पर्यावरणीय ज्ञान और पर्यावरणीय दृष्टिकोण के बीच सहसंबंध को व्यापक रूप से जाना जाता है। भारत में पर्यावरण के प्रति चिंताओं के कारण पर्यावरण शिक्षा के माध्यम से युवाओं को संवेदनशील बनाने और उनके कौशल को मजबूत करने की मांग बढ़ रही है, जिसमें पर्यावरणीय रूप से सजग स्थायी भविष्य पर ध्यान केंद्रित किया गया है। साहित्य से पता चलता है कि छात्र 'सुनने' की तुलना में 'करने से अधिक प्रभावी ढंग से सीखते हैं। और यह उस क्षेत्र में सीखने की एक बड़ी ताकत है जहां छात्र पर्यावरण संबंधी परियोजनाओं में शामिल होते हैं।
प्रत्यक्ष शैक्षिक लाभों के अलावा, फील्डवर्क से आत्मविश्वास और उत्साह बढ़ता है। 'पर्यावरण विज्ञान' एक तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र है जिसमें युवाओं को प्रकृति और उसके संरक्षण की पहल में उनकी भूमिका को सशक्त बनाने में एक नए विजन की आवश्यकता है। इससे अर्जित किए गए हरित कौशल और हरित नौकरियों के लिए लक्षित पहल के माध्यम से पर्यावरणीय संकट को हल करने में मदद मिलेगी।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ‘आईएलओ’ ने हरित नौकरियों को सभ्य नौकरियों के रूप में परिभाषित किया है जो पर्यावरण को संरक्षित या पुनः स्थापित करने में योगदान देती हैं। चाहे वे विनिर्माण और निर्माण जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में हो, या नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता जैसे नए उभरते हरित क्षेत्रों में हो
संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूएनआईडीओ) के अनुसार, स्थायी और संसाधन कुशल समाज में रहने, उसे विकसित करने और समर्थन करने के लिए हरित कौशल का ज्ञान, क्षमताएं उपयोगिता और मनोवृत्ति अपेक्षित है।
यूएनआइडीओ का ग्रीन जनरल स्किल इंडेक्स कार्य के चार समूहों की पहचान करता है जो हरित व्यवसायों के लिए महत्वपूर्ण है।
इंजीनियरिंग और तकनीकी कौशल : इसमें पर्यावरण अनुकूल निर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा डिजाइन और ऊर्जा बचत अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) परियोजनाओं के लिए प्रौद्योगिकी के डिजाइन, निर्माण और मूल्यांकन से जुड़े कौशल शामिल हैं।
विज्ञान कौशल: व्यापक कार्यक्षेत्र वाले और नवाचार कार्यकलापों के लिए आवश्यक ज्ञान के स्रोतों से उत्पन्न होने वाली क्षमताएं, उदाहरण के लिए भौतिकी और जीव विज्ञान।
हरित गतिविधियों का समर्थन करने के लिए अपेक्षित संगठनात्मक ढांचे में परिवर्तन से संबंधित जानकारी।
व्यावसायिक कार्यकलापों के तकनीकी और कानूनी पहलू
हरित कौशल में नौकरियों सहित स्थायी भविष्य को सुरक्षित करने में योगदान मिलता है जिसमें पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को संरक्षण तो मिलता ही है, साथ ही, अपशिष्ट और प्रदूषण भी कम होता है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत के युवाओं को हरित कौशल विकास कार्यक्रम (जीएसडीपी) के माध्यम से रोजगार प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिए पर्यावरण और वन क्षेत्र में कौशल विकास के लिए एनविस हब के व्यापक नेटवर्क और विशेषज्ञता का उपयोग कर रहा है।
जीएसडीपी जून 2017 में लॉन्च किया गया था और इस कार्यक्रम तकनीकी ज्ञान और स्थायी विकास के प्रति प्रतिबद्धता रखने वाले हरित कुशल श्रमिकों को तैयार करने का प्रयास किया गया है, जो राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान की प्राप्ति में मददगार होंगे।
पहला जीएसडीपी पाठ्यक्रम देश के दस चुनिंदा जिलों में प्रायोगिक आधार पर जैव विविधता संरक्षणवादियों और पैरा- टैक्सोनोमिस्टों को प्रशिक्षित करने के लिए तैयार किया गया था। यह जीएसडीपी, स्कूल और कॉलेज छोड़ने वालों और पर्यावरण क्षेत्र के अन्य छात्रों से लेकर उभरते उद्यमियों, औद्योगिक क्षेत्रों, वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों सहित कामकाजी पेशेवरों तक लाभार्थियों के विधि स्पेक्ट्रम को कवर करता है।
जीएसडीपी पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के स्वायत्त निकायों/ अन्य संस्थानों में लोगों के जैव विविधता रजिस्टर तैयार करने के लिए राज्य जैव विविधता बोर्डों, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण और उनके संबंधित क्षेत्रीय केंद्रों, वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो और इसके क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ-साथ विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों, वृक्षारोपण, ईको- रिजोर्ट, वन्यजीव पर्यटन क्षेत्र (ग्रीन गाइड के रूप में), सीपीसीबी और इसके क्षेत्रीय निदेशालयों आदि में प्लेसमेंट की सुविधा प्रदान करता है, जैव विविधता प्रबंधन समितियां।
‘कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) देश भर में सभी कौशल विकास प्रयासों के समन्वय के लिए जिम्मेदार नोडल मंत्रालय है। राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण परिषद (एनसीवीईटी) को 5 दिसंबर, 2018 को एमएसडीई द्वारा अधिसूचित किया गया था। जीएसडीपी, एनसीवीईटी द्वारा समय-समय पर जारी मानदंडों और दिशानिर्देशों के अनुरूप कार्य करता है जीएसडीपी के तहत सभी पाठ्यक्रम एनसीवीईटी द्वारा अनुमोदित होते हैं।’
पाठ्यक्रमों की सूची में जल बजटिंग, बांस का प्रसार और प्रबंधन, उद्योगों के लिए ग्रीनबेल्ट का विकास, स्वच्छ उत्पादन मूल्यांकन, भू-स्थानिक तकनीकों का उपयोग करके वन्यजीव प्रबंधन, उत्सर्जन सूची, वन अग्नि प्रबंधन आदि शामिल हैं। हमें पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए समाज के बीच जिम्मेदार व्यवहार विकसित कर ऐसे कौशलों को मुख्यधारा में लाने की जरूरत है। यह नवाचारों और टिकाऊ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देकर युवाओं के बीच हरित कौशल की संस्कृति को आत्मसात करेगा।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (एनएपीसीसी) के महत्व को देखते हुए, यह जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने की राष्ट्रीय रणनीति है और जो भारत के विकास पथ की पारिस्थितिकीय स्थिरता को बढ़ाएगी जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के समाधान के लिए दीर्घकालिक और एकीकृत दृष्टिकोण रूप में एनएपीसीसी के आठ मिशन है- राष्ट्रीय सौर मिशन, उन्नत ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय मिशन, सतत पर्यावास पर राष्ट्रीय मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन, हरित भारत के लिए राष्ट्रीय मिशन, सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय मिशन, जलवायु परिवर्तन के लिए ज्ञान पर राष्ट्रीय मिशन।
इसके बाद राज्य भी जलवायु परिवर्तन पर अपनी-अपनी राज्य कार्य योजनाएं तैयार करते हैं जो अनुकूलन पहलों पर आती है। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेशन (यूएनएफसीसीसी) के तहत भारत द्वारा प्रस्तुत दीर्घकालिक निम्न कार्बन विकास कार्यनीति ऊर्जा सुरक्षा
एसडीजी की प्राप्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्रवाई दशक के हिस्से के रूप में, भारत ने अपशिष्ट की रोकथाम और प्रबंधन सहित संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की है
नीति आयोग ने विभिन्न श्रेणियों के कचरे के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था कार्ययोजनाओं के विकास के लिए समितियों का गठन किया है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय टायर और रबर के लिए सर्कुलर इकोनॉमी एक्शन प्लान के लिए नोडल मंत्रालय है, और उसने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत प्लास्टिक पैकेजिंग के लिए विस्तारित उत्पादक 'जिम्मेदारी पर दिशानिर्देश' अधिसूचित किए हैं।
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय संसाधन दक्षता नीति, 2019 के मसौदे में पर्यावरण की दृष्टि से सतत् और उचित आर्थिक विकास, संसाधन सुरक्षा, स्वस्थ पर्यावरण और पुनः स्थापित पारिस्थितिकी तंत्र वाले भविष्य की भी परिकल्पना की है। यह देश के सभी सेक्टरों और क्षेत्रों में संसाधन दक्षता को मुख्यधारा में लाता है और पांच सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होता है-
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका उद्देश्य रैखिक अर्थव्यवस्था के स्थान पर चक्रीय अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है यदि इसे अपनाया जाता है, तो ये सिद्धांत भारतीय उद्योगों को लागत कम करने, उत्पादकता बढ़ाने और स्थायी औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने में सक्षम बनाएंगे।
सर्कुलर इकोनॉमी संसाधनों को यथासंभव लंबे समय तक उपयोग करके अधिकतम मात्रा प्राप्त कर लेती है और अंत तक उत्पादों और सामग्रियों को पुनर्प्राप्त और पुनः सृजित करती है ताकि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को यथासंभव अधिकतम सीमा तक सीमित किया जा सके।
मेक इन इंडिया अभियान का उद्देश्य स्वदेशी ज्ञान और साधनों का उपयोग करके भारत को वैश्विक डिजाइन और विनिर्माण केंद्र में बदलना है, हालांकि पर्यावरण और विकास के संतुलन बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि स्वच्छ प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा दिया जाए। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से मेक इन इंडिया पहल के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इससे कंपनियों को भारत में अपने उत्पाद बनाने में मदद करने के लिए किफायती तकनीकें सामने आई हैं। डीएसटी प्रभावशाली अनुसंधान, नवाचार और प्रौद्योगिकी परियोजनाओं को लागू करने के लिए शिक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर स्वास्थ्य देखभाल, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, स्थायी आवास, जल संसाधन और नदी प्रणाली तथा पर्यावरण और जलवायु जैसी विकासात्मक आवश्यकताओं के समाधान के लिए कार्य कर रहा है
डिजिटल इंडिया प्रारंभ करने की भावना के अनुसरण में तथा इनमें न्यूनतम सरकार और अधिकतम सुशासन के सार को समझने के लिए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा परिवेश (इंटरैक्टिव गुणवत्ता वाला और पर्यावरणीय सिंगल विंडो हब द्वारा सक्रिय और उत्तरदायी सुविधा विकसित किया गया है। इसने विकासात्मक परियोजनाओं के लिए आवेदन जमा करने, कार्यवृत्त के साथ-साथ पर्यावरण/वन/वन्यजीव मंजूरी देने से लेकर पूरी प्रक्रिया को स्वचालित कर दिया है। इस तरह की पहल और जीएसडीपी जैसी अन्य पहल आगामी वर्षों में मेक इन इंडिया अभियान को बढ़ावा देंगी।
कुरुक्षेत्र, सितम्बर 2023