोड़ रुपए बकाया थे। स्वराज अभियान द्वारा मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में शामिल बुन्देलखण्ड में किये गए अध्ययन के अनुसार इस वर्ष अप्रैल माह में सिर्फ 29 प्रतिशत लोगों को ही मनरेगा के अन्तर्गत रोजगार प्राप्त हुआ। जबकि मध्य प्रदेश के छह जिलों में अप्रैल माह में 18 लाख 81 हजार 296 मानव दिवस रोजगार की सम्भावना जताई गई थी, मगर रोजगार सिर्फ पाँच लाख 47 हजार 136 मानव दिवस का ही मिल सका। इस तरह कुल सम्भावना का सिर्फ 29 प्रतिशत मानव दिवस का काम ही मिला (मनरेगा वेबसाइट दिये गए आँकड़ों के अनुसार)। मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड में सम्भावना के मुकाबले छतरपुर में 24 प्रतिशत, दमोह में 40 प्रतिशत, पन्ना में 16 प्रतिशत, सागर में 41 प्रतिशत और टीकमगढ़ में 20 प्रतिशत मानव दिवस काम उपलब्ध हो सका है। मनरेगा में काम नहीं मिलने से सबसे ज्यादा खराब स्थिति टीकमगढ़ और छतरपुर जिले में देखी जा सकती है, जहाँ हर रोज हजारों लोग पलायन करने को विवश हैं। इन जिलों में 4.53 लाख कार्य दिवस का लक्ष्य था, जबकि अब तक वास्तव में 20 प्रतिशत कार्य दिवस रोजगार ही उपलब्ध करवाया जा सका।

जमीनी हकीकत

अब तक नहीं बने जॉब कार्ड

रोजगार के अधिकार तक पहुँच की स्थिति

क्या काम हुए

मनरेगा में शुरू हुए कार्यों की स्थिति - 2015-16

जिला

शुरू हुए कार्यों की संख्या

पूरे हुए कार्यों की संख्या

पूरे नहीं हुए कार्यों की संख्या

पूरे हुए कार्यों का प्रतिशत

सागर

5575

980

4591

17.59

दमोह

8620

627

7993

7.27

छतरपुर

5802

724

5078

12.48

टीकमगढ़

3235

883

2352

27.3

पन्ना

3620

74

3546

2.04

दतिया

3367

845

2522

25.1

मनरेगा : मजदूरी न मिलने से टूटा भरोसा
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