एक्विफ़र यानी धरती के नीचे की वह संरचना जिसमें पानी इकट्ठा होता है। स्रोत: इंडिया वाटर पोर्टल
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शब्दकोश: क्या होता है जलभृत (एक्विफ़र)

इंडिया वाटर पोर्टल की शब्दकोश सीरीज़ में जानें ज़मीन के नीचे मौजूद पानी यानी जलभृत के बारे में।

Author : इंडिया वाटर पोर्टल

धरती के नीचे पानी कहां होता है? क्या यह कभी खत्म नहीं होता? ये कहां से आता है? क्या हर तरह की ज़मीन में पानी हो सकता है? इन सब सवालों के जवाब हमें जिस एक शब्द तक ले जाते हैं वह है एक्विफ़र या जलभृत। 

परिभाषा :

एक्विफ़र या जलभृत धरती की सतह के नीचे मौजूद वह प्राकृतिक परत होती है, जिसमें पानी चट्टानों, मिट्टी, बालू या कंकड़ों के बीच के छोटे-छोटे छिद्रों और दरारों में जमा रहता है। जब बारिश होती है, तो पानी जमीन में रिसकर इन परतों तक पहुंच जाता है और वहीं जमा हो जाता है। इसे जल का भूमिगत भंडार कहा जा सकता है। यही पानी बाद में कुओं, हैंडपंपों, ट्यूबवेल के ज़रिये निकाला जाता है या प्राकृतिक झरनों के रूप में ऊपर आता है। 

जलभृत के प्रकार :

1. अनसंवृत जलभृत (Unconfined Aquifer) : अनसंवृत या असीमित जलभृत मिट्टी या रेतीली भूमि के ठीक नीचे धरती की सबसे ऊपरी परत में पाए जाते हैं। इनका जल स्तर वर्षा और वाष्पीकरण पर निर्भर करता है। बरसात के मौसम में यह पानी से भर जाते हैं और गर्मियों में इनका स्तर नीचे चला जाता है। ये जलभृत सबसे अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि इनमें ज़मीन की सतह पर होने वाला प्रदूषण जल्दी पहुंचता है। गांवों में हैंडपंप और उथले कुएं अकसर इन्‍ही जलभृतों से पानी खींचते हैं।

2. संवृत जलभृत (Confined Aquifer) : संवृत या सीमित जलभृत धरती में चिकनी मिट्टी और कठोर चट्टानों की दो अभेद्य परतों के बीच फंसे रहते हैं। ये परतें नीचे की ओर पानी के बहाव को रोक देती हैं, जिससे पानी के एकत्र होने से यह जलभृत बन जाते हैं। पानी को रास्‍ता न मिलने के कारण उसपर दबाव बन जाता है। इसीलिए जब इस परत में बोरिंग की जाती है, तो कई बार पानी अपने आप ऊपर आ जाता है। इसे बोलचाल की भाषा में पातालतोड़ कूआं यानी आर्टीज़ियन वेल (Artesian Well) कहा जाता है। ऐसे जलभृतों में पानी साफ और स्थिर रहता है, लेकिन इन तक पहुंचने के लिए गहरी खुदाई करनी पड़ती है।

3. अर्ध-संवृत जलभृत (Semi-confined Aquifer) : यह परत न तो अनसंवृत जलभृत की असीमित (Unconfined) होती है और न ही संवृत जलभृत की तरह पूरी तरह सीमाबद्ध (Confined) होती है। इसके ऊपर मिट्टी या चट्टान की एक परत होती है, जो पानी को थोड़ा बहुत रोकती है,पर पूरी तरह नहीं। इसलिए, बारिश या ऊपर के स्रोतों से थोड़ा पानी धीरे-धीरे इसमें रिस कर आ सकता है और इस जलभृत का कुछ पानी धीरे-धीरे नीचे या किनारों से बाहर भी जा सकता है। इस तरह यह जलभृत आधे खुले और आधे बंद सिस्टम की तरह काम करते हैं। इस वजह से इसमें पानी का थोड़ा दबाव भी रहता है, लेकिन वह संवृत जलभृत जितना नहीं होता। यह जलभृत ऐसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं, जहां मिट्टी की परतें असमान होती हैं, जैसे कंकड़ वाली मिट्टी और चिकनी मिट्टी के मिश्रण वाले इलाकों में।

इसके अलावा जलभृतों के प्रकार के तहत कुछ वैज्ञानिक स्थानीय जलभृत (Local aquifer) और क्षेत्रीय जलभृत (Regional aquifer) का भी उल्लेख करते हैं, जिन्‍हें आकार और जल-भंडारण क्षमता के आधार पर अलग प्रकार का माना जाता है। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है-

स्थानीय जलभृत (Local Aquifer) :स्थानीय जलभृत आकार में छोटे होते हैं और किसी सीमित क्षेत्र जैसे गांव, कस्बे या छोटी घाटी के नीचे पाए जाते हैं। इनमें पानी की मात्रा सीमित होती है और यह आमतौर पर वर्षा या आसपास के छोटे जल स्रोतों (तालाब, नालों, खेतों से रिसाव आदि) से ही भरते हैं। इनके जल स्तर पर मौसम का असर काफी जल्दी दिखाई देता है। यह बरसात में भर जाते हैं और गर्मी में जल्दी सूख जाते हैं। ऐसे जलभृत ग्रामीण इलाकों में कुओं और हैंडपंपों के लिए सबसे आम स्रोत होते हैं।

क्षेत्रीय जलभृत (Regional Aquifer) : क्षेत्रीय जलभृत आकार में बहुत बड़े होते हैं और इनका दायरा कई जिलों या राज्यों तक फैला हुआ हो सकता है। ये भूगर्भ में गहराई तक फैली हुई चट्टानों या रेतीली परतों के बीच पाए जाते हैं और इनमें विशाल मात्रा में पानी संग्रहीत रहता है। इनका जल स्तर धीरे-धीरे बदलता है, क्योंकि इनका पुनर्भरण बहुत गहरे स्तर पर होता है। भारत में गंगा–ब्रह्मपुत्र मैदान, पंजाब-हरियाणा के मैदान और गोदावरी बेसिन में क्षेत्रीय जलभृत पास जाते हैं। यह विशाल जलभृत बड़े शहरों और सिंचाई परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक जल-स्रोत का काम करते हैं।

जलभृत की संरचना (परतें)

जलभृत कई परतों से बने होते हैं। एक सामान्य जलभृत का चित्र नीचे से ऊपर तक कुछ इस तरह दिखाया जा सकता है —

  1. अभेद्य परत (Impermeable Layer) : यह कठोर चट्टानों या चिकनी मिट्टी की परत होती है, जो पानी को नीचे जाने से रोकती है।

  2. जलभृत परत (Aquifer Layer) : इसके ऊपर रेत, बजरी या छिद्रदार चट्टानों की परत होती है, जिसमें भूमिगत पानी जमा रहता है। यही असली जलभृत होता है।

  3. मिट्टी या सतही परत (Top Soil Layer) : यह भूमि की ऊपरी परत होती है, जहां से वर्षा का पानी रिसकर धीरे-धीरे नीचे जाकर जलभृत को भरता है।

  4. जल स्तर (Water Table) : यह वह ऊंचाई है जहां तक जमीन के नीचे पानी भरा रहता है। बरसात में यह ऊपर आता है और गर्मियों में नीचे चला जाता है।

धरती की सतह के नीचे इस तरह पाए जाते हैं विभिन्‍न प्रकार के जलभृत यानी एक्विफ़र।

भारत में जलभृतों की स्थिति:

भारत दुनिया में भूमिगत जल पर सबसे अधिक निर्भर देशों में से एक है। देश के लगभग 65–70% भूभाग में किसी न किसी रूप में जलभृत मौजूद हैं। ये जलभृत जलवायु, भूगर्भीय संरचना और मिट्टी के प्रकार के अनुसार अलग-अलग रूपों में पाए जाते हैं।

1. गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान:
उत्तर और पूर्व भारत का यह विशाल मैदान देश का सबसे बड़ा जलभृत क्षेत्र है। यहां की मिट्टी ढीली और रेतीली होने के कारण पानी आसानी से नीचे रिस जाता है, जिससे यहां गहरे जलभृत बनाते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और असम में 200–300 मीटर गहराई तक जलभृत पाए जाते हैं।

2. दक्कन पठार (दक्षिण भारत) :
यह क्षेत्र बेसाल्ट चट्टानों से बना है। यहां जलभृत बहुत गहरे नहीं होते, बल्कि ज़मीन में मौजूद दरारों और छिद्रों में सीमित मात्रा में पानी जमा होता है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के हिस्सों में यही प्रमुख स्रोत हैं। इन इलाकों में भूमिगत जल का पुनर्भरण (recharge) कठिन होता है, इसलिए यहां एक्‍वीफर की रीचार्जिंग के लिए वर्षा जल संचय यानी रेनवॉटर हार्वेस्टिंग को विशेष महत्व दिया जाता है।

3. राजस्थान और गुजरात के शुष्क क्षेत्र :
यहां रेत और कंकड़ वाली मिट्टी की परतों के बीच उथले जलभृत पाए जाते हैं। हालांकि, अत्यधिक दोहन और कम वर्षा के कारण कई जगहों पर यह जलभृत अब सूख चुके हैं। थार के रेगिस्‍तान में बहुत सीमित संख्‍या में मीठे पानी के जलभृत बचे हैं। तटीय गुजरात में कई स्थानों पर समुद्र का खारा पानी इनके अंदर प्रवेश करने लगा है।

4. तटीय क्षेत्र :
भारत के समुद्र तटीय राज्‍यों जैसे ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में रेतीली परतों के नीचे मीठे पानी के जलभृत मौजूद हैं। मगर समुद्री जल के बढ़ते स्तर से इन पर खारा पानी रिसने यानी सॉल्टवॉटर इंट्रूज़न (Saltwater intrusion) का खतरा बढ़ गया है। भारत के कुल सिंचित क्षेत्र का लगभग 60% और ग्रामीण पेयजल का लगभग 85% हिस्सा जलभृतों से ही आता है। यही कारण है कि जलभृतों का अंधाधुंध दोहन भविष्य में गंभीर जल संकट पैदा कर रहा है। जलभृतों का संरक्षण, कृत्रिम पुनर्भरण और समझदारी भरे इस्‍तेमाल के ज़रिये किया जा सकता है।

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