आजादी के बाद विकास की गति को रफ्तार देने के लिए बड़े पैमाने पर भारत में बांध,तटबंध एवं बराज़ो का निर्माण किया गया। इसका उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण ,सिंचाई तथा पनबिजली का निर्माण करना था। पहली बहुउद्देशीय परियोजना दामोदर घाटी बनी। उसी के तर्ज पर कोसी परियोजना, गंडक परियोजना आदि का निर्माण हुआ। इसे विकास का मंदिर कहा गया। समय के साथ यह स्पष्ट हो गया कि ये परियोजनाएं अपने उद्देश्य को हासिल करने में विफल रहे। तटबंधों के निर्माण से बाढ से निजात मिलने के बजाय बाढ प्रवण क्षेत्र का विस्तार हुआ है। पहले बाढ़ दो-तीन दिनों में खत्म हो जाता था अब महीनों लग जाता है । तटबंधों के निर्माण से नदी की उड़ाही क्षमता प्रभावित हुई है। दूसरी तरफ उपजाऊ मिट्टी, जो बाढ़ के पानी के साथ खेतों में पहुंचता था,का तटबंध के कारण खेतों में पहुंचना बंद हो गया । तटबंध के बनने से पहले बरसात के दिनों में बाढ़ के पानी के तेज बहाव में नदी की उड़ाही 50-100 फीट तक हो जाती थी। यह नैसर्गिक प्रक्रिया तटबंध बनने से अवरुद्ध हो गई। परिणाम स्वरूप नदी उथली हो गई।
जिससे बाढ़ क्षेत्र का विस्तार हुआ। तटबंधों के टूटने का सिलसिला जारी है। जिससे बाढ़ की स्थिति और विकट हो गई है। तटबंधों के रखरखाव और मरम्मत पर अरबों रुपए खर्च हो रहे हैं, मगर ज्यों-ज्यों दवा की मर्ज बढ़ता गया । साल दर साल लोगों को बाढ़ से तबाही का सामना करना पड़ रहा है। सरकारी प्रयासों के बावजूद साल दर साल बाढ़ क्षेत्र में इजाफा हो रहा है 1952 में बिहार में 25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ प्रवण था जो अब बढ़कर 73 लाख हेक्टेयर हो गया है । देश के स्तर पर देखे तो 1952 में 2.5 करोड़ क्षेत्र बाढ़ प्रवण था जो अब बढ कर 5 करोड़ हेक्टेयर हो गया। फरक्का बराज के कारण पश्चिम बंगाल और बिहार में बाढ़ से तबाही बढ़ रही है। दामोदर घाटी परियोजना के कारण गंगा के मुहाने पर पानी की कमी और साद के जमाव की समस्या उत्पन्न हो गई। इस कारण कोलकाता बंदरगाह पर संकट उत्पन्न हो गया। तब कोलकाता बंदरगाह को संकट से बचाने के लिए फरक्का बराज बनाया गया। इस बारज के द्वारा गंगा के बाढ़ के पानी को कमी के दिनों के लिए जमा कर जरूरत के समय नियंत्रित तरीके से गंगा के मुहाने पर प्रवाहित करने की योजना थी। परंतु फरक्का बराज बनाकर भी कोलकाता बंदरगाह को नहीं बचाया जा सका। जब फरक्का बराज बन रहा था तब बंगाल के अभियंता कपिल भट्टाचार्जी ने इस बराज की सफलता पर सवाल खड़े किए थे, जो समय के शिलालेख सत्य साबित हुआ । इस पृष्ठ भूमि में नदी पर काम करने वाले बिहार , झारखंड एवं बंगाल आदि प्रांतों के कार्यकर्ताओं का एक दिवसीय नदी संवाद संगोष्ठी का आयोजन नदी बचाओ जीवन बचाओ तथा राष्ट्रीय युवा योजना बिहार की संयुक्त तत्वाधान में इग्नू रीजनल सेंटर, मीठापुर, पटना में 16 जुलाई,2023 को आयोजित की गई।
इस संगोष्ठी का उद्घाटन डॉ देवी लाल यादव, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक एवं पर्यावरणविद् और नदियों पर अनेक पुस्तकों के लेखक ने किया। उन्होंने कहा कि चंपारण में लगभग 60 छोटी नदियां थी उसमें आधी मर गई शेष में भी आधा मरणासन्न है। जलवायु परिवर्तन आवश्यक है परंतु आवश्यकता से अधिक परिवर्तन हानिकारक है। यदि पर्यावरण संतुलित नहीं होगा तो जीवन भी संतुलित नहीं होगा। हमें पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखने के लिए नदियों को बचाना और छोटी छोटी नदियों को संरक्षित करना, पुनर्जीवित करना आवश्यक है।
पेड़ों को लगाने से ज्यादा पेड़ों को बचाने की आवश्यकता है। पश्चिम बंगाल से नदी बचाओ जीवन बचाओ के साथी तापस दास ने कहा कि गंगा का 56% प्रवाह कम हो गया है गंगा की बायोडायवर्सिटी खत्म हो रहा है । रोजगार समाप्त हो रहे हैं। लगभग 300 नदियां गंगा में मिलती है जिसमें से 120 से अधिक मर चुकी है । यदि छोटी नदी नहीं रहेगी तो बड़ी नदी भी नहीं बचेगी। इसीलिए नदियों एवं धाराओं को पुनर्जीवित करना आवश्यक है। यह मामला एक जगह का नहीं है, बल्कि पूरे देश का है। इसलिए देश भर में लोगों को इसके लिए एकजुट करना जरूरी है । इसको ध्यान में रख कर पटना में एक दिवसीय नदी संवाद का आयोजन किया गया है।
नदी मामलों के विशेषज्ञ रंजीव ने कहा की आधुनिक विकास ने नदियों का अतिक्रमण कर लिया है। नल जल योजना में पूरा भ्रष्टाचार है। पीने के पानी के लिए भूजल के बजाय बहते पानी का उपयोग बेहतर है। विकास किसके लिए यह एक बड़ा प्रश्न है । बिचौलियों के लिए या आम आदमी के लिए । पानी के बारे में हमारी दृष्टि भ्रमित है। पानी के लिए कोई युद्ध नहीं होगा।आधुनिकीकरण के नाम पर तालाबों को पक्का करना गलत है।नदी, तालाब को समाज से जोड़ना ही समाधान है।
उतर बिहार,सीतामढ़ी से लखनदेई बचाओ संघर्ष समिति तथा बागमती-अधवारा समूह नदी आन्दोलन के साथी किसान नेता प्रोफेसर आनंद किशोर ने कहा कि सीतामढ़ी इलाके में बागमती, लखनदेई और अधवारा समूह की नदियां हैं। इन नदियों के आसपास तालाब हुआ करते थे जो बाढ़ के पानी से भर जाते थे और बाढ़ के बाद जब पानी कम होता था तो पीने और खेती में उसका उपयोग होता था। तटबंध बनने से यह सिलसिला टूट गया। तटबंध बनाया गया था सिंचाई तथा बाढ़ नियंत्रण के लिए लेकिन हुआ उल्टा।बाढ का उपजाऊ पानी नही मिलने से जमीन बनने की प्रक्रिया वाधित हुई तथा खेती की लागत बढती गई। लगभग 48 से 50 बार बागमती तथा दर्जनो बार अधवारा का तटबंध टूटा है और बाढ़ से जान-माल की भारी क्षति हुई है।
पहले बाढ दो-तीन दिनों में खत्म हो जाता था अब महीनों तक रहता है । बागमती तटबंध हम लोगों के लिए संताप बन गई है।अधवारा समूह की नदियों में पानी नहीं है नदी सूख रहे है। गंडक में पानी नहीं। बागमती के वेलबा से मीनापुर नदी जोड योजना सरकार की लूट-खसोट योजना है। उन्होंने कहा कि जन सहयोग तथा सरकारी सहयोग से 50 वर्षो से मृतप्राय लखनदेई नदी को पुनर्जीवित करने का काम लखनदेई बचाओ संघर्ष समिति के 8वर्षो के निरंतर प्रयास से सफल हुआ हैआगे लखनदेई के अगल-बगल तालाब तथा नदी के दोनो तरफ वृक्षारोपण की योजना पर हमलोग पहल कर रहें है।
मनुष्मारा नदी को रीगा चीनी मिल तथा डिस्टीलियरी के प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक पहल किया फिर उस नदी से बेलसंड तथा रून्नीसैदपुर के बीच बीस हजार एकड मे जलजमाव से मुक्ति हेतू जलनिकासी पर साथियों के साथ सफल काम किया।वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ जी ने कहा कि नदियों की स्थिति का अध्ययन जरूरी। पहले नदी की पढ़ाई नहीं होती थी लेकिन सिविल इंजीनियर बांध बनाने का काम करते थे। नदियां बरसात के पानी का नैसर्गिक निकास का मार्ग है। आसपास में जो छोटी नदी है उस पर काम करने की आवश्यकता है। जिस तालाब का संपर्क भू-जल से होता है वही तालाब कामयाब होता है। गंगा मुक्ति आंदोलन से जुड़े सोनपुर के कृष्णा जी ने कहा कि फरक्का बराज के कारण नदियों में मछली लुप्त हो गई है जिससे मछुआरों को रोजगार की तलाश में भटकना पड़ता है। उन्होंने बताया कि उनके यहां 538 कुआं थे अब मात्र 125 बचा है।
धनबाद से आए छोटानागपुर किसान विकास संघ के रामचंद्र रवानी ने कहा कि सरकार की सारी योजना कागज पर बहुत तेज चलती है , धरती पर बहुत कम काम होता है। उन्होंने कहा कि दामोदर वैली कॉरपोरेशन के कारण बड़ी समस्या खड़ी हो गई। उससे न सिंचाई हुई न बिजली का उत्पादन हुआ। उल्टे पीने की पानी की समस्या हो गई । नदी बहुत प्रदूषित हो गई। उसके खिलाफ उन्होंने आन्दोलन किया, जिसके फलस्वरूप नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार ने 10 करोड़ 22लाख रुपए स्वीकृत किए। लेकिन उस पैसे का क्या हुआ आज तक पता नहीं चला।
सौरा नदी पर काम करने वाले जल प्रहरी सुमित प्रकाश ने पूर्णिया की नदियां सौरा , परमान , कनकई, काली कोशी इत्यादि की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला । उन्होंने भूजल के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त किया । उन्होंने कहा यहां पहले से ही पानी में आयरन की मात्रा अधिक थी अब आर्सेनिक भी पाया जा रहा है । पूर्णिया भूजल के गिरते जल स्तर को वाटर हार्वेस्टिंग और वाटर शेड मैनेजमेंट से नियंत्रित किया जा सकता है। इस पर काम हो रहा है।
सिलीगुड़ी, बंगाल से आए तीस्ता नदी पर काम कर रहे रुपक मुखर्जी ने तीस्ता नदी से जुड़ी समस्याओं का विस्तार से उल्लेख किया । उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन से अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। पिछले साल वीरभूमि सूखा था और इस साल भी सूखा है। पेड़ लगाना चाहिए लेकिन कौन सा पेड़ लगाना चाहिए इसका ध्यान रखना आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हमारे खेती पर पड़ रहा है। इस साल धान का उत्पादन कम होगा।
पूर्णिया से आई मीनाक्षी ने कहा कि नदी से हमारा गहरा लगाव रहा है। हमें प्रकृति के साथ तालमेल बना कर जीना सीखना होगा। नदी जीवन का आधार है। इसे अविरल और निर्मल रखना आवश्यक है। सीतामढ़ी से आए संयुक्त किसान संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष जलंधर यदुवंशी ने कहा कि तटबंध के निर्माण के समय यह सपना दिखाया गया था कि इससे बाढ़ से राहत और क्षेत्र में खुशहाली आएगी, लेकिन हुआ ठीक इसके उल्टा। न बाढ़ से राहत न खेती का विकास हुआ। पहले बाढ़ के कारण उपजाऊ मिट्टी खेतों में पहुंचता था वह रुक गया। इससे खेती पर प्रतिकूल असर पड़ा है। किसान दोहरी मार झेल रहे हैं।
इस संवाद में खगडिया से आए चंद्रशेखरम , सुभाष जोशी, धनबाद से संजय कुमार, औरंगाबाद से उपेंद्र सिंह, आरा से डॉक्टर उमेश कुमार , नालंदा से दीपक कुमार , पटना से चन्द्रभूषण तथा सुनील सेवक, पूर्णिया से महेश देवघर से राहुल कुमार, पटना से नीरज कुमार आदि ने भी भाग लिया और अपने विचार से इस संवाद को समृद्ध किया।तीन सत्रों में इस संवाद का आयोजन किया गया। पहले सत्र की अध्यक्षता रामचंद्र रवानी, दूसरे सत्र की अध्यक्षता अमरनाथ तथा तीसरे सत्र की अध्यक्षता जलंधर यदुवंशी ने किया। संचालन अशोक भारत ने किया। कार्यक्रम की शुरुआत राम बाबू भक्त के युवा गीत से हुआ। अशोक भारत ने संवाद में शामिल सभी लोगों का स्वागत किया और संगोष्ठी के औचित्य पर प्रकाश डाला।
पहला, नये तटबंध नहीं बने और जो बांध और तटबंध अबतक बने हैं उसकी विशेषज्ञों की टीम द्वारा समीक्षा की जाए ।
दूसरा, छोटी नदियां, नाला बरसात के पानी के निकास के नैसर्गिक साधन और बड़ी नदियों के जीवन रेखा है इसलिए इन्हें संरक्षित करना और अतिक्रमण मुक्त करना आवश्यक है
बंगाल में नदी पर काम कर रहे साथी तापस दास ने कहा कि उन्होंने बंगाल में अपना मीडिया बनाया है। आप अपने यहां भी इस प्रकार की पहल कर सकते हैं।
दूसरा, किसानों और मछुआरों को इस प्रक्रिया से जोड़ना है ।
तीसरा, नदी पखवारा 9 से 24 सितंबर तक मनाना है। इस दौरान पदयात्रा ,कार्यशाला, सम्मेलन , शिविर या जहां नदी पर आन्दोलन चल रहा है उससे जुड़ना आदि शामिल कर सकते हैं।
चौथा, दो दिनों का राष्ट्रीय कार्य शाला का आयोजन ।
दूसरा बिहार में एक नदी संवाद यात्रा निकाली जाएगी तीसरा स्कूल कालेजों में जागरूकता अभियान चलाया जाएगा।
इस अवसर पर डॉ. देवी लाल यादव द्वारा लिखित "निर्मल नर्मदा"पुस्तक का विमोचन प्रो.आनंद किशोर, अमरनाथ तथाअशोक भारत ने किया। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में राष्ट्रीय युवा योजना बिहार के मित्रों ने नीरज कुमार के नेतृत्व में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया। जिससे यह 'नदी संवाद संगोष्ठी' सफलतापूर्वक संपन्न हो सका।
सभी साथियों को बधाई,जिन्दाबाद।
अशोक भारत
8709022550