नदी और तालाब

हिंडन नदी को प्रदूषण मुक्त करने को बैठक

हिंडन नदी, यमुना की एक सहायक नदी, जिसे ऐतिहासिक रूप से हरनंदी नदी के नाम से भी जाना जाता है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अत्यधिक आबादी, मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र के लिए पानी का एक प्रमुख स्रोत रही है। हिंडन उप बेसिन की भूमि प्रमुखतः खेती के लिए फायदेमंद है, जिसमें चीनी, कागज और कपड़ा जैसे उद्योगों का अब मजबूत प्रभाव है।और ये हिंडन में कहीं न कहीं प्रदूषण में भागीदारी कर रहे हैं।

Author : आस मोहम्मद

गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए जीवनदायिनी मानी जाने वाली हिंडन नदी अत्यधिक जनसंख्या, शहरीकरण, और तीव्र औद्योगिक और कृषि गतिविधियों के साथ सामरिक प्रदूषण और पानी की कमी का सामना करते हुए अपने मूल स्वरूप को खो रही है। 

हिंडन नदी, यमुना की एक सहायक नदी, जिसे ऐतिहासिक रूप से हरनंदी नदी के नाम से भी जाना जाता है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अत्यधिक आबादी, मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र के लिए पानी का एक प्रमुख स्रोत रही है। हिंडन उप बेसिन की भूमि प्रमुखतः खेती के लिए फायदेमंद है, जिसमें चीनी, कागज और कपड़ा जैसे उद्योगों का अब मजबूत प्रभाव है।और ये हिंडन में कहीं न कहीं प्रदूषण में भागीदारी कर रहे हैं। इस परिस्थिति में, गंगा बेसिन के सबसे प्रदूषित हिस्सों में से एक के रूप में हिंडन प्रमुख कहलाता है। हाल के अध्ययनों के अनुसार, नदी का सूख जाना और भूजल का स्तर घटते जाना आम हो गया है। इसके अलावा नदी की सतही जल की भूजल का अत्यधिक दोहन जिस गुणवत्ता डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित सीमा से मेल नहीं खाती है। हिंडन नदी में जो प्रदूषण की समस्या है वह प्रमुख रूप से उद्योगों द्वारा उत्सर्जित अवजल तथा हिंडन के किनारे बसे शहरों का मलिन जल तो प्रमुख है ही लेकिन हमारी वर्तमान कृषि पद्धति इसमें बहुत बड़ा योगदान दे रही है।

भूजल का अतिरिक्त दोहन जिस कारण नदी में पानी की मात्रा का कम होना तथा कृषि में उपयोग किये जाने वाले रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों का अनियंत्रित उपयोग जो बहकर नदी में आकर मिलते हैं। सरकारी और गैर सरकारी अध्ययनों में इसकी पुष्टि भी हो चुकी है उद्योगों द्वारा अवजल एवं महानगरों के मलिन जल में कुछ कार्यों की शुरुआत भी हुई है लेकिन कृषि में होने वाले हिंडन नदी से प्रभाव तथा कृषि पद्धति का हिंडन में क्या प्रभाव है, इसके गहन अध्ययन के साथ-साथ इसके रोकथाम में कार्य करने की आवश्यकता है। अतः इस महत्वपूर्ण समस्या को हल करने के लिए, भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और नीदरलैंड के डच रिसर्च काउंसिल (एनडब्ल्यूओ) के साथ मिलकर "क्लीनिंग द गंगा" और "एग्री वॉटर यूज" परियोजनाओं का संचालन किया है।

इस परियोजना में शामिल सहायक संस्थानों में देहरादून की पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट (पीएसआई), नीदरलैंड के वैगनिंगन यूनिवर्सिटी एंड रिसर्च (डब्ल्यूयूआर) और यूट्रेक्ट यूनिवर्सिटी, साथ-साथ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) - कोलकाता, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की, और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मिंग सिस्टम (आईआईएफएसआर) मोदीपुरम, शामिल हैं। परियोजना का मुख्य उद्देश्य हिंडन बेसिन में कृषि और अन्य क्षेत्रों के योगदान को मॉनिटरिंग और मॉडलिंग के माध्यम से पहचानना है। इसके लिए परियोजना सभी हितधारकों के सहभागी दृष्टिकोण को अहम मानती है। 

यह कार्यशाला गाजियाबाद शहर के उडुपी रेस्टोरेंट में आयोजित की गयी तथा इसकी बैठक में विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी प्रतिनिधि और गाजियाबाद के किसान भी शामिल रहें। इसके पूर्व पीएसआई द्वारा देहरादून के द्वारा जुलाई 2023 में उ. प्र. के तीन जनपदों; सहारनपुर, मुजफ्फरनगर और मेरठ में विभिन्न हितधारकों की ऐसी ही कार्यशाला सम्पन्न की गई है। गाजियाबाद की इस बैठक में एडवोकेट संजय कश्यप, सुशील, जोगिंदर, वर्तिका, गर्वित, कल्पना, कर्नल टी. पी. त्यागी, ललित, सतेंद्र, हिमांशु, सी. पी. चौहान, वर्तिका (सिंचाई विभाग) तथा अन्य उपस्थित रहें। जिसमें सभी हितधारकों ने मिलकर हिंडन उप बेसिन में बढ़ रही प्रदूषण और भूजल स्तर में आई कमी को सुलझाने के लिए सहभागी रणनीति विकसित करने के लिए सुझाव दिए। पीएसआई से डॉ अनिल गौतम ने इस परियोजना की रूपरेखा को सभी के सामने रखा। 

आज की बैठक में गाजियाबाद की सिविल सोसाइटी के मुखिया कर्नल तेजेन्द्र पाल त्यागी के प्रस्ताव रखा कि औधोगिक इकाइयों के ईटीपी निरीक्षण का दायित्व सिविल सोसाइटी को दिया जाए ऐसा करने से हिंडन का प्रदूषण तीन महीने मे एक चौथाई काम हो जायेगा।

लेखक आस मोहम्मद ‘सुनहरा संसार’ के ब्यूरो चीफ हैं।

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