केंद्रीय भूमि जल बोर्ड ने आठवीं योजना से कृत्रिम जल भरण (Artificial Recharge) पर काफी अध्ययन करके विभिन्न तकनीकों की जानकारी दी है जो विभिन्न भौगोलिक एवं जमीन के नीचे की स्थितियों के लिए उपयुक्त हैं। शहरी क्षेत्रों (Urban-Areas) के लिए शहरी क्षेत्रों में कच्चा स्थान कम होने के कारण इमारतों की छत व पक्के क्षेत्रों से प्राप्त वर्षा-जल व्यर्थ चला जाता है। यह जल जलभृतों (Aquifer) में पुनर्भरित (Recharge) किया जा सकता है। इस जल को जरूरत के समय काम में लाया जा सकता है।
वर्षा जल प्रणाली को इस तरह डिजाइन करना चाहिए कि यह जल इकट्ठा करने व पुनर्भरण प्रणाली के लिए ज्यादा जगह न घेरे।
शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन
शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संचित करने के लिए निम्नलिखित तकनीकों का प्रयोग किया जा सकता है-
पुनर्भरण गड्ढा (Recharge pit)
पुनर्भरण खाई (Recharge Trench)
नलकूप (Tube well)
पुनर्भरण कूप (Recharge well)
ग्रामीण क्षेत्रों (Rural Areas) के लिए
ग्रामीण क्षेत्रा में सामान्यतया सतही फैलाव की तकनीक अपनाई जाती है क्योंकि यहां जगह प्रचुरता से उपलब्ध होती है। ढलान, नदियों तथा नालों के माध्यम से व्यर्थ जा रहे वर्षा जल को यचाने के लिए निम्नलिखित संरचनाओं का प्रयोग किया जा सकता है-
1. गली प्लग (Gully Plug)
2. परिरखा बंध (Contour Bund)
3. गैवियन संरचना (Gabion Structure)
4. परिश्रवण टैंक (Percolation Tank)
5. चेक बांध (Check Dam)/सीमेंट प्लग (Cement Plug)/ नाला बंध (Nala Bund)
6. पुनर्भरण शाफ्ट (Recharge Shaft)
7. कूप पुनर्भरण (Dugwell Recharge)
8. भूमिगत जल बांध (Groundwater Dams)/ उपसतही डाईक (Subsurface Dyke)
9. पुनर्भरण गड्ढा द्वारा छत से प्राप्त वर्षा
जल का संचयन
- जलोढ़ क्षेत्र में जहां पारगम्य चट्टानें (Permeable Rocks) वा तो जमीनी सतह पर या बहुत छिछली गहराई पर हों, वहां छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन पुनर्भरण पिट के माध्यम से किया जा सकता है।
- यह तकनीक लगभग 100 वर्ग मी. क्षेत्रफल वाली छत के लिए उपयुक्त है व इसका निर्माण छिछले जलभूतों (Shallow Aquifers) को पुनर्भरित करने के लिए होता है।
- पुनर्भरण पिट किसी भी शक्ल व आकार का हो सकता है। यह सामान्यतः 1 से 2 मीटर चौड़ा व 2 से 3 मीटर गहरा बनाया जाता है जो शिलाखण्ड (Boulders) 5 से.मी. से 20 से.मी., बजरी (Gravels) 5 से 10 मि.मी. व मोटी रेत (Coarse Sand) 1.5 मि.मी. से 2 मि.मी. से क्रमवार भरा जाता है। तल पर बोल्डर, बीच में बजरी व सबसे ऊपर मोटी रेत भरी जाती है ताकि अपवाह के साथ आने वाली गाद रेत की सतह के ऊपर जमा हो जाए जो बाद में आसानी से हटाई जा सके। छोटे आकार वाली छत के लिए पिट को ईटों के टुकड़ों या कंकड़ इत्यादि के द्वारा भरा जा सकता है।
- छत से जल निकासी के स्थान पर जाली लगानी चाहिए ताकि पत्ते या अन्य ठोस पदार्थ को पिट में जाने से रोका जा सके व जमीन पर गाद इकट्ठा करने के लिए एक कक्ष बनाया जाना चाहिए जो महीन कण वाले पदार्थों को पुनर्भरण पिट की तरफ बहने से रोक सके।
- पुनर्भरण गति को बनाए रखने के लिए ऊपरी रेत की परत को समय-समय पर साफ करना चाहिए।
- जल इकट्ठा करने वाले कक्ष से पहले प्रथम वर्षा के जल को बाहर जाने देने के लिए अलग से व्यवस्था होनी चाहिए।
पुनर्भरण खाई द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन
- पुनर्भरण खाई (Recharge Trench) 200-300 वर्ग मी. क्षेत्रफल वाली छत के भवन के लिए उपयुक्त है तथा जहां भेद्य स्तर छिछली गहराई में उपलब्ध है।
- पुनर्भरण करने योग्य जल की उपलब्धता के आधार पर खाई 0.5 मीटर से 1 मीटर चौड़ी, 1 मी. से. 1.5 मी. गहरी तथा 10 से 20 मीटर लम्बी हो सकती है।
- खाई, शिलाखण्ड (5 सेमी. से 20 से.मी.), वजरी (5 मि.मी. से 10 मि.मी.) एवं मोठी रेत (1.5-2 मि.मी.) से क्रमानुसार भरा होता है। तल में शिलाखण्ड, वीच में बजरी तथा मोटी रेत सबसे ऊपर भरी होती है ताकि अपवाह के साथ जाने बाली गाद मोटी रेत पर जमा हो जाए जिसे आसानी से हटाया जा सके।
- छत से निकलने वाले पाइप पर जाली लगाई जानी चाहिए ताकि पत्तों व अन्य ठोस पदार्थ को खाई में जाने से रोका जा सके एवं सूक्ष्म पदार्थों को खाई में जाने से रोकने के लिए गाद-निस्तारण कक्ष या संग्रहण कक्ष जमीन पर बनाया जाना चाहिए।
- प्रथम वर्षा के जल को संग्रहण कक्ष में जाने से रोकने के लिए कक्ष से पहले एक उपमार्ग की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- पुनर्भरण दर को बनाए रखने के लिए रेत की ऊपरी सतह की समय-समय पर सफाई करते रहना चाहिए।
मौजूदा नलकूप द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन
- ऐसे क्षेत्र जहां छिछले स्तर पर जलभृत (Aquifers) सूख गए हैं, वहां पर नलकूपों को गहरे जलभृत या गहरे स्तर से पानी निकालना पड़ रहा है अर्थात् Water level नीचे चले जाने से नलकूपों को जमीन के निचले स्तर से पानी निकालना पड़ता है। इन गहरे जलभूतों को भी फिर से भरना आवश्यक है अन्यथा जलस्तर और नीचे चला जाएगा।
- ऐसे गहरे जलभृत (Deep Aquifers) को पुनर्भरित करने के लिए मौजूद नलकूप द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल के संचयन की पद्धति अपनाई जा सकती है।
- पानी इकट्ठा करने के लिए 10 से.मी. व्यास (Daimeter) के पाइप से जोड़ा जाता है। पहली बरसात के अपवाहित जल को छत्त से आने वाले पाइप के निचले सिरे से बाहर निकाल दिया जाता है।
- इसके पश्चात नीचे के पाइप को बंद करके आगे की बरसात का पानी लाइन पर लगे "।" पाइप के माध्यम से पी.वी.सी. फिल्टर (PVC Filter) तक लाया जाता है। जल के नलकूप में जाने के स्थान के पहले फिल्टर लगाया जाता है। फिल्टर। से 1. 2 मीटर लम्बा होता है व पी.वी.सी. पाइप का बना होता है। इसका व्यास छत के आकार के अनुसार बदल सकता है।
- यदि छत का क्षेत्रफल 150 वर्ग मी. से कम हो तो पाइप का व्यास 15 से.मी. तक हो सकता है। फिल्टर के दोनों सिरों पर 6.25 से.मी. के रिड्यूसर (Reducer) लगाए जाते हैं। फिल्टर पदार्थ आपस में न मिल सकें इसलिए फिल्टर को पी.वी. सी. जाली द्वारा तीन कक्षों में बांटा जाता है। पहले कक्ष में बजरी 6 से.मी. से 10 से.मी., बीच वाले कक्ष में पैवल (Pebbles) 12 मि.मी. से 20 मि. मी. तथा आखिरी कक्ष में बड़े पैवल (Pebbles) 20 मि.मी. से 24 मि.मी. भरे जाते हैं।
- यदि छत का क्षेत्रफल ज्यादा हो तो फिल्टर पिट बनाया जा सकता है। छत से प्राप्त वर्षा जल को जमीन पर बने गाद निस्तारण कक्ष या संग्रहण कक्ष में ले जाया जाता है। जल एकत्र करने वाले कक्ष आपस में जुड़े होते हैं, साथ ही पाइप के माध्यम से जिसका ढाल 1.15 हो, फिल्टर पिट से जुड़े होते हैं। फिल्टर पिट का आकार व प्रकार उपलब्ध अपवाहित जल पर निर्भर करता है। फिल्टर पिट के तल में बोल्डर (शिलाखण्ड) बीच में ग्रेवल (बजरी) व सबसे ऊपर मोटी रेत भरी जाती है।
- संग्रहण कक्ष को दो कक्षों में वांट दिया जाता है। एक कक्ष में फिल्टर करने वाले पदार्थ व दूसरे कक्ष में फिल्टर होकर आये अतिरिक्त जल को भरा जाता है जिससे जल की गुणवत्ता की जांच की जा सकती है। फिल्टर किए गए जल को पुनर्भरित करने के लिए इस कक्ष के निचले भाग से निकाले गए पाइप को पुनर्भरण पिट से जोड़ दिया जाता है।
पुनर्भरण कुओं के साथ खाई द्वारा छत से प्राप्त वर्षा जल का संचयन
- ऐसे क्षेत्रों में जहां सतही मिट्टी अपारगम्य (Impervious) है तथा अधिक मात्रा में छत से प्राप्त वर्षा जल उपलब्ध हो, ऐसे में खाई पिट में बने फिल्टर माध्यम से जल संग्रहण किया जाता है तथा विशेष रूप से निर्मित पुनर्भरण कुओं के द्वारा भूमिजल का लगातार पुनर्भरण किया जाता है।
- यह तकनीक उस क्षेत्र के लिए आदर्शतः उपयुक्त है जहां पारगम्य स्तर भूमि सतह के 3 मी. के अन्दर मौजूद है।
- पुनर्भरण कुआं (Recharge well) का व्यास (Diameter) 100 से 300 मि.मी. व गहराई जल स्तर से कम-से-कम 3 से 5 मीटर नीचे होती है।
- क्षेत्र की लिथोलोजी (Lithology) के अनुसार कूप संरचना का डिजाइन तैयार किया जाता है जिसमें छिछले व गहरे जलभृत (Shallow and Deeper Aquifer) के सामने छिद्रयुक्त पाइप डाला जाता है।
- पुनर्भरण कुएँ को मध्य में रखते हुए जल की उपलब्धता पर आधारित 1.5 मी. से 3 मी. चौड़ी तथा 10 मी. से 30 मी. लम्बी पाश्विक खाई का निर्माण किया जाता है।
- खाई में कुओं की संख्या, जल की उपलब्धता व क्षेत्र विशेष में चट्टानों की पारगम्यता (Permeability of the Rocks) के अनुसार निर्धारित की जा सकती है।
- पुनर्भरण कुओं के लिए फिल्टर के रूप में कार्य करने के लिए खाई को शिलाखण्ड, बजरी व मोटी रेत से भर दिया जाता है।
- यदि जलभृत काफी गहराई (20 मीटर से ज्यादा) पर उपलब्ध हों तब अपवाहित जल की उपलब्धता के अनुसार 2 मीटर से 5 मीटर व्यास व 3 मी. से 5 मी. गहरी छिछली शाफ्ट (Shallow Shaft) का निर्माण किया जा सकता है। उपलब्ध जल को गहरे जलभृत में पुनर्भरित करने के लिए शाफ्ट (Shaft) के अंदर 100 मि.मी. से 300 मि.मी. व्यास का पुनर्भरण कुआँ बनाया जाता है। पुनर्भरण कुओं को जाम होने से बचाने के लिए शाफ्ट (Shaft) के तल में फिल्टर पदार्थ भर दिया जाता है।
गली प्लग द्वारा वर्षा जल संचयन
- गली प्लग का निर्माण स्थानीय पत्थर, चिकनी मिट्टी और झाड़ियों का उपयोग करके वर्षा ऋतु में पहाड़ों के ढलान से छोटे कैचमेन्ट में बहते हुए नालों व जल धाराओं के आर-पार किया जाता है।
- गली प्लग मिट्टी व नमी के संरक्षण में मदद करता है।
- गली प्लग के लिए स्थान का चयन ऐसी जगह करते हैं, जहां स्थानीय रूप से ढलान समाप्त होता हो ताकि बंध के पीछे पर्याप्त मात्रा में जल एकत्रित रह सके।
परिरखा बाँध के द्वारा वर्षा जल संचयन
- परिरेखा बाँध (Countour Bund) वाटर शेड में लम्बे समय तक मृदा नमी को संरक्षित रखने की प्रभावी पद्धति है।
- यह कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होती है। जहां मानसून का अपवाहित जल समान ऊँचाई वाले कन्टूर के चारों तरफ ढलान वाली भूमि पर बाँध बनाकर रोका जा सकता है।
- बहते हुए जल को कटाव वेग प्राप्त करने से पहले बंध (Bund) के बीच में उचित दूरी रखकर रोक दिया जाता है।
- दो कन्टूर बंध के बीच के दूरी क्षेत्र के ढलान व मिट्टी की पारगम्यता पर निर्भर होती है। मिट्टी की पारगम्यता जितनी कम होगी कन्दूर बंध के बीच की दूरी उतनी कम होगी।
- कन्दूर बंड साधारण ढलान वाली जमीन के लिए उपयुक्त होते हैं, इनमें सीढ़ियाँ बनाया जाना शामिल नहीं होता है।
गैवियन संरचना द्वारा वर्षा जल संचयन
- गैवियन संरचना (Gabion Structure) एक प्रकार का बैंक डैम होता है, जिसका निर्माण सामान्यतः छोटी जलधाराओं पर जलधाराओं के बहाव को संरक्षित करने के लिए किया जाता है। साथ ही जलधारा के बाहर विल्कुल भी प्लावन नहीं हो पाता है।
- जलधारा पर छोटे बांध का निर्माण स्थानीय रूप से उपलब्ध शिलाखण्डों (Boulders) को लोहे के तारों की जालिया में डालकर तथा उसे जलधारा के किनारों पर बांधकर किया जाता है।
- इस प्रकार की संरचनाओं की ऊँचाई लगभग 0.5 मीटर होती है व यह साधारण तथा 10 मीटर से कम चौड़ाई वाली जलधाराजों में प्रयोग होती है।
- पुनर्भरण के स्रोत में कुछ जल जमा छोड़कर शेष जल इस संरचना के ऊपर से बह जाता है। जलधारा की गाद शिलाखण्डों के बीच में जम जाती है; फिर उसमें वनस्पति के उगने से बांध अपारगम्य बन जाता है और बरसात के अपवाहित सतही जल को अधिक समय तक रोककर भूमिजल में पुनर्भरित होने में मदद करता है।
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