पानी पीते वक्त क्या आपने सोचा है कि आपके गिलास में “फ़ॉरेवर केमिकल” के रूप में कई ऐसे सूक्ष्म ज़हरीले पदार्थ हो सकते हैं, जिन्हें वाटर ट्रीटमेंट प्लांट या आपके घर में लगा वाटर फ़िल्टर भी हटा पाता। एक हालिया वैज्ञानिक शोध ने पानी में इन रसायनों की मौजूदगी की पुष्टि की है। बीते दिनों प्रकाशित सीएनएन की रिपोर्ट बताती है कि पीएफएएस (पर - एंड पॉलीफ़्लूरोएल्काइल सबस्टेंस) कहे जाने वाले कई तरह के रसायन हमारे पेयजल को प्रदूषित कर रहे हैं, जिससे स्वास्थ्य पर कैंसर, हार्मोन असंतुलन और प्रतिरक्षा तंत्र के कमज़ोर होने जैसे प्रभाव हो सकते हैं।
यह रिपोर्ट न्यूयार्क यूनिवर्सिटी (NYU) के टंडन स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग में असिस्टेंट प्रोफेसर ब्रिजर राइली के नेतृत्व में किए गए शोध पर आधारित है। ‘वैज्ञानिकों ने पीने के पानी में फॉरेवर केमिकल के नए स्रोत की खोज की' शीर्षक से प्रकाशित इस अध्ययन में कैलिफोर्निया, टेक्सस जैसे राज्यों के आठ प्रमुख सार्वजनिक वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांटों से लिए गए जल नमूनों का विश्लेषण शामिल किया गया।
इसमें पाया गया कि वाटर ट्रीटमेंट की अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किए जाने के बावजूद पीएफएएस उन ट्रीटमेंट सिस्टम से बाहर आने वाले पानी में मौजूद थे। ये पीएफएएस और उनके पूर्व-रासायनिक यौगिक (Pre-chemical compounds) या “प्रीकर्सर” न केवल पानी में बचे रह जाते हैं, बल्कि प्लांट से निकल कर नदी, झील जैसे जल स्रोतों में के पानी में भी घुल जाते हैं । प्रीकर्सर सीधे तौर पर PFAS नहीं होते, लेकिन पर्यावरण या शरीर में पहुंचने के बाद रासायनिक प्रतिक्रिया से PFAS में बदल सकते हैं।
पीएफएएस कोई एक रासायनिक पदार्थ नहीं है, बल्कि यह हज़ारों प्रकार के यौगिकों का समूह है। ये रासायनिक यौगिक बगैर टूटे लंबे समय तक प्रकृति में बने रह सकते हैं। इनकी संरचना में कार्बन और फ़्लोरीन का मज़बूत बॉन्ड शामिल होता है, जो रासायनिक रूप से सबसे मज़बूत बंधनों में से एक माना जाता है। इस बॉन्ड की वजह से ही ये यौगिक काफ़ी स्थिर होते हैं और गर्मी, पानी, तेल, और घर्षण से भी नहीं टूटते। यही गुण इन्हें जलरोधी, तेल रोधी, और दाग-रोधी बनाता है। इसलिए अकसर इन्हें सतह को ढकने वाली कोटिंग में इस्तेमाल किया जाता है।
इनका व्यापक उपयोग उद्योगों में रसायन प्रतिरोधी वस्तुओं, फायर फाइटिंग फ़ोम और दवाओं में होता है। ये यौगिक पानी में बहुत धीरे-धीरे टूटते हैं, जिससे ये भूजल और सतही पानी में सालों तक मौजूद रहते हैं। इसीलिए इन्हें “फ़ॉरेवर केमिकल” कहा जाता है। पीएफओए (परफ़्लूरोऑक्टेनॉइक एसिड A) और पीएफओएस (परफ़्लूरोऑक्टेनसल्फ़ोनिक एसिड) पीएफएएस की दो प्रमुख श्रेणियां हैं।
इनका उपयोग दशकों से टेफ़्लॉन कोटिंग, फ़ायरफ़ाइटिंग फ़ोम, और टेक्सटाइल इंडस्ट्री में हो रहा है। हालांकि, इनकी विषाक्तता (toxicity) के कारण हाल के वर्षों में फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, कनाडा सहित कई देशों ने इन्हें बैन कर दिया है। डेनमार्क, जर्मनी, स्वीडन, नीदरलैंड्स और नॉर्वे ने EU के REACH नियमों के तहत 2030 तक लगभग सभी गैर-ज़रूरी PFAS के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने की योजना बनाई है। इसके बाद से GenX, PFHxS, और PFNA जैसे आधुनिक यौगिकों इस्तेमाल PFAS के विकल्प के तौर पर किया जाने लगा है। हालांकि, इन यौगिकों के दीर्घकालिक प्रभाव भी सवालों के घेरे में हैं।
लंबे समय तक टिकने वाले सामान बनाने के लिए पीएफएएस का उपयोग 1940 के दशक से शुरू हुआ। क्योंकि इन रसायनों पर मौसम का असर नहीं होता और इनसे बने सामानों की क्षमता बेहतर होती है, इसलिए आज ये हज़ारों उपभोक्ता और औद्योगिक उत्पादों में मौजूद हैं। इनमें से कुछ मुख्य उपयोग इस प्रकार हैं:
कुकवेयर: नॉन-स्टिक बर्तनों (जैसे, टेफ़्लॉन कोटेड पैन) में इनका का उपयोग होता है ताकि खाना चिपके नहीं।
कपड़े और कालीन: दाग और पानी से बचाने के लिए। जैसे, वॉटरप्रूफ जैकेट, स्पोर्ट्सवेयर, कालीनों की सतह पर वाटरप्रूफ व स्टेनप्रूफ कोटिंग।
फूड पैकेजिंग: बर्गर रैपर्स, पिज़्ज़ा बॉक्स या माइक्रोवेव में बनाए जाने वाले पॉपकॉर्न के बैग में तेल का रिसाव रोकने के लिए।
फायरफाइटिंग फोम: खासतौर पर हवाई अड्डों, सेना और औद्योगिक क्षेत्र में अत्यधिक तापमान में आग बुझाने के लिए फ़ायरफ़ाइटिंग फ़ोम में इनका इस्तेमाल होता है।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर: इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को नमी और गर्मी से सुरक्षा देने के लिए।
कॉस्मेटिक्स और मेकअप: उत्पादों को वाटरप्रूफ व स्वेटप्रूफ बनाने के लिए, ताकि मेकअप लंबे समय तक टिका रहे।
PFAS शरीर में एक बार प्रवेश कर जाएं, तो कई वर्षों तक शरीर में बने रहते हैं। यही बात इन्हें सेहत के लिए काफी खतरनाक बनाती है। रिपोर्ट के मुताबिक पानी में इन रसायनों की मौजूदगी से अमेरिका में करीब 23 मिलियन (2.3 करोड़) लोगों की सेहत पर असर पड़ने की आशंका जताई गई है।
दुनिया भर में ज्यादातर देशों में इन्हें “बड़ी स्वास्थ्य समस्या” माना गया है। खासकर, किडनी व लिवर की कार्यक्षमता में गड़बड़ी, प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करने और गर्भवती महिलाओं व बच्चों में विकास संबंधी समस्याओं के लिए इन्हें ज़िम्मेदार माना गया है। इसे देखते हुए अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने पीने के पानी में पीएफएस की मात्रा के लिए सुरक्षित सीमा तय कर दी है, जो 4 पार्ट्स पर ट्रिलियन (ppt) तक है।
PMC, medicalnewstoday, reddit, en.wikipedia.org पर प्रकाशित रिपोर्टों सहित अनेक अध्ययनों में पीएफएस को HTA (हाइ-थायरॉइड एंटागोनिज़्म), कोलेस्ट्रॉल स्तर में वृद्धि और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की वजह भी बताया गया है। स्वास्थ्य पर इनके दीर्घ‑कालिक प्रभावों को लेकर दशकों से वैज्ञानिक अध्ययन हो रहे हैं। इनके कुछ प्रमुख स्वास्थ्य जोखिम इस प्रकार हैं:
कैंसर: पीएफएस के कारण किडनी और टेस्टिकुलर कैंसर से जुड़ी कई विश्वसनीय स्टडी सामने आई हैं।
हार्मोन असंतुलन: ये रसायन शरीर के हार्मोन सिस्टम में हस्तक्षेप करते हैं, जिससे थायरॉइड, मेटाबॉलिज़्म और प्रजनन तंत्र प्रभावित हो सकता है।
प्रतिरक्षा तंत्र पर असर: ये बच्चों और वयस्कों दोनों में टीकों के असर को कम कर सकते हैं और संक्रमण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ा सकते हैं।
जन्म दोष और विकास संबंधी समस्याएं: गर्भवती महिलाओं में पीएफएस की उपस्थिति भ्रूण के विकास को प्रभावित कर सकती है। इससे शिशु का वजन कम होने और बच्चे में शारीरिक विकार होने की संभावना बढ़ जाती है।
कोलेस्ट्रॉल और हृदय रोग: पीएफएस का संबंध उच्च कोलेस्ट्रॉल और हृदय से जुड़ी बीमारियों से भी देखा गया है।
इन प्रभावों को ध्यान में रखते हुए कई देश अब PFAS को नियंत्रित करने के लिए नीति परिवर्तन कर रहे हैं।
शरीर में कैसे पहुंचते हैं पीएफएएस?
ये रसायन कई माध्यमों से हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं:
पेयजल: यह सबसे आम स्रोत है। जैसे ही पीएफएएस से युक्त उत्पाद या अपशिष्ट मिट्टी और जलस्रोतों में मिलते हैं, वे भूजल और नलों के पानी तक पहुंच जाते हैं। इस पानी को पीने पर ये शरीर में चले जाते हैं।
भोजन: फूड पैकेजिंग में मौजूद ये रसायन हमारे खाने में मिल सकते हैं। माइक्रोवेव में बनाए जा सकने वाले पॉपकॉर्न जैसे कई खाद्य पदार्थ जिनमें तेल मौजूद होता है, उनकी पैकेजिंग में ये रसायन मौजूद होते हैं।
हवा और धूल: ऐसे कारखाने या वर्कशॉप जहां इन रसायनों से युक्त वस्तुओं का निर्माण होता है, वहां की हवा और धूल में भी ये पाए गए हैं। ये सांस के ज़रिये शरीर में प्रवेश करते हैं।
त्वचा संपर्क: पीएफएएस‑युक्त मेकअप, वाटरप्रूफ कपड़े या लोशन जैसी चीज़ों से लगातार त्वचा संपर्क के ज़रिए भी ये शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
हाल ही में अमेरिका की एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी EPA, अमेरिकन कैमिस्ट्री कांउसिल (ACC), यूरोपियन सेंटर फ़ॉर एक्टोटॉक्सोलॉजी एंड टॉक्सिकोलॉजी ऑफ़ कैमिकल्स (ECETOC) सहित कुछ अंतरराष्ट्रीय निकायों और औद्योगिक समूहों द्वारा पीएफएस यानी "फॉरेवर केमिकल" की परिभाषा को संकीर्ण करने का प्रयास किया गया है, ताकि केवल कुछ गिने-चुने यौगिक ही इस श्रेणी में आएं और बाकी रसायनों को बिना प्रतिबंध इस्तेमाल किया जा सके। इस पर वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित 20 वैज्ञानिकों के एक समूह द ग्लोबल पीएफएस साइंस पैनल ने कड़ी आपत्ति जताई है।
गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, इन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह प्रयास राजनीतिक या आर्थिक रूप से प्रेरित है और इसका मकसद पीएफएस के व्यापक विनियमन को कमजोर करना हो सकता है। वे चेतावनी देते हैं कि यदि परिभाषा को सीमित किया गया तो हजारों संभावित रूप से खतरनाक रसायन नियमन से बच निकलेंगे, जिससे न केवल पर्यावरण बल्कि मानव स्वास्थ्य पर भी प्रभाव होगा। वैज्ञानिकों की यह आपत्ति दर्शाती है कि फॉरेवर केमिकल की समस्या केवल वैज्ञानिक नहीं, बल्कि नीति और उद्योग के दबाव से जुड़ा जटिल मामला भी बनती जा रही है।
पीएफएस के बढ़ते खतरे को देखते हुए दुनियाभर में सरकारें इन्हें नियंत्रित करने के लिए कदम उठा रही हैं। ATSDR वार्षिक रिपोर्ट 2020 और वैज्ञानिकों ने खोजा पेयजल में फ़ॉरेवर केमिकल का चिंतित करने वाला नया स्रोत जैसी रिपोर्टों के मुताबिक कोरोना महामारी के बाद PFAS को लेकर जागरूकता तेजी से बढ़ी है। EPA ने जनवरी 2025 में कुछ प्रमुख पीएफएस यौगिकों को खतरनाक पदार्थ घोषित कर इनके इस्तेमाल की सख्त सीमाएं तय की हैं। यूरोपीय संघ भी इन्हें चरणबद्ध तरीके से प्रतिबंधित कर रहा है।
भारत में अब भी इस दिशा में ठोस नीति बनाए जाने की ज़रूरत है। पीएफएस से बचाव के लिए सबसे पहले तो कंपनियों को अपने उत्पादन में पारदर्शिता लानी होगी और पीएफएस‑मुक्त विकल्प अपनाने होंगे। उपभोक्ताओं को भी 'पीएफएस-मुक्त' लेबल वाले उत्पादों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
साथ ही, लोगों को बिना सही जानकारी के नॉन‑स्टिक बर्तन, वाटरप्रूफ कपड़े और सस्ते सौंदर्य प्रसाधनों के इस्तेमाल से बचना चाहिए। EPA की सलाह है कि सार्वजनिक जल वितरण प्रणाली से पानी प्राप्त करने वालों को अपनी स्थानीय जल विभाग से संपर्क कर पीएफएस की उपस्थिति की जानकारी लेनी चाहिए। NCBI रिपोर्ट में विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि जिनके पेयजल में पीएफएस स्तर अधिक हैं, कि वे प्रमाणित फ़िल्टर लगाएं।
पानी में पीएफएस की जांच यूरोफ़िन्स, FARE लैब, TÜV SÜD, एनवायरोकेयर लैब, और SGS आदि प्रयोगशालाओं में की जा सकती है। जल स्रोतों की नियमित जांच, सरकारी निगरानी और जागरूकता अभियान जैसी पहलें इस अदृश्य रासायनिक खतरे पर लगाम लगा सकती हैं।