मरुस्थलों अथवा रेतीले प्रदेशों में पवन द्वारा बालू या रेत के निक्षेप से निर्मित टीला या टिब्बा। इसकी आकृति बाल चंद्र के समान होती है। इसकी चौड़ाई लम्बाई की तुलना में 10 से 12 गुना तक अधिक पायी जाती है। ऊँचाई में पर्याप्त अंतर मिलता है जो कुछ मीटर से लेकर 100 मीटर से भी अधिक हो सकती है। सामान्य बालुका स्तूप 15 या 20 मीटर से भी अधिक लम्बे होते हैं। इसका पवनाभिमुखी (wind ward) ढाल मंद तथा पवनविमुखी (leeward) ढाल तीव्र होता है। मरुस्थलों तथा रेतीले क्षेत्रों में पवन की दिशा में कोई अवरोध (झाड़ी, वृक्ष, शिलाखंड, दीवार आदि) उपस्थित होने पर रेत का निक्षेप होने लगता है जो धीरे-धीरे बालुका स्तूप का रूप धारण कर लेता है। बालुका स्तूप प्रायः समूह में मिलते हैं जिन्हें स्तूप समूह (dune colony) या स्तूप ऋंखला (dune chain) कहते हैं।
बालुका स्तूप प्रायः अस्थाई तथा परिवर्तनशील होते हैं और सामान्यतः आगे की ओर खिसकते जाते हैं। आकार तथा स्थिति के अनुसार बालुका स्तूप मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- अनुदैर्ध्य, अनुप्रस्थ तथा परवालयिक स्तूप। सीफ स्तूप (seif dune) और बरखान बालुका स्तूप के ही विशिष्ट रूप हैं।
साधारणतः मरु प्रदेशों में अथवा झीलों तथा महासागरों के निम्नस्थ तटों पर पवन द्वारा वाहित बालू की पहाड़ी अथवा कटक (ridge)।
- वायु द्वारा संचित बालू या अन्य पदार्थ का ढेर जिसका बाह्य आकार पहाड़ी या कटक जैसा होता है।