Table 1: Geographic Coverage of the Ganga-Karnali-Ghaghara River Basin across the Countries | ||||||
बेसिन / उप- बेसिन | क्षेत्रफल (किमी2)) | बेसिन में मुख्य देश | बेसिन में देश का क्षेत्र (किमी2) | % बेसिन का क्षेत्रफल | % देश का क्षेत्रफल | औसत वार्षिक अपवाह |
गंगा | 1,087,300 | भारत | 860,000 | 79 | 26.00 | ~ 525 बीसीएम ~16,640 m3/sec |
चीन | 33,500 | 3 | 0.35 | |||
नेपाल | 147,500 | 14 | 100.00 | |||
करनाली घाघरा |
127,950 | बांगलादेश | 46,300 | 4 | 32.00 | ~ 113 बीसीएम ~3,581 m3/sec |
नेपाल | 68,000 | 53 | 46.10 | |||
भारत | 57,500 | 45 | 1.75 | |||
चीन (तिब्बत) | 24,50 | 2 | 0.01 | |||
बीसीएम= बिलियन क्यूबिक मीटर; स्रोत: AQUASTAT FAO, 2011; इंस्टीट्यूट ऑफ वाटर मॉडलिंग, 2010 | ||||||
अन्तरराष्ट्रीय नदियों के जल उपयोग पर 1966 का हेलसिंकी नियम:'प्रत्येक बेसिन राज्य अपने क्षेत्र में,एक अंतरराष्ट्रीय जल निकासी के जल के फायदेमंद उपयोगों में उचित हिस्सेदारी का हकदार है.' उचित हिस्सेदारी निर्धारित करने वाले कारकों में शामिल हैं: | |
• प्रत्येक राज्य/राष्ट्र बेसिन का भूगोल और जल निकासी क्षेत्र • बेसिन का जल विज्ञान • बेसिन क्षेत्र को प्रभावित करने वाली जलवायु • पूर्व उपयोग • प्रत्येक बेसिन राज्य की आर्थिक और सामाजिक आवश्यकताएं • इस जल पर निर्भर जनसंख्या • जल उपयोग में अनावश्यक अपशिष्ट का बचाव | • अन्य संसाधनों की उपलब्धता • प्रत्येक बेसिन राज्य की आर्थिक और सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करने के वैकल्पिक साधनों की तुलनात्मक लागत • उपयोगकर्ताओं के बीच संघर्ष के समाधान के साधन के रूप में एक या अधिक सह-बेसिन राज्यों को मुआवजे की व्यवहारिकता • एक बेसिन राज्य की जरूरतों के लिये एक सह-बेसिन राज्य को पर्याप्त आघात किये बिना राज्य को संतुष्ट किया जाना |
स्टॉकहोम घोषणा 1972राज्यों को अपनी की पर्यावरण नीतियों के अनुसार अपने खुद के संसाधनों का फायदा उठाने का अधिकार है; लेकिन इसके साथ ही यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी भी है कि उनके अधिकार क्षेत्र की गतिविधियों से अन्य राज्यों के पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुँचे. | |
पर्यावरण और विकास पर रियो सम्मेलन, 1992 का एजेंडा 21 (विशेषकर 18.4 और 18.5 खंड): साझा जल का उपयोग करने वाले जल साझीदार देशों के बीच सहयोग, जल संसाधन रणनीतियों को विकसित करने और सामंजस्य बनाने की आवश्यकता. यह एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (आईडब्ल्यूआरएम) के ढांचे को विशेष महत्व देता है. | |
अधिकार और दायित्व (अन्तरराष्ट्रीय जल संसाधनों के गैर-नौवहन उपयोग के कानून पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, 1997): | |
• बेसिन राज्यों द्वारा समुचित उपयोग और सहभागिता • अन्य बेसिन राज्यों के लिये अपेक्षाकृत नुकसान की रोकथाम • अन्य तटीय राज्यों पर पड़ने वाले संभावित प्रतिकूल प्रभावों के साथ अधिसूचित करना • पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा और संरक्षण | • आंकड़े और सूचनाओं का नियमित आदान-प्रदान • किसी एक उपयोग को दूसरे पर वरीयता देने की कोई अंतर्निहित प्राथमिकता नहीं • प्रदूषण की रोकथाम, कमी और नियंत्रण • आपात स्थितियां से संबंधित अधिसूचना और सहयोग |
• ये दोनों समझौते विवाद में फंस गए हैं और काफी हद तक नेपाल के एक बड़े हिस्से की वास्तविक जरूरतों और आवश्यकताओं के प्रति असंवेदनशील हैं. • तटीय समुदायों के कई महत्वपूर्ण मुद्दे जैसे, जल और ऊर्जा सुरक्षा, खतरे(जैसे बाढ़), प्रदूषण इत्यादि, भारत और नेपाल के बीच अन्तरराष्ट्रीय जल साझेदारी की समझ का हिस्सा नहीं हैं. • चूंकि इसमें स्थानीय समुदायों की भागीदारी नहीं हैं, स्थानीय ज्ञान और अनुभव, मुद्दों, धारणाओं और आकांक्षाओं, अंतरराष्ट्रीय जल साझाकरण व्यवस्था में कभी नहीं दर्ज होते हैं. |
इस संधि की प्रमुख कमियाँ ये हैं: 1. दूसरे अधिकांश द्विपक्षीय, बहुपक्षीय समझौतों के विपरीत इसमें मध्यस्थता के लिये कोई अन्य प्रावधान शामिल नहीं है 2. इसमें पानी की गुणवत्ता या प्रदूषण से निपटने का समाधान नहीं है। 3. इसमें किसी भी तरह की सामुदायिक भागीदारी की कमी है और स्थानीय सन्दर्भो को ध्यान में नहीं रखा गया है। गंगा पर एक बैराज बनाने की बांग्लादेश की कथित योजना एक और विवादित मुद्दा बन रही है। जाहिर है, इस परियोजना को 2027 तक पूरा किया जाना है और विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार है। भारत की चिन्ता यह है कि यह उसके इलाके में बाढ़ के खतरे को बढ़ाएगा। |