पृथ्वी पर स्थित भूमि का वह क्षेत्र जहां भू-जल स्तर सामान्यतः या तो भूमि-सतह के बराबर होता है. अथवा भूमि उथले जल से आच्छादित होती है, आर्द्रभूमि (Wetlands) कहलाती है। प्राकृतिक संसाधनों में आर्द्रभूमि क्षेत्र की भूमिका महत्वपूर्ण है। ये क्षेत्र अस्थाई या स्थाई रूप से जल से आच्छादित रहते हैं। अर्थात आर्द्र भूमि क्षेत्र न तो पूर्णतः जलीय क्षेत्र होते हैं और न ही पूर्णतः भू-भागीय, वरन मौसम की परिवर्तनीयता के आधार पर समान समय में दोनों प्रकार की आर्द्र भूमि पाई जा सकती है।
आर्द्र भूमि क्षेत्रों का वर्गीकरण विभिन्न जलविज्ञानीय, पारिस्थितिकी, एवं भौगोलिक पहलुओं के आधार पर किया जाता है। भारतवर्ष में आर्द्र भूमि क्षेत्रों को 19 वर्गों में विभाजित किया गया है। जिनमें नदी/सरिता, जलाशय / बेराज, प्राकृतिक झील / तालाब, कीचड़ युक्त भूमि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त देश में पाये जाने वाले अन्य चयनित आर्द्र क्षेत्रों में दल-दल, मार्श, मॅग्रोव, कोरल, रेवेरीन, लैगून, पर्वतीय क्षेत्रों में उपलब्ध झीलें, जलग्रसन क्षेत्र आदि प्रमुख हैं। सारणी-1 में विभिन्न प्रकार के आर्द्र भूमि क्षेत्रों को दर्शाया गया है। चित्र-1 में कुछ प्रमुख आर्द्र भूमि क्षेत्रों को प्रदर्शित किया गया है।
| 
			 सारणी-1: आर्द्रभूमि क्षेत्र वर्गीकरण तंत्र एवं कोडिंग  | 
		|||
| 
			 कोड'  | 
			
			 स्तर - I  | 
			
			 स्तर - II  | 
			
			 स्तर - III  | 
		
| 
			 1000  | 
			
			 स्थलीय आर्द्र भूमि क्षेत्र  | 
			||
| 
			 1100  | 
			
			 प्राकृतिक  | 
			||
| 
			 1101  | 
			
			 झील/तालाब  | 
		||
| 
			 1102  | 
			
			 चापीय कासार  | 
		||
| 
			 1103  | 
			
			 पर्वतीय झीलें  | 
		||
| 
			 1104  | 
			
			 रेवेरीन  | 
		||
| 
			 1105  | 
			
			 जलग्रसन क्षेत्र  | 
		||
| 
			 1106  | 
			
			 नदी-सरिता  | 
		||
| 
			 1200  | 
			
			 मानव-निर्मित  | 
			||
| 
			 1201  | 
			
			 जलाशय / बैराज  | 
		||
| 
			 1202  | 
			
			 तालाब  | 
		||
| 
			 1203  | 
			
			 जलग्रसन क्षेत्र  | 
		||
| 
			 1204  | 
			
			 साल्ट पैन  | 
		||
| 
			 2000  | 
			
			 तटीय आर्द्र भूमि क्षेत्र  | 
			||
| 
			 2100  | 
			
			 प्राकृतिक  | 
			||
| 
			 2101  | 
			
			 लैगून  | 
		||
| 
			 2102  | 
			
			 क्रीक  | 
		||
| 
			 2103  | 
			
			 समुद्र तट/रेतीली भूमि  | 
		||
| 
			 2104  | 
			
			 कीचड़ युक्त भूमि  | 
		||
| 
			 2105  | 
			
			 लवणीय मार्श  | 
		||
| 
			 2106  | 
			
			 मॅग्रोव  | 
		||
| 
			 2107  | 
			
			 कोरल  | 
		||
| 
			 2200  | 
			
			 मानव-निर्मित  | 
			||
| 
			 2201  | 
			
			 साल्ट पैन  | 
		||
| 
			 2202  | 
			
			 जलकृषि तालाब  | 
		||
(*) आर्द्र भूमि क्षेत्र कोड
भारतवर्ष में आर्द्र भूमि क्षेत्रों का कुल क्षेत्रफल 152.6 हजार वर्ग किलोमीटर है जो कुल सतही भूमि के क्षेत्रफल का मात्र 4.63% है। भारतवर्ष के अधिकांश आर्द्रभूमि क्षेत्र प्रमुख नदियों से सम्बद्ध हैं। आर्द्र भूमि क्षेत्रों का राज्यवार वितरण दर्शाता है कि राज्य के क्षेत्रफल के प्रतिशत की दृष्टि से लक्ष्यदीप में आर्द्रभूमि क्षेत्र सर्वाधिक है। यहाँ कुल भौगोलिक क्षेत्र का 96.12% भाग आर्द्र भूमि से आच्छादित है। अंडमान एवं निकोबार दीप समूह, दमन एवं दीव एवं गुजरात राज्य आर्द्र भूमि के संबंध में क्रमशः द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ स्थान पर आते हैं जहां आर्द्रभूमि क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्र का क्रमशः 18.52%, 18.46% एवं 17.56% है। सारणी-1 में दर्शाये गए प्रत्येक वर्ग के आर्द्रभूमि क्षेत्र की भारतवर्ष में उपलब्ध संख्या एवं क्षेत्रफल को सारणी-2 में दर्शाया गया है। देश में राज्यवार आर्द्रभूमि क्षेत्र का वितरण सारणी-3 में दर्शाया गया है।
| 
			 सारणी-2 भारत में विभिन्न प्रकार के आर्द्र भूमि क्षेत्रों की उपलब्धता  | 
		||||
| 
			 संख्या  | 
			
			 आर्द्र भूमि वर्ग  | 
			
			 आर्द्र भूमि क्षेत्रों की संख्या  | 
			
			 कुल आर्द्र भूमि क्षेत्रफल (हेक्टेयर)  | 
			
			 आर्द्र भूमि का प्रतिशत  | 
		
| 
			 A  | 
			
			 प्राकृतिक स्थलीय आर्द्रभूमि क्षेत्र  | 
			|||
| 
			 1  | 
			
			 झील/तालाब  | 
			
			 11740  | 
			
			 729532  | 
			
			 4.78  | 
		
| 
			 2  | 
			
			 चापीय कासार  | 
			
			 4673  | 
			
			 104124  | 
			
			 0.68  | 
		
| 
			 3  | 
			
			 पर्वतीय झीलें  | 
			
			 2707  | 
			
			 124253  | 
			
			 0.81  | 
		
| 
			 4  | 
			
			 रिवरीन  | 
			
			 2834  | 
			
			 91682  | 
			
			 0.60  | 
		
| 
			 5  | 
			
			 जलग्रसन क्षेत्र  | 
			
			 11957  | 
			
			 315091  | 
			
			 2.06  | 
		
| 
			 6  | 
			
			 नदी-सरिता  | 
			
			 11747  | 
			
			 5258385  | 
			
			 34.46  | 
		
| 
			 B  | 
			
			 मानव निर्मित स्थलीय आर्द्र भूमि क्षेत्र  | 
		|||
| 
			 7  | 
			
			 जलाशय / बैराज  | 
			
			 14894  | 
			
			 2481987  | 
			
			 16.26  | 
		
| 
			 8  | 
			
			 तालाब  | 
			
			 122370  | 
			
			 1310443  | 
			
			 8.59  | 
		
| 
			 9  | 
			
			 जलग्रसन क्षेत्र  | 
			
			 5488  | 
			
			 135704  | 
			
			 0.89  | 
		
| 
			 10  | 
			
			 साल्ट पैन  | 
			
			 60  | 
			
			 13698  | 
			
			 0.09  | 
		
| 
			 C  | 
			
			 प्राकृतिक तटीय आर्द्र भूमि क्षेत्र  | 
		|||
| 
			 11  | 
			
			 लैगून  | 
			
			 178  | 
			
			 246044  | 
			
			 1.61  | 
		
| 
			 12  | 
			
			 क्रीक  | 
			
			 586  | 
			
			 206698  | 
			
			 1.35  | 
		
| 
			 13  | 
			
			 समुद्र तट/रेतीली भूमि  | 
			
			 1353  | 
			
			 63033  | 
			
			 0.41  | 
		
| 
			 14  | 
			
			 कीचड़ युक्त भूमि  | 
			
			 2931  | 
			
			 2413642  | 
			
			 15.82  | 
		
| 
			 15  | 
			
			 लवणीय मार्श  | 
			
			 744  | 
			
			 161144  | 
			
			 1.06  | 
		
| 
			 16  | 
			
			 मॅग्रोव  | 
			
			 3806  | 
			
			 471407  | 
			
			 3.09  | 
		
| 
			 17  | 
			
			 कोरल  | 
			
			 606  | 
			
			 142003  | 
			
			 0.93  | 
		
| 
			 D  | 
			
			 मानव निर्मित तटीय आर्द्र भूमि क्षेत्र  | 
		|||
| 
			 18  | 
			
			 साल्ट पैन  | 
			
			 609  | 
			
			 148913  | 
			
			 0.98  | 
		
| 
			 19  | 
			
			 जलकृषि तालाब  | 
			
			 2220  | 
			
			 287232  | 
			
			 1.88  | 
		
|   
  | 
			
			 उप-योग  | 
			
			 201503  | 
			
			 14705015  | 
			
			 96.36  | 
		
| 
			 आर्द्र भूमि क्षेत्र (2.25 हेक्टेयर)  | 
			
			 555557  | 
			
			 555557  | 
			
			 3.64  | 
		|
| 
			 कुल योग  | 
			
			 757060  | 
			
			 15260572  | 
			
			 100.00  | 
		|
रामसर सम्मेलन, (पूर्व में विशिष्टतः जलीय जीवों के लिए महत्वपूर्ण आर्द्र भूमि क्षेत्रों पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन), आर्द्र भूमि क्षेत्रों के संरक्षण एवं अविरत उपयोग के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है। इस अंतर्राष्ट्रीय समझौते को 2 फरवरी 1971 को ईरान के रामसर शहर में ईरानियन पर्यावरण विभाग द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में भागीदार राष्ट्रों द्वारा विकसित एवं स्वीकार किया गया था। रामसर शहर में आयोजित किए जाने के कारण इसे रामसर सम्मेलन के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के अंतर्गत आर्द्र भूमि क्षेत्रों के मूल पारिस्थितिक कार्यों एवं उनके आर्थिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक एवं मनोरंजनात्मक मूल्यों को स्वीकार किया गया। वर्तमान में रामसर सम्मेलन में 169 भागीदार राष्ट्र सम्मिलित हैं।
रामसर सम्मेलन में पाँच अन्य सहयोगी संस्थान (अंतर्राष्ट्रीय बर्डलाइफ संस्थान, अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण यूनियन, अंतरराष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान, वेटलैंड इंटरनेशनल एवं डब्लयू.डब्ल्यू. एफ. इंटरनेशनल) कार्य में सहयोग हेतु सम्मिलित किए गए हैं। ये संस्थान विशेषज्ञ तकनीकी सलाह, अध्ययन क्षेत्रों के कार्यान्वयन में सहायता एवं वित्तीय सहायता प्रदान कर सम्मेलन के कार्यों में सहयोग प्रदान करते हैं। वर्तमान में विश्व भर में स्थित रामसर स्थलों की संख्या 2388 है। इन रामसर स्थलों के अंतर्गत कुल 253,870,023 हेक्टेयर क्षेत्र आच्छादित है। सबसे ज्यादा 175 रामसर स्थल ब्रिटेन में, इसके बाद मैक्सिको 142 का स्थान है। रामसर सचिवालय का मुख्यालय ग्लैंड (स्विटजरलैंड) में है। भारत में उपलब्ध रामसर स्थलों की सूची को सारणी-4 में दर्शाया गया है।
आर्द्र भूमि क्षेत्र वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं की विविध प्रजातियों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करने के अतिरिक्त प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अनगिनत जनमानस को विविध प्रकार की खाद्यसामग्री, फाइबर एवं अपरिष्कृत सामग्री प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त ये क्षेत्र, मानव जीवन के लिए, अनेकों उपयोगी सेवाएँ, उदाहरणतः बाढ़ नियंत्रण, तथा स्वच्छ जल आपूर्ति को प्रदान करने में भी सहायक सिद्ध होते हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य एवं शैक्षणिक एवं मनोरंजन संबंधी क्षेत्रों में भी ये क्षेत्र उपयोगी सिद्ध होते हैं। मानव गतिविधियों जैसे बढ़ते औद्योगिकीकरण, तथा कृषि एवं आवासीय क्षेत्रों के विकास के कारण, अपने वृहत्त लाभों के बावजूद इन क्षेत्रों पर जोखिम बढ़ता जा रहा है। विश्व के लगभग 50% आर्द्र भूमि क्षेत्र गायब हो चुके हैं तथा धीरे-2 इनमें निरंतर कमी आती जा रही है।
आर्द्र भूमि क्षेत्रों में विभिन्न कारणों से जल उपलब्धता में कमी होने के कारण यह क्षेत्र विलुप्त होते जा रहे हैं। जल उपलब्धता में कमी होने के विभिन्न कारण निम्न हैं:-
आर्द्र भूमि क्षेत्रों का पुनरुद्धार एवं पुनर्स्थापन का अर्थ इन क्षेत्रों को इनकी मूल स्थिति में प्राप्त करना है। पुनरुद्धार प्रक्रम के दौरान आवाह क्षेत्र को जल संरचना के समाकलित भाग के रूप में स्वीकार कर उसे समान महत्ता देनी चाहिए। भारत के शहरी क्षेत्रों में उपलब्ध अनेकों आर्द्र भूमि क्षेत्रों में जल संरचनाओं के पुनरुद्धार की आवश्यकता है। देश का न्याय तंत्र इस क्षेत्र में उपयुक्त भूमिका प्रदान कर सकता है। न्याय तंत्र की सहायता से जल संरचनाओं को विलुप्त होने से बचाना काफी सरल होगा। इसके अतिरिक्त, क्षेत्र के नागरिक, एन जी ओ, एवं सरकारी संस्थान इन क्षेत्रों के पुनरुद्धार में उपयुक्त भूमिका प्रदान कर सकते हैं। संक्षेप में आर्द्र भूमि से निम्न लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
आर्द्र भूमि क्षेत्रों का पुनरुद्धार दो भागों में किया जा सकता है।
अपनी विशिष्टताओं एवं जलविज्ञानीय प्रक्रम में अपनी विशिष्ट भूमिका के कारण वर्तमान वर्षों में आर्द्र भूमि का संरक्षण अत्यधिक महत्वपूर्ण है। ये क्षेत्र, मानव जीवन के लिए, अनेकों उपयोगी सेवाएँ, प्रदान करने में सहायक सिद्ध होते हैं। अपने वृहत्त लाभों के बावजूद मानव गतिविधियों के कारण इन क्षेत्रों में निरंतर कमी आती जा रही है। अतः यह आवश्यक है कि इन आर्द्र भूमि क्षेत्रों को उचित संरक्षण प्रदान कर इन्हें नष्ट होने से बचाया जाए।