वायु प्रदूषण अब नासूर बन गया है। यह सिर्फ सर्दी के मौसम की नहीं, सालभर रहने वाली समस्या बन चुका है। प्रदूषण का ज्यादा स्तर लोगों की उम्र पर बुरा असर डाल रहा है। देश में रह रहे लोगों की औसत उम्र में 5.3 वर्ष की कमी आई है। वर्ष 2022 में यह आंकड़ा पांच वर्ष का था। एनसीआर की स्थिति और भी खराब है। यहां रहने वालों की उम्र औसतन 11.9 वर्ष तक घट रही है, जबकि पिछले वर्ष यह आंकड़ा 10 वर्ष का था । इसका मतलब है कि अगर आप सामान्य परिस्थितियों में 70 वर्ष जीते हैं, तो भारत में रहने वाला व्यक्ति लगभग 64.5 वर्ष तक ही जी सकेगा। दिल्ली में रहने वाला व्यक्ति लगभग 58 वर्ष तक ही जी पाएगा ।
शिकागो यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स-2023 भयावह तस्वीर प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित देश और दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में एक भी जगह ऐसी नहीं है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वच्छ हवा के मानकों पर खरी उतरती हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2.5 पीएम का स्तर पांच माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से कम होना चाहिए जबकि भारत में 67.4 प्रतिशत आबादी ऐसी जगह रहती है जो भारत के खुद के बनाए हुए मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से भी ज्यादा प्रदूषण को झेल रही है और इसीलिए इस आबादी पर सबसे ज्यादा खतरा है।
जीवन प्रत्याशा के संदर्भ में मापे जाने पर, पार्टिकुलेट प्रदूषण (सूक्ष्म कणों से होने वाला प्रदूषण) भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इससे भारतीयों का औसत जीवन 5.3 वर्ष कम हो जाता है। इसके विपरीत, हृदय संबंधी बीमारियों से औसत जीवन प्रत्याशा लगभग 4.5 वर्ष कम हो जाती है, जबकि बाल और मातृ कुपोषण से जीवन प्रत्याशा 1.8 वर्ष घट जाती है।