दिल्ली-एनसीआर में जब भी जलभराव या बाढ़ की स्थिति पैदा होती है, तब हथिनीकुंड बैराज का नाम खबरों में ज़रूर आता है। अकसर, हथिनीकुंड बैराज से पानी छोड़े जाने को बाढ़ की वजह बताया जाता है। सरकार के मुताबिक अब दिल्ली वालों को इस समस्या से निजात मिलने वाली है। क्योंकि, इस बैराज पर बांध बनाने की योजना को हरी झंडी मिल गई है। प्रस्तावित बांध से बाढ़ नियंत्रण, जलापूर्ति, सिंचाई व्यवस्था में सुधार और बिजली उत्पादन में बढ़ोतरी जैसे फ़ायदे बताए जा रहे हैं। पर, इसे लेकर कई पर्यावरीण और यमुना के पारिस्थितिक तंत्र से जुड़ी चिंताएं भी जताई जा रही हैं।
केंद्रीय रेल एवं जल शक्ति राज्य मंत्री वी. सोमन्ना ने बीते 14 सितंबर को कहा कि यमुना नदी में बाढ़ की समस्या का स्थायी समाधान हथिनीकुंड बैराज के अपस्ट्रीम पर बांध बनाने से होगा। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए 20 सितंबर को केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल ने दिल्ली के लिए 50 साल बाद दूसरा ड्रेनेज मास्टर प्लान जारी किया है, जिसमें हथिनीकुंड बैराज के पास एक बांध बनाने की योजना को प्रमुखता से शामिल किया है।
एक रिपोर्ट के अनुसार वी. सोमन्ना के साथ हरियाणा के यमुनानगर ज़िले में हुई समीक्षा बैठक में हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग के एसई आरएस मित्तल ने बताया कि हथिनीकुंड बैराज पर डैम बनने से न केवल बाढ़ पर काबू पाया जा सकेगा, बल्कि इससे 250 मेगावाट बिजली का उत्पादन और भूजल स्तर में सुधार भी होगा। साथ ही, दिल्ली-एनसीआर में सालभर पानी की उपलब्धता बनी रहेगी।
वी. सोमन्ना ने बैठक में कहा कि हथिनीकुंड बैराज पर अपस्ट्रीम पर प्रस्तावित बांध के निर्माण से दिल्ली और आसपास के इलाकों में यमुना नदी की बाढ़ से होने वाली तबाही का स्थायी समाधान मिल सकता है। उन्होंने कहा कि यह परियोजना केंद्रीय जल बोर्ड के दायरे में आती है। लिहाज़ा वह इसे तेजी से आगे बढ़ाने के लिए अपनी ओर से हर संभव प्रयास करेंगे। बांध के बजट के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी बात करने का भरोसा दिलाते हुए उन्होंने कहा कि सरकार के पास बजट की कमी नहीं है।
साथ ही, उन्होंने हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ बातचीत करके गतिरोधों को दूर कर, अटकी प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की बात भी कही। प्रस्तावित बांध का प्रारंभिक सर्वेक्षण हरियाणा और हिमाचल प्रदेश के संबंधित क्षेत्रों में पहले ही हो चुका है। अतिरिक्त सर्वेक्षण के लिए हरियाणा सरकार ने हिमाचल सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) मांगा है। एनओसी के बाद दोनों प्रदेशों के बीच इस बांध के निर्माण के लिए करार हो सकता है।
बांध (डैम) और बैराज दोनों ही नदी पर बनाए जाने वाले ढांचे हैं, लेकिन इन दोनों का मकसद और संरचना अलग होती है। बांध एक मज़बूत दीवारनुमा संरचना होती है, जो नदी के बहाव को रोककर उसके पीछे एक बड़ा जलाशय (रिज़र्वायर) बना देती है। इससे पानी को बिजली उत्पादन, सिंचाई और पेयजल आपूर्ति के लिए इकट्ठा किया जाता है।
वहीं बैराज एक तरह का कम ऊंचाई वाला ढांचा होता है, जिसमें कई गेट लगे होते हैं। इसका मकसद पानी को पूरी तरह रोकना नहीं, बल्कि उसके बहाव को नियंत्रित करना होता है। बैराज से नदी के प्रवाह को नहरों की ओर मोड़ा जाता है, ताकि सिंचाई और जल वितरण आसान हो सके।
सरल शब्दों में कहें तो बांध पानी को रोककर जमा करता है, जबकि बैराज पानी के बहाव को नियंत्रित करता है और दिशा देता है। बांध में जलाशय बनता है, जबकि बैराज में जलाशय नहीं होता।
हथिनीकुंड बैराज के पास अपस्ट्रीम पर बांध बनाने की मांग वर्षों से की जा रही है। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने 2018-19 में यमुना नदी में आई भयंकर बाढ़ के बाद हेलीकॉप्टर से बाढ़ प्रभावित इलाकों का दौरा करने के बाद इसके लिए एक योजना बनाई थी। उस समय हथिनीकुंड बैराज से लगभग सात किलोमीटर पहले बांध बनाने की परियोजना का प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन जयराम ठाकुर की अगुवाई वाली हिमाचल प्रदेश सरकार की असहमति के कारण योजना ठंडे बस्ते में चली गई।
प्रस्तावित बांध के लिए करीब 5,200 एकड़ भूमि चिह्नित की गई है। इसमें से आधी सरकारी जंगलों की और आधी किसानों की है। बांध के निर्माण से 13 गांव प्रभावित होंगे, जिनमें चार हरियाणा और नौ हिमाचल प्रदेश के हैं। बांध के लिए अधिग्रहीत की जाने वाली ज़्यादातर ज़मीन हिमाचल प्रदेश में आती है।
यमुना सेवा समिति के प्रधान किरण पाल राणा का कहना है कि हथिनीकुंड बांध बनने से हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली सहित तीन राज्यों को राहत मिलेगी। इससे किसानों की फसलें बाढ से बर्बाद नहीं होंगी और उनके खेतों की ज़मीनें भी यमुना की बाढ़ में नहीं बहेंगी। यह बांध आने वाली पीढ़ियों के लिए लाभकारी होगा। यमुना सेवा समिति हरियाणा के यमुना नगर ज़िले के किसानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों का एक संगठन है, जो मुख्य रूप से यमुना नदी से जुड़ी पर्यावरणीय समस्याओं जैसे, अवैध रेत खनन, नदी प्रदूषण और नदी किनारों की देख-रेख करता है और इनसे जुड़े मुद्दों पर आवाज़ उठाता है।
मानसून में भारी बारिश होने पर हथिनीकुंड बैराज के गेट खोलकर हर साल लाखों क्यूसेक पानी बहा दिया जाता है। इस बार मानसून में बैराज के 18 गेट 105 घंटे तक खुले रहने से 3.25 लाख क्यूसेक पानी बहाया गया। इससे जहां दिल्ली में यमुना से लगे निचले इलाकों में भारी जलभराव की समस्या हुई, वहीं हरियाणा के यमुना नगर से सोनीपत तक करीब साढ़े तीन हज़ार एकड़ कृषि भूमि नदी में समा गई।
पानी बहाए जाने और खेतों के कटकर बह जाने का यह सिलसिला हर साल बदस्तूर जारी रहता है। इससे जितने पानी की बर्बादी होती है, अगर उसे जमा किया जाए, तो हरियाणा और दिल्ली के आसपास के इलाकों में जल संकट की समस्या से काफ़ी हद तक निपटा जा सकता है। क्योंकि मानसून में जहां बैराज में पानी क्षमता से ज़्यादा हो जाता है, वहीं साल के बाकी समय, खासकर गर्मियों में यहां पानी की कमी देखने को मिलती है।
गर्मी और सर्दी के मौसम में पानी की मात्रा घटकर महज़ 1200 से 1300 क्यूसेक ही रह जाती है। ऐसे समय में बैराज से केवल 355 क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है, जो कुछ दूरी तक ही पहुंच पाता है। इतना कम पानी यमुना के जलीय जीव-जंतुओं के लिए पर्याप्त नहीं होता। लिहाज़ा इससे नदी के पारिस्थितिक तंत्र को काफ़ी नुकसान होता है।
ऐसे में, बैराज पर बांध बनने से पानी की यह किल्लत खत्म हो सकती है और आसपास के क्षेत्रों के भूजल स्तर में भी सुधार आएगा। पानी की कमी के चलते साल के ज़्यादातर समय यमुना नदी का पानी दिल्ली को प्राथमिकता के साथ दिया जाता है। इसके बाद ही हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हिस्से में पानी आता है। इससे गर्मी और सर्दी में इन दोनों राज्यों को यमुना के पानी की सप्लाई अक्सर बाधित हो जाती है। प्रस्तावित बांध से यह समस्या भी दूर हो जाएगी और यूपी व हरियाणा को भी पूरे साल पानी की आपूर्ति होती रहेगी।
साथ ही, इससे ताजेवाला, भूड़कलां और बेगमपुर की हाईडल पावर यूनिटों को निरंतर पानी मिल सकेगा। इन इकाइयों को बिजली उत्पादन के लिए 5400 क्यूसेक पानी की जरूरत होती है। लेकिन, गर्मी और सर्दी के मौसम में पानी की कमी के कारण बार-बार उत्पादन प्रभावित होता है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय शहरी विकास व आवास मंत्री मनोहर लाल ने 20 सितंबर को 50 साल बाद दिल्ली का दूसरा ड्रेनेज मास्टर प्लान लॉन्च करते हुए कहा कि हथिनीकुंड बैराज के पास डैम बनने के बाद यहां करीब 14 किलोमीटर लंबा जलाशय होगा। बांध के निर्माण पर करीब 6134 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसे यमुनानगर ज़िले में हथिनीकुंड बैराज से 4.5 किलोमीटर ऊपर की ओर बनाया जाएगा।
राजस्थान पत्रिका की रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पहले अगस्त में यमुना जल परियोजना के तहत हरियाणा के हथिनीकुंड बैराज (ताजेवाला हेड) पर राजस्थान का खुद का पंप हाउस (इन्टेक) बनना तय हो चुका है। यह पंप हाउस बनने पर पानी वितरण को लेकर राजस्थान की हरियाणा पर निर्भरता नहीं रहेगी। इस पंप हाउस से सीधे चूरू, झुंझुनूं और सीकर ज़िलों में पानी पहुंचाया जाएगा।
इसके बाद, राजस्थान का जल संसाधन विभाग तय करेगा कि किस ज़िले को किस समय कितना पानी देना है। दोनों राज्यों के बीच हुए समझौते (एमओयू) के तहत राजस्थान को 57.7 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी मिलना तय हुआ है। अभी पेयजल लाइन बिछाने के लिए सर्वे किया जा रहा है। पहले चरण में हरियाणा से राजस्थान बॉर्डर तक लाइन का अलाइनमेंट तय होगा। इसकी दूरी करीब 300 किलोमीटर है। इसके बाद पंप हाउस निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
करीब 6,134 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले बांध का जलाशय लगभग 14 किलोमीटर लंबा होगा, इसकी 10.82 लाख क्यूसेक होगी।
इससे किसानों को सिंचाई के लिए अतिरिक्त पानी मिलेगा। इससे रबी फसल मौसम (अक्टूबर-दिसंबर) में लगभग 2.24 लाख एकड़ भूमि की सिंचाई संभव होगी, जबकि खरीफ मौसम (जून-अक्टूबर) में अतिरिक्त 1.27 लाख एकड़ भूमि इस जलाशय के पानी से सिंचित की जा सकेगी।
बांध बनने के बाद उसके डूब क्षेत्र में किसानों को सिंघाड़ा, कमल, मखना, वाटर लिली जैसी पानी में उगने वाली फसलें उगाने का मौका मिलेगा, जो उन्हें आम खेती में उगाई जाने वाली फसलों से ज़्यादा आमदनी दिला सकती हैं।
बांध के बनने से हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली के अलावा उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के लोगों को भी लाभ होगा। यह लाभ जलापूर्ति, सिंचाई के लिए ज़्यादा पानी मिलने और बांध से बनने वाली बिजली के उत्पादन के रूप में प्राप्त होंगे।
एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकारियों का कहना है कि बांध परियोजना के पूरा होने पर इससे लगभग 497 करोड़ रुपये तक के आर्थिक लाभ हो सकते हैं। इनमें सिंचाई क्षमता में बढ़ोतरी से उपज में होने वाली वृद्धि, भूजल के स्तर में सुधार से होने वाली आर्थिक बचत, और जल कृषि से किसानों की आय में इज़ाफा आदि शामिल हैं।
हालांकि, इस बांध के बनने के कई लाभ बताए जा रहे हैं, लेकिन इसके निर्माण से कई प्रकार की सामाजिक, आर्थिक और पर्यावारणीय समस्याएं भी उभरने वाली हैं, जिसे लेकर चिंताएं जताई जा रही हैं। बांध निर्माण से जुड़ी सबसे पहली और बड़ी समस्या इसके कारण होने वाले विस्थापन की है।
टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, बांध के बनने से लगभग 9 गांवों को विस्थापित करना पड़ेगा। इनमें हरियाणा के चार गांव गढ़ी, कलेसर, बंजारवास, ममदुवास और हिमाचल प्रदेश के पांच गांव बहराल, सतीवाला, बाता मंडी, गंगूवाला, थापरपुर शामिल हैं। बांध बनने से इन गांवों के हज़ारों लोगों के घर-बार और कृषि भूमि छिन जाएगी या जलमग्न हो जाएगी। इन्हें मुआवज़ा और पुनर्वास से जुड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
इसके बाद भी इनकी जिंदगी पटरी पर आने में काफ़ी समय लग सकता है। क्योंकि, दशकों से खेती-बारी कर जीवन-यापन कर रहे इन लोगों को रोज़गार के नए अवसर तलाशने होंगे और खुद को उसके अनुरूप ढालना होगा। विस्थापन के बाद पुनर्वास के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों के समाधान के उपाय करना भी आवश्यक होगा।
लोगों को उनके पारंपरिक जीने के तरीकों और सामाजिक बुनावट को बरकरार रखने के लिए सरकार की ओर से सहयता योजनाओं की आवश्यकता होगी। साथ ही, बांध बनाने के लिए साथ ही एनएच-73 के लगभग 11 किलोमीटर लंबे हिस्से को हटा कर दूसरी जगह सड़क बनानी पड़ेगी। इसमें न केवल एक मोटी रकम खर्च होगी, बल्कि आसपास के इलाकों के लोगों को जीवन भी प्रभावित होगा।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, इस बांध परियोजना के चलते आसपास के एक बड़े क्षेत्र में वन भूमि का भी पर्याप्त हिस्सा डूब जाएगा, जिससे जैव विविधता को नुकसान होगा। इसमें कलेसर नेशनल पार्क तथा वन्यजीव अभयारण्य भी शामिल है। जलाशय बनने से वन भूमि के साथ ही उन जंगलों में रहने वाले वन्य जीव भी प्रभावित होंगे।
इसके अलावा, बांध का निर्माण जलीय जीवन को भी काफ़ी हद तक प्रभावित करेगा। क्योंकि, इसके चलते मछलियों की कई प्रजातियों और अन्य जलीय जीवों के आवास में परिवर्तन हो जाएगा। बांध के ज़रिये पानी को रोके जाने से पानी बहाव कम होगा, तो पानी की गुणवत्ता भी प्रभावित होने का खतरा है, क्योंकि ठहराव से पानी में तरह तरह के जीवाणु पनप सकते हैं और प्रदूषणकारी तत्वों के जमा होने से पानी में सड़ांध पैदा हो सकती है। पानी में हानिकारक बैक्टीरिया और प्रदूषण का स्तर बढ़ने से ऑक्सिजन की कमी हो सकती है, जिससे जलीय जीवों के जीवन को खतर हो सकता है और जलजनित रोगों का प्रसार बढ़ सकता है।
बरसात में बाढ़ और गर्मी व जाड़े के मौसम में जलसंकट की समस्या के समाधान के लिए बाढ़ को सरकार आवश्यक और उपयोगी बताया रही है। दूसरी ओर, पर्यावरणविदों और पानी के मुद्दों से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि इन समस्याओं के समाधान के लिए बांध बनाने जैसे खर्चीले और पर्यावरण को प्रभावित करने वाले उपाय को अपनाना ही एकमात्र विकल्प नहीं है।
सीडब्लूसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, नदी की डीसिल्टिंग करके यानी नदी से गाद हटा कर भी इस समस्या का काफ़ी हद तक निराकरण किया जा सकता है। बांध बनाने की तुलना में काफी कम पैसे खर्च करके और पर्यावरण को कोई नुकसान पहुंचाए बिना यह काम हो सकता है, क्योंकि नदी के तल में भारी मात्रा में जमी गाद को हटाने से इसकी वाटर होल्डिंग कैपिसिटी बढ़ जाएगी।
किसी नदी के पानी को पूरी तरह से रोका जाए, तो एक बड़े इलाके के डूबने के साथ ही पानी का दबाव बढ़ने पर बांध के टूटने का खतरा हो सकता है। ऐसे में, हथिनीकुंड बैराज पर बने बांध में अगर ऐसा कुछ होता है, तो इससे आने वाली बाढ़ देश की राजधानी दिल्ली में तबाही ला सकती है।
यह रिपोर्ट नदी में गाद जमा होने की समस्या का विश्लेषण करते हुए बताती है कि कैसे गाद जमा होने से नदी की बहने की क्षमता कम होती है, जिससे बाढ़ का जोखिम बढ़ जाता है। इसके अलावा खुद केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय के जल संसाधन विभाग की एक रिपोर्ट बताती है कि गाद जमा होने की समस्या बांधों को भी बुरी तरह प्रभावित करती है। क्योंकि, इससे न सिर्फ़ बांधों की जल भंडारण क्षमता घट जाती है, बल्कि गाद के बोझ से बांध के क्षतिग्रस्त होने, उसमें दरारें आने और यहां तक कि बांध के ढह जाने तक का जोखिम पैदा हो जाता है।
इसके अलावा हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में भी यमुना की डीसिल्टिंग कर इसकी होल्डिंग कैपिसिटी बढ़ाने की ज़रूरत जताई गई है। इसकी सबसे अधिक समस्या आईटीओ बैराज से ओखला बैराज के बीच 14 किमी लंबे हिस्से पर है। इस हिस्से में यमुना की गहराई में 7 मीटर तक का अंतर है। जैसे आईटीओ बैराज के पास गहराई करीब 207 मीटर है, वहीं ओखला बैराज के पास गहराई सिर्फ 200 मीटर है।
हथिनीकुंड बैराज यमुना नदी पर बना एक महत्त्वपूर्ण जल ढांचा है। यह दिल्ली और उसके आसपास के कई हिस्सों की सिंचाई और पेयजल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है। यमुना के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए बने कुल 18 गेट वाले हथिनीकुंड बैराज के बारे में कुछ प्रमुख तथ्य इस प्रकार हैं:
स्थान – यह बैराज हरियाणा के यमुनानगर ज़िले में यमुना नदी पर स्थित है, कालसी (उत्तराखंड) और सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) की सीमा के करीब।
निर्माण वर्ष – साल 1999 में हथिनीकुंड बैराज का निर्माण ब्रिटिश काल में बने पुराने ताजेवाला हेडवर्क (1873 में निर्मित) की जगह किया गया था।
उद्देश्य – पश्चिमी यमुना नहर (डब्लूवाईसी) और पूर्वी यमुना नहर (ईवाईसी) को सिंचाई व पेयजल आपूर्ति के लिए पानी उपलब्ध कराना।
क्षमता – बैराज से लगभग 20,000 क्यूसेक तक का पानी दोनों नहरों में छोड़ा जा सकता है।
महत्त्व – यह बैराज दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान तक सिंचाई व पेयजल की आपूर्ति का में अहम भूमिका निभाता है।
बाढ़ प्रबंधन – हथिनीकुंड बैराज को सबसे ज़्यादा बाढ़ प्रबंधन के संदर्भ में ही जाना जाता है, क्योंकि यह मानसून में यमुना के बढ़े प्रवाह को नियंत्रित कर निचले क्षेत्रों में बाढ़ के ख़तरे को कम करता है। इस बैराज से पानी छोड़े जाने पर अकसर दिल्ली के निचले इलाकों में जलभराव या बाढ़ की ख़बरें आती हैं।
पर्यावरणीय पक्ष – बैराज बनने के बाद यमुना नदी के प्राकृतिक प्रवाह में बड़ा बदलाव आया, जिससे डाउनस्ट्रीम में, नदी के बहाव, पानी की स्वच्छता और जैव विविधता पर असर पड़ा। यमुना का पानी नहरों में मोड़े जाने से दिल्ली से आगरा तक यमुना का प्रवाह काफ़ी कम हो गया, जिससे प्रदूषण का असर बढ़ा। इससे यमुना के जलीय जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल असर पड़ा।
भविष्य की योजना – हरियाणा सरकार ने हथिनीकुंड पर नया हथिनीकुंड डैम प्रोजेक्ट प्रस्तावित किया है। सरकार का कहना है कि इससे बिजली उत्पादन, सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण में और सुधार होगा।