नदी और तालाब

छोटी नदियाँ, बड़ी उम्मीदें

हम यदि आज प्रयास करेंगे तो कल नदियाँ जीवित रहेगी और यदि नदियाँ जीवित रहेगी तो मनुष्य का अस्तित्व भी सुरक्षित रहेगा। यहाँ हम बात करेंगे उन छोटी नदियों को, जिनके नाम तक आज हम भूलने लगे हैं। ये छोटी नदियों हमारे जनतंत्र का महत्वपूर्ण अंग है।

Author : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान

नदियाँ प्रकृति का मानवता को अनमोल तोहफा है। विश्व में नदियों के किनारे सभ्यताएं विकासित हुई। आज वही नदियाँ अपने अस्तित्व के लिए मनुष्य से सभ्य आचरण की उम्मीद कर रही है।  नदी और मनुष्य का अस्तित्व पारस्परिक सहजीविता की तरह एक-दूसरे पर निर्भर है। हम यदि आज प्रयास करेंगे तो कल नदियाँ जीवित रहेगी और यदि नदियाँ जीवित रहेगी तो मनुष्य का अस्तित्व भी सुरक्षित रहेगा।

यहाँ हम बात करेंगे

 

उन छोटी नदियों की, जिनके नाम तक आज हम भूलने लगे हैं। ये छोटी नदियों हमारे जनतंत्र का महत्वपूर्ण अंग है। आईए जानते हैं कि नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रशासन और नागरिक साथ मिलकर क्या प्रयास कर सकते हैं।

हमारे प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है

<p>धनिक श्रोत्रियो राजा नदी वैद्यस्तु पंचम<br> पंच यत्र ना विधयते तत्र वासं न कारयेत ।</p>

अर्थात व्यापारी, क्षत्रिय राजा, नदी और वैद्य ये पांचों जहां नही बसते वहां निवास नहीं करना चाहिए। इस सलाह को मानते हुए भारत में नदियों के किनारे कई शहर बसे। हर शहर का अपना इतिहास है, उस इतिहास की गवाही देते किले, महल दरबार है अगर कुछ खो गया है तो वो है नदी जिसके किनारे शहर बसा था।

कुछ नदियों लुप्त हो गई और कुछ गंदे पानी का नाला बन गई। नागपुर की नाग नदी, जोधपुर की जोजरी नदी, मुंबई की मीठी नदी,ओशिवाडा नदी और ऐसी ही ना जाने कितनी नदियाँ अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है। बुंदेलखंड की जीवनदायिनी कही जाने वाली बांग नदी गिरते जलस्तर के कारण सूखने लगी है. उज्जैन की क्षिप्रा भी जलसंकट से जूझ रही है बिहार की पुनपुन नदी को पुराणों में पुनः यानी बार-बार पाप से मुक्त करने वाली नदी बताया गया है, आज वही नदी अशुद्धियों और प्रदूषकों से त्रस्त हैं।

जीवन में अधिक सुविधाएं जुटाने के लिए मनुष्य ने नदियों पर अपना आधिपत्य जमाने के प्रयास किये एक और उनके प्राकृतिक प्रवाह को नियंत्रण में रखने की कोशिश की और दूसरी और कारखानों और घरेलू अपशिष्ट को नदियों मैं प्रवाहित किया जिसके चलते बड़ी नदियाँ प्रदूषित हुई और कई छोटी नदियाँ अपशिष्ट पानी के बहाव का जरिया बन गई। कई  नदियाँ जो बारहमासी थी, वो बरसाती नदियों में बदल हो गई, वहाँ कुछ नदियाँ जो मौसमी थी. लगातार ड्रेनेज का पानी मिलने की वजह से वह वर्षभर बहने लगी।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 323 नदियों के जल की जांच करने पर पाया कि नदियों के 351 पाट (रिवर स्ट्रेच) का पानी प्रदूषित है। इन नदियों में चम्बल सोन, क्षिप्रा, पुनपुन, कावेरी. सतलज जैसी पौराणिक और भौगोलिक रूप से महत्वपूर्ण नदियाँ भी शामिल है।

बड़ी नदी और उनकी सहायक नदियाँ मानव शरीर के रक्त परिसंचरण तंत्र (ब्लड सर्कुलेशन सिस्टम) की तरह है। अगर एक भी नस ठीक से काम ना करे तो इसका असर पहले किसी एक अंग पर और बाद में पूरे शरीर से पर होता है उसी तरह यदि छोटी सहायक नदियाँ प्रदूषित और अस्वस्थ होगी तो परिणाम धीरे-धीरे पूरे नदीतंत्र और बाद में भूमि भू-जल मौसम, कृषि, अर्थव्यवस्था और अंततः पूरी मानव सभ्यता पर नजर आएगा।

भारत की नदियों में पानी के दो प्रमुख स्रोत हैं पहला है-ग्लेशियर हिमालय के ग्लेशियर से निकलने वाली नदियों में जल का प्रमुख स्रोत ग्लेशियर से पिघलने वाली बर्फ है। जब ये नदियाँ पर्वत से उतरकर मैदान को और बढ़ती है तो वर्षा, सहायक नदियाँ, नाले, बरसाती नाले, बरसाती झरनों से निकलने वाली धाराएं इनमें समाती है और इनका स्वरूप वृहद होता जाता है और आखिर में अपना मार्ग पूर्ण करते हुए सगर में समा जाती है

दूसरी नदियाँ है पहाड़ी और पठारी नदियाँ वृक्षों से लबरेज पहाड़ी से इन नदियों का उद्गम होता है, जहां से तेज वेग से नीचे उतरते हुए ये नदियाँ मैदानों में पहुंचती है, इनके पानी से मूजल समृद्ध होता है, कुएं रिचार्ज होते हैं, ये नदियाँ सबसॉयल वॉटर (मृदा की उपरी पत के नीचे वाले हिस्से में अवशोषित जल ) का महत्वपूर्ण स्त्रोत होती है। इन्हीं से सिंचाई का पानी मिलता है, इनके किनारे ग्रामीण भारत बसता है और अंततः ये किसी प्रमुख नदी में मिल जाती है। छोटी नदियों के उद्गम और महत्व का एक उदाहरण है मध्यप्रदेश का जानापाव पहाड़ मध्यप्रदेश की जन्यपाद पहाड़ी से 7 नदियों का उद्गम होता है इन 7 नदियों में से एक चंबल नदी भी है जो 1024 किमी का मार्ग तय करने के बाद यमुना में मिल जाती है। पहाड़ी और पठारी नदियों का आपसी तंत्र एक किस्म की प्राकृतिक पाईपलाईन है जिसमें पानी बहकर खुद को परिष्कृत कर लेता है और जहां से गुजरता है वहां पानी के साथ उपजाऊ मिट्टी गाद रेत कलात्मक पत्थर, जैविक विविधता समेत बहुत सारी सौगात बांटता जाता है।

लोकभाषा में छोटी नदियों को सदानीरा कहते है सदानीरा अर्थात सदैव जलसमृद्ध रहने वाली नदियाँ इन नदियों का आपसी समन्वय भौतिकी, भूगोल, वनस्पति विज्ञान और भूगर्भ विज्ञान का सुंदर संगम है इसी संयोजन के आधार पर ये नदियां ना केवल खुद को बल्कि हमारी बड़ी नदियों को जीवित रखे हुए हैं। पहाड़ी नदियों के किनारे कबीट,बेल (बिल्वपत्र).अखरोट जैसे वृक्ष उग जाते हैं, इनकी जड़े वर्षाकाल में नदी से हजारों लीटर पानी को अवशोषित कर लेती है और बाद में धीरे-धीरे पेड़ की जड़ें यही पानी नदी में छोड़ती जाती हैं। यही वजह है मानसून बीत जाने पर इन नदियों मे पानी रहता है। इन विशालकाय घनेरे वृक्षों और छोटी नदी में भी सहजीवी संबंध होता है। यदि एक के अस्तित्व पर संकट आया तो भविष्य में दूसरे का अस्तित्व भी खतरे में हो जाएगा। जिस तरह नदी पर सभी का अधिकार होता है उसी तरह नदी के प्रति सभी का कुछ कर्त्तव्य भी बनता है। आईए जानते हैं कि इन नदियों को संरक्षित और सुरक्षित रखने में अलग-अलग स्तर पर हम क्या भूमिका निभा सकते हैं? सरकार, प्रशासन, सामाजिक कार्यकर्ता सामाजिक संस्थाएं अकादमिक संस्थाएं धर्मगुरू छोटे इन नदियों के संरक्षण की दिशा में कैसे और क्या भूमिका निभा सकते हैं?

ऐसे बनती है सदानीरा

प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन की पहली जिम्मेदारी सरकार की होती है भारत सरकार ने नदियों के सरक्षण की दिशा में अनेक प्रयास किये हैं और कर रही है। बड़ी और छोटी नदियों के संरक्षण के लिए सरकार बॉटम अप अप्रोच से काम कर रही हैं, जो स्वागतयोग्य है।

छोटे अनुक्रम की नदियों के बारे में जानकारियों का अभाव है, इनके उदगम और प्राकृतिक मार्ग के बारे में बताने वाले प्रशासनिक दस्तावेज बहुत कम हैं। जिला प्रशासन या नगरियनिकाय नदी के उद्गम बिंदु मार्ग और बेसिन का सीमांकन कर सकता है यह कार्य पूरा होने के बाद दूसरे चरण में समस्या को चिन्हित कर उसे हल करने की रणनीति बनाई जा सकती है। नदी में आवक और जावक जल की मात्रा जैसे आंकड़े जुटाने का काम भी स्थानीय निकाय कर सकते हैं जो भविष्य में जल बजट बनाने में सहायक होंगे। स्थानीय निकाय यह जानकारी जुटा सकता है कि किन-किन स्रोतों से कितना प्रदूषित पानी नदी में पहुंचता है। दूषित पानी में किस तरह के रसायन हैं। इसके बाद विशोज्ञों की मदद से इस पानी को नदी में मिलने से रोकने या इसका ट्रीटमेंट करने की योजना पर काम किया जा सकता है।

केंद्र सरकार की अनुशंसा के आधार पर जिला प्रशासन को रिवर बेसिन आर्गेनाईजेशन का गठन करना चाहिए जो कि नदी और नदी के बेसिन के संरक्षक की तरह काम करे। नदी संरक्षण की कोशिशों में नदी से सीधे जुडे हितग्राहक शामिल हो तो नदी संरक्षण की योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन हो सकता है।

किसी जिले में बहने वाली या जिले से गुजरने वाली नदी के लिए जिलास्तरीय नदी घाटी प्रबंधन समिति का गठन किया जाना चाहिए। इस समिति नें जिला प्रशासन के प्रतिनिधियों के साथ सिंचाई विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, उद्यानिकी विभाग, विकास प्राधिकरण के प्रतिनिधि भी होने चाहिए। गैर सरकारी क्षेत्र जैसे किसान संगठन, रिअल स्टेट संगठन, कला जगत, शिक्षा क्षेत्र, नागरिक संगठन महाविद्यालय में पदस्थ और सेवानिवृत्त प्रोफेसर (विशेशकर बॉटनी, जूलॉजी, केमेस्ट्री, जियोलॉजी विषय के विशेषज्ञ) वरिष्ठ नागरिक क्लब, सामाजिक मुददों पर सक्रिय रहने वाले महिला क्लब, साहित्यिक गतिविधियों आयोजित करने वाले क्लब भी शामिल किये जाने चाहिए।

शासन-

RBOS द्वारा अंगीकृत मूल शासन सिद्धांतों का प्रस्तावित स्वरुप,आरबीओ द्वारा अपनाएं जाने वाले बुनियादी सिद्धांत 

रिवर नॉलेज बैंक की स्थापना नदी घाटी प्रबंधन समिति स्थानीय नदी से संबंधित रिवर नॉलेज बैंक की स्थापना में आरबीओ (रिवर बसिन ऑर्गेनाइजेशन) की सहायक की भूमिका निभा सकते है

समिति के सदस्य नदी के बेसिन का वानस्पतक अध्ययन प्रस्तुत कर सकते हैं, जिसमें वे शहर के वरिष्ठ नागरिकों से मिलकर पचास साठ वर्ष पहले की वानस्पिक अध्ययन प्रस्तुत कर सकते है,जिसमें वे शहर  के वरिष्ठ नागरिकों से मिलकर पचास,साठ वर्ष पहले की वानस्पिक विविधिता के बारे में जानकारियां जुटा सकते है। मसलन साठ वर्ष पूर्व नदी के बेसिन में कौन-से वृक्षों की बहुलता थी किस प्रजाति की झाडियां पौधे और अन्य वनस्तियों की प्रचुरता थी. इसका वर्तमान स्थिति से तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है मध्यप्रदेश के इंदौर में कान्ह नदी पुनर्जीवन योजना में इस तरह का अध्ययन करने में यह तथ्य सामने आया कि कान्ह के बेसिन में आने वाले इस इलाके में नौ लाख वृक्ष थे। इन्हीं वृक्षों की वजह से उक्त इलाके का नाम नौलखा रखा गया। आज उस इलाके में बहुमंजिला इमारते हैं। इतिहास को दोहराया नहीं जा सकता लेकिन इस अध्ययन के आधार आगामी वृक्षारोपण की योजनाएं बनाई जा सकती है।

नदी के के बेसिन क्षेत्र में आने वाले अन्य जलस्रोतों मसलन छोटे और बड़े तालाब, कुएं, बावड़ी आदि का चिन्हांकन और उनकी स्थिति का अध्ययन भी किया जाना चाहिए।  

हर नदी के बारे में किवदंतिया, गीत या लोककथाएं होती है अतीत में उनके किनारे निभाई जानी वाली कुछ परंपराएं भी होती है। इन्हीं के संदर्भ में जानकारियां एकत्रित कर इनका इस्तेमाल नदी के संबंध में जनजागरूकता फैलाने के लिए किया जाना चाहिए।

समिति नदी के संबंध में जन जागरूकता लाने और इसके पुनर्जीवन में जनभागीदारी बढ़ाने में उत्प्रेरक की भूमिका निभा सकती है। मीडिया की सहभागिता से नदी के घाटों की सफाई नदी किनारे वृक्षारोपण जैसी गतिविधियां आयोजित कर सकती है जिससे जनभागीदारी बढ़े इन कार्यक्रमों से नदी संरक्षण से संबंधित जानकारियां साझा की जा सकती है। जितने ज्यादा लोग अभियान से जुड़ेंगे अभियान में उतनी ही तेजी आएगी और प्रयासों को प्रभलता मिलेगी। नए सुझाव और सहयोग भी प्राप्त होगा। 

स्थानीय नदी बेसिन प्रबंधन समिति और राष्ट्रीय एजेंसियों को आपसी सामंजस्य से एकीकृत इकाई की तरह कार्य करना होगा। आधुनिक संचार तकनीकों के जरिए यह सामंजस्य स्थापित हो सकता है। समिति के गठन के बाद समिति के सदस्यों की प्रथम बैठक राष्ट्रीय एजेंसी के साथ करवाई जा सकती है। जिसमें आगामी लक्ष्य का निर्धारण और उसकी समयबद्धता तय की जाए। समय-समय पर समिति के सदस्य राष्ट्रीय एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ ऑनलाइन और आवश्यकता अनुसार ऑफ लाईन मीटिंग कर सकते हैं राष्ट्रीय एजेंसियो समिति सदस्यों के ज्ञानवर्धन के लिए प्रशिक्षण सत्र आयोजित कर सकती है।

नदी संरक्षण से तीन प्रकार के आर्थिक पहलू जुड़े हैं। पहला है- अपशिष्ट पानी का ट्रीटमेंट, नदी में विभिन्न स्रोतों से आने वाला अपशिष्ट जल बिना ट्रीटमेंट के नदी तक ना पहुंचे इसके लिए योजनाबद्ध ढंग से ट्रीटमेंट प्लांट लगवाने होंगे जिसके लिए बजट की आवश्यकता होगी। यह एक बार किया जाने वाला निवेश है। सही प्लानिंग और इम्प्लीमेंटेशन से यह लंबे समय तक नदी को दूषित होने से बचाएगा।

नदी के सौंदर्यीकरण का खर्च जनभागीदारी और नवोन्मेषों से किया जा सकता है शहर की सामाजिक संस्थाए या बड़े कार्पोरेट नदी के घाटों और स्ट्रेच को गोद लेकर यहां की सफाई और सौंदर्यीकरण का जिम्मा ले सकते है। इसके अलावा नदी के पुल या घाट के नजदीक चित्रकला या स्थानीय लोककला (मांडना, मधुबनी) प्रतियोगिता आयोजित कर दीवारों को खूबसूरत बनाया जा सकता है

नदी को को स्वच्छ, स्वस्थ बनाने के साथ नदी और उसके हितग्राहकों के आर्थिक उन्नयन भी आवश्यक है यदि ऐसा नहीं हुआ तो कुछ समय बाद उन गलतियों का दोहराव होगा, जिनके कारण नदी विकृत हुई थी। इसके लिए स्थान विशेष के आधार पर रणनीति बनानी होगी। मसलन नदी के किनारे ओपन थियेटर, पार्क, बॉटनीकल गॉर्डन, स्पाइस गार्डन, बोनसाई गार्डन को विकसित किया जा सकता है जिसमें प्रवेश टिकट के आधार पर हो यहां प्री-वेडिंग फोटोशूट और सेल्फी प्वाइंट जैसे आकर्षण भी शामिल किये जा सकते हैं, जिससे युवा वर्ग इन स्थलों की ओर आकर्षित हो।

नदी पुनर्जीवत शहर की सरकृति और समृद्धता का पुनजीवन है। नदियाँ शहरों का सौंदर्य बढ़ाती हैं, जैवविविधता समृद्ध करती हैं और खुशहाली लाती हैं। 1940 में दक्षिण कोरिया के सीओल मे चुंग-गी- चुन नदी अनेक कारणों से प्रदूषित हो गई थी। यहां की सरकार ने अथक प्रयास से नदी को पुनर्जीवित किया। जिसका सुखद नतीजा ना केवल शहर की संस्कृति और सौंदर्य पर बल्कि समूची अर्थव्यवस्था पर पड़ा। नदियों का पुनर्जीवन शहर के जलसंसाधन जैसी अमूल्य धरोहर को बचा लेता है। जिसके सकारात्मक प्रभाव हर तरफ नजर आते है। प्राकृतिक जलस्रोतों के समीप भूमि की कीमतें बढ़ती हैं, जब किसी शहर में रिअल स्टेट में तेजी आती है तो साथ में अन्य व्यवसाय भी बढ़ते हैं। ईको टूरिज्म, नेचुरल हीलिंग जैसे क्षेत्रों का विकास होता है।

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