20 मई 2024, देहरादून। पानी को लेकर लगातार संकट गहराता जा रहा है। गर्मियों में उत्तराखंड की राजधानी दून से लेकर राज्य के तमाम शहरों में पीने के पानी के लिए लोगों को जूझना पड़ रहा है। लेकिन कई ऐसे लोग भी हैं, जिनकी पानी को लेकर मानो नींद ही गायब हो गई है, ये लोग पानी के संरक्षण को लेकर कोई एक नहीं, तीन-तीन दशकों से जुटे हुए हैं। ऐसे लोगों में ही एक है शिक्षक मोहन चंद्र कांडपाल। कानपुर बचपन बीता, मूल रूप से अल्मोड़ा के द्वाराहाट के निवासी हैं। एमसी कांडपाल पिछले 34 सालों से पानी वह ‘पानी बोवो, पानी उगाओ’ वह अभियान के जरिए न केवल पानी को बचाने के मूवमेंट में जुटे हुए हैं, बल्कि अल्मोड़ा के द्वाराहाट की रिस्कन नदी के पुनर्जीवन की बात भी कर रहे हैं। रिस्कन नदी के संरक्षण की भी बात कर रहे हैं। ऐसे ही दूसरे रुद्रप्रयाग निवासी पर्यावरणवीर जगत सिंह जंगली हैं, जिन्होंने रुद्रप्रयाग में पानी बचाने को पर्यावरण संरक्षण के लिए एक लाख से ज्यादा पेड़ों का प्लांटेशन किया है। कुछ ऐसे ही काम पर जुटे हुए हैं बृजमोहन शर्मा। पर्यावरण सहेजने या बूंद-बूंद पानी व शुद्धता को लेकर जिक्र होता है तो उसमें दून निवासी डॉक्टर ब्रजमोहन शर्मा का भी नाम आता है।
यूपी के कानपुर में पढ़ाई करने के बाद उत्तराखंड लौटे मोहन चंद कांडपाल ने अपने पानी बचाने के मुहिम के तहत 82 गांव में महिला संगठन बनाया। पेड़ लगाने पर भी काम किया कहते हैं। वे बताते हैं कि कि जब उन्होंने एक दिन छात्राओं को रोज नहाने चाहिए किताबी ज्ञान दिया, तो छात्राओं ने कहा कि जब पानी ही नहीं तो कहां से नहाना होगा। उसी दिन से उन्होंने अपने को बचाने की मुहिम में झोंक दिया।
मोहन चंद कांडपाल के 34 सालों का उनका अनुभव है कि पानी के संरक्षण संबंधों के लिए बच्चों को शहरों से लेकर का गांव तक को जोड़ना होगा। उनको किताबी कम, प्रैक्टिकल नॉलेज ज्यादा देना होगा। युवाओं को बताना होगा कि 50 साल पहले नदियां कैसी थीं, अब कैसी हो गई है। बाकायदा उनका सर्वे भी करना होगा।
पानी बोओ, पानी उगाओ अभियान के साथ पानी संरक्षण में जुटे एमसी कांडपाल अल्मोड़ा के द्वाराहाट में मौजूद रिस्कन नदी को बचाने पर जुटे हुए है। उन्होंने इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार से भी अपील की है। एमसी कांडपाल का कहना है कि 34 वर्षों के सफर में उन्होंने रिस्कन नदी के करीब 40 किमी दायरे में 10 लाख खाव (खाल) जनता, छात्र-छात्राओं के सहयोग से बनाए है। यही वही नदी है, जिसके भरोसे 40-45 गांव है। उन्होंने एक और दूसरा अभियान चलो गांव की ओर भी शुरू किया है। वे कहते हैं कि उत्तराखंड के पर्वतीय 353 गैर बर्फीली नदियों का अस्तित्व खतरे में है। इनमें से ज्यादातर नदियां केवल बरसाती बनकर रह गई है।
प्रदेश में भी पानी की समस्या आम हो रही है। ऐसे में कई वाटर वारियर्स है, जिन्होंने पहाड़ का दर्द समझ कर एक मिशन शुरू किया, इनमें सबसे पहला नाम जगत सिंह जंगली का आता है। जगत सिंह जंगली पूर्व सैनिक रहे है, उन्होंने पर्यावरण का दर्द रहा। यही कारण है कि इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ पर्यावरण सरंक्षण के क्षेत्र में काम किया, इनकी खुद की 300 एकड़ जमीन जो कि बंजर पड़ी थी, उसमे कई प्रजाति के पेड़ लगाकर जंगल तैयार किया है। जंगल की स्थापना के कारण जो प्राकृतिक जलस्रोत सूख गया था उसे भी नया जीवन मिल गया, स्रोत के पानी को टैंक में इकट्ठा करके बंजर खेतों को आबाद करने की कोशिश की जा रही है। यहां औषधीय पौधे उगाए जा रहे है। इस जंगल पर कई देश और विदेश के स्टूडेंट शोध करने के लिए पहुंच रहे हैं। पर्यावरण सरंक्षण के लिए उन्हें एशिया प्राइड अवार्ड से भी सम्मानित किया गया है।
पीने के पानी की उपलब्धता तो बड़ी समस्या बनी हुई है। इस पर जो पानी मिल रहा है वह शुद्ध और पीने के योग्य है भी है या नहीं है। इसको लेकर सोसायटी ऑफ पॉल्यूशन एंड इनवायरमेंटल कंजरवेशन साइंटिस्ट (स्पेक्स) के सचिव डॉ। बृज मोहन शर्मा बीते कई सालों से काम कर रहे हैं। वे पानी की शुद्धता की जांच के लिए सिटी के अलग-अलग एरिया में भी गए। वे लगातार 1990 से पानी की क्वालिटी में सुधार को लेकर काम कर रहे है। उन्होंने 2002 में एक ऐसा इक्यूपमेंट भी तैयार किया, जिससे लोग अपने ही घरों में आने वाले पानी की जांच कर सकते है। उन्हें इसके लिए 2018 में नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया गया।