नदियों में जमने वाली गाद उसके प्रवाह को बाधित करती है, जिससे पानी का बहाव कम होता है, प्रदूषण बढ़ता है और पारिस्थितिक तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। स्रोत : Mongabay
रिसर्च

सीवेज कचरे से मिल सकेगा ईंधन और पशुओं के लिए चारा

सिंगापुर और चीन के वैज्ञानिकों की खोज से हल हो सकती है नदियों में गाद की समस्‍या। दुनिया भर में हर साल नदियों में गिरती है 100 मिलियन टन से भी ज्‍यादा सूखी गाद।

Author : कौस्‍तुभ उपाध्‍याय

देश में तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिकीकरण ने हमारी नदियों को इस कदर प्रदूषित कर दिया है कि ज़्यादातर नदियों में पारिस्थितिक तंत्र ध्‍वस्‍त हो गए हैं। नदियों में गिरने वाला सीवेज का पानी जहां नदियों को ज़हरीला बना रहा है, वहीं सीवेज गाद (sewage sludge) ने नदियों में कचरे का अंबार लगा दिया है, जो आसपास के इलाकों में दुर्गंध और बीमारियां फैला रहा है। 

अच्‍छी खबर यह है कि वैज्ञानिकों ने सीवेज गाद की समस्‍या का एक कारगर समाधान ढूंढा है, जो न सिर्फ प्रदूषण से हमें निजात दिला सकता है, बल्कि इससे हमें ईंधन और पशुओं के लिए पौष्टिक चारा भी मिल सकता है।  

सीवेज गाद के निस्तारण में लगता है समय, पैसा और ऊर्जा

नदियों में सीवेज गाद जमा होने की समस्या समय के साथ गहराती ही जा रही है। साइंस जर्नल नेचर वाटर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में हर वर्ष 100 मिलियन टन से अधिक सूखी गाद उत्पन्न होती है। पर्यावरण की दृष्टि इसका निस्तारण करना ज़रूरी है, पर इतनी बड़ी मात्रा के चलते यह काम काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

इस गाद को लैंडफिल में जमा करने, जलाने या कम्पोस्टिंग करने जैसे पारंपरिक तरीके काफी समय लेने वाले, खर्चीले और ऊर्जा की खपत वाले होते हैं और ये खुद भी प्रदूषण को बढ़ाते हैं। इसके चलते सीवेज गाद की समस्‍या बढ़ती ही जा रही है।

क्‍या है वैज्ञानिकों की नई खोज

सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (NTU) और शेंजेन स्थित द चाइनीज़ यूनिवर्सिटी ऑफ़ हॉंगकॉंग (CUHK) के वैज्ञानिकों की हालिया खोज ने सीवेज गाद जैसी बेकार चीज़ को एक कीमती संसाधन में बदलने की संभावनाओं के द्वार खोल दिए हैं। 

नेचर वाटर में प्रकाशित इनके शोध के मुताबिक सीवेज गाद का विघटन करके ईंधन के रूप में हाइड्रोजन और पशुओं के चारे के लिए प्रोटीन प्राप्‍त किया जा सकता है। इस तरह वैज्ञानिकों की यह रिसर्च आने वाले समय में पर्यावरण हितैषी चक्रीय अर्थव्यवस्था (सर्कुलर इकॉनोमी) की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है। 

साइंस जर्नल यूरेका अलर्ट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक इस वैज्ञानिक प्रयास में तीन चरणों वाली एक यांत्रिक-विद्युतकीय-जैविक प्रक्रिया (Mechano-Electro-Bio Process) को विकसित किया गया है। यह विभिन्‍न चरणों में सीवेज गाद का विघटन करके उसे कचरे से संसाधन में बदल देती है। प्रक्रिया को कुछ इस प्रकार समझा जा सकता है-

(1) यांत्रिक-रसायनिक विघटन उपचार (Mechano-chemical treatment)

शुरुआत में गाद को यांत्रिक रूप से तोड़ कर और विशिष्ट एल्कलाइन कैटलिस्ट रसायनों की मदद से भारी धातुओं को हटाकर प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट जैसे ऑर्गेनिक कार्बनिक तत्वों को अलग किया गया। यह प्रक्रिया के अगले दो चरणों के लिए आधार तैयार करता है। 

(2) सौर–चालित इलेक्ट्रोकेमिकल रिएक्टर (Solar-powered electrochemical reactor) 

अलग किए गए ऑर्गेनिक मिश्रण को दूसरे चरण में सौर ऊर्जा से संचालित इलेक्ट्रोड वाले रिएक्टर में डाला गया। इस चरण में ऐसिटिक एसिड जैसे ऑर्गेनिक मेटाबोलाइट्स उत्पन्न हुए। साथ ही, हाइड्रोजन गैस भी उत्‍पन्‍न हुई, जिसे “ग्रीन हाइड्रोजन” कहा गया ।

(3) फोटोट्रोफिक जीवाणु किण्वन (Phototrophic bacterial fermentation)

प्रक्रिया का तीसरा चरण जैविक उत्पादन का था। इसमें फोटोट्रोफिक जीवाणु किण्वन प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए बैंगनी फोटोट्रोफिक (purple phototrophic) प्रकाश संवेदी बैक्टीरिया (light-activated Bacteria) को रिएक्टर में शामिल किया गया। यह एसिटिक एसिड और दूसरे कार्बनिक तत्‍वों को खाकर एक कोशिकीय प्रोटीन single-cell protein (SCP) का निर्माण करते हैं, जिसे पशुओं के पोषक चारे के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।

नदियों में सूखी गाद यानी ड्राइ सिल्ट की समस्‍या कुछ इस तरह से उत्‍पन्‍न होती है। यह नदी की गति के अलावा प्रवाह क्षेत्र को भी बदल देती है।

शानदार नतीजों से वैज्ञानिक उत्‍साहित

वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला परीक्षणों में सीवेज की गाद से हाइड्रोजन गैस और प्रोटीन बनाने की प्रक्रिया को परखा। उन्होंने लगभग 400 मिलीग्राम सूखी गाद में मौजूद कार्बनिक तत्वों और सूक्ष्मजीवों का उपयोग करते हुए विशेष नियंत्रित परिस्थितियों में यह प्रक्रिया इस्तेमाल की। लैब-टेस्‍ट में इस विधि की उच्‍च श्रेणी की दक्षता ने वैज्ञानिकों को चकित कर दिया। परीक्षण के नतीजों में ये बातें सामने आईं :

  • 91.4% ऑर्गेनिक कार्बन की रिकवरी हुई, जो पारंपरिक अवायवीय पाचन (anaerobic digestion) की प्रक्रिया के मुकाबले करीब 50% अधिक है।

  • करीब 63% कार्बन एक कोशिकीय प्रोटीन में परिवर्तित हो गया।

  • 10% सौर-से-हाइड्रोजन ऊर्जा दक्षता (Solar-to-hydrogen energy efficiency) देखने को मिली।  

  • सीवेज गाद से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में करीब 99.5% कमी आई और पारंपरिक प्रक्रियाओं से गाद के निपटान में खर्च होने वाली ऊर्जा के मुकाबले 99.3% कम ऊर्जा की खपत हुई। 

  • लैब परीक्षण में 400 मिलीग्राम गाद से प्रति घंटे 13 लीटर हाइड्रोजन उत्पादन देखा गया ।

परीक्षण के इन बेहतरीन नतीजों से उत्‍साहित वैज्ञानिकों के मुताबिक इस प्रक्रिया की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि यह न सिर्फ सीवेज गाद जैसे अपशिष्ट को घटाती है, बल्कि उसके बदले ऊर्जा और पोषक तत्वों जैसे उपयोगी सह-उत्पाद भी देती है। इस कारण यह प्रक्रिया आर्थिक रूप से व्यवहार्य यानी इकोनॉमिकली वायबल हो जाती है। साथ ही, इस प्रणाली को आसानी से बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार, इससे बड़े स्तर पर ऊर्जा उत्पादन संभव हो सकता है।

जानवरों के लिए खाना, कारों के लिए ईंधन

वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि इस तकनीक को व्यावसायिक स्तर पर अमल में लाया जाए, तो यह कार्बन उत्सर्जन घटाने में भी मददगार हो सकती है। खास बात यह भी है कि इस पूरी प्रक्रिया में तकरीबन शून्य कार्बन उत्सर्जन के साथ हाइड्रोजन जैसा ऊर्जादक्ष ईंधन बनता है, जिसे फ्यूल सेल या आंतरिक दहन इंजनों  (internal combustion engines) में ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। 

दूसरी ओर, SCP पशु चारे में प्रोटीन की बढ़ोतरी करता है। यह एक सिंथेटिक, लेकिन पौष्टिक स्रोत है, जो मछली पालन, पोल्ट्री उत्पादन और पशुपालन करने वाले किसानों के लिए अत्‍यंत उपयोगी व मूल्यवान साबित हो सकता है। इन दोनों चीज़ों को देखते हुए ही डिस्कवर मैगज़ीन ने इस तकनीक को “फ़ूड फ़ॉर एनिमल्स और फ़्यूल फ़ॉर कार्स” कहा है। 

भारत में हैं इस्तेमाल की अपार संभावनाएं

सीवेज गाद के विघटन की इस प्रक्रिया को लेकर वैज्ञानिक और पर्यावरणविद इसलिए भी आशावान हैं, क्‍योंकि यह कचरे को संसाधन में बदलने के साथ ही उससे हमारे वातावरण में होने वाले ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी प्रभावी ढंग से घटा सकती है। खासकर, भारत जैसे देश में, जहां पर्याप्त संख्‍या में वेस्टवाटर ट्रीटमेंट प्लांट (WWTPs) यानी मलजल शोधन संयंत्र नहीं हैं, वहां इस तकनीक का इस्‍तेमाल करके सीवेज गाद की समस्‍या से प्रभावी ढंग से निपटा जा सकता है।

भारत भी सीवेज गाद के पर्यावरण अनुकूल निपटान की तकनीकें अपनाने की ओर कदम बढ़ा रहा है। हाल ही में केरल के तिरुअनंतपुरम में ओम्नीप्रोसेसर तकनीक पर आधारित सीवेज ट्रीटमेंट प्‍लांट (STP) की स्‍थापना का काम शुरू किया गया है। इस संयंत्र में सीवेज गाद से गैस, बिजली और पेयजल का उत्‍पादन होगा। ऐसे में, NTU मॉडल को अपनाना इस संयंत्र के लिए अगला कदम हो सकता है। 

सीवेज गाद के निपटारे की यह तकनीक वेस्ट-टू-वैल्थ मॉडल को प्रेरित करते हुए देश में चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती है, जिसमें प्राकृतिक संसाधनों की खपत घटाने और कचरा कम करने के लिए संसाधनों को रिसायकल करके बार‑बार उपयोग में लाया जाता है। 

इसके अलावा यह सरकार के स्‍मार्ट सिटी व क्‍लीन सिटी जैसे प्रोजेक्‍ट के लिए भी आर्थिक रूप से व्‍यवहार्य मॉडल तैयार करने में मददगार हो सकती है। हालांकि, इसकी राह में अभी कई चुनौतियां भी हैं। प्रयोगशाला के स्तर पर प्रदर्शन बेशक सराहनीय है, लेकिन इसकी बड़े स्तर पर स्केलिंग के लिए ज़रूरी इंफ्रास्ट्रक्चर और नीतियां तैयार करना अगला चैलेंज होगा। 

साथ ही, भारत जैसे सीमित आर्थिक संसाधन वाले देशों के लिए इसे और भी लागत-प्रभावी बनाना होगा, क्‍योंकि बड़े WWTPs में इस तरह की इलेक्ट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं को लागू करना महंगा और जटिल हो सकता है। इस मॉडल की बहु-चरणीय प्रक्रिया को पूरा करने के लिए सौर-संचालित रिएक्टर, बैक्टीरिया कल्चर जैसी खर्चीली चीजों का इन्‍फ्रास्‍ट्रक्‍चर खड़ा करना और इनके लंबे समय तक निर्बाध संचालन की व्यवस्था करना एक बड़ी आर्थिक चुनौती होगा।

गाद के कारण नदियों में मौजूद जलीय जीवन और वनस्‍पतियों को भी काफी नुकसान पहुंचता है।

सीवेज निपटान के कुछ अन्‍य चर्चित प्रोजेक्‍ट

सिंगापुर और चीन के वैज्ञानिकों के NTU का मॉडल के अलावा दुनिया भर में विभिन्‍न स्‍तरों पर सीवेज निपटान के कुछ अन्‍य उपयोगी तरीके भी अपनाए जा रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक न्यूयॉर्क के वेबस्टर में एक परियोजना में WWTP को संवर्धित करके गाद को बायोसॉलिड में परिवर्तित करने का प्रयास हो रहा है। इसका इस्‍तेमाल कृषि में उर्वरक के रूप में किया जा सकता है। 

इसके अलावा, बियर निर्माण और आधुनिक पर्यावरण परियोजनाओं के लिए प्रसिद्ध अमेरिका के विस्कॉन्सिन राज्य के शहर मिल्वौकी में Milorganite नामक कंपनी गाद को गर्म हवा से सुखाकर व कीटाणुरहित बना कर इससे नाइट्रोजन एवं फास्फोरस समृद्ध उर्वरक के पैलेट बना रही है। अमेरिका के ही सिएटल में थर्मल हाइड्रोलिसिस तकनीक से उच्च दाब व ताप पर गाद को रोगाणु रहित करके बैक्टीरियल डाइजेशन क्षमता बढ़ाई जा रही है। इससे बिजली, बायोगैस और उच्च‑गुणवत्ता वाले उर्वरक प्राप्त हो रहे हैं। 

चीन के जिनिंग में साल 2016 में एक HTC संयंत्र स्थापित किया जा चुका है, जो सालाना 14,000 टन सीवेज गाद से बायोचार (चारकोल जैसा पदार्थ, जिसे मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने के लिए इस्तेमाल किया जाता है) और ईंधन तैयार करता है। यह मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने व कार्बन संग्रहण में उपयोगी साबित हो रहा है। इसके अलावा इटली के मेज़्ज़ोकोरोना में साल 2019 में AD प्लांट डाइजेस्ट से जैव-उर्वरक के रूप में कृषि में उपयोग के लिए हाइड्रोचार तैयार करने के लिए HTC संयंत्र शुरू किया जा चुका है। 

मेक्सिको सिटी में साल 2022 में HTC मॉड्यूल की स्थापना की गई है। यह सालाना लगभग 23,000 टन जैविक अपशिष्ट को HTC के ज़रिए संसाधित कर बायोकोल (हाइड्रोचार) में परिवर्तित करता है। दुनिया भर में विभिन्‍न HTC संयंत्रों के जरिये सीवेज गाद से उपयोगी उत्‍पाद बनाने की विभिन्‍न परियोजनाओं की जानकारी साल 2019 में बर्लिन में आयोजित 2nd इंटरनेशनल सिंपोज़ियम ऑन हाइड्रोथर्मल कार्बनाइज़ेशन की पुस्तिका में दी गई है।

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