स्वच्छ पेयजल हमेशा कीटाणुरहित, हानिकारक रासायनिक तत्वों से रहित, गंधहीन, रंगहीन एवं स्वादहीन होना चाहिये। परन्तु भारत में अत्यधिक जल प्रदूषण के कारण सभी नदियां प्रदूषित हो चुकी हैं। यहाँ तक की कई स्थानों पर भूजल भी पीने लायक नहीं रह गया है जिसे सामान्यतः शुद्धिकरण की आवश्यकता नहीं होती हैं। दूषित पेयजल पीने के कारण पीलिया, आंत्रशोथ, पोलियो, हैजा, टाइफाइड और फाइलेरिया जैसे भयंकर रोग हो सकते हैं। भारत के सभी प्रमुख शहरों में पेयजल का प्रबंध नगर निकायों, जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग अथवा जल बोर्डों द्वारा किया जाता है।
भारतवर्ष में जल-जनित रोगों की संख्या अत्यधिक है। गुजरात के कुछ गावों में पेयजल में फ्लोराइड की अत्यधिक मात्रा होने के कारण लोगों की हड्डियां कमजोर हो गयी हैं। वहीं राजस्थान के जोधपुर, भीलवाड़ा, नागौर, बीकानेर, उदयपुर, बाड़मेर, जयपुर एवं अजमेर जिलों में भी भूजल में अत्यधिक फ्लोराइड की मात्रा होने के कारण लोगों को फ्लोरोसिस रोग हो जाता है। इस रोग में हड्डियां कमजोर होने से 'कूबड़' निकल आता है एवं हाथ पाँव विकृत हो जाते हैं। भारत में लगभग 2.5 करोड़ लोग जल-जनित बीमारियों से पीड़ित हैं। आज भी भारत में अधिकांश जनता प्रदूषित पानी पीने को मजबूर है। हाल ही में ‘संयुक्त राष्ट्र जल विकास कार्यक्रम’ के अंतर्गत प्रकाशित ‘ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट 2007-2008’ ने कुल 177 देशों का सर्वे ‘जल स्वच्छता मानकों’ के आधार पर किया गया था। जिसमें भारत का स्थान 128 वां था जो कि भारत में पेयजल स्थिति की गंभीरता एवं भयावहता को दर्शाता है। जबकि श्रीलंका एवं बांग्लादेश का स्थान 99 एवं 140 था। इसी प्रकार एक संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 'वाटर फोर पीपल, वाटर फोर लाइफ' में भारत को 120 वां स्थान दिया गया था। इसके मूल्यांकन का आधार स्वच्छ जल एवं प्रदूषण मुक्त पेयजल की उपलब्धता था।
निम्न पेयजल मानकों को पूरा करने पर तथा भौतिक रासायनिक एवं जीवाणुओं रहित होने पर ही जलस्रोत पीने योग्य होगा।
सारणी : विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) एवं बीआईएस मानक | |||
क्रमांक | गुणधर्म | स्वीकार्य | अस्वीकार्य का कारण |
1 | गंदलापन (NTU) | 1 | 10 |
2 | रंग (प्लेटिनम कोबाल्ट पैमाना इकाई) | 5 | 25 |
3 | स्वाद एवं गंध | - | - |
4 | pH (पीएच) | 7.0-8.5 | <6.5->9.2 |
5 | कुल घुलित ठोस कण (मिग्रा/ली.) | 500 | 2000 |
6 | कुल कठोरता (CaCO2) के रूप में) | 200 | 600 |
7 | क्लोराइड्स (Cl के रूप में) (मिग्रा / ली.) | 200 | 1000 |
8 | सल्फेटस (SO4 के रूप में) (मिग्रा / ली) | 200 | 400 |
9 | फ्लोराइड्स ( F के रूप में) (मिग्रा / ली.) | 1.0 | 1.5 |
10 | नाइट्रेट्स (NO3 के रूप में) (मिग्रा / ली.) | 45 | 45 |
11 | कैल्शियम (Ca के रूप में) (मिग्रा / ली.) | 75 | 200 |
12 | मैग्नीशियम (Mg के रूप में) (मिग्रा / ली.) | 30 | 150 |
13 | लौह तत्व (Fe के रूप में) (मिग्रा / ली.) | 0.1 | 1.0 |
14 | मैंगनीज (Mn के रूप में) (मिग्रा / ली.) | 0.05 | 0.5 |
15 | तॉंबा (Cu के रूप में) (मिग्रा / ली.) | 0.05 | 1.5 |
16 | आर्सेनिक (As के रूप में)(मिग्रा / ली.) | 0.05 | 0.05 |
(स्रोत : पेयजल आपूर्ति विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार) * जल में खारेपन की जांच के लिये। कुल घुलित ठोस कण की सीमा ग्रामीण क्षेत्रों में 1500 मिग्रा,/ ली. निर्धारित की गयी है। |
सतही जल नदियों, झरनों, तालाबों एवं झीलों से प्राप्त किया जाता है, जबकि भूजल कुओं, खदानों, एवं नलकूपों से प्राप्त किया जाता है। यह जल सामान्यतः पूर्णतः शुद्ध नहीं होता इसमें विभिन्न अशुद्धियाँ पायी जाती हैं।
ये अशुद्धियां सामान्यतया ठोस अघुलनशील अशुद्धियाँ, रंग, गंदलापन जिसे छनन द्वारा अलग किया जाता है। यह अशुद्धियों सामान्यतया भूक्षरण के कारण मृदा पानी में घुलने के कारण होती हैं। जबकि पानी में गंध एवं स्वाद घुलनशील गैसों, सल्फाइड, सूक्ष्म जीवाणुओं तथा प्राकृतिक कार्बनिक तत्वों लिग्निन, टेनिसन एवं ह्यूमिक अम्ल के कारण होती हैं।
भूगर्भ में स्थित खनिज, भूजल में घुल जाते हैं अथवा मृदा में उपस्थित खनिज वर्षा ऋतु के जल में घुल जाते हैं। जिसे कुल घुलनशील ठोस TDS भी कहा जाता है। ये खनिज मुख्यतः कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं सोडियम के लवण होते हैं। इन्हीं कैल्शियम, मैग्नीशियम के क्लोराइड व सल्फेट लवणों के कारण ही जल में कठोरता पायी जाती हैं। इस कारण साबुन में झाग नहीं आते हैं। लौह तत्व भी 0.3 मिग्रा,/ली0 से अधिक पाये जाने पर हानिकारक होते हैं ये पानी में पीला रंग पैदा कर देते है। बंगाल एवं बांग्लादेश में आर्सेनिक, भूजल में काफी मात्रा में पाया जाता है जो कि एक प्रकार का धीमा जहर हैं। इसी कारण वहां के लोगों के शरीर पर फफोले, घाव एवं छाले पड़ गए हैं।
सतही जल में पेंड पौधें, कृषि उर्वरक एवं कीटनाशक मिल जातें हैं। साथ ही सूक्ष्म जीवाणु भी उत्पन्न हो जाते हैं जिससे जल की बी.ओ.डी. (जैव ऑक्सीजन मांग) बढ़ जाती हैं। इन उर्वरकों में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटेशियम होते हैं। जिससे पेयजल उपयोग हेतु तालाबों, झीलों में काई (एलगी) जम जाने के कारण यूट्रोफिकेशन हो जाता है, इस कारण पैंदे की गहराई कम हो जाती है।
भारत के अधिकांश शहरों में जलापूर्ति नगर निकायों, जल बोर्ड एवं जल प्राधिकरण द्वारा की जाती है। नदियों तालाबों, झीलों का जल प्रदूषित होने के कारण इसका शोधन कर इसे पीने लायक बनाया जाता हैं प्रमुख जल शोधन विधियां निम्न हैं।
जहाँ भूजल में लोहा एवं मैंगनीज पाया जाता हैं वहां इसमें डियूजर द्वारा ऑक्सीजन प्रवाहित की जाती हैं जिससे लौह तत्व ऑक्सीकृत हो जाते है जिन्हें रेत छनन द्वारा छान कर आसानी से अलग कर लिया जाता है, जल में कठोरता होने पर चूने का प्रयोग भी किया जाता है।
आजकल बाजार में बोतलबंद मिनरल वाटर को ओजोनीकरण, पराबैंगनी किरण एवं रिवर्स-ऑस्मोसिस द्वारा उपचारित किया जाता है।