प्रदूषण और जलगुणवत्ता

पीना पड़ रहा है फ्लोराइड वाला पानी

मनीष वैद्य

आदिवासियों को फ्लोराइडयुक्त पानी से निजात दिलाने के लिये गाँव में कुछ और अन्य स्थानों पर हैण्डपम्प लगाने का तय किया। एक बार फिर लाखों रुपए खर्च कर हैण्डपम्प खनन कराए गए पर नतीजा फिर वही ढाँक के तीन पात। गाँव में कराए गए इन हैण्डपम्प के पानी में भी फ्लोराइड की निर्धारित मात्रा 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर से काफी अधिक थी। इस तरह अब गाँव में नए और पुराने मिलकर करीब 15 हैण्डपम्प हैं लेकिन एक भी ऐसा नहीं जिसका पानी पीने योग्य निरापद हो।

हमारे मोहल्ले में पानी सबसे बड़ी फजीहत बना हुआ है। फ्लोराइडयुक्त पानी हमें बीमार बनाता है पर हमारे घरों में पीने के लिये साफ पानी भी तो नहीं है। हम कहाँ जाएँ और क्या करें... कुछ समझ नहीं आता। वे बताते हैं कि कुछ बच्चों के तो सिर्फ दाँत ही खराब हुए हैं पर कुछ बच्चों के तो हाथ-पैर भी टेढ़े होने लगे हैं।
स्कूल के आसपास भी पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं हैं। मजबूरी में विद्यार्थी हैण्डपम्प का खराब पानी ही पी रहे हैं।
दूषित पानी पीने से बच्चे बीमार हो रहे हैं। बच्चों की बीमारी की जाँच करने डॉक्टर भी आते हैं पर पीने के लिये साफ पानी अब भी नहीं मिल पा रहा है।
यहाँ पीने के पानी की बहुत समस्या है। हैण्डपम्प पर लाल निशान बना दिया गया है और दीवार पर इसकी सूचना भी लिख दी गई है पर फिर भी कई बार बच्चे इससे पानी पी लेते हैं। सूचना पढ़ना सबको तो आता नहीं इसलिये कुछ लोग यही पानी उपयोग कर लेते हैं।
कुआँ जब बनना शुरू हुआ, तभी से मनमाना काम किया जा रहा था। हमने इसे लेकर विभाग के अफसरों को बताया भी था पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। अब कुआँ धँस गया तो इसका खामियाजा तो हमें ही उठाना पड़ रहा है न। हम अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहाँ जाएँ।
पीएचई से जानकारी लेनी होगी फिर जानकारी लेने के बाद उन्होंने बताया कि विभाग ने गाँव में एक और बड़ा कुआँ तथा नल-जल योजना के लिये प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजा है। इस पर स्वीकृति मिलते ही काम शुरू कर सकेंगे।
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