पिछली इकाई में आपको ताज जल की उपलब्धता के महत्वपूर्ण पहलुओं के बार में बताया गया था। देश में सिंचाई विकास के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य विभिन्न क्षेत्रों में जल की मांग तथा जल प्रदूषण संबंधी समस्या से भी आपको अवगत कराया जा चुका है।
भूजल मृदा कणों तथा चट्टानों के बीच मौजूद स्थानों (रानो) और चट्टानों में पड़ी दरारों में पाया जाता है आवश्यकता पड़ने पर इसकी सुनिश्चित उपलब्धता और सामान्य रूप से श्रेष्ठ गुणवत्ता के कारण भूजल का उपयोग घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति तथा अन्य उद्देश्यों के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। तथापि, क्या आपको ज्ञात है कि अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल बहुत तेजी से कम होता जा रहा है? इसके अतिरिक्त उद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण भूजल प्रदूषित भी हो रहा है। इसके परिणामस्वरूप देश के विभिन्न भागों में पुराने कुए तथा उथले नलकूप सूखने लगे हैं, अतः पुनर्नव्य (रिन्यूवेबल ) प्राकृतिक भू-जल संसाधनों के संरक्षण व उन्हें बढ़ाने के लिए प्रभावी उपाय अपनाने की आवश्यकता है।
कृत्रिम भूजल पुनर्भरण का उद्देश्य भू-जल भंडार को बढ़ाना है, ताकि सतही जल की प्राकृतिक आवागमन को सुधारने के लिए उपयुक्त उपायों का उपयोग किया जा सके। कृत्रिम भूजल पुनर्भरण का मूल उद्देश्य अत्यधिक भू-जल विकास के परिणामस्वरूप कम होते जा रहे जलभरों को पुनः भरना है। वर्तमान स्थितियों में जहां वैश्विक जलवायु परिवर्तन भू-जल संसाधनों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है कृत्रिम भूजल पुनर्भरण परमावश्यक है ताकि अतिरिक्त वर्षाजल को जलभरों में भंडारित किया जा सके और इसके परिणामस्वरूप जल के कम होते हुए स्तर को रोका जा सके तथा जल की गुणवत्ता के अपघटन पर नियंत्रण पाया जा सके। इस इकाई में हम इन पहलुओं के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे।
कृत्रिम भूजल पुनर्भरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा भू जलाशय को प्राकृतिक परिस्थितियों के अंतर्गत जल पुनर्भरण तुलना में अपेक्षाकृत उच्च दर से भरा जाता है। मनुष्यों द्वारा तैयार की गई कोई योजना या ऐसी सुविधा जिससे भू-जलाशय में कम हो गए जल की पुनपूर्ति होती हो कृत्रिम पुरर्भरण प्रणाली / संरचना माना जा सकता है। इसे जलभर में जल को भंडारित करने के लिए खोदे गए गड्ढे अथवा कुए या मानव क्रियाकलापों के माध्यम से अनियोजित ढंग से अथवा अचानक तैयार हुए गड्ढे का रूप दिया जा सकता है, जैसा कि यदा-कदा सतही जल सिंचाई के मामले में होता है। कृत्रिम पुनर्भरण संबंधी अधिकांश योजनाएं इस विशिष्ट उद्देश्य से नियोजित की जाती हैं कि घरेलू अथवा सिंचाई में उपयोग करने के उद्देश्य से ताजे जल को बचाया जा सके या उसे भंडारित किया जा सके।
अब हम देखेंगे कि इसके लिए क्या-क्या आवश्यकताएं है?
निम्न कारणों से भू-जल पुनर्भरण आवश्यक है:
(
उपरोक्त आशा है कि, अध्ययन के बाद आप भूजल पुनर्भरण की मूल संकल्पना, आवश्यकता तथा लामों के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। अब हम कृत्रिम पुनर्भरण के लिए आदर्श स्थितियों का अध्ययन करेंगे।
भू-जल के कृत्रिम पुनर्भरण की मूल आवश्यकताएं निम्नानुसार हैं।
क) वर्षा अथवा भू-सतह पर उपस्थित नहरों से पर्याप्त मात्रा में जल की उपलब्धता तथा भूमि पर भंडारण के लिए पर्याप्त स्थान का उपलब्ध न होना;
ख) कम लागतों पर पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण के लिए उपयुक्त स्थलों की उपलब्धता;
ग) जल-तल पर्याप्त गहरा हो (8 मी.) तथा पर्याप्त उप-सतही भंडारण स्थान उपलब्ध हो ;
घ) नियमित रूप से जल तलों में कमी आ रही हो तथा शहरीकरण और भू-सतहों के कक्रीटीकरण के कारण प्राकृतिक पुनर्भरण पर्याप्त रूप से कम हो गया हो;
ङ) वे क्षेत्र जहां पर्याप्त मात्रा में जलभर सूख गए हों;
च) वे क्षेत्र जहां कम वर्षा वाली अवधियों में सतही जल की उपलब्धता अपर्याप्त हो और;
(छ) वे क्षेत्र जहां शहरीकरण तथा वर्षाजल के उप मुदा में अवछनन (निच्छालन) की दर पर्याप्त कम हो गई हो तथा भू-जल का पुनर्भरण बिल्कुल ही न हो रहा हो।
कृत्रिम भू-जल पुनर्भरण के लिए संरचनाओं की डिजाइन तैयार करने हेतु तीन सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटकों का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है जो इस प्रकार है;
किसी विशेष क्षेत्र में वर्षा के कारण उत्पन्न रनऑफ (जल का सतह पर प्रवाह) प्रग्रहण क्षेत्र, उस क्षेत्र की संचयन दक्षता तथा उस क्षेत्र में होने वाली वर्षो की मात्रा पर निर्भर करता है।
रनऑफ गुणांक वह घटक है जो यह इंगित करता है कि प्रग्रहण क्षेत्रों में होने वाली समस्त वर्षा को संग्रहित नहीं किया जा सकता है. प्रग्रहण क्षेत्रों से वर्षाजल की कुछ मात्रा वाष्पन द्वारा नष्ट हो जाती है तथा कुछ सतह पर ही बनी रहती है किसी क्षेत्र से प्रवाहित होने वाले जल का प्रतिशत रनऑफ गुणांक कहलाता है। यह रनऑफ की उपलब्धता के मूल्यांकन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है तथा प्रग्रहण क्षेत्रों की विशेषताओं पर निर्भर करता है रनऑफ गुणांकों के सामान्य मान सारणी 4.1 में दिए गए हैं जिनका उपयोग रनऑफ की उपलब्धता के मूल्यांकन के लिए किया जा सकता है।
यदि किसी एक वर्षा के दौरान 10 से.मी. वर्षा होती है तो 100 हैक्टेयर हरित क्षेत्र से होने वाले रनऑफ की गणना कीजिए।
= 0.10 मी.
= 10000 m2
= 10000000 लिटर
नोट:
क) अपने उत्तरों का मिलान इकाई के अंत में दिए गए उत्तरों से करें।
ख) अपने उत्तरों के लिए नीचे दिए गए खाली स्थान का प्रयोग करें।
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2. भू-जल के कृत्रिम पुनर्भरण के लिए डिज़ाइन संबंधी किन किन बातों का ध्यान रखा जाता है? कितना वर्षाजल संग्रहित किया जा सकता है?
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3. एक वर्षा के दौरान 120 मि.मी. वर्षों के परिणामस्वरूप 10 हैक्टेयर के खाली क्षेत्र से होने वाले रनऑफ की मात्रा की गणना कीजिए।
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अब हम भूजल पुनर्भरण की विधियों का अध्ययन करेंगे।
भू-जल जलाशय के पुनर्भरण के लिए विभिन्न प्रकार की विधियों और तकनीकों का उपयोग किया जाता है। किसी क्षेत्र की जल-मू-वैज्ञानिक स्थितियों के आधार पर अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार की विधियां प्रयुक्त होती हैं (चित्र -4.1) कृत्रिम पुनर्भरण की तकनीकों को मोटे तौर पर निम्न श्रेणियों में बांटा जा सकता है
अब हम ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में उपयुक्तता के आधार पर इन विधियों को वर्गीकृत करेंगे।
अनियमित तथा ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति वाले क्षेत्रों में उथली समतल तली और पास-पास स्थित नालिया / कूड़े अथवा कंटूर बांध बनाए जाते हैं ताकि भू-जल का पुनर्भरण किया जा सके। नाली की गहराई संबंधित स्थान की स्थलाकृति तथा इस तथ्य को ध्यान में रखकर निर्धारित की जाती है कि अधिकतम नम रखा जाने वाला क्षेत्र उपलब्ध हो, तथा समान प्रवाह गति बनाए रखी जा सके। नालियों में ढलान इस प्रकार होना चाहिए कि प्रवाह की गति एक समान बनी रहे तथा तलछट कम से कम जमा हो नालियां उथली समतल तली वाली तथा पास-पास बनी होनी चाहिए। ताकि सर्वाधिक सम्पर्क क्षेत्र प्राप्त किया जा सके। मृदा की नमी को संरक्षित करने के लिए कंटूर बांध बनाना सर्वाधिक प्रभावी विधि है तथा यह राजस्थान जैसे कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है (चित्र 4.2) कंटूर बांध बनाना उन क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त है जहां की भूमि हल्की ढलान वाली तथा टैरिस के बिना होती है दो कंटूर बांधों के बीच का अंतराल उस क्षेत्र के ढलान तथा मृदा की पारगम्यता (मृदा की पारगम्यता से तात्पर्य मृदा माध्यम से प्रवाहित होने वाली जल मात्रा से हैं) पर निर्भर करता है।
निच्छालन तालाब कृत्रिम रूप से निर्मित जल काया (वाटर बॉडी) है जिसे सतही रनऑफ रोककर जल को जमीन के अंदर रिसने तथा भू-जल पुनर्भरण के लिए बनाया जाता है (चित्र 4.3)। ये संरचनाएं भारत में सर्व सामान्य रूप से पाई जाती हैं क्योंकि इनसे दोनों प्रकार के अर्थात् जलोढ़ तथा कठोर चट्टान वाले क्षेत्रों में भू-जल जलाशय का पुनर्भरण किया जा सकता है। निच्छालन तालाब ये जल भंडारण तालाब हैं जिनकी तली की सतह अत्यंत सरक्षीय बनायी जाती है, ताकि उससे होकर जल भूमि में आसानी से निच्छालित हो सके। ये निच्छालन तालाब अत्यधिक दरारों वाली तथा मौसमी प्रभाव से टूटे हुए चट्टानी क्षेत्रों या बड़े-बड़े पत्थर वाले क्षेत्र होते हैं जोकि निच्छालन तालाब के लिए सबसे आदर्श स्थान है चलने-फिरने से किनारों को टूटने या क्षरित होने से बचाने के लिए सर्वोच्च जल भराव वाले तल पर ऊपर की और धारा पर पत्थरों की चिनाई की जाती है। पुनर्भरण क्षेत्र के निचले भाग में पर्याप्त संख्या में कुएं व खेती योग्य भूमि होनी चाहिए, ताकि भू-जल के बढ़ने से कृषि सम्बंधी लाभ पहुंच सके। निच्छालन तालाबों की भंडारण क्षमता 30-60 मिलियन लिटर रखी जाती है।
चैक बाघ उन छोटी धाराओं के आर-पार बनाए जाते हैं जिनका ढलान बहुत हल्का (कम) होता है। इन संरचनाओं में भंडारित जल अधिकांशतः धारा के मार्ग तक ही सीमित रहता है और इन बांधों की ऊंचाई सामान्यतः 2 मीटर से कम होती है। ये धारा की चौड़ाई पर बनाए जाते है तथा अतिरिक्त जल को दीवार के ऊपर से प्रवाहित होने दिया जाता है (चित्र 4.4 ) किसी नाले या धारा में ही रनऑफ का सर्वाधिक उपयोग करने के लिए ऐसे अनेक चैक बांध बनाए जा सकते हैं, ताकि क्षेत्रीय स्तर पर जल का पुनर्भरण हो सके। नाला बांध बड़े नालों के आर-पार बनाए जाते हैं। नाला बांध छोटे निच्छालन तालाब के रूप में कार्य करता है। नाले की चौड़ाई कम से कम 5 मीटर तथा अधिक से अधिक 1 मीटर होनी चाहिए और गहराई 1 मीटर से कम नहीं होनी चाहिए। नाले की तली पर्याप्त रूप से पारगम्य होनी चाहिए चुने गए स्थान की पारगम्य पर्त पर्याप्त मोटी होनी चाहिए तथा इसे स्वतः निर्मित होना चाहिए ताकि भंडारित जल अत्यंत कम समय में पुनर्भरित हो सके। ये चैक बांध उत्तर प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र के भावर व कांडी क्षेत्रों में सर्वाधिक लोकप्रिय व व्यावहारिक है। नाले से रनऑफ की सर्वाधिक मात्रा एकत्र करने के लिए चैक बांधों की श्रृंखला बनाई जानी चाहिए ताकि क्षेत्रीय स्तर पर जल का पुनर्भरण हो सके।
यह एक प्रकार का चैक बाघ है जो सामान्यतः छोटे नाले के आर-पार बनाया जाता है। स्थानीय रूप से उपलब्ध पत्थरों को लोहे के तार की जाली से बांध कर रोक दिया जाता है (चित्र 4.5) पत्थर युक्त इस जाली को नालों के आर-पार रख दिया जाता है, ताकि नालों के किनारों पर छोटा बांध बन जाए। गैबियन संरचना की ऊंचाई सामान्यतः 0.5 मीटर रखी जाती है और इसका उपयोग लगभग 10 से 15 मीटर चौड़े नालों के लिए किया जाता है। आगे चलकर जल में उपस्थित बालू नाले के निचले भाग में तलछट के रूप में जमा हो जाती है जो पत्थरों के बीच मौजूद खाली स्थान में भर जाती है और इस प्रकार, पत्थरों की यह रोक और अपारगम्य हो जाती है जिससे सतही रनऑफ जल को वर्षा के पश्चात् पुनर्भरण हेतु रोकने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है अतिरिक्त जल संरचना के ऊपर होते हुए वह जाता है और कुछ जल मात्रा भंडारित होती है जो पुनर्भरण के लिए आवश्यक स्रोत की भाँति कार्य करता है।
पुराने कुए चौड़े व्यास वाले कुए होते हैं जिनका उपयोग घरों और कृषि वाले खेतों में जल की आपूर्ति के लिए किया जाता है। भारत के जलोढ़ तथा कठोर चट्टानी क्षेत्रों में ऐसे अनेक पुराने कुए हैं जो या तो सूख गए हैं या जिनमें जल का तल बहुत नीचे चला गया है। इन कुओं का उपयोग पुनर्भरण हेतु संरचनाओं के रूप में किया जा सकता है। वर्तमान तथा सूख गए दोनों प्रकार के कुओं को भली प्रकार साफ करने के पश्चात् पुनर्भरण संरचनाओं के रूप प्रयुक्त किया जा सकता है। भूजल जलाशय बहकर आने वाले जल तालाब के जल नहर के जल आदि को इन संरचनाओं में मोड़ा जा सकता है, ताकि सूखे जलभरों का प्रत्यक्ष पुनर्भरण हो सके। जिस जल का पुनर्भरण किया जाना है उसे पाईप के सहारे कुए की तली में जल के तल के नीचे पहुंचाया जाता है, ताकि तली को किसी प्रकार की क्षति न हो और जलभर में वायु के बुलबुले फस जाने के कारण जल का प्रवाह अवरुद्ध न हो। तलछट सहित स्रोत जल की गुणवत्ता इस प्रकार होनी चाहिए कि भू-जल जलाशय की गुणवत्ता को उससे कोई क्षति न पहुचे। पुराने कुओं के माध्यम से पुनर्भरण सामान्यतः तेजी से होता है पुनर्भरण किया जाने वाला जल गाद या तलछट से मुक्त होना चाहिए और इस जल को तलछट से मुक्त करने के लिए प्रवाहित होने वाले जल को या तो निधारन कक्ष से या छनन कक्ष से होकर गुजारा जाना चाहिए (चित्र (4.6) जीवाणुओं द्वारा होने वाले सदूषण को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर क्लोरीनीकरण किया जाना चाहिए।
गड्ढे पुनर्भरण गड्ढों को उथले जलभरों का पुनर्भरण करने के लिए बनाया जाता है ये ऐसे स्थान पर बनाए जाते हैं जहाँ सामान्यतः भू-सतह व उसके नीचे बालू मौजूद रहती है कठोर चट्टानों वाले क्षेत्र में गड्ढों और नालियों के निर्माण के लिए सतह की मिट्टी तथा पुरानी चट्टानों का उपयोग किया जाता है ये 1 से 2 मीटर चौड़े तथा 2 से 3 मीटर गहरे बनाए जाते हैं तथा इन्हें पत्थरों, बजरी तथा मोटी रेत से भर दिया जाता है। यदि कम गहराई पर अपारगम्य पर्त (चीका मिट्टी की पत) मौजूद हो अर्थात् सतह पर यह पर्त और चीका मिट्टी के नीचे रेत भी मौजूद हो तो पुनर्भरण गड्ढे में एक और छिद्र बनाया जाता है। नालियां या खाइयां तब बनाई जाती हैं जब उथली गहराइयों पर पारगम्य पर्तें उपलब्ध होती हैं। यह खाई 0.5 से 1 मी. चौड़ी, 1 से 1.5 मी. गहरी और 10 से 20 मी. लंबी होती है। इसका यह आकार जल की उपलब्धता पर निर्भर करता है। इस सामग्री को छनन सामग्री के साथ मिलाकर भर दिया जाता है। गड्ढे और नालियां छोटे घरों तथा हरित पट्टियों के लिए उपयुक्त है (चित्र 47 और 4.8)।
ये किसी जलभर का प्रत्यक्ष रूप से पुनर्भरण करने के लिए सर्वाधिक कारगर और लागत प्रभावी संरचनाएं हैं पुनर्भरण शेफ्ट सामान्यतः गोल और चौड़े व्यास वाले होते
वह (चित्र 4.9)। इन्हें सामान्यतः हाथों से (बिना मशीन का उपयोग किये) बनाया जाता है। आमतौर पर शैफ्ट का व्यास 2 मीटर से अधिक होना चाहिए, ताकि उसमें अधिक जल आ सके तथा कुए में जलावर्त (एडी) उत्पन्न न हो। जिन क्षेत्रों में जल खोत में गाद या तलछट मौजूद होता है, वहां शैफ्ट को पत्थरों तथा रेत से भर देना चाहिए। यह सामग्री तली से भरी जानी चाहिए ताकि विलोम भरण (इनवर्टेड फिनिंग) हो सके सबसे ऊपर की रेत की परत को समय-समय पर निकाल कर साफ करते रहना चाहिए जहां जल शैपट में प्रवेश करता है, वहां एक छलनी लगा दी जानी चाहिए।
यदि जलभर रेत की पतं) अधिक गहराई (20 मीटर या इससे अधिक) पर उपलब् हो और जल का तल 15 मी. से अधिक गहरा हो तो र नऑफ की उपलब्धता पर आधारित 2 से 5 मीटर व्यास तथा 3 से 5 मीटर गहराई वाली उथली शैफ्ट बनाई जा सकती है। शैफ्ट के अंदर 150 से 300 मिलीमीटर व्यास का एक कुआ बनाया जाता है, ताकि उपलब्ध जल को गहरे जलभर में पुनर्भरित किया जा सके (चित्र) 4.10)। शैपट की तली में एक छलनी लगाई जाती है ताकि पुनर्भरण अवरुद्ध न हो जाए। इस प्रकार की पुनर्भरण संरचनाएं ग्रुप हाउसिंग सोसाइटियों, बड़े रिहायशी इलाकों व संस्थानों की इमारतों, कार्यालय परिसरों व सड़क के किनारों आदि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
जिन क्षेत्रों में उथले और गहरे दोनों तलों पर बालू होती है, वहां उथल तथा गहरे जलमरों (रेत की परतों) के पुनर्भरण के लिए 15 से 3 मी. चौड़ी तथा 10 से 30 मी. लंबी पार्श्व खाइयां खोदी जाती हैं। जल की उपलब्धता पर आधारित एक या इससे अधिक बोर कूप बनाये जा सकते हैं (चित्र 4.11)। पार्श्व खाई को पत्थरों बजरी तथा मोटी रेत से भर दिया जाता है। नाले से बहकर आने वाले जल को भू-जल पुनर्भरण हेतु पुनर्भरण संरचना में मोड़ दिया जाता है। इस प्रकार की संरचनाएं ग्रुप हाउसिंग सोसायटियों, बड़े रिहायशी व औद्योगिक क्षेत्रों, कार्यालय परिसरों एवं सड़कों के किनारों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।
इंजेक्शन कुंए नलकूपों के समान होते हैं लेकिन इनका उद्देश्य उपचारित सतही जल को दबाव के अंतर्गत पम्प करके अलग-थलग मौजूद जलभर में भूजल के भंडारण को बढ़ाना होता है। इंजेक्शन कुए तब लाभप्रद होते हैं जब कम भूमि उपलब्ध हो (चित्र 4.12)। जलोढ़ क्षेत्रों में किसी एक जलमर अथवा अनेक जलभरों का पुनर्भरण करने के लिए इंजेक्शन कुंए का निर्माण किया जा सकता है। कृत्रिम पुनर्भरण के लिए इंजक्शन कुएं की तकनीक अपेक्षाकृत महंगी है और इसके लिए नलकूप निर्माण के लिए विशेषज्ञतायुक्त तकनीकों की आवश्यकता होती है। साथ ही, इसके रखरखाव का भी नियमित प्रबंध करना होता है, ताकि पुनर्भरण कुए में गाद और मिट्टी न जमा हो जाए।
यह कृत्रिम पुनर्भरण की परोक्ष विधि है जिसमें जलभर से जल को पंप किया जाता है जो नदी या झील जैसी सतही जल काया से जुड़ा होता है इस विधि में सतही जल को रत की परत से होकर गुजारा जाता है, ताकि सतही जल साफ हो जाए और इसका उपयोग पीने व अन्य घरेलू कार्यों के लिए किया जा सके। इस विधि का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे अनुकूल जल भूविज्ञानी स्थितियों के अंतर्गत सतही जल की गुणवत्ता सामान्यत सुधर जाती है, क्योंकि इस विधि में जल को कुए से पंप द्वारा खींचने के बाद जलभर में पहुंचने से पूर्व बालू आदि से छन जाता है।
उप- सतही छोटे बांध या भूमिगत बांध किसी नाले के आर-पार बनाई गई उप सतही बाधाएं हैं जिनसे तली में जल का प्रवाह रुक जाता है तथा ऊपरी धारा का जल भू-सतह के नीचे भंडारित हो जाता है (चित्र 4.13 ) । वह स्थल जहाँ उप-सतही बांध बनाना प्रस्तावित है, उथली अपारगम्य परत से युक्त होना चाहिए और इसकी घाटी चौड़ी होने के साथ- साथ निकास मार्ग संकरा होना चाहिए। स्थान के चयन के पश्चात् नाली की चौड़ाई के आर-पार अपारगम्य परत के नीचे 1 से 2 मीटर चौड़ी खाई खोदी जाती है। इस खाई को चीका मिट्टी या ईट / कंकरीट से जमीन की सतह के नीचे 0.5 मी. की दीवार के रूप में भर दिया जाता है।
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2. निच्छालन टैंकों व तालाबों / विस्तारशील थालों और चैक बांधों का उपयोग भू-जल जलगरों के पुनर्भरण के लिए किस प्रकार किया जा सकता है?
--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------3)
3. पुराने कुए के पुनर्भरण का विस्तार से वर्णन कीजिए।
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4. नलकूपों सहित पुनर्भरण शेफ्टों का उपयोग करते हुए पुनर्भरण प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
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अधिक कारगर कृत्रिम पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण व उनके रखरखाव के दौरान निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए:-
2. (i) कृत्रिम भू-जल पुनर्भरण की डिज़ाइन तैयार करने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए:
ii) किसी क्षेत्र में वर्षा से सृजित रनऑफ की मात्रा वहां के प्रग्रहण क्षेत्र, उस क्षेत्र की संग्रहण दक्षता तथा उस क्षेत्र में होने वाली वर्षा की मात्रा पर ,निर्भर करती है।
3)
= 0.12 मी.
= 100000 मी.
= 3000000 लिटर (1m2 = 1000 लिटर)
1) कृत्रिम पुनर्भरण तकनीकों को मोटे तौर से निम्नानुसार श्रेणीबद्ध किया जा सकता है
2 ( i ) निच्छालन तालाब / विस्तारणशील थाला: जल, रंध्रीय जल भंडारण तालाबों के माध्यम से गुजरता हुआ तेजी से भूमि के अंदर निच्छालित होता है और इस प्रकार, भू-जल का पुनर्भरण हो जाता है।
( ii) चैक बांध: ये उन छोटे नालों के आर-पार बनाए जाते है जिनका ढलानकम होता है, ताकि धारा या नाले से सर्वाधिक रनऑफ प्राप्त किया जा सके।
3. मौजूदा और सूख चुके या अनुप्रयुक्त कुओं का उपयोग पुनर्भरण संरचनाओं के रूप में किया जाता है। भू-जल जलाशय, रोजी से प्रवाहित होने वाले जल, तालाब के जल, नहर के जल आदि को इन संरचनाओं में मोड़ दिया जाता है, ताकि सूखे हुए जलभर सीधे-सीधे पुनर्भरित हो सके। पुनर्भरित जल को किसी पाइप के माध्यम से कुंए की तली में जल तल के नीचे मेजा जाता है, ताकि यह तली में जमा हो सके और जलभर में वायु के बुलबुले फसकर कोई अवरोध न उत्पन्न कर सके। तलछट या गाद के अंश सहित स्रोत जल की गुणवत्ता इस प्रकार की होनी चाहिए कि उससे भू-जल जलाशय की गुणवत्ता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े पुनर्भरित जल गाद या तलछट रहित होना चाहिए और इसे तलछट रहित सुनिश्चित करने के लिए प्रवाहित होकर आने वाले या रनऑफ जल को या तो निधारन कक्ष या छनन कक्ष से होकर गुजारा जाना चाहिए। जीवाण्विक संदूषण को नियंत्रित करने के लिए समय-समय पर जल का क्लोरीनीकरण भी किया जाना चाहिए।
4. 20 मीटर या इससे अधिक गहराई और 15 मीटर से गहरे जलतल वाले जलमर में 2 से 5 मीटर व्यास तथा 3 से 5 मीटर गहराई वाली उथली शैफ्ट बनाई जा सकती है जो रनऑफ की उपलब्धता पर निर्भर करता है। शैफ्ट के अंदर 150 से 300 मिलीमीटर व्यास का एक कुआ बनाया जाता है, ताकि उपलब्ध जल को गहरे जलभर में पुनर्भरित किया जा सके। शेफ्ट की तली में एक छलनी लगाई जाती है ताकि पुनर्भरण कुआ अवरुद्ध न हो जाए। इस प्रकार की पुनर्भरण संरचनाएं ग्रुप हाउसिंग सोसाइ टियों, बड़े रिहायशी इलाकों व संस्थानों की इमारतों, कार्यालय परिसरों व सड़क के किनारों आदि के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है .