पांडू नदी प्रदूषण 
प्रदूषण और जलगुणवत्ता

संदर्भ गंगा : पांडू नदी प्रदूषण की शिकार

पांडव नदी का जल प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, कानपुर के उद्योगों से निकलने वाला कचरा मुख्य कारण, नदी में मछलियां खत्म, ग्रामीणों को हो रही परेशानी।

Author : केसर सिंह

पांडव नदी फतेहपुर जिले में शिवराजपुर के पास गंगा नदी में मिलती है। मत्स्य निदेशालय की वर्ष 1985 की बुलेटिन में इस नदी की परिस्थिति पर जे.सी. लोहानी एवं बालेश्वर गुप्त का एक शोध-पत्र प्रकाशित किया गया है। लेकिन यह शोध-पत्र अब से 20 साल पहले मार्च-दिसंबर 1969 के बीच किये गये अध्ययन पर आधारित है। इस अध्ययन के बाद के 20 वर्षों में हालत सुधरने के बजाय लगातार बिगड़ी है। जिस समय यह अध्ययन किया गया था, उस समय उसमें मुख्यतः एक ही फैक्ट्री इंडियन एक्सप्लोसिव्स लि.. फर्टिलाइजर डिवीजन, पनकी कानपुर का ही उत्प्रवाह आता था।

इस अध्ययन का निष्कर्ष यह था कि कानपुर, कालपी रोड के पास फैक्ट्री का नाला जहां नदी में गिरता है, वहां से कानपुर हमीरपुर रोड स्थित बिगंवत ब्रिज कासिंग तक जल का पीएच. 8.3 से बढ़कर 8.8 अर्थात क्षारीय हो गया था। नदी के स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा प्रतिकूल असर अमोनिया की वजह से पड़ रहा था, जिसका असर सीवर व अन्य जलीय वनस्पति पर पड़ा। इस क्षेत्र में मछलियां भी गायब पायी गयीं।

आज की स्थिति बताने के पहले पांडव नदी का संक्षिप्त परिचय आवश्यक है।

यह नदी इटावा जिले की विधूना तहसील स्थित सावद झाबर से नाले की तरह निकलती है। इस झाबर का जलग्रहण क्षेत्र 10 से 15 कि.मी. है। गर्मी में यह एक बड़े तालाब का रूप ले लेता है। आगे आकर निचली गंगा की कसुवा डिस्ट्रीब्यूटरी को पार करने पर धानिकपुर के पास इसमें रामनगर नाला मिलता है। यह नाला रामनगर झावर से निकला है। पुनः बेला गांव के पास हरदू झावर नाला मिलता है। यहीं निचली गंगा नहर का पानी पांडव नदी में छोडा जाता है। गर्मी के दिनों में जब नदी सूख जाती है इस नहर का पानी सिंचाई के काम आता है।

इटावा से निकलकर नदी फर्रुखाबाद जिले की कन्नौज तहसील में प्रवेश करती है। औंगपुर के पास कटरा झावर तथा औसीर गांव के पास औसीर झावर से पानी मिलता है। नदी 40 कि.मी. की दूरी करके परसदपुर के पास फतेहपुर जिले की सीमा में आती है यहां उत्तर की ओर मुड़कर कानपुर की सीमा से मिलते हुए फिर फतेहपुर की सीमा में दक्षिण दिशा की ओर मुड़कर शिवराजपुर के पास गंगा में मिलती है। नदी की कुल लम्बाई लगभग 185 किमी. है।

नदी में प्रदूषण का मुख्य स्रोत कानपुर शहर के उद्योग है।

कानपुर शहर की उत्तर दिशा में गंगा बहती है और दक्षिण में पांडव। जी.टी. रोड इस महानगर को दो हिस्सों में बांटती है। जी.टी. रोड से दक्षिण का सारा गंदा पानी पांडु नदी में आता है। इस इलाके में सीवरेज प्रणाली भी नहीं है।

पिछले दो दशक में यहां तमाम उद्योग लगे हैं, जिनसे वायु और जल दोनों ही प्रदूषित हो रहे हैं। दोषपूर्ण नगर नियोजन का ही परिणाम है कि पनकी थर्मल पावर हाउस व इन अन्य प्रदूषणकारी उद्योगों के आसपास का प्रदूषण कम करने के लिए बगीचे लगवाने के बजाय इन्हीं गैस चैम्बर क्षेत्र में आवासीय कालोनियां बनायी जा रही हैं।

ये उद्योग पांडव नदी से अपने संयंत्र ठंडा करने के लिए पानी लेते हैं और फिर गरम तथा विषैला पानी उसी में छोड़ते हैं।

यहां पांडव नदी में प्रदूषण के प्रमुख स्रोत ये पांच नाले हैं-

1. पनकी बिजलीघर नाला

2. आई.ई.एल. नाला इसी में लोहिया मशीन्स आदि कारखानों का उत्प्रवाह भी आता है।

3. किदवईनगर नाला

4. गंदा नाला

5. सीओडी. नाला।

जिन उद्योगों प्रमुख और कालोनियों की गंदगी पांडव में आती है वे हैं अरमापुर स्टेट, पनकी पावर कालोनी, पनकी पावर हाउस, आईई एल., दादानगर, जीएनपी. उद्योग, विजय नगर, फजलगंज, गोविन्दपुरी, जे.के. काटन मिल्स, कानपुर केमिकल्स, गोविन्दनगर, जुहीलेवर साकेतनगर, काटन कालोनी, स्वदेशी मिल किदवईनगर, सी.ओ.डी., अनवरगंज, चंदारी तथा सुजातगंज।

इन कालोनियों और औद्योगिक क्षेत्रों से पांडव नदी में कुल मिलाकर रोज औसतन छः करोड लीटर सलेज, सीवेज और औद्योगिक कचडा पांडव नदी में गिरकर चौदह हजार कि.ग्रा. प्रतिदिन जैविकीय ऑक्सीजन मांग का प्रदूषण भार डालना है। इस गंदगी के मिलने से पहले नदी के पानी में प्रदूषण नगण्य है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कानपुर स्थित क्षेत्रीय अधिकारी श्री एसएल. गोयल ने अपने एक लेख में समस्या की गंभीरता को स्वीकार किया है। श्री गोयल के अनुसार परीक्षण से यह सिद्ध हो चुका है कि घरेलू और औद्योगिक कचड़े से प्रदूषण का निश्चित असर नदी पर है। इसके फलस्वरूप नदी की घुलित ऑक्सीजन कम हुई, जैविक एवं रासायनिक ऑक्सीजन मांग बढ़ी तथा अमोनियाई नाइट्रोजन, नाइट्रेट और बैक्टीरिया भी पाये गये।

इस प्रदूषण से कानपुर और फतेहपुर के बीच सारी मछलियां समाप्त प्राय हैं और मछुवारे बेरोजगार। नदी के दोनों किनारे स्थित गांवों के किसान जानवरों के पीने के और सिंचाई के पानी की समस्या से ग्रस्त हैं। कुओं का भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रहा है।

इस प्रदूषण से नदी के दोनों किनारों स्थित गांवों के आदमी और पशु-पक्षी अनेक बीमारियों के शिकार हैं। शासन अथवा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस समस्या को दूर करने के लिए अभी तक कुछ नहीं कर सका है।

उपरोक्त कारखानों से होने वाला वायु प्रदूषण भी भयावह रूप लेता जा रहा है। यह वायु प्रदूषण भी अंततः जल प्रदूषण बढ़ाता है, और यह सारी गंदगी अंततः गंगा में जा रही है।

SCROLL FOR NEXT