नदी और तालाब

यमुना नदी का जलविज्ञानीय विश्लेषण (भाग 1)

यमुना नदी का उद्गम उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में समुद्र तल से लगभग 6,387 मीटर की ऊँचाई पर 38° 59' उत्तरी अक्षांश एवं 78° 27' पूर्वी देशांतर पर निम्न हिमालय की मसूरी पर्वत श्रृंखला में बंदरपूँछ के पास यमुनोत्री हिमनद से होता है।

Posted by : Kesar

सिंधु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नामक विश्व की तीन प्रमुख नदी प्रणालियों का उद्गम हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं से होता है। इन नदी तंत्रों में भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं पवित्र नदी गंगा, भारतवर्ष के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग एक तिहाई भू-भाग से होकर गुजरती है। इस महान नदी की सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक गाथा इतनी पौराणिक है कि भारतीय पौराणिक कथाओं और इतिहास में नदी के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानियों और घटनाओं की भरमार है। इसके मार्ग में कई तीर्थस्थल स्थित हैं। निस्संदेह, गंगा भारत की सर्वाधिक पवित्र नदी है वास्तव में स्थानीय लोग इसे आमतौर पर गंगा माँ (या माँ गंगा) या गंगा जी (या पूजनीय गंगा) कहते हैं। भारत के लोगों का मानना है कि गंगा के पवित्र जल में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पिछले पाप धुल जाते हैं। अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय उसे गंगा जल की कुछ बूँदें दी जाएँ, तो यह उसकी आत्मा को स्वर्ग पहुँचाने के लिए पर्याप्त है। गंगा और उसकी सहायक नदियों ने उत्तर भारत में एक विशाल समतल और उपजाऊ मैदान का निर्माण किया है। प्रचुर जल संसाधनों, उपजाऊ मिट्टी और उपयुक्त जलवायु की उपलब्धता की बदौलत यह क्षेत्र अत्यधिक विकसित कृषि आधारित सभ्यता और दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है। भारत में गंगा बेसिन में शुद्ध बोया गया क्षेत्र लगभग 44 मिलियन हेक्टेयर और शुद्ध सिंचित क्षेत्र 23.41 मिलियन हेक्टेयर है। बेसिन के पूर्वी भाग को जल देने वाली सहायक नदियों के प्रवास के परिणामस्वरूप विशिष्ट बैक-स्वैम्प और मेन्डर बोल्ट एकत्रित हो गए हैं। ये तलछटी विशेषताएँ क्षेत्र की जलगतिकीय में एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं। 

गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदियों में यमुना, सोन, घाघरा, रामगंगा, दामोदर, गोमती, महानंदा, टॉस, कोसी, बूढ़ी गंडक, पुनपुन, मयूराक्षी, गंडक, अजय, चन्दन, बागमती आदि प्रमुख हैं जिनमें यमुना नदी गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी तथा भारत की पवित्र नदियों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमुना को सूर्य की पुत्री और यम (मृत्यु के देवता) की बहन बताया  गया है। महाकवि बाण ने अपने महाकाव्य कादंबरी में यमुना नदी को इसके जल का रंग काला होने के कारण इसे कालिंदी के रूप में संबोधित किया है। एक लोकप्रिय मान्यता यह है कि यमुना के पवित्र जल में स्नान करने से जनमानस में मृत्यु का भय नहीं रहता। यमुना नदी का भगवान कृष्ण के जीवन से घनिष्ठ संबंध है। यह कहा जाता है कि जब भगवान कृष्ण के जन्म पर उनके पिता वासुदेव शिशु भगवान कृष्ण के साथ यमुना नदी पार कर नदी के दूसरे किनारे पर सुरक्षित स्थान पर जा रहे थे, तो नदी में बाढ़ आ गई। किवदंती कहती है कि जिस क्षण बढ़ते पानी ने भगवान कृष्ण के चरणों को छुआ, नदी में जल का बहाव कम हो गया। इसके अतिरिक्त अपने बाल्यकाल में ही भगवान कृष्ण ने यमुना नदी में कालिया नाग का मर्दन भी किया था। यमुना नदी का उद्‌गम उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले में समुद्र तल से लगभग 6,387 मीटर की ऊँचाई पर 38° 59' उत्तरी अक्षांश एवं 78° 27' पूर्वी देशांतर पर निम्न हिमालय की मसूरी पर्वत श्रृंखला में बंदरपूँछ के पास यमुनोत्री हिमनद से होता है। अपने उद्गम स्थल यमुनोत्री से गंगा में संगम स्थल इलाहाबाद तक यमुना की कुल लंबाई 1,376 किमी है और जल निकासी क्षेत्र 366,223 वर्ग किमी है। यमुना स्वयं में एक विशाल नदी है और इसकी अनेक सहायक नदियाँ हैं। यमुना नदी के कुल  जलग्रहण क्षेत्र में यमुना नदी की सहायक नदियों का भाग 70.9% है। इसके अतिरिक्त यमुना का जलग्रहण क्षेत्र गंगा बेसिन के कुल जलग्रहण क्षेत्र का 40.2% और भारत के सम्पूर्ण भू-भाग का 10.7% है। यमुना नदी की प्रमुख सहायक नदियों में टॉस, चंबल, हिंडन, शारदा, बेतवा और केन प्रमुख हैं। अन्य लघु सहायक नदियों में ऋषि गंगा कुंटा, हनुमान गंगा, उमा, गिरि, करन, सागर और रिंद सम्मिलित हैं। इन नदियों में यमुना एवं टोंस नदियाँ हिमालय के हिमनदों से उद्गमित होती हैं। इसके अतिरिक्त यमुना बेसिन की अनेक छोटी नदियाँ जैसे चौटांग, साहिबी, दोहन, कन्तिली, बापाह, वानगंगा आदि यमुना नदी में संगम से पूर्व ही रेतीले इलाकों में सूख जाती हैं। 

यमुना नदी के उद्गम स्थल पर उत्तराखंड के चार धामों में से एक यमुनोत्री मंदिर स्थित है। प्रतिवर्ष लाखों तीर्थ यात्री यहाँ दर्शन हेतु आते हैं। यह कहा जाता है कि यमुनोत्री मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी के अंतिम  दशक में हुआ था। यमुनोत्री में गर्म जल का एक कुंड मौजूद है और इस कुंड का जल इतना गर्म है कि लोग चावल और आलू को कपड़े के थैलों में डालकर इस गर्म पानी में डुबोकर पकाते हैं। यमुना नदी तंत्र का जलग्रहण क्षेत्र उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली राज्यों के कुछ भागों से आच्छादित है। विभिन्न राज्यों में स्थित यमुना के जलग्रहण क्षेत्र को सारणी 1 में दर्शाया गया है। 

अपने स्रोत से उद्गमित होकर यमुना नदी हिमालय के निचले भाग में लगभग 200 किमी तक घाटियों की एक श्रृंखला से होकर प्रवाहित होती है और फिर सिंधु-गंगीय मैदानी क्षेत्र में तीव्र प्रवणता वाले भू-भाग में उद्गमित होती है। 200 किमी लम्बे नदी प्रवाह के इस भाग में यमुना नदी में अनेक प्रमुख सहायक नदियाँ समाहित होती हैं। इसके पश्चात यह नदी भारत के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड राज्यों की शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं से होकर प्रवाहित होती है और तत्पश्चात उत्तराखंड के डाक पत्थर नामक स्थान पर यह मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है। जहाँ नदी के जल को डाक पत्थर वैराज द्वारा नियंत्रित कर इसका उपयोग विद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। डाक पत्थर के पास यमुना नदी पर यहाँ सतलुज यमुना लिंक (SYL) नहर का निर्माण चल रहा है जो सतलुज को यमुना से जोड़ती है। इस नहर का उद्देश्य सिंधु बेसिन से हरियाणा के हिस्से का 3.5 MAF जल यमुना में स्थानांतरित करना है। डाक पत्थर से, यमुना प्रसिद्ध सिख धार्मिक स्थल पौंटा साहिब से बहते हुए, यह हरियाणा राज्य के यमुना नगर जिले में हथिनीकुंड ताजेवाला बैराज तक पहुँचती है, जहाँ नदी के जल को सिंचाई के लिए पश्चिमी यमुना नहर और पूर्वी यमुना नहर में मार्गाभिगमित किया जाता है। शुष्क ऋतु के दौरान, ताजेवाला वैराज के अनुप्रवाह में नदी में व्यावहारिक रूप से कोई जल प्रवाह नहीं होता है और ताजेवाला और दिल्ली के बीच के कई भागों में नदी सामान्यतः अपने स्रोत से उद्गमित होकर, सूखी रहती है। 

भूजल संचय और मौसमी सरिताओं से  प्राप्त जल का योगदान फिर से नदी को पुनर्जीवित करता है। यमुना नदी लगभग 224 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद पल्ला गाँव के पास दिल्ली में प्रवेश करती है। दिल्ली में स्थित वजीराबाद बैराज से यमुना नदी द्वारा दिल्ली शहर को पेयजल उपलब्ध कराया जाता है। सामान्यतः वजीराबाद बैराज के अनुप्रवाह में नदी में जल प्रवाह शुष्क मौसम में लगभग शून्य होता है क्योंकि नदी में उपलब्ध जल दिल्ली की जल मांग को पूर्ण करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। वजीराबाद बैराज से लगभग 22 किमी अनुप्रवाह में, यमुना के जल को ओखला बैराज के माध्यम से सिंचाई के लिए आगरा नहर में मार्गाभिगमित कर दिया जाता है। सामान्यतः शुष्क मौसम के दौरान बैराज के माध्यम से जल का प्रवाह शून्य होता है। ओखला बैराज के अनुप्रवाह में नदी में जो भी जल प्रवाहित होता है, वह पूर्वी दिल्ली, नोएडा और साहिबाबाद से निकलने वाले घरेलू और औद्योगिक अपशिष्ट जल के माध्यम से आता है और शाहदरा नाले के माध्यम से नदी में समाहित हो जाता है। 

ताजेवाला में, नदी में वर्ष में अधिकतम एवं न्यूनतम निस्सरण का अनुपात लगभग 40 प्राप्त होता है, जबकि यही अनुपात सिंधु का 33, गंगा का 34 और अमेज़न का 4 है। यह बड़ा अनुपात प्रवाह में व्यापक अस्थायी भिन्नता का संकेत है। गैर-मानसून अवधि के दौरान ताजेवाला में पूर्ण प्रवाह नहर प्रणालियों में परिवर्तित हो जाता है जिससे नदी सूखी रहती है। इसके पश्चात यमुना नदी आगरा, मथुरा शहर से होकर प्रवाहित होती है तथा अंततः इलाहाबाद में गंगा नदी में समाहित हो जाती है। 

यमुना नदी को विशिष्ट जलविज्ञानीय और पारिस्थितिकी स्थितियों के कारण इसे पाँच अलग-अलग स्वतंत्र खंडों में विभाजित किया जा सकता है जिन्हें सारणी-2 में प्रस्तुत किया गया है।

यमुना जल बंटवारा समझौता

यमुनोत्री में इसके उद्गम से लेकर दिल्ली में ओखला बैराज तक नदी के खंड को (ऊपरी यमुना बेसिन) कहा जाता है। इसके जल के बंटवारे के लिए 12 मई 1994 को पांच बेसिन राज्यों (हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली) के बीच एक समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किए गए थे। इसके परिणामस्वरूप भारत के जल संसाधन मंत्रालय के तहत ऊपरी यमुना नदी बोर्ड का गठन हुआ, जिसके प्राथमिक कार्य हैंः लाभार्थी राज्यों के बीच उपलब्ध प्रवाह का विनियमन और वापसी प्रवाह की निगरानी; सतही और भूजल की गुणवत्ता के संरक्षण और उन्नयन की निगरानी; बेसिन के लिए जल-मौसम संबंधी आंकड़ों को तैयार करना; जलविभाजक प्रबंधन के लिए योजनाओं का अवलोकन करना; और ओखला बैराज सहित सभी परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी और समीक्षा करना। अंतर्राज्यीय समझौते में यह भी परिकल्पना की गई है कि पर्यावरणीय उपयोगों के लिए पूरे वर्ष ताजेवाला और ओखला हेडवर्क्स के अनुप्रवाह पर यमुना नदी में न्यूनतम 10 क्यूमेक का प्रवाह बनाए रखा जाएगा। यह भी आंकलन किया गया है कि बाढ़ के कारण 680 एमसीएम की मात्रा उपयोग योग्य नहीं है। लाभार्थी राज्यों के बीच उपलब्ध यमुनोत्री प्रवाह का आवंटन ऊपरी यमुना नदी बोर्ड द्वारा विनियमित किया जाता है। जिस वर्ष सतही जल की उपलब्धता निर्धारित मात्रा से अधिक होगी, अधिशेष उपलब्धता को राज्यों के बीच उनके आबंटन के अनुपात में वितरित किया जाएगा। हालांकि, जिस वर्ष उपलब्धता निर्धारित मात्रा से कम होगी, पहले दिल्ली के पेयजल आबंटन को पूरा किया जाएगा और शेष जल को हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बीच उनके आबंटन के अनुपात में वितरित किया जाएगा।

यमुना नदी में बाढ़ के पूर्वानुमान के उद्देश्य से पांवटा साहिब में बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली स्थापित की गई है। जहां टोंस, पवार और गिरी सहायक नदियां मिलती है। पांवटा साहिब के बाद ताजेवाला में बाढ़ पूर्वानुमान प्रणाली स्थापित की गई है। ताजेवाला से दिल्ली तक जल पहुंचने में लगभग 60 घंटे लगते हैं। अत: दिल्ली में बाढ़ के पुर्वानुमान   के लिए कम से कम दो दिन पहले चेतावनी जारी की जा सकती है। यमुना नदी के उपयोग योग्य प्रवाह का राज्यवार आवंटन सारणी 3 में दर्शाया गया है।

यमुना बेसिन की जलवायु

हिमालय ऊपरी यमुना 11,983 जलग्रहण क्षेत्र के उत्तरी भाग में जलवायु पर विशिष्ट प्रभाव डालता है। इस क्षेत्र में शीत ऋतु में तापमान बहुत कम तथा ग्रीष्म ऋतु में मध्यम होता है। जिससे यहाँ शीत ऋतु बहुत अधिक ठंडी होती हैं। यमुना नदी के इस भू-भाग में माध्य वार्षिक वर्षा 1,500 मिमी से 400 मिमी के मध्य होती है। यमुना नदी का सम्पूर्ण जलग्रहण क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम मानसून के प्रभाव में आता है और वर्षा का एक बड़ा भाग जून से सितंबर माह के मध्य प्राप्त होता है। सर्दियों में दिसंबर और फरवरी के मध्य वर्षा बहुत कम होती है। यमुना बेसिन मैदानी क्षेत्रों में तापमान अपेक्षाकृत मध्यम होता है तथा गर्मियों

अपेक्षाकृत मध्यम होता है तथा गर्मियों में तापमान सामान्यतः 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है।

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