यमुना की प्रतीकात्मक तस्वीर छायाकार: अमन त्यागी
नीतियां और कानून

अनुमानित आंकड़ों पर बनी योजना से साफ़ नहीं होगी यमुना : सीएसई रिपोर्ट

रिपोर्ट बताती है कि केंद्र व दिल्ली सरकार द्वारा ज़रूरी प्रयास करने के बाद भी में यमुना में प्रदूषण की स्थिति जस का तस क्यों बनी हुई है।

Author : केसर सिंह

दिल्ली में यमुना सिर्फ़ 22 किलोमीटर की दूरी तय करती है और इतने भर में इस केंद्र शासित प्रदेश से नदी को इसका 80 फीसद प्रदूषण मिलता है। अगर केंद्र और राज्य सरकार की तमाम योजनाओं, कोर्ट के कई आदेशों और अरबों रुपए के बजट के बावजूद यमुना में प्रदूषण की स्थिति बेहतर होने की बजाय बिगड़ी है, तो ऐसा क्या है जो ठीक नहीं हो रहा है? इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करती है जनहित अनुसंधान संगठन, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की हालिया रिपोर्ट।

अपशिष्ट पानी से जुड़े सही आंकड़ों का अभाव

आठ मई को "यमुना: दी एजेंडा फॉर क्लीनिंग द रिवर" शीर्षक के साथ जारी की गई यह रिपोर्ट बताती है कि सीवेज उपचार और निस्तारण का बुनियादी ढांचा होने के बावजूद यमुना में प्रदूषण बढ़ने का एक मुख्य कारण है हमारे पास पर्याप्त आंकड़ों का न होना। हमारे पास यह जानकारी नहीं है कि दिल्ली से कुल कितना अपशिष्ट पानी निकलता है। अब तक हम मानते रहे हैं कि प्रदेश की जनसंख्या के हिसाब से जितने पानी की आपूर्ति की जाती है उसका 80 प्रतिशत अपशिष्ट पानी में बदल जाता है। 

यह भी माना जाता है कि यमुना को प्रदूषित करने वाला 80 फीसदी पानी घरेलू अपशिष्ट है, जबकि बाकी कारखानों से आता है। अनुमान लगाने का यह तरीका हमें सही आंकड़े नहीं देता क्योंकि 2011 से जनगणना नहीं हुई है और इन 14 सालों में दिल्ली की जनसंख्या अनुमानित संख्या से कहीं ज़्यादा बढ़ चुकी है।

इसके अलावा, जितना पानी आपूर्ति के लिए भेजा जाता है, लीकेज आदि समस्याओं के चलते उसका लगभग 60 प्रतिशत ही उपभोक्ता के पास पहुँच पाता है। बाकी पानी की ज़रूरत उपभोक्ता भूजल या टैंकर से मंगाए गए पानी से पूरी करता है, जिसके आंकड़े हमारे पास नहीं हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अनुमानित आंकड़ों के आधार पर बनाई गई सफाई योजना यमुना को साफ़ नहीं कर सकेगी, क्योंकि जिस अपशिष्ट पानी का लेखा-जोखा ही नहीं उसे समाधान में शामिल नहीं किया जा सकता। 

लगभग 50 फीसदी घर सीवर लाइन से जुड़े नहीं हैं

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) सीवर लाइन से आने वाले अपशिष्ट पानी को साफ करके नदी में छोड़ते हैं, लेकिन उस प्रदूषित पानी को सीधे यमुना में गिरा दिया जाता है जिसकी निकासी सीवर लाइन के ज़रिए नहीं होती। यमुना नदी के लिए बनी दिल्ली सरकार की ‘नदी जीर्णोद्धार समीति (आरआरसी)’ के साल 2019 के एक्शन प्लान के मुताबिक दिल्ली की 50 फीसद जनसंख्या सीवर सिस्टम से जुड़ी हुई नहीं है। 

यह जनसंख्या सेप्टिक टैंक खाली करवाने के लिए वैक्यूम टैंकर की सुविधा के भरोसे है। ये टैंकर मल कीचड़ (फ़ीकल स्लज) को निकलाते हैं और उसे बारिश के पानी की निकासी के लिए बनाई गई नालियों, खुले हुए नालों या फिर सीधे यमुना में डाल देते हैं। क्योंकि इस तरह निकले अपशिष्ट का कोई रिकॉर्ड नहीं होता, यह नदी को साफ करने की योजना का हिस्सा नहीं बन पाता। रिपोर्ट सुझाव देती है कि एक्शन प्लान बनाते समय इस ‘अनौपचारिक’ अपशिष्ट पानी को शामिल करना होगा।

इसके लिए पहली ज़रूरत है कि सरकार मल-जल प्रबंधन की इस स्थिति को स्वीकारे, दूसरे इस अपशिष्ट का निस्तारण करने वाले टैंकरों का पंजीकरण और नियमन करे, तीसरे इस पानी के उपचार के लिए इकाइयां विकसित करे। उपचार के बाद, किसान इसे जैविक खाद के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं या इसे बाकी उपचारित जैविक अपशिष्ट के साथ मिलाकर बायोगैस, ईथेनॉल आदि बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

दिल्ली के विशाल नालों प्रदूषित पानी में मिल रहा है साफ किया गया पानी

दिल्ली में 22 बड़े खुले नाले हैं, जिनका असल काम है बारिश के साफ पानी को यमुना तक ले जाना। पर उनमें बहता है अलग-अलग धाराओं से आता उपचारित और अनुपचारित अपशिष्ट पानी। दिल्ली की तमाम उन कॉलोनियों का मैला इन नालों में आ गिरता है जो सीवेज सिस्टम से जुड़ी हुई नहीं है। इसके अलावा टैंकरों के ज़रिए निकाला मल कीचड़ भी इन्हीं में डाल दिया जाता है। 

उदाहरण के लिए यमुना विहार एसटीपी उपचार के बाद जल को एक लिंक नाले में डालता है। यह नाला ऐसे क्षेत्र से गुज़रता है जहाँ सीवेज सिस्टम नहीं है। ऐसे में, उपचारित जल अनुपचारित जल से मिलकर फिर प्रदूषित हो जाता है। इन 22 नालों में सभी बराबर प्रदूषित नहीं हैं। नज़फगढ़ और शाहदरा दिल्ली के सबसे बड़े और सबसे प्रदूषित नाले हैं। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन नालों में गिरने वाली नालियों को रोकने और उनके पानी का उपचार करने की तमाम योजनाओं के बावजूद इनमें प्रदूषण और बढ़ता जा रहा है। साल 2017 में जहाँ नज़फगढ़ नाला दिल्ली का कुल 60 फीसदी प्रदूषित पानी यमुना में डालता था, वहीं साल 2024 में यह आंकड़ा 70 फीसदी तक जा पहुँचा है।

अब तक क्या किया गया है?

सीवेज को साफ करने की क्षमता बढ़ाई गई

दिल्ली में कुल 37 एसटीपी हैं, जो 3,033 मेगालीटर पर डे (एमएलडी) यानी रोज़ निकलने वाले करीब 84 फीसद गंदे पानी को साफ करने की क्षमता रखते हैं। इनकी कुल क्षमता का करीब 85 फीसद इस्तेमाल किया जा रहा है। यानी इस समय ये करीब 70 फीसद प्रदूषित पानी को साफ़ कर रहे हैं।

आरआरसी के एक्शन प्लान के मुताबिक इनकी क्षमता बढ़ाई जाएगी। साथ ही ओखला, दिल्ली गेट और सोनिया विहार में तीन नए प्लांट खोले जाएँगे। मार्च 2025 तक दिल्ली में गंदे पानी के उपचार की क्षमता में 560 एमएलडी का इजाफा होगा। रिपोर्ट के मुताबिक यह दिल्ली के कुल गंदे पानी को साफ करने के लिए पर्याप्त होगा, नदी में गंदा पानी नहीं गिरेगा और नदी साफ हो जाएगी। लेकिन अभी बस 30 फीसद गंदा पानी ही नदी में जा रहा है, तो नदी में प्रदूषण घटने के बजाय बढ़ क्यों रहा है? रिपोर्ट के मुताबिक इसका जवाब आंकड़ों के अभाव में छुपा है।

उपचार की गुणवत्ता को सुधारने के प्रयास

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (डीपीसीसी) की 2024 की प्रोग्रेस रिपोर्ट के मुताबिक कुल 37 एसटीपी में से मात्र 14 ही प्रवाह के लिए तय मानकों पर खरे उतरते हैं। हुआ यह कि जब ये एसटीपी बनाए गए तब मानक कुछ और थे। दिल्ली में यमुना की स्थिति देखते हुए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सिफारिश पर इन्हें और कठोर कर दिया गया। देशभर के लिए जहाँ प्रवाह में बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड अधिकतम 30 mg/l होनी चाहिए, वहीं दिल्ली में इसकी सीमा 10 mg/l है। 

रिपोर्ट के मुताबिक नियमों में बदलाव शायद यह सोचकर किया गया कि सारा उपचारित पानी नदी में डाला जाएगा। जबकि उपचार के बाद पानी को नदी में डालने की बजाय उसके अधिकतम पुन: उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। हालांकि, ज़मीनी सच्चाई यह है कि उपचार के बाद साफ पानी को फिर से नालों में छोड़ा जा रहा है, जहाँ वह गंदे पानी से मिलकर फिर प्रदूषित हो जाता है।

इंटरसेप्टर सीवर परियोजना शुरू की गई

दिल्ली सरकार ने 108 नालियों में बहने वाले करीब 900 एमएलडी प्रदूषित पानी के नालों में जाने से पहले ही उसे रोककर एसटीपी तक भेजने की योजना शुरू की। दिल्ली आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के मुताबिक कुल 1,000 एमएलडी प्रदूषित पानी को इंटरसेप्ट करने का प्रावधान किया गया, जिसमें से अभी 800 एमएलडी पानी को इंटरसेप्ट किया जा रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2024 तक यह काम पूरा कर लिया जाना था।

नालों की सफाई की मौजूदा स्थिति
फिलहाल 22 में से नौ नालों के पानी को एसटीपी तक भेजा रहा है, जबकि दो अन्य नालों के कुछ पानी का उपचार किया जा रहा है। दो सबसे बड़े नालों, नज़फ़गढ़ और शाहदरा के बारे में कहा गया है कि इन विशाल नालों के पूरे पानी का उपचार अभी संभव नहीं है, पर परियोजना के पूरे होते-होते इनके बड़े हिस्से का उपचार किया जाने लगेगा।

अनधिकृत कॉलोनियों में सीवर लाइनें डाली गईं

डीपीसीसी की प्रोग्रेस रिपोर्ट के मुताबिक, अनाधिकृत कॉलोनियों में सीवर की करीब 1,064 पाइप लाइनें डाली गई हैं और इसके अलावा भी अन्य कई लाइनें डाली जा हैं। 

मल कीचड़ का प्रबंधन

दिल्ली शहरी विकास विभाग ने 12 फरवरी 2018 को सेप्टेज मैनेजमेंट रेगुलेशन 2018 जारी किया, जिसके अंतर्गत उन वाहनों को पंजीकृत किया जाना था जो सेप्टिक टैंक खाली करके मल कीचड़ का निस्तारण करते हैं।फरवरी 2014 तक कुल 160 वाहनों का पंजीकरण हुआ। उनके लिए 86 जगहें नियत की गईं, जहाँ से अपशिष्ट को उपचार के लिए ले जाया जाना था। इसके मुताबिक हर दिन करीब 1.5 एमएलडी मल कीचड़ का उपचार किया जा रहा है। सही पंजीकरण के अभाव में यह जानकारी अधूरी ही है। दिल्ली जल बोर्ड ने उन वाहनों पर जुर्माना भी लगाया है जिन्हें पंजीकृत नहीं किया गया है।

फैक्ट्रियों से होने वाला प्रदूषण रोकने की कोशिश 

दिल्ली के 28 स्वीकृत औद्योगिक क्षेत्रों में से 17 का गंदा पानी कॉमन एफ़्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स (सीईटीपी) में भेजा जाता है। इनसे करीब 29.57 एमएलडी पानी निकलता है। राज्य में कुल 13 सीईटीपी हैं, जिनकी कुल क्षमता का मात्र 32 फीसदी ही इस्तेमाल हो रहा है। इनसे निकलने वाले पानी की गुणवत्ता भी संदेह के घेरे में है। साथ ही, यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस पानी को कहाँ छोड़ा जाता है।

हमें अहसास होना चाहिए कि यमुना को साफ़ करने के लिए सिर्फ़ पैसे की नहीं, एक ऐसी योजना की ज़रूरत है जो हमें अलग तरीके से सोचने और काम करने के लिए प्रेरित कर सके।
सुनीता नारायणन, निदेशक, सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट

पूरी तस्वीर को ध्यान में रखकर किए जाएं प्रयास

सीवेज को टैंकरों को समाधान में शामिल किया जाए

अच्छी बात यह है कि इस व्यवस्था पर काम हो रहा है। घनी आबादी वाले क्षेत्रों में सीवर लाइन बिछाना आसान नहीं है। ऐसे में जब लोग खुद सेप्टेज प्रबंधन का हिस्सा बन रहे हैं, तो यह समस्या नहीं समाधान है। न सरकार को सीवर लाइन बिछाने का खर्च वहन करना होगा, न ही काम के अधूरे रह जाने या देर से पूरा होने की समस्या होगी। 

सरकार को बस यह तय करना होगा कि मल कीचड़ उठाने वाले सभी वाहनों का पंजीकरण हो, कंट्रोल रूम बनाकर जीपीएस के ज़रिए उनकी निगरानी की जाए, और उपचारित पानी को दोबारा इस्तेमाल किया जाए।

साफ किए गए पानी को गंदे नालों में न छोड़ा जाए 

साफ़ किया गया पानी दोबारा इस्तेमाल के लिए है। ऐसा न करने पर, उपचार का सारा खर्च और प्रदूषण नियंत्रण की कोशिश बेकार हो जाती है। गंदे नाले में वापस जाकर यह पानी प्रदूषित पानी की मात्रा बढ़ा देता है, यानी गंदे पानी के साथ इसे भी फिर से साफ करना पड़ता है। यह पानी अगर गंदे पानी में नहीं मिलेगा तो बाकी पानी को साफ करना आसान होगा।

उपचार के बाद पूरे पानी और बायोसॉलिड का दोबारा इस्तेमाल हो

अभी महज 331 एमएलडी उपचारित पानी का दोबारा इस्तेमाल किया जा रहा है। दोबारा इस्तेमाल को योजना का हिस्सा बनाने की ज़रूरत है। इससे यह भी तय हो सकेगा कि कौनसे इस्तेमाल के लिए किस गुणवत्ता का पानी छोड़ा जाए। जैसे कि सिंचाई, घरेलू या कारखानों में इस्तेमाल के लिए अलग-अलग गुणवत्ता का पानी चाहिए होगा।

बड़े नालों पर ही नहीं, नदी में गिरते हर नाले पर ध्यान दें

सबसे पहले साफ किए गए पानी को नालों से दूर रखना होगा, दूसरे यह सुनिश्चित करना होगा कि अनुपचारित सीवेज नालों में न गिराया जाए। अगर यह कर लिया गया तो नालों में लोड अपने आप कम हो जाएगा और उन्हें साफ करना आसान होगा।

जल निकायों का पुनर्जीवन और भूजल पुनर्भरण 

रिपोर्ट के मुताबिक साफ किए गए पानी का इस्तेमाल जल निकायों को नया जीवन देने और भूजल के पुनर्भरण के लिए करना होगा। इससे भविष्य के लिए पानी तो बचेगा ही, साथ ही पानी की स्थानीय आपूर्ति का स्रोत भी बन सकेगा। दिल्ली सरकार ने इसे अपनी योजना में शामिल किया है पर अब इसे बड़े पैमाने पर और तेज़ी के साथ अमल में लाए जाने की ज़रूरत है।

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