यहां के बाशिंदे हताश हो चुके हैं, कोई भी राजनीतिक दल अब उनकी इस समस्या को समस्या ही नहीं मानता है। इस बात का हल्ला हो चुका है कि सोन नदी अब लाइलाज है। लोग पलायन कर रहे है और कारखानों को खुलकर खेलने की छूट मिल रही है। सवाल अनुत्तरित है कि जब कुछ साल बाद नदी ही नदारत हो जाएगी तब क्या होगा? क्या नाबदान बन चुकी सोन कारखाने वालों के भी काम की रह जाएगी? ओपीएम आज एशिया के सबसे बड़े कागज कारखानों में से एक है, जिसकी क्षमता 500 टन प्रतिदिन तक है। कई आदेशों के बावजूद इससे निकला गंदा पानी सोन नदी में मिलना नहीं रूक पाया है।