मनरेगा योजना के तहत गांवों में खोदे गए तालाबों ने बीते दो दशकों के दौरान ग्रामीण स्‍तर पर जल संरक्षण को मज़बूती प्रदान की।  स्रोत : मुल्‍ख सिंह, विकी कॉमंस
नीतियां और कानून

क्‍या ग्रामीण रोज़गार, पर्यावरण और जल संरक्षण की उम्‍मीदों पर मनरेगा जितनी खरी उतरेगी VB-G RAM G?

केंद्र सरकार की नई योजना को लेकर उठ रहे सवाल, स्‍वरूप से लेकर योजना के क्रियान्‍वयन और प्रभाव तक की होगी समय की कसौटी पर परीक्षा

Author : कौस्‍तुभ उपाध्‍याय

ग्रामीण स्‍तर पर रोज़गार उपलब्‍ध कराने वाली सरकारी योजना ‘मनरेगा’ यानी महात्‍मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम एक बार फिर सुर्खियों में है। केंद्र सरकार करीब दो दशक पुरानी इस योजना को खत्‍म कर इसकी जगह एक नई स्‍कीम लाने की तैयारी में है। नई योजना का नाम होगा ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)' योजना, जिसे संक्षेप में VB-G RAM G भी कहा जा रहा है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मनरेगा की जगह विकसित ‘वीबी जी राम जी’ बिल 2025 को बीते मंगलवार को लोकसभा में पेश कर दिया है।

केंद्र सरकार के इस कदम को ठीक उसी तरह देखा जा है, जिस तरह उसने एक दशक पहले 1 जनवरी, 2015 को योजना आयोग को ख़त्‍म कर उसकी जगह ‘नीति’ आयोग की स्‍थापना की थी। इसमें नीति का फुलफॉर्म नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया है। अब इसी तर्ज़ मनरेगा की जगह वीबी जी राम जी योजना लाई जा रही है। बहरहाल, इस फेरबदल की कार्यवाही ने मनरेगा और ग्रामीण इलाकों में तालाब व कुओं जैसे जलस्रोतों के निर्माण में इस योजना के योगदान को एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है।

मनरेगा योजना के तहत गांव में ही काम दिए जाने से आजीविका के इंतज़ाम के साथ ही श्रमिकों का पलायन रोकने में भी मदद मिली

जल संरक्षण और पर्यावरण सुरक्षा में मनरेगा की भूमिका

मनरेगा को आमतौर पर एक “ग्रामीण रोजगार योजना” के रूप में ही देखा जाता है। ग्रामीण स्‍तर पर लोगों को रोज़गार मुहैया कराना इस योजना का मुख्‍य उद्देश्‍य भी था। पर, अपने इस मूल लक्ष्‍य के साथ ही इसने कुएं, तालाब, पोखरों व सोख्‍ता गाड्ढों (पर्कुलेशन पिट) की खुदाई और चेकडैम व एनीकट जैसी जल भंडारण संरचनाओं के ज़रिये जल संरक्षण में भी अहम भूमिका निभाई। साथ ही नाले-नालियों के निर्माण से गांवों में जल निकासी व्‍यवस्‍था को बेहतर बनाने और वृक्षारोपण के जरिये पर्यावरण संरक्षण जैसे कार्य भी किए। यह सारी चीज़ें इस योजना को लागू करने वाले कानून यानी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी अधिनियम में ही योजना के उद्देश्‍यों के रूप में शामिल की गई थीं। अधिनियम में मनरेगा के तहत ग्रामीण इलाकों में योजना में कुल 260 कार्यों को मंजूरी दी गई थी। जिन्‍हें बाद में बढ़ा कर 266 कर दिया गया। इसमें से 150 कार्य कृषि और कृषि से संबंधित गतिविधियों और 58 कार्य प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) से संबंधित हैं। इंडियन इंस्‍टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्‍ट्रेशन (आईआईपीए) की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक मूलभूत रोजगार गारण्टी सुनिश्चित करने के साथ ही मनरेगा के तहत सरकार ने कृषि और पशुपालन के विकास पर भी ज़ोर दिया। इन कार्यों का व्यापक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव देखने को मिला। इस अधिनियम के अनुसूची-1 वर्णित कुछ सबसे प्रमुख कार्य इस प्रकार थे -

1. जल संरक्षण एवं जल संचय करना।

2. सूखे से बचाव के लिए वृक्षारोपण और वन संरक्षण करना।

3. सिंचाई के लिए सूक्ष्म एवं लघु सिंचाई परियोजनाओं सहित नहरों का निर्माण करना।

4. गांवों की कृषि भूमि तक सिंचाई की सुविधाएं पहुंचाना।

5. परम्परागत जल स्रोतों का जीर्णोद्धार/नवीनीकरण करके जलाशयों तालाबों, पोखरों से कचरा एवं सिल्ट निकालना।

6. बाढ़ नियंत्रण एवं जल भराव से ग्रस्त इलाकों से पानी की निकासी की व्‍यवस्‍था करना।

7. गांवों में सड़कों के साथ-साथ जल निकासी के लिए पुलिया, नाले, नालियों का निर्माण करना।

इससे स्‍पष्‍ट होता है कि मनरेगा की मूल अवधारणा में ग्रामीण रोज़गार के साथ ही जल संचय, जल संरक्षण और पर्यावरण की सुरक्षा जैसे पहलुओं पर काफ़ी ज़ोर दिया गया था। मनरेगा की सबसे बड़ी ताकत यह रही कि इसने स्थानीय जरूरतों के अनुसार छोटे-छोटे ही सही, पर टिकाऊ और जनोपयोगी कामों को सहारा दिया। इसे कुछ बिंदुओं के ज़रिये इस प्रकार समझा जा सकता है ।

मनरेगा की जगह लाई जा रही 'वीबी जी राम जी' योजना को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंताएं उभरनी शुरू हो गई हैं।

जल संरक्षण और भूजल रिचार्ज में मिली मदद 

ग्रामीण भारत की खेती काफी हद तक भूजल पर निर्भर है। जब ट्यूबवेल और हैंडपंप सूखने लगते हैं, तब सबसे पहले किसान प्रभावित होता है। मनरेगा के जल संरक्षण कार्यों ने कई जगहों पर भूजल रिचार्ज को बेहतर किया है। मनरेगा के तहत जल संरक्षण के लिए किया जाने वाला सबसे अहम काम गांवों में कुओं और तालाबों की खुदाई को माना जाता है। हालांकि यह केवल तालाबों तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि पर्कुलेशन टैंक, चेक डैम, एनिकट, कंटूर ट्रेंच, मेड़बंदी और जल निकासी सुधार जैसे कार्य भी इसमें शामिल रहे। छोटे और ज़मीनी स्‍तर पर जल संरक्षण करने में इन ढांचों का बड़ा असर देखने को मिला। 

1 अप्रैल 2014 से 31 मार्च 2019 के बीच मनरेगा के तहत निर्मित प्रमुख प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन परिसंपत्तियां इस प्रकार हैं -

परिसंपत्तियांसंख्‍या
तालाब2003744
कुएं514284
चेक डैम 522645
तटबंध202125
फार्म तालाब1810754
वर्मी/एनएडीईपी कम्पोस्ट पिट1053227
सोखता गड्ढे484020

खेतों के आसपास बनाए गए छोटे जलसंग्रह ढांचों के जरिए बारिश के पानी को रोककर जमीन में जाने का मौका दिया। इस तरह बरसात के पानी को गांव में ही रोकने में मदद मिली, जो धीरे-धीरे जमीन में समाता गया और इससे देशभर में सैकड़ों गावों के भूजल स्तर में सुधार आया। मनरेगा के तहत किए गए कार्यों की बदौलत कई इलाकों में पुराने तालाब फिर से पानी से भर गए। हर गर्मी में सूख जाने वाले कुओं का जलस्तर लंबे समय तक बेहतर बना रहा। सूखे नाले फिर से बहने लगे, जिससे लागों को सिंचाई और पेयजल दोनों को लाभ मिला। गांवों में बने ये ढांचे सिर्फ एक मौसम के लिए नहीं, बल्कि सालों-साल उपयोगी साबित हुए।

आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 21 मार्च 2025 तक मनरेगा में जल संरक्षण व जल संचयन समेत एनआरएम संबंधित कामों पर अबतक कुल ₹1,77,840.09 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं। पोधरोपण और हरियाली से जुड़े कामों पर ₹72,996.52 करोड़ खर्च हुए हैं।
पीआईबी की ओर से जारी सूचना

खेती-किसानी, पशुपालन को मिला मज़बूत सहारा

मनरेगा के तहत किए गए जल संरक्षण के उपाय केवल पानी बचाने में ही मददगार नहीं हुए, बल्कि यह मिट्टी की सेहत सुधारने में भी उपयोगी साबित हुए। तेज बारिश में खेतों की उपजाऊ मिट्टी का बह जाना किसानों के लिए दशकों से एक बड़ी समस्या रही है। मनरेगा के तहत की जाने वाली मेड़बंदी, कंटूर ट्रेंच और वृक्षारोपण जैसे कार्यों ने मिट्टी के कटाव और बहाव (अपरदन) को रोकने का भी काम किया। 

सिंचाई को सोखने वाली मिट्टी की ऊपरी परत जब लंबे समय तक खेत में रहती है, तो उसकी नमी निचली परतों में भी बनी रहती है। यह जल और मिट्टी के प्राकृतिक रिश्ते को फिर से मजबूत करता है। साथ ही इससे रासायनिक खाद पर निर्भरता भी घटती है और खेती अधिक टिकाऊ बनती है।

इस तरह मनरेगा के तहत किए गए कार्यों से सिंचाई को लेकर किसानों का भरोसा बढ़ा और उनके कृषि उत्पादन में स्थिरता व बढ़ोतरी देखने को मिली। इसके अलावा मनरेगा के तहत गांवों में चरागाह (पशु चारण भूमि) विकास के कार्य को 2016–17 में शामिल किया गया (सूची में 58, 59 नंबर पर देखें)। प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (एनआरएम) के अंतर्गत किए जाने वाले इस कार्य से गांवों में पशुपालन आधारित आजीविका को भी मजबूती प्रदान करने में मदद मिली। 

केंद्र सरकार के इस कदम के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने दिसंबर 2024 में मनरेगा के तहत ग्रामीण विकास और पशुधन उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए एक नई योजना शुरू की। प्रदेश सरकार के ग्राम्य विकास विभाग ने सभी जिलाधिकारियों को इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में बंजर, अनुपयोगी या सामुदायिक भूमि पर चरागाहों के विकास के लिए कार्य करने का निर्देश दिया। इसका उद्देश्‍य पशुधन के लिए पर्याप्त चारा उपलब्ध करा कर  पशुपालक किसानों की आजीविका को मजबूत करना था। साथ ही इससे ग्रामीण स्‍वरोजगार में वृद्धि में भी मदद मिली, क्‍योंकि इससे पशुपालन के क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा हुए। कुल मिलाकर इससे दूध उत्‍पादन में बढ़ोतरी के ज़रिये पशुपालक समुदाय की आय में वृद्धि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में मदद मिली।

मनरेगा (MGNREGA) की शुरुआत 2 फरवरी, 2006 को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (NREGA) के रूप में हुई थी। शुरू में इसे केवल 200 जिलों में लागू किया गया था, पर 2008 में इसका दायरा बढ़कर पूरे भारत में हो गया।

सूखा और बाढ़ से निपटने में मददगार

भारत के कई हिस्सों में एक ही समय पर सूखा और बाढ़ जैसी विपरीत समस्याएं देखने को मिलती हैं। मनरेगा के कई कार्य इन दोनों ही प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में मदद करते हैं। यह कार्य एक ओर जहां सूखा-प्रभावित क्षेत्रों में जल संग्रह में मददगार होते हैं, बाढ़-संभावित इलाकों में जल निकासी और तटबंध सुधार जैसे काम बाढ़ के ख़तरे को कम करते हैं। मनरेगा में स्‍वीकृत कुल 266 कार्यों की सूची और एनआरएम के तहत किए जाने वाले 58 कार्य  सूखा और बाढ़ नियंत्रण से संबंधित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं :

सूखे से निपटने में सहायक कार्य

  • खेत-तालाब, पर्कुलेशन टैंक, तालाब/जोहड़ निर्माण व पुनर्जीवन

  • चेक डैम, गली प्लग, बोल्डर चेक

  • कंटूर ट्रेंच, मेड़बंदी, भूमि उपचार

  • वृक्षारोपण, चारागाह/सिल्वी-पाश्चर विकास

  • जलग्रहण (Watershed) विकास कार्य

इन कामों से वर्षा जल संचयन, भूजल रिचार्ज, मिट्टी में नमी बनाए रखने और सूखे के दिनों में पेयजल व सिंचाई के लिए पानी उपलब्‍ध कराने में मदद मिलती है।

बाढ़ से निपटने में सहायक कार्य

  • जल निकासी चैनल/स्टॉर्म वॉटर ड्रेनेज सुधार

  • नालों/छोटी नदियों की सफाई व चौड़ीकरण

  • तटबंध, फील्ड बंड, बाढ़-रोधी संरचनाएँ

  • जलभराव क्षेत्रों का सुधार, कटाव नियंत्रण

  • कैचमेंट ट्रीटमेंट (ऊपरी क्षेत्रों में)

इन कामों से जलभराव के खतरे को कम करने, मिटृटी का कटाव रोकने और बाढ़ नियंत्रण व उसकी प्रचंडता में कमी लाने में मदद मिलती है।

सूखा-बाढ़ दोनों में उपयोगी कार्य

  • जलग्रहण विकास, कंटूर आधारित संरचनाओं का निर्माण

  • तालाब/नालों के जीर्णोद्धार या पुनर्जीवन (रिवाइवल) का काम

  • पौधरोपण, वनीकरण, सामाजिक वानिकी और घास/चरागाह विकास

  • नदी-नालों के तटों का संरक्षण

हरियाली, पर्यावरण और जैव विविधता को बढ़ावा 

मनरेगा के तहत गांवों और उनके आसपास के परिवेश में पर्यावरण संरक्षण और हरियाली बढ़ाने से जुड़े कार्य भी लगातार किए जाते रहे हैं। इस योजना के अंतर्गत बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण हुआ है। इसमें चरागाहों, पंचायत परिसरों और सामुदायिक भूमि पर पौधरोपण के अलावा सड़क किनारे हरित पट्टियां और तालाबों व नहरों के आसपास हरियाली विकसित करने जैसे कार्य शामिल हैं। इससे स्थानीय स्तर पर हरित आवरण (ग्रीन कवर) बढ़ाने और पर्यावरण संरक्षण में मदद मिली है। हरियाली बढ़ने से स्थानीय तापमान भी संतुलित रहता है। दिन में अत्यधिक गर्मी और रात में तेज ठंड के प्रभाव कम होते हैं, जिसे ‘माइक्रो-क्लाइमेट बैलेंस’ कहा जाता है।

मनरेगा के तहत लगाए गए पेड़-पौधों ने कार्बन डाइऑक्साइड को सोख कर वातावरण को साफ-सुथरा बनाए रखने और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में मदद की है। अध्ययनों के अनुसार एक परिपक्व पेड़ औसतन हर साल 20–25 किलोग्राम तक कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर सकता है। इस तरह गांवों में विकसित हरियाली जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में भी योगदान देती है। इसके अलावा पेड़-पौधों के पत्‍तों के झड़ने से उनमें द्वारा अवशोषित कार्बन मिट्टी में मिलता है, जिससे भूमि की उवर्रता बढ़ती है। 

यह पेड़-पौधे, झाड़ियां और घास के मैदान (चरागाह) पक्षियों, छोटे स्तनधारियों, सरीसृपों और मधुमक्खियों व तितलियों जैसे परागण करने वाले कीटों को प्राकृतिक आवास और भोजन उपलब्ध कराते हैं। इससे स्थानीय स्‍तर पर स्थानीय जैव विविधता को बढ़ावा मिलता है और खाद्य शृंखला मजबूत होती है। साथ ही कृषि उत्पादन में भी अप्रत्यक्ष रूप से सुधार होता है। 

हरियाली बढ़ने का ग्रामीण इलाकों के जलचक्र पर भी सकारात्‍मक प्रभाव पड़ता है। क्‍योंकि, पेड़ों की जड़ें वर्षा जल को जमीन में समाने में मदद करती हैं, जिससे भूजल की रीचार्जिंग में बढ़ोतरी होती है। साथ ही वर्षा जल का सतही बहाव कम होने से मिट्टी का कटाव घटता है और तालाबों, कुओं तथा हैंडपंपों में पानी लंबे समय तक बना रहता है।  इस तरह मनरेगा के पर्यावरणीय कार्य पर्यावरण संरक्षण और जैव विविधता को मजबूती प्रदान कर गांवों को जलचक्र व तापमान के संतुलन और जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीला बनाती हैं।

महिला सशक्‍तीकरण में अहम भूमिका 

मनरेगा ने ग्रामीण स्‍तर पर महिलाओं के सशक्‍तीकरण में भी काफ़ी अहम भूमिका निभाई है। रिपोर्टों के मुताबिक कई राज्यों में मनरेगा कार्यों में महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी कुल श्रम-दिवसों का लगभग आधा या उससे अधिक रही है, जो ग्रामीण विकास में उनकी मजबूत हिस्‍सेदारी को दर्शाता है। इस योजना ने बड़े पैमाने पर महिलाओं को रोज़गार उपलब्‍ध करा कर उन्‍हें आर्थिक रूप से आत्‍म निर्भर बनाने में मदद की है। मनरेगा में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए बराबरी की मजदूरी और कार्यस्थल के पास रोजगार उपलब्ध कराने जैसे प्रावधान किए गए हैं, जिससे वे घरेलू जिम्मेदारियों के साथ काम कर सकें। इससे उनकी सामाजिक स्थिति में भी सुधार हुआ है। नियमित आय मिलने से महिलाओं की बचत की आदतें बढ़ी हैं और स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से वे छोटे स्तर पर आर्थिक निर्णय लेने में भी सक्षम हुई हैं।

इसके अलावा मनरेगा के तहत की जाने वाले तालाबों की खुदाई, कुओं और नलकूपों के पुनर्जीवन जैसे जल संरक्षण के कार्यों ने महिलाओं की रोजमर्रा की जिंदगी की दुश्‍वारियों को भी दूर किया है। जलस्रोत नजदीक होने से पानी के लिए उनकी रोज़ाना की जद्दोजहद में कमी आई है। इससे उनके जीवन में खुशहाली के साथ ही आर्थिक गतिविधियों, बच्चों के स्‍वास्‍थ्‍य व शिक्षा पर ध्‍यान देने के लिए ज्‍़यादा समय मिल पाया। 

क्या कहते हैं अध्ययन

मोटे तौर पर देखा जाए तो मनरेगा के 60% से अधिक कार्य जल, मिट्टी और भूमि सुधार से जुड़े हैं, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता के साथ ग्रामीण आजीविका को सहारा मिला है। इस बात की पुष्टि कई प्रतिष्ठित संस्‍थानों की रिसर्च रिपोर्टों से भी होता है। रिसर्च गेट, इंस्‍टीट्यूट ऑफ सस्‍टेनेबल डेवलपमेंट, एनवायर्नमेंटल एंड साइंटिफिक रिसर्च यानी आईएसडीईएसआर और एसआरएफ इंडिया के अध्ययनों का साझा निष्कर्ष यह है कि मनरेगा अब केवल रोजगार गारंटी योजना नहीं रही, बल्कि यह जल संरक्षण और पर्यावरणीय पुनर्स्थापन (इकोलॉजिकल रिस्टोरेशन) का एक प्रभावी औज़ार बनी है। डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट के मुताबिक 23 सितंबर 2025 को केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी कर मनरेगा में जल संबंधी कार्यों पर न्यूनतम व्यय को अनिवार्य किया था। इससे ग्रामीण स्‍तर पर जल संरक्षण को और मज़बूती मिलने की उम्‍मीद जगी थी।

 सीएसई इंडिया की रिपोर्ट में भी मनरेगा के तहत किये गये जल संरक्षण के कामों को हरियाणा से लेकर राजस्थान , उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड तक हिन्दी पट्टी वाले बड़े इलाक़े में आर्थिक संपन्नता लाने में खासतौर पर मददगार बताया गया था। ऐसे में देखना होगा कि मनरेगा की जगह लाई जा रही केंद्र सरकार की नई योजना इन ज़रूरतों को किस हद तक पूरा करती है और उम्‍मीदों पर कितनी खरी उतरती है।

मनरेगा के अंतर्गत कुछ राज्यों की राज्यस्तरीय योजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान की गई। इनमें जो योजनाएं अत्यन्त सफल हुईं वे इस प्रकार हैं- 

क्र.स.राज्ययोजना का नाम
1राजस्थानमुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान
2महाराष्ट्रजलयुक्ता शिवर अबियान
3झारखंडडोभा या खेत तालाबों का निर्माण
4आंध्र प्रदेशनीरू चेट्टू
5मध्य प्रदेशकपिल धारा
6कर्नाटकबोरवेल रिचार्ज
7पश्चिम बंगालउसर मुक्ति

मनरेगा से कैसे अलग होगी VB-G RAM G?

VB–G RAM G जी के बारे में विस्तृत जानकारी अभी आना बाकी है, लेकिन मोटे तौर पर अगर इस योजना से जुड़ी उम्मीदों को समझना है तो पहले मनरेगा और VB–G RAM G में प्रमुख अंतर को समझिये।

प्रमुख बिन्‍दु MGNREGS – क्या थाVB–G RAM G – क्या है
काम की गारंटीसाल में प्रति ग्रामीण परिवार 100 दिन के काम की गारंटीसाल में प्रति ग्रामीण परिवार को 125 दिन के काम की गारंटी
मुख्य लक्ष्यमज़दूरी आधारित सुरक्षा‑तंत्र, दुरवस्था/दुर्दशा को रोकनामज़दूरी + परिसंपत्ति (एसेट) का निर्माण, “विकसित भारत” के लक्ष्य के साथ
निधिमज़दूरी पूरी तरह केंद्र से संचालित, सामग्री लागत लगभग 75% तक केंद्र से60:40 केंद्र–राज्य (कुछ राज्यों के लिए 90:10 अनुपात) - इसमें संचालन एवं लागत दोनों शामिल है
आवंटनपूरी तरह मांग‑आधारित, खुली (ओपन‑एंडेड) व्यवस्थाराज्य‑स्तर पर “मानक” (normative) आवंटन, तय सीमा/कैप के साथ
कार्य के प्रकारकार्यों का दायरा बहुत व्यापक, अक्सर बिखरे और स्थानीयप्राथमिकता प्राप्त कार्य: पानी, बुनियादी ढांचा, जलवायु
ढांचामंत्रालय द्वारा संचालित, कोई विशेष परिषद नहींकेंद्रीय एवं राज्य रोज़गार परिषदें, स्टीयरिंग पैनल
एक्शनऑडिट में बार‑बार गड़बड़ियों और दुरुपयोग की शिकायतें दर्जडिजिटल टूल्स व कड़ी मॉनिटरिंग के ज़रिए लीकेज व गड़बड़ियाँ रोकने की कोशिश

जैसा कि आप देख सकते हैं कि मनरेगा के नए अवतार में स्‍पष्‍ट रूप से परिसंपित्तयों के निर्माण की बात की गई है, जिसमें पानी को इंफ्रास्‍ट्रक्चर से आगे रखा गया है, जबकि मनरेगा का मुख्‍य लक्ष्‍य गरीबी को खत्म करना है, जिसके लिए मजदूरों को काम दिया गया और उनको दिये गए कार्यों में जल परिसंपत्तियों के निर्माण को शामिल किया गया। 

साथ ही नई व्‍यवस्‍था में डिजिटल टूल्‍स के माध्‍यम से मॉनीटरिंग की बात की बात की गई है, यानि कि भविष्‍य में न केवल रोजगार आवंटन की मॉनीटरिंग की जाएगी बल्कि इस योजना के अंतर्गत बनायी जाने वाली परिसंपत्तियों के डाटा को और भी अधिक पारदर्शी बनाया जा सकेगा।

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