घरों में इस्‍तेमाल होने वाला गैस स्‍टोव नाइट्रस ऑक्‍साइड, बेंजीन जैसी जहरीली गैसों का प्रदूषण फैला कर सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है।  स्रोत : विकी कॉमंस
रिसर्च

सेहत के लिए ख़तरनाक हो सकता है गैस चूल्‍हों से होने वाला 'घरेलू’ वायु प्रदूषण

घरों में गैस स्टोव का रोज़मर्रा का इस्तेमाल से दमा और फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ जाता है। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की रिसर्च बताती है कि केवल इलेक्ट्रिक स्टोव का उपयोग करने भर से इस खतरे को लगभग 50 फ़ीसद तक कम किया जा सकता है।

Author : कौस्‍तुभ उपाध्‍याय

वायु प्रदूषण की बात होने पर अकसर  स्मॉग, वाहनों और फैक्ट्रियों से होने वाले उत्‍सर्जन की चर्चा होती है। लेकिन इन चर्चााओं में वायु प्रदूषण का एक बेहत ज़रूरी और गंभीर पहलू छूट जाता है। यह है घरों के अंदर पाया जाने वाला वायु प्रदूषण। दरअसल, रसोई में रोज़मर्रा के गैस स्टोव से निकलने वाला धुआं और हानिकारक गैसें भी हमारी सेहत पर उतना ही गंभीर असर डालती हैं, खासकर बच्चों और महिलाओं पर। इसका कारण यह है कि महिलाएं घर के अंदर ज़्यादा समय बिताती हैं, और छोटे बच्चों का शरीर अभी पूरी तरह विकसित नहीं होता, इसलिए वे इन हानिकारक गैसों के प्रति और भी ज़्यादा संवेदनशील हो जाते हैं। इन्हीं कारणों से घरेलू वायु प्रदूषण अब दुनिया भर के वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों का ध्यान अपनी तरफ़ खींच रहा है।

अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के 2024 के अध्ययन में पाया गया कि रसोई में रोज़मर्रा के गैस स्टोव (एलपीजी और प्रोपेन) से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) और बेंजीन जैसी हानिकारक गैसें निकलती हैं। अध्ययन में बताया गया है कि ये गैसें सीधे सांस और फेफड़ों पर असर डालती हैं और दमा, फेफड़ों का कैंसर, ल्यूकेमिया, मधुमेह और समय से पहले जन्म जैसी गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का जोखिम लगभग 60 फ़ीसद तक बढ़ा देती हैं। अध्ययन में यह भी बताया गया है कि छोटे और बंद घरों में, या जहां वेंटिलेशन कम होता है, ये गैसें घंटों तक हवा में बनी रहती हैं। जिसका सीधा मतलब होता है कि घर के अंदर रहना हमेशा सुरक्षित नहीं होता; कई बार घर के भीतर का प्रदूषण बाहर के हवा से भी अधिक घातक हो सकता है। अध्ययन के अनुसार, बिजली या इंडक्शन स्टोव का इस्तेमाल करने से यह जोखिम लगभग 50 फ़ीसद तक कम किया जा सकता है।

यह दुनिया में ऐसा पहला अध्ययन है जिसमें घर के अंदर और बाहर दोनों जगह मानव स्‍वास्‍थ्‍य पर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) के असर को मापने का प्रयास किया गया है। इस खतरे की ओर ध्यान दिलाते हुए वायु गुणवत्ता वैज्ञानिक और अध्ययन की प्रमुख लेखिका यानाई काश्तान कहती हैं कि अब वक्त आ गया है कि हम इस बात को  गंभीरता से समझें कि हमारे घरों के भीतर क्या हो रहा है और हम रोज़ किन खतरों के बीच सांस ले रहे हैं। खासकर तब जब परिवार के सदस्य अपना अधिक समय घर के भीतर गुज़ार रहे हैं। इसलिए स्वच्छ हवा और स्वस्थ जीवन की दिशा में प्रयास करते हुए हमें घर के अंदर की हवा की गुणवत्ता को प्राथमिकता देनी चाहिए। खाना पकाने में गैस की बजाय इलेक्ट्रिक स्टोव का इस्तेमाल करना सिर्फ साफ़ ऊर्जा की ओर कदम नहीं है, बल्कि बेहतर सेहत की तरफ़ भी एक सीधा बदलाव है। 

अंतरराष्‍ट्रीय संस्‍था ओडब्‍लूआईडी के आंकड़ों के अनुसार 2017 में दुनिया के विभिन्‍न इलाकों में घरेलू वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों का हाल।

सेहत के लिए ख़तरनाक हो सकता है गैस चूल्‍हों से होने वाला 'घरेलू’ वायु प्रदूषण

घर के गैस स्टोव से निकलने वाला धुआं और हानिकारक गैसें बच्चों और महिलाओं सहित सभी के स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल सकती हैं। स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के साल 2024 के अध्ययन में पाया गया कि एलपीजी और प्रोपेन स्टोव से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO₂) और बेंजीन जैसी गैसें निकलती हैं, जो दमा, फेफड़ों का कैंसर, ल्यूकेमिया, मधुमेह और समय से पहले जन्म जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम लगभग 60 फ़ीसद तक बढ़ा देती हैं। छोटे और बंद घरों में या जहां वेंटिलेशन कम होता है, ये गैसें घंटों तक हवा में बनी रहती हैं। अध्ययन में यह भी बताया गया कि सिर्फ इलेक्ट्रिक या इंडक्शन स्टोव का उपयोग करने से यह जोखिम लगभग 50 फ़ीसद तक कम किया जा सकता है।

अध्ययन के वरिष्ठ लेखक रॉब जैक्सन का कहना है कि, “हम मान लेते हैं कि घर की हवा सुरक्षित है, लेकिन अगर आप गैस स्टोव का इस्तेमाल करते हैं, तो आप इनसे निकलने वाली हानिकारक गैसों की उतनी ही मात्रा सांस के माध्यम से ले रहे हैं जितनी बाहर के प्रदूषण से।”
इस रिसर्च में अमेरिका के 13.3 करोड़ घरों की इनडोर एयर क्वालिटी की तुलना उनके इलाके की आउटडोर एयर क्वालिटी के आंकड़ों से की गई। विश्लेषण से पता चला कि गैस स्टोव के कारण छोटे घरों और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 2.2 करोड़ लोगों के लिए NO₂ का स्तर दीर्घकालिक सुरक्षित सीमा 53 पीपीबी (पार्ट्स पर बिलियन) से अधिक था।

ग्रामीण इलाकों में NO₂ उत्सर्जन का मुख्य स्रोत गैस स्टोव था, जिससे इनडोर स्तर बाहर के मुकाबले अधिक पाया गया। इसके विपरीत शहरी इलाकों में बाहरी स्तर अधिक था, जिसके मुख्य स्रोत वाहन और फैक्ट्रियां थीं। शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि घर के भीतर NO₂ का सबसे बड़ा स्रोत बाहर की हवा नहीं, बल्कि हमारा खुद का गैस चूल्हा है। बंद और छोटे स्थानों में इसका धुआं जल्दी सघन हो जाता है और पूरे घर की हवा प्रदूषित कर देता है।
अध्ययन के आधार पर अमेरिका के विभिन्‍न पिन कोड के लिए इनडोर और आउटडोर NO₂ के दीर्घकालिक और अल्पकालिक प्रभाव को दर्शाने वाले मानचित्र भी तैयार किए गए, जो इनडोर वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य जोखिम का स्पष्ट चित्र पेश करते हैं।

2019 में भारत में लगभग 6 लाख लोगों की मौत घरेलू वायु प्रदूषण के कारण हुई, जबकि बाहरी वायु प्रदूषण के कारण लगभग 9.80 लाख मौतें हुईं। कुल मिलाकर वायु प्रदूषण देश में होने वाली कुल मौतों में से 17.8% मौतों का कारण बना। वायु प्रदूषण की वजह से 2019 में 1.69 लाख बच्चों की मौतें 5 वर्ष से कम उम्र में हुईं।
विश्‍व स्वास्थ्य संगठन (डब्‍लूएचओ) की रिपोर्ट
भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी बहुत से घरों में खाना बनाने के लिए प्रदूषण फैलाने वाले लकड़ी के पारंपरिक चूल्‍हों का इस्‍तेमाल हो रहा है।

भारत में स्थिति और भी गंभीर 

घरेलू वायु प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति गंभीर है, क्‍योंकि देश के ग्रामीण इलाकों में घरों में खाना पकाने के लिए लकड़ी, उपले और फसल अवशेष जैसे पारंपरिक ईंधनों का उपयोग आज भी बड़े पैमाने पर होता है। जबकि, शहरी घरों में एलपीजी का उपयोग अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 89 फ़ीसद शहरी परिवार एलपीजी का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 47 फ़ीसद परिवारों की निर्भरता आज भी पारंपरिक ईंधनों पर ही है। स्‍क्रॉल की अक्‍टूबर 2020 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 61% तक घरों में खाना बनाने के लिए लकड़ी, फसल अवशेष (पराली), गोबर के उपले, कोयला और चारकोल जैसे पारंपरिक ईंधन का उपयोग होता है।

इन आंकड़ों को देखकर यह बात साफ़ होती है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में इनडोर वायु प्रदूषण का जोखिम अधिक बना हुआ है क्योंकि पारंपरिक ईंधन जलने से कण और गैसें वातावरण में जमा होती हैं। इसके अलावा शहरों में छोटे अपार्टमेंट और किराए के घरों में वेंटिलेशन की कमी के कारण गैस स्टोव से निकलने वाला धुआं और गैस लंबे समय तक कमरे में फंसा रहता है। दूसरे देशों की तरह यहां की महिलाओं और बच्चों पर ही इसका असर सबसे अधिक होता है, क्योंकि वे ही घर में अधिक समय बिताते हैं और बच्चों का शरीर पूरी तरह विकसित नहीं हुआ होता कि वे प्रदूषण के असर को झेल सकें।

बिट्स पिलानी, एनआईटी वारंगल और आईआईटी जोधपुर के वैज्ञानिकों के एक अध्‍ययन के मुताबिक भारत में घर के अंदर हवा अकसर बाहर से भी दो से पांच गुना ज़्यादा प्रदूषित पाई गई। खासकर, जब छूटे हुए किचन, खराब वेंटिलेशन और धूल-धुएं वाले इलाकों में खाना पकाया जाता है। शोध दल ने पाया कि खाना पकाने, झाड़ू लगाने और बिना अलग किए गए कचरे का निपटान जैसी रोजमर्रा की घरेलू गतिविधियों के कारण घर के भीतर की हवा में पीएम-2.5 और पीएम-10 जैसे प्रदूषकों के स्तर में अचानक वृद्धि होती है। घरों की तंग जगह और खराब वेंटिलेशन इसका कारण बनता है।

घरेलू वायु प्रदूषण के छिपे हुए खतरों के बारे में लोगों को जनजागरूकता अभियानों के ज़रिये सचेत किया जाना ज़रूरी है।

गैस स्टोव से होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण को कैसे कम करें?

गैस स्टोव भारत सहित दुनिया भर के घरों में इस्‍तेमाल हो रहे हैं। ऐसे में इनका उपयोग एकाएक बंद तो नहीं हो सकता। हालांकि कुछ सावधानियों को अपना कर इनसे होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। ऐसा करने के कुछ असरकारक उपाय निम्न हैं:

  1. किचन में वेंटिलेशन (हवादार व्यवस्था) सुनिश्चित करें : खाना बनाते समय खिड़की और दरवाज़े खोलें। अगर पर्याप्त रोशनदान न हो, तो तड़का लगाने, तलने और मसाले भूनने के समय हवा में धुआं की मात्रा बढ़ती है, इसलिए इन कामों के दौरान एग्जॉस्ट फैन या चिमनी चालू रखें। इससे हवा में धुएं और पीएम-2.5 कणों का प्रदूषण तेज़ी से होता है।

  2. इलेक्ट्रिक या इंडक्शन चूल्‍हे का इस्‍तेमाल : बिजली से चलने वाले स्टोव NO₂, CO और बेंजीन जैसी हानिकारक गैसें नहीं छोड़ते। साथ ही इलेक्ट्रिक केतली, माइक्रोवेव, एयर फ्रायर और स्लो कुकर जैसी चीज़ें भी गैस के प्रदूषण को कम करने में मदद करती हैं।

  3. खाना बनाने में ढक्कन का उपयोग : खाना पकाते समय बर्तन पर ढक्कन रखें। खाना जल्दी पकता है, गैस कम खर्च होती है और धुआं बाहर निकलना आसान होता है।

  4. रसोई छोटी न रखें, अगर हो तो हवा में ताज़गी बनाए रखें : रसोई का अकार छोटा न रखें और अगर रसोई छोटी है तो खाना पकाने के बाद 10-15 मिनट खिड़की खोलकर हवा बाहर जाने दें। दरअसल छोटी रसोई में धुआं जल्दी भर जाता है और घर में फैलता है।

  5. गैस लीक डिटेक्टर और कार्बन मोनोऑक्साइड अलार्म लगाएं : गैस लीकेज और कार्बन मोनोऑक्साइड के खतरे से बचने के लिए डिटेक्टर और अलार्म का इस्तेमाल करें। अगर ये उपकरण महंगे हों, तो कम से कम वेंटिलेशन का ध्यान रखें।

  6. गैस स्टोव और रेग्‍यूलेटर की नियमित देखरेख : बर्नर, रेगुलेटर और पाइप साफ और सुरक्षित रखें। नीली लौ का होना सही दहन का संकेत है; पीली, नारंगी या लाल लौ अधूरी जलन और प्रदूषण बढ़ा सकती है। इस्तेमाल की जाने वाली गैस स्टोव की नियमित सर्विस और साफ़-सफ़ाई ज़रूरी है।

  7. एयर प्यूरीफ़ायर (HEPA/activated-carbon filter वाले) रखें : छोटे या कम वेंटिलेशन वाले घरों में एयर प्यूरीफायर हवा को साफ़ रखने में मदद करता है। HEPA या एक्टिवेटेड कार्बन फिल्टर वाला प्यूरीफायर सबसे अच्छा है। 

  8. चूल्हे के पास पानी का छोटा कटोरा या गीला कपड़ा रखें : बर्नर के पास पानी या गीला कपड़ा रखने से धुआं और छोटे कण भारी होकर बैठ जाते हैं और हवा में कम फैलते हैं।इससे बर्नर से निकलने वाला धुआं और पीएम-2.5 जैसे सूक्ष्म कण थोड़े भारी होकर बैठ जाते हैं और हवा में इनका फैलाव कम हो जाता है।

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