जस्ता अथवा यशद (Zinc) एक तत्व है, जिसमें विशेष धातु गुण होते हैं। यह आवर्तसारणी के द्वितीय अंतरवर्ती समूह (transition group) में कैडमियम एवं पारद के साथ स्थित है। यशद के पाँच स्थिर समस्थानिक (isotopes) प्राप्त हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्याएँ 64, 66, 67, 68 तथा 70 हैं। कृत्रिम साधनों द्वारा प्राप्त रेडियधर्मी समस्थानिकों की द्रव्यमान संख्याएँ 65, 69, 71 एवं 72 हैं। अनेक भारतीय पुरातन ग्रंथों में यशद का वर्णन मिलता है। यशोधराकृत ''रसप्रकाशसुधाकर'' में कैलामाइन (calamine) से यशद बनाने की विधि बताई गई हैं। ''रुद्रयामलतंत्र'' के अंतर्गत ''धातु क्रिया'' ग्रंथ में यशद एवं शुल्क (ताँबा) के योग से पीतल बनाने का संकेत है। जस्ते के अनेक पर्याय जरासीत, जासत्व, राजत, खर्पर, यशदयाक, चर्मक, रसक, यशद, रूप्यभ्राता आदि पुरातन ग्रंथों में प्रयुक्त हुए हैं।
16वीं शताब्दी के अंत में यह धातु यूरोपीय वैज्ञानिकों को भारत से प्राप्त हुई। इसका वर्णन एंद्रेज लिवैवियस ने किया है। ज़िंक शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग पेरासेलास ने ज़िंकन रूप में किया था। 18वीं शताब्दी में जस्ता तैयार करने के कारखाने इंग्लैंड में बने और इसके पश्चात् यूरोप के अन्य देशों में भी यह तत्व बनाया जाने लगा।
उपस्थिति एवं निर्माणविधि- जस्ता मुक्त अवस्था में नहीं प्राप्त होता। यह सल्फाइड के रूप में ही मिलता है, जिसे ज़िंक ब्लेंड अथवा स्फेलराइट (sphalerite) कहते हैं। इसके मुख्य स्रोत अमरीका, मेक्सिको, कैनाडा, जर्मनी, पोलैंड, बेल्जियम, इंग्लैंड, चेकोस्लोवाकिया, रूमानिया, स्पेन तथा आस्ट्रेलिया हैं। भारत के जस्ते के खनिज के साथ सीस और अल्प चाँदी के भी खनिज मिले रहते हैं। सीस के निर्माण में उपजात के रूप में जस्ता प्राप्त होता है।
जस्ता धातु को ऑक्साइड के अवकरण द्वारा तैयार करते हैं। अयस्क को सांद्रित करके भर्जन (roasting) द्वारा ऑक्साइड में परिणत करते हैं। तत्पश्चात् उसे अधिक कार्बन के साथ मिलाकर 1,2000 सें. पर गरम करते हैं।
ज़िंक ऑक्साइड + कार्बन ज़िंक + कार्बन मोनॉक्साइड
ZnO + C Zn + CO
इस क्रिया से जस्ता वाष्प बनकर भट्ठे के ठंडे स्थानों पर जम जाता है। प्राप्त जस्ते को आसवन द्वारा शुद्ध करते हैं। विद्युतरसायनिक विधि द्वारा अति शुद्ध जस्ता बनता है। इस क्रिया में ज़िंक ऑक्साइड को सल्फ्यूरिक अम्ल में घुलाते हैं। तत्पश्चात् विद्युत प्रवाह द्वारा ऐल्यूमिनियम ऋणाग्र पर जस्ते की परत जमाई जाती है। इस प्रकार 99.95 प्रति शत शुद्ध जस्ता खुरचकर निकलता है, जिसके द्रवीकरण द्वारा बड़े टुकड़े बनते है। भारत में शुद्ध जस्ता तैयार करने के कारखाने खोलने का प्रयत्न हो रहा है।
विशुद्ध जस्ते के गुणधर्म जस्ता नील-श्वेत रंग की धातु है। इसके भौतिक गुण बनाने की रीति पर निर्भर करते हैं, यथा यह भंगुर तथा तन्य (ductile) दोनों रूपों में बनाया जा सकता है। जस्ते के कुछ विशेष गुणधर्म निम्नांकित हैं :
संकेत | य (Zn) |
परमाणु संख्या | 30 |
परमाणु भार | 65.307 |
गलनांक | 419.5° सें. |
क्वथनांक | 907.6° सें. |
घनत्व (20° सें. पर) | 7.14 ग्राम प्रति घन सेंमी. |
परमाणु व्यास | 2.7 एंग्सट्राम |
विद्युत प्रतिरोधकता | 5.92 माइक्रोओह्म सेंमी. |
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