प्रदूषण और जलगुणवत्ता

चुनौती बनता वायु प्रदूषण (भाग 1)

किरण बाला

वायु प्रकृति का एक अनुपम उपहार है। इसी से पृथ्वी पर जीवन संभव है। वायु में ऑक्सीजन का भंडार होता है, जो कि हमारी प्राणवायु है। यह श्वसन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। प्राकृतिक रूप से वायुमंडल स्वच्छ होता है, लेकिन आज मानव उसे दूषित कर रहा है। यही कारण है कि महानगरों में लोग वायु प्रदूषण से बचने के लिए मास्क पहनते वायु हमारे लिए कितनी आवश्यक है, इसका अनुमान आप इसी से लगा सकते हैं कि एक मनुष्य बिना भोजन के पांच सप्ताह तक तथा बिना जल के पांच दिन तक जीवित रह सकता है, लेकिन विना सांस लिए उसका पांच मिनट जीवित रहना भी मुश्किल है। इसलिए, जिस वायु में हम सांस लेते हैं, उसका शुद्ध व निरापद होना अनिवार्य है। लेकिन, वायु की प्राकृतिक गुणवत्ता कहीं खो गई है। परिणामस्वरूप प्रदूषित वायु में सांस लेना हमारी एक विवशता है, जिसका परिणाम हमारी सेहत को भुगतना पड़ता है।

बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण आज वायु की गुणवत्ता में निरन्तर कमी आ रही है। लोग शुद्ध वायु लेने हेतु ऑक्सीजन चेंबर की शरण ले रहे हैं। अन्यथा लोगों को श्वसन रोगों का सामना करना पड़ता है। अस्थमा जैसे रोग भी प्रदूषित वायु की वजह से अपना विकराल रूप दिखाते हैं।

वायु प्रदूषण कई बीमारियों का कारक है। एक नवीनतम अध्ययन में बताया गया है कि लंबे समय तक प्रदूषित वायु के संपर्क में रहने से हृदय अतालला (Arrhythmia) यानी दिल की धड़कन के अनियमित होने का जोखिम बढ़ जाता है। यह निष्कर्ष चीन के 322 शहरों में किए गए शोध से प्राप्त हुआ है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, वेसे तो वायु प्रदूषण दिल की बीमारियों का बड़ा कारक है, लेकिन आज यह दिल की खतरनाक बीमारी हृदय अतालता के जोखिम को बढ़ाने वाला प्रमुख कारण माना जा रहा है। चीन के शोधकर्ताओं द्वारा अध्ययन के लिए 322 शहरों के 2025 अस्पतालों के आंकड़े एकत्र कर उनका विश्लेषण किया गया। शोध से जुड़े शंघाई के फूदान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रेनजी चेन कहते हैं कि हमने विश्लेषण में वायु प्रदूषण और हृदय अतालता के जोखिम के बीच संबंध पाया। शोधकर्ताओं के अनुसार छह प्रदूषण कारकों में नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, की उपस्थिति हृदय अतालता के सभी चार प्रकारों में दृढ़ता के साथ सम्बद्ध पायी गयी। हालांकि अभी वायु प्रदूषण और हृदय अतालता के जोखिम के बीच के सटीक तंत्र की पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है लेकिन इनके बीच प्राप्त संबंध वास्तव में प्रशंसनीय है।

दिल की धड़कन में असमानता की स्थिति (Atrial Fibrillation) और आलिंद स्पंदन (Atrial Flutter), विश्व के लगभग 5.97 करोड़ लोगों को प्रभावित करती है। दिल की धड़कन की असमानता में वृद्धि गंभीर हृदय रोग के लिए एक परिवर्तनीय जोखिम कारक है। लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से दिल की अनियमित धड़कन का जोखिम बढ़ जाता है। चीन के 322 शहरों में किये गये अध्ययन से यह बात ज्ञात हुई है।

शोधकर्ताओं ने 2025 अस्पतालों के आंकड़ों का प्रयोग कर वायु प्रदूषण के प्रति घंटे के संपर्क और हृदय अतालता के लक्षणों की अचानक शुरूआत का मूल्यांकन किया। शोधकर्ताओं ने रिपोर्टिंग अस्पतालों के निकटतम निगरानी स्टेशनों से वायु प्रदूषक सांद्रता का प्रयोग कर उनका विश्लेषण किया। शंघाई की फूडान यूनिवर्सिटी के डॉ. रेन्जी चेन ने कहा कि अध्ययन से हमने पाया कि परिवेशी वायु प्रदूषण का गहन सम्पर्क हृदय अतालता के बढ़े जोखिम से सम्बद्ध है, जिसके लक्षण नजर आते हैं। जोखिम शुरूआती कुछ घंटों में प्रदूषण के संपर्क में आने पर नजर आया जो 24 घंटे तक बना रह सकता है। यह अध्ययन 190115 रोगियों पर किया गया, जिनमें दिल की धड़कन में असमानता की स्थिति, आलिंद स्पंदन, समय से पहले धड़कन और सुप्रावेंट्रिकूलर टैचीकार्डिया सहित लक्षण संबंधी हृदय अतालता की तीव्र शुरुआत थी। 6 प्रदूषकों में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का सभी 4 प्रकार की हृदय अतालता के साथ सबसे सुदृढ़ संबंध था।

चीन के 140 करोड़ लोगों के लिए सांस लेना भी जोखिम भरा है। वायु प्रदूषण से वहां प्रति व्यक्ति के जीवन के औसतन 2.6 साल कम हो रहे हैं। वायु प्रदूषण से सांस की तकलीफ, घबराहट, खांसी, अस्थमा और सीने में दर्द होता है। बेशक, वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा जोखिम फेफड़ों से सम्बद्ध है, लेकिन बायु प्रदूषण का प्रभाव दिल पर भी पड़ता है।

संयुक्त राष्ट्र संस्था की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि कम और मध्यम आय वाले देशों में समय से पूर्व पैदा हुए बच्चों में से 91 प्रतिशत की मौत का कारण वायु प्रदूषण है। विशेषज्ञों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन गर्मी के जोखिम, चक्रवात, बाढ़, सूखा, जंगल की आग और वायु प्रदूषण के अलावा खाद्य असुरक्षा, जल या खाद्य जनित बीमारियों, प्रवसन आदि के माध्यम से गर्भावस्था को प्रभावित करता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित योजनाओं में महिलाओं और बच्चों पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। एक अनुमान के अनुसार, हर वर्ष 60 लाख बच्चों के समय से पूर्व जन्म के लिए वायु प्रदूषण उत्तरदायी है। एक अनुमान से पता चला है कि विशेष रूप से कम आय वाले देशों में घरेलू वायु प्रदूषण, 15.6 प्रतिशत बच्चों में कम वजन के लिए और 35.7 प्रतिशत बच्चों में समय से पूर्व जन्म के लिए उत्तरदायी था।

वायु प्रदूषण के कारण

प्राकृतिक रूप से वायुमंडल की संरचना में विभिन्न गैसों की एक निश्चित मात्रा तथा अनुपात होता है। लेकिन, जब प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है, अर्थात उसमें अवांछित तत्वों का प्रवेश हो जाता है, तो वायु प्रदूषित हो. जाती है। वायु को प्रदूषित करने वाले  तत्व दो प्रकार के होते हैं:- गैसीय तथा कणकीय। जहां तक गैसीय प्रदूषण का प्रश्न है, सर्वाधिक प्रदूषण मोटर वाहनों के धुएं से होता है। पेट्रोल-डीजल के धुएं से कार्बन मोनोऑक्साइड गैस वायुमंडल में फैलती है।

कोयले से चलते तेल शोधक कारखाने सल्फर डाई ऑक्साइड गैस फैलाते हैं। इसी प्रकार, प्राकृतिक गैस शोधन आदि से हाइड्रोजन सल्फाइड गैस पैदा होती है, जो वायु को दूषित करती है। उर्वरकों के निर्माण से हाइड्रोजन फ्लोराइड गैस की उत्पत्ति होती है। इसके अलावा, कार्बनिक अम्ल, एल्डीहाइड्स तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड्स भी वायुमंडल को प्रदूषित करते हैं। सीमेंट की फैक्ट्रियां, गिट्टी बनाने की फैक्ट्रियां, ईंट के भट्ट वायुमंडल को इतना अधिक प्रदूषित करते हैं कि पूछो मत। औद्योगिक क्षेत्र में कारखानों का धुआं उगलती चिमनियां वायु को सर्वाधिक प्रदूषित करती हैं। यदि क्षेत्र में अनेक कारखाने हैं, तो वातावरण पूर्णतः धुआँमय हो जाता है।

देश में, खासकर महानगरों में चौपाहिया वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। डीजल या पेट्रोल से चलते वाहन कितना धुआं उगलते हैं, यह सर्वविदित है। वाहनों का जमघट पर्यावरण का विनाश कर रहा है। यद्यपि इसके विकल्प हैं, लेकिन वे अभी तक पूर्ण रूप से प्रयोग में नहीं आए हैं।

प्राकृतिक कारणों से भी वायु प्रदूषण हो सकता है। इसमें मुख्य कारण ज्वालामुखी का फूटना है। इससे उत्पन्न धुंआ सम्पूर्ण वातावरण को प्रदूषित करता है। कई बार वनों में आग लग जाती है और वह फैल जाती है। इससे उत्पन्न धुओं भी उड़कर आसपास के क्षेत्रों की वायु को प्रदूषित कर देता है।

यद्यपि समय के साथ खाना पकाने के ईंधन में बदलाव आया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी चूल्हे का प्रचलन है, जिसमें लकड़ी को जलाया जाता है। चूल्हा फूंकने से उत्पन्न धुआं भी तकलीफदेह होता है। इसी प्रकार, कंडों का इस्तेमाल भी खाना पकाने में किया जाता है। खासकर बाटी, वाफले की सिकाई कंडों पर करने का प्रचलन है। इस दौरान कंडों से भारी मात्रा में धुआं निकलता है।

किसी भी निर्माण कार्य में वह चाहे सड़क हो या फिर भवन, नियमों का पालन नहीं होता है। सड़कों पर झाडू अभी भी पुराने तरीके से लगती है। इससे हर दिन भारी धूल उड़ती है। इसके साथ ही गांव से लेकर शहरों तक कचरे का कोई प्रबंधन नहीं किया जाता है। ज्यादातर जगहों पर इसे खुले में ही जलाया जाता है।

शायद आप नहीं जानते कि हम जाने-अनजाने में वायु को कितना प्रदूषित कर देते हैं। घरेलू कार्य, जिसमें कोयला, केरोसीन या एलपीजी का इस्तेमाल होता है या फिर लकड़ी-कंडों का, ये सभी ऑक्सीजन को नष्ट कर कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड आदि गैसें उत्पन्न करते हैं। विद्युत उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले कोयले से भी जहरीली गैस और घुर्जा उत्पन्न होता है। इसके अलावा, कोयले की राख भी वायु को प्रदूषित करती है।

धूम्रपान यानि वीड़ी, सिगरेट, चिलम आदि पीने वाले शायद नहीं जानते या जानकर भी अनजान वने रहते हैं कि वे कितनी वायु प्रदूषित करते है। सिगरेट का जहरीला धुआँ आसपास के वातावरण को प्रदूषित करता है। यही कारण है कि बीड़ी, सिगरेट का उपयोग करने वाले व्यक्तियों के निकट रहने वाले व्यक्ति भी इसके धुएं की चपेट में आकर बीमार पड़ते हैं। खासकर महिलाओं को यह धुआं बर्दाश्त नहीं होता।

भारत का मुख्य त्योहार दीपावली है। इस पर्व पर देशभर में पटाखे जलाए जाते हैं जिससे सारा वायुमंडल जहरीले धुएं से प्रदूषित हो जाता है। सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। पटाखों से ध्वनि प्रदूषण तो होता ही है, वायु प्रदूषण भी होता है। इसका असर वायु में लंबे समय तक बना रहता है। मानव के अलावा पक्षी भी इससे प्रभावित होते हैं। इससे उन्हें भी परेशानी होने लगती है तथा उनका दम घुटने लगता है। लेकिन लोग हैं कि पटाखे चलाने का मोह त्याग नहीं पाते। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में तो पटाखों से उच्च स्तर का प्रदूषण होता है। बच्चे, गर्भवती महिलाएं और बीमारों को पटाखों से उत्पन्न प्रदूषण से सर्वाधिक तकलीफ होती है। होली के अवसर पर भी सूखे रंग, गुलाल से वातावरण सराबोर हो जाता है। सूखे रंग, गुलाल जब उड़ते हैं, तो ये वायु को प्रदूषित करते हैं। धार्मिक स्थलों पर लगने वाली अगरबत्ती हो या लोबान, धुआं छोड़ने से वायु तो प्रदूषित होती ही है। शादी, विवाह के अवसर पर पटाखे छोड़े जाते हैं, जो निश्चित रूप से वायु को प्रदूषित करते हैं।

कुछ विशिष्ट उद्योग भी वायु प्रदूषण फैलाते हैं, जिसमें सीमेंट, रासायनिक उर्वरक, कागज, चमड़ा आदि प्रमुख हैं। इन उद्योगों से धूल, राख, कार्बन कण तथा जहरीली गैसें वायुमंडल में फैलती हैं। कृषि को कीटों से बचाने के लिए बड़ी मात्रा में कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है। जाहिर है, ये वायु में फैलकर उसे प्रदूषित करते हैं। फर्नीचर को चमकाने के लिए उन पर रंगों का सो किया जाता है, जिसमें उड़नशील हाइड्रोकार्बन पदार्थ होते हैं, जो वायु को प्रदूषित करते हैं।

परमाणु परीक्षण की वजह से भी वायु प्रदूषित होती है। किसी भी कार्य में परमाणु तत्वों के उपयोग से रेडियोधर्मिता के कारण वायु प्रदूषण होता है।

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