प्रदूषण और जलगुणवत्ता

दबंग राघोपुर में कैंसर का कहर, बड़े-बड़ों पर कोई नहीं असर

Author : अमरनाथ


कैंसर से इस गाँव के पचासों आदमी मर चुके हैं। बीसों बीमार हैं। किसी का इलाज चल रहा है, कोई इलाज से थककर मौत के इन्तजार में पड़ा है। पानी दूषित है सभी जानते हैं। चमड़े की बीमारी फैल रही है। लोग सशंकित हैं। खेती-किसानी पर निर्भर ग्रामीण कैंसर का महंगा इलाज कराना बहुत दिनों तक सम्भव नहीं हो पाता। अजीब-सी दहशत फैली है। यह कोई नामालूम-सा गाँव नहीं है। राजधानी से सटे गंगा के पार बसे बहुचर्चित प्रखण्ड राघोपुर का गाँव है जुड़ावनपुर बरारी। बड़ा गाँव है। राघोपुर थाना इसी गाँव में है। दो ग्राम पंचायतें हैं। जुड़ावनपुर बरारी और जुड़ावनपुर करारी। दोनों की हालत एक जैसी है।

पूरे इलाके में आर्सेनिकोसिस नामक बीमारी फैलने के लक्षण दिख रहे हैं। आर्सेनिक के लम्बे इस्तेमाल से होने वाले कैंसर का यह पहला चरण है। आर्सेनिक यहाँ के भूजल में है। इसक पता 2005 में ही चला। राज्य सरकार और यूनिसेफ को यह रिपोर्ट दी गई।

रिपोर्ट में पेयजल में आर्सेनिक होने से दस-बारह साल में कैंसर महामारी के रूप में फैलने की आशंका जताई गई थी। आशंका सही साबित होने लगी है। चमड़े पर चकत्ते होना, फफोले निकलना, वर्षों से उनका बना रहना, चमड़े पर सफेद छींटे दिखना बहुत ही आम घटना हो गई है। लोग होमियोपैथ का इलाज करा रहे हैं। तकलीफ तो कोई खास होती नहीं है। जब कैंसर हो जाता है, तब इलाज कठिन हो जाता है।

ब्रजकिशोर सिंह की हथेली में काला रंग का बड़ा सा चकत्ता हो गया है। इसमें हल्की खुलजी होती है। होमियोपैथ में इलाज करा रहे हैं। पहले एक हाथ में था। अब दोनों हथेली में फैल गया है। लेकिन इसका इलाज कराने के लिये ज्यादा बेचैनी नहीं है। क्योंकि कई लोगों के हाथ, पाँव, पेट, पीठ की त्वचा पर सफेद छींटे हो गई है। यह सब पानी की खराबी से हो रहा है, इस पानी से छुटकारा पाने की बेचैनी है।

जुड़ावनपुर बरारी के राजवंश सिंह बताते हैं कि कई वर्षों से कैंसर से मौत का यह सिलसिला जारी है। लालू सिंह अभी महीने भर पहले लीवर कैंसर से मरे हैं। ओमप्रकाश सिंह की दादी, माँ, भैया, चाची कैंसर से मरे हैं। पूर्व सैनिक राम छबीला सिंह दो महीना पहले मरे। रामशंकर सिंह की पत्नी मरने वाली है। कन्हाई राय की पत्नी की यही हालत है। किसान जमीन बेचकर या गिरवी रखकर कहाँ तक इलाज करा पाएँगे? लेकिन कैंसर अब युवाओं में फैल रहा है। बीस साल का धीरज चार साल पहले ब्लड कैंसर से मरा और 24 साल का मुकेश एक साल पहले लीवर कैंसर से मरा। आसपास के कई गाँवों के कैंसर मरीजों के बारे में लोग चर्चा करते हैं।

गंगा घाटी के भूजल में बड़ी मात्रा में आर्सेनिक होने की जानकारी मिलने के बाद एएन कॉलेज के डॉ. एके घोष ने गंगा की धारा के दोनों ओर दस किलोमीटर के दायरे में भूजल में आर्सेनिक की उपस्थिति और तीव्रता के बारे में अध्ययन किया। 2004-05 में इस नमूना-सर्वेक्षण में बिहार के चार जिलों- भोजपुर, पटना, वैशाली और भागलपुर के गाँव शामिल किये गए। उनमें राघोपुर अकेला ऐसा प्रखण्ड मिला, जहाँ एक भी आर्सेनिक-मुक्त जलकुंड, एक्विफर नहीं मिला। यहाँ के सभी नमूनों में आर्सेनिक पाया गया था।

67 प्रतिशत जलकुंडों में इसकी मात्रा 40 पीपीबी के आसपास थी। 33 प्रतिशत में इसकी मात्रा 50 पीपीबी से अधिक थी। यह निषिद्ध मात्रा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो पेयजल में 10 पीपीबी से अधिक आर्सेनिक को खतरनाक माना है। पर भारत, बांग्लादेश जैसे विकासशील देशों में 50 पीपीबी को मानक मान लिया गया है।

भूजल में आर्सेनिक की मात्रा और विस्तार में लगातार फैलाव आ रहा है। 2005 में राघोपुर प्रखण्ड के दस गाँवों - रुस्तमपुर, जमालपुर, जफराबाद, रामपुर, फतेहपुर, मालिकपुर, दिवानटोक, तेहरासिया, सरायपुर, चौकिया में जाँच हुई थी। जुड़ावनपुर बरारी इस जाँच में शामिल नहीं था।

पर यहाँ के चापाकलों के पानी में पीली परत पड़ जाती है। बर्तन और चापाकलों के आसपास की जगह पीले हो जाते हैं। खाना पकाने में कठिनाई होती है। कपड़े साफ नहीं होते। लोगों ने हाजीपुर जाकर प्रखण्ड कार्यालय में पानी की हालत के बारे में लिखकर आवेदन दिया। सरकारी कर्मचारी जाँच करने आये भी। पानी को दूषित बताया। पर न तो दूषित पानी वाले चापाकलों को चिन्हित और वर्जित किया गया, न दूसरी कोई कार्रवाई हुई। लोग वर्षों से इस दूषित जल का उपयोग कर रहे हैं।

सरकारी चापाकल लगे तो भ्रष्टाचार हुआ, निर्धारित 120 फीट के बजाय 35-40 फीट पाइप मिलते हैं। गंगा की दो धाराओं के बीच बसे इस दियरा क्षेत्र में पहले कई कुएँ थे। पर अनेक कुओं को पाटकर लोगों ने शौचालय बना दिये हैं और उनकी देखभाल, सफाई आदि तो कोई नहीं करता।

राजनीतिक महत्त्व और आपराधिक गठजोड़ों की वजह से अक्सर चर्चित रहने वाले इस क्षेत्र के जन स्वास्थ्य के बारे में 2005 की इस चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ। राज्य की सर्वोच्च सत्ता पर लम्बे समय से इस क्षेत्र के निर्वाचित प्रतिनिधियों की सीधी पकड़ रही है। लालू यादव, राबड़ी देवी के बाद अब उनके बेटे तेजस्वी यादव यहाँ के विधायक हैं। जो वर्तमान सरकार में नम्बर दो अर्थात उप मुख्यमंत्री हैं। परन्तु इस प्रखण्ड का कार्यालय हाजीपुर से संचालित होता है जो जिला मुख्यालय भी है। स्थानीय स्तर के सरकारी कर्मचारी भी यहाँ की हवा-पानी के सीधे सम्पर्क में नहीं होते।

हालांकि जन स्वास्थ्य के इस गम्भीर मसले की आपराधिक अनदेखी के लिये केवल सरकारी तंत्र ही जिम्मेवार नहीं है। जन स्वास्थ्य और स्वच्छता कार्यक्रमों के लिये दुनिया में अग्रणी होने का दावा करने वाला संगठन- यूनिसेफ ने भी चेतावनी की पूरी तरह अनदेखी की है।

समूची गंगाघाटी में पेयजल का साधन पहले कुआँ था। सिंचाई के लिये भी कच्चे कुएँ बनते थे। कुओं की देखरेख सामूहिक तौर पर किया जाता था। जिन कुओं से पीने और दूसरे घरेलू कामों के लिये पानी लिया जाता था, उन्हें बाढ़ और नाले का पानी जाने से बचाया जाता था। बरसात के बाद उसमें उत्पन्न होने वाले रोगाणुओं की सफाई के लिये नीम के पत्ते या चूना डालने की विधि थी।

70 के दशक तक कुएँ का उपयोग ही अधिक होता था। पर सतही प्रदूषण से उसके पानी में रोगाणु उत्पन्न हो जाते थे। बाढ़ के दौरान अक्सर ऐसा होता था। इससे जलजनित रोग होते थे। शिशु और बाल मृत्युदर अधिक थी। रोगाणु मुक्त पेयजल की जरूरत थी। भूजल को सबसे अच्छा स्रोत माना गया। लाखों नलकूप लग गए। इससे बाल व शिशु मृत्युदर में तो काफी कमी आई, भूजल का उपयोग बढ़ता गया। उसी दौर में सिंचाई के लिये नलकूप लगाने का प्रचलन आया। चापाकलों और नलकूपों की गहराई एक सी होती थी। दोनों 60 फीट से 100 फीट के बीच गहरे लगते हैं। इससे भूजल का तेजी से दोहन होने लगा। उधर कुओं का उपयोग बन्द हुआ, उनकी संख्या तेजी से घटती गई। इस तरह भूजल के पुनर्भरण बुरी तरह बाधित हुआ।

डॉ. घोष ने बताया कि खुले कुएँ के पानी में आर्सेनिक नहीं मिलता। कारण है कि उसमें वर्षाजल भी एकत्र होता है जिससे जलस्तर कभी इतना नीचे नहीं जा पाता कि धरती के भीतर के वातावरण में ऑक्सीजन के सम्पर्क से आर्सेनिक के यौगिकों का विखण्डन हो। एक बार फिर उन्हीं कुओं की ओर लौटना बेहतर विकल्प है। जगह-जगह कुएँ बनाए जाएँ, उनमें वर्षाजल एकत्र किया जाये और चाहें तो उनमें पम्प लगाकर पाइपलाइन के जरीए परिशोधित पेयजल घर-घर पहुँचाए, चाहें तो सिंचाई के लिये पानी निकालें।

Tags


water pollution in hindi essay, causes of water pollution in hindi, essay on water pollution in hindi language, water pollution in hindi information, speech on water pollution in hindi, water pollution in hindi pdf, arsenic contamination in bihar in hindi, arsenic in drinking water in bihar in hindi, arsenic affected areas in bihar in hindi, arsenic poisoning symptoms in humans in hindi, arsenic poisoning treatment in hindi, arsenic poisoning ppt in hindi, arsenic poisoning intentional poisoning symptoms in hindi, arsenic poisoning mechanism in hindi, arsenic poisoning pdf in hindi, arsenic poisoning vitamin c in hindi, arsenic poisoning medication in hindi, water pollution arsenic sources in hindi, water pollution arsenic is maximum in in hindi, water pollution with arsenic is maximum in which indian state in hindi, problem of water pollution with arsenic is maximum in in hindi, arsenic pollution in west bengal in hindi, arsenic pollution effects in hindi, arsenic pollution in india in hindi, arsenic pollution wikipedia in hindi, arsenic pollution in bihar in hindi, arsenic affected area in bihar in hindi, arsenic affected districts in bihar in hindi, arsenic affected raghopur block in hindi, arsenic affacted judavanpur barari in hindi, arsenic affacted judavanpur karari in hindi.

SCROLL FOR NEXT