वायुमंडल में कार्बन मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन, ओजोन, पार्टिकुलेट मैटर के प्रदूषण का बहुत भयानक रूप से बढ़ना, बहुत तरह की बीमारियों को जन्म देता है। लंग्स कैंसर जैसी असाध्य बीमारियां बहुत तेजी से बढ़ती जा रही हैं। सीवरेज की गंदगी स्वच्छ जल स्रोतों में छोड़ने की बात हो या औद्योगिक इकाइयों से निकला अम्लीय कचरा नदियों में बहाने की, वायुमंडल में घुलता जहरीले प्रदूषण तथा पराली जैसी समस्याएं हमें परेशान तो करती हैं लेकिन हम उसके लिए बड़ा कदम नहीं उठा रहे हैं। देश के ज्यादातर शहरों में ग्रीन एरिया घटकर के 1-2 पर्सेंट रह चुका है। फिर भी हमारे पास कोशिश के नाम पर कुछ भी नहीं है। हमारे चारों ओर की भूमि, जलवायु और इसके भीतर तथा ऊपर के सजीव- निर्जीव सब पदार्थ मिलकर जीवमण्डल यानी बायोस्फियर हैं। इनका ये पारस्परिक सम्बन्ध ही पर्यावरण का संतुलन है।
प्रकृति ने हमें अनगिनत अमूल्य उपहार दिए हैं। उसने हमारी हर जरूरत को ध्यान में रखते हुए पूरे ब्रह्मांड को संतुलित बनाया है। दुनिया के सभी पादप, जीव-जन्तु इत्यादि एक दूसरे से बंधे हुए हैं। पर्यावरण प्रकृति का वह घटक है जो मानव जीवन से सम्बन्धित है और उसे प्रभावित करता है। वायु, पानी, मिट्टी, ध्वनि, पेड़-पौधे, वनस्पति, जीव-जन्तु, सूर्य आदि हमारे आसपास चारों ओर उपस्थित रहकर जीवन के लिए एक परिपूर्ण व्यवस्था बनाते हैं जिसे हम पर्यावरण कहते हैं। जर्मन वैज्ञानिक अरनेस्ट हैकन के अनुसार पर्यावरण किसी भी जीव-जन्तु में समस्त कार्बनिक व अकार्बनिक वातावरण के बीच का पारस्परिक सम्बन्ध है। वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार हमारे चारों ओर की भूमि, जलवायु और इसके भीतर तथा ऊपर के सजीव-निर्जीव सब पदार्थ मिलकर जीवमण्डल यानी बायोस्फियर हैं। इनका ये पारस्परिक सम्बन्ध ही पर्यावरण का संतुलन है। कोई भी जीव सर्वथा एकल जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है। किसी भी स्थान पर निवास करने वाले जीव की दूसरे जीव के साथ सहवासिता अनिवार्य है और इसका मानव जीवन में विशेष महत्व तथा प्रभाव है। प्रकृति एक शरीर की तरह है। सभी जीव-जन्तु, वृक्ष-वनस्पति, नदी-पहाड़ आदि उसके अंग-प्रत्यंग हैं। इनके परस्पर सहयोग से यह वृहद् शरीर स्वस्थ और सन्तुलित रहता है। जिस प्रकार मानव शरीर के किसी एक अंग में खराबी आ जाने से पूरे शरीर के कार्य में बाधा आ जाती है, उसी प्रकार प्रकृति के घटकों से छेड़छाड़ करने से प्रकृति की व्यवस्था भी बिगड़ जाती है। मानव संस्कृति और मानव जीवन के विकास उन्नयन में सबसे महत्वपूर्ण योगदान पर्यावरण का ही रहता है किन्तु आज मानव इस अटूट तथा महत्वपूर्ण बंधन को जानते हुए भी नज़रंदाज कर रहा है।
मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अंसतुलित दोहन एवं भौतिक संसाधनों के प्रति बढ़ रहे अत्यधिक आकर्षण ने लगभग पूरे विश्व को पर्यावरणीय संकट के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है। वर्तमान समय में पर्यावरण एक बड़ा मुद्दा है और यह समस्या सिर्फ भारत की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, कचरा इत्यादि विश्व के सामने चुनौती बन गए हैं। वैसे तो प्रकृति का दोहन पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा है पर इतिहास में सशक्त लोगों द्वारा पर्यावरण के विषय में चिंता करने का साक्ष्य मिलता है, उदाहरणस्वरूप अशोक स्तंभ के शिलालेखों में पर्यावरण, वन और वन्य जीवन के सम्मान और संरक्षण का ज़िक्र मिलता है। याज्ञवल्क्य स्मृति में जिसकी रचना 5 वीं शताब्दी ई. से पहले हुई थी, पेड़ों के काटने और ऐसे कृत्यों के लिए निर्धारित सजा देने का सुझाव दिया गया था। मौर्य काल में कौटिल्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र में वन प्रशासन की आवश्यकता पर बल दिया गया था। ऐसे अनेक उदाहरणों के बावजूद लोगों ने इस समस्या पर गंभीर रूप से ध्यान नहीं दिया। जब बीसवीं सदी में इस समस्या ने विकराल रूप लेना शुरू कर दिया, तब लोगों ने इसकी गंभीरता को समझा। इस सोच का कारण विकास की गति में तेजी थी। कुछ लोगों का मानना है कि आर्थिक विकास पर्यावरण की समस्या की जड़ है। इसके विपरीत कई विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि आर्थिक विकास तरक्की की सीढ़ी है। जिस रफ़्तार से जनसँख्या में वृद्धि हो रही है. संभवतः उससे अधिक रफ्तार से पर्यावरण दूषित हो रहा है। आज के दौर में पर्यावरण की समस्या, जंगल तथा खेती की जमीन का दोहन, संसाधनों की कमी (पानी, खनिज, वन, रेत, पत्थर आदि), सार्वजनिक स्वास्थ्य, जैव विविधता का क्षय इत्यादि गंभीर समस्याएं हैं। पर्यावरण की एक और गंभीर समस्या अमीर तथा गरीब देशों के बीच की खाई है। अमीर देश खुद तो प्रकृति से अपनी मन-मर्जी से खिलवाड़ करते हैं और पर्यावरण संतुलन की नसीहत गरीब देशों को देते हैं, मानों पर्यावरण की समस्या इन गरीब देशों के कारण ही हुई हो। सच तो यह है कि अमीर देश अपनी ताकत की बदौलत दुनिया के हर मंच पर खुद को बेदाग रखने का दमखम रखते हैं। पर्यावरण के असंतुलित दोहन के परिणामस्वरूप वायु प्रदूषण हो रहा है। ताप बिजलीघर, मोटर वाहन, कल-कारखाने, डीजल लोकोमोटिव, वायुयान या रॉकेटों का धुआं, यहाँ तक कि लोगों द्वारा बीड़ी सिगरेट के सेवन इत्यादि से वायु की शुद्धता नष्ट हो रही है।
बाढ़ पर्यावरण की एक महत्वपूर्ण समस्या है। इसके कारण मिट्टी का कटाव, उपजाऊ जमीन का नाश और ठोस कचरे का प्रवास हो जाता है। पृथ्वी का लगभग 71 प्रतिशत भाग पानी से आच्छादित है किन्तु पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं के उपयोग हेतु अलवणीय अथवा स्वच्छ जल कुल जल का केवल लगभग 3 प्रतिशत ही है। जल के स्रोत कम हैं तथा जनसंख्या वृद्धि के कारण उसकी मांग बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में जल संरक्षण की महत्ता बहुत ही बढ़ जाती है। संयुक्त राष्ट्र ने हाल के वर्षों में चेतावनी देते हुए कहा कि यदि पानी की बर्बादी नहीं रोकी गई तो जल्दी ही विश्व गंभीर जल संकट से गुजरेगा। इसी तरह जल प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या बन चुका है। कारखानों से निकलने वाला गंदा तथा रासायनिक कचरा पानी को दूषित कर रहा है। रासायनिक खाद व कीटनाशकों के अधिकाधिक प्रयोग के कारण भूमिगत जल भी विषाक्त हो रहा है। नहाने, कपड़े तथा बर्तन धोने के साबुन व डिटर्जेंट से भी जल दूषित होता है। आजकल तो शहरों से निकलने वाला गन्दा पानी नदियों को गन्दा कर रहा है। दुनिया की आबादी जिस तरह से बढ़ रही है, ऐसी स्थिति में सबको स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना विशेषकर विकासशील देशों के लिए एक चुनौती है। ऐसे में जल को दूषित होने से तो बचाना ही होगा साथ ही साथ उसकी बर्बादी को रोकने तथा उसके संरक्षण पर भी विशेष बल देना होगा।
आजकल आधुनिक, अदूरदर्शी तथा अनियंत्रित भौतिकवादी मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप मृदा भी दूषित हो रही है। इसके प्रमुख कारणों में डिस्पोजेबल प्लास्टिक और पतली पॉलिथीन, रासायनिक खाद व कीटनाशक, कारखानों व शहरों से निकलने वाला कचरा तथा गंदा दूषित पानी, परमाणु रिएक्टरों की राख इत्यादि हैं। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अपनी मृदा को हम दूषित होने से बचाएं चूँकि इसका प्रभाव सीधे तौर पर खेती पर पड़ेगा परिणामस्वरूप उपज में कमी अर्थात खाद्यान्न में कमी होगी, इसका पृथ्वी के जीवन पर क्या असर पड़ेगा, यह वर्णन करने की आवश्यकता नहीं है तथा इसका अंदाजा हम खुद लगा सकते हैं।
समय की मांग है कि बंदूक, तोप, मिसाइल इत्यादि जैसे विध्वंसक हथियार खरीदने से कहीं अच्छा है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए प्रयत्न किये जाएं। जहाँ एक बंदूक की गोली एक परिवार की खुशियाँ छीन लेती है, वहीं एक पेड़ हमारी कई पीढ़ियों की सेवा करने की ताकत रखता है। एक परिपक्व वृक्ष एक वर्ष में लगभग 20 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करके हमें 14 किलोग्राम ऑक्सीजन देता है। मनुष्य को अपने जीवनकाल में जितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है, यदि उसे खरीदनी पड़े तो उसकी कीमत तकरीबन पांच करोड़ रूपए हो जाएगी। इतना ही नहीं, पेड़ हमें फल-फूल, दवाइयाँ, ईंधन और न जाने कितने अनगिनत अनमोल उपहार निःशुल्क देते हैं। आजकल वृक्षों को प्रगति की राह में रोड़ा समझकर उन्हें बेरहमी से काट दिया जाता है। आजकल तो ऐसे तकनीकी उपकरण भी उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से वृक्षों को एक स्थान से स्थानांतरित करके दूसरे स्थान में लगाया जा सकता है। हमें वृक्षों का सम्मान करना चाहिए. उनकी रक्षा करनी चाहिए। हमें अपने जीवन काल में न सिर्फ अपने लिए बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए अधिक से अधिक वृक्ष लगाने चाहिए।
मौजूदा औद्योगिक क्रांति, आबादी की बढ़ोत्तरी, लाउड स्पीकर आदि के कारण अनियंत्रित शोर उत्पन्न हो रहा है। इस कारण अनेक बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। शोर के कारण श्वसन गति, रक्तचाप, नाड़ी गति में उतार-चढ़ाव, पाचन तंत्र की गतिशीलता में कमी आदि दुष्प्रभाव भी देखे गए हैं। अनिद्रा जैसे विकार का कारण शोर ही है। इस कारण पाचन विकार, सिरदर्द, झुंझलाहट आदि होना सामान्य लक्षण हैं। एक अनुसंधान के अनुसार ध्वनि प्रदूषण के कारण मुर्गियों ने अंडे देना कम कर दिया और मवेशियों के दूध में कमी आ गई है। इसी कारण ध्वनि प्रदूषण को धीमा जहर भी कहा जाता है।
जहां सारी की सारी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग जैसी जटिल समस्या से लड़ने के उपाय ढूंढ रही है, वहीं हम अपनी दिनचर्या में थोड़ा-थोड़ा बदलाव लाकर पर्यावरण को बचाने में योगदान दे सकते हैं. मिसाल के तौर पर विद्युत उपकरणों का समझदारी से उपयोग करके करीब 10-40 प्रतिशत तक बिजली की खपत बचा सकते हैं। आवश्यकता है अपनी सोच बदलने की व पर्यावरण से प्यार करने की क्योंकि दृढ निश्वय से किसी भी मुश्किल हालात का हल निकल सकता है। इसके लिए हमें कई प्रकार से प्रयत्न करने पड़ेंगे। जितने अधिक वृक्ष लगाये जाएँ, हमारे पर्यावरण के लिए उतना ही अच्छा है। प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग न करें। बाजार जाते समय अपने साथ कपड़े या जूट की थैली रखें। कचरा न फैलाएं। गंदगी न फैलाएं। पानी की बर्बादी न करें। एक जिम्मेदार नागरिक की तरह अपनी सोच के साथ साथ अपनी करनी पर भी अमल करें। पर्यावरण के उत्थान हेतु राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो भी प्रयास चल रहे हों, हम सब की इसमें भागीदारी होनी चाहिए। हमें व्यक्तिगत स्तर पर अपने पर्यावरण को न सिर्फ स्वयं के लिए अपितु संपूर्ण जन-कल्याण हेतु बचने का प्रयास करना चाहिए। इन प्रयासों को बहुत ही बड़े तथा जटिल होने की आवश्यकता नहीं है। साधारण स्तर पर अपनी रोजमर्रा की ज़िन्दगी तथा व्यवहार में थोड़ा सा परिवर्तन लाकर बहुत कुछ किया जा सकता है।
जनसंख्या घनत्व भी पर्यावरण की गुणवत्ता पर असर डालता है। यह तो सीधी सी बात है कि यदि किसी स्थान पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होगा तो वहां लोगों द्वारा फैलाई गयी गंदगी भी अधिक होगी। पर्यावरण पर भी अधिक बोझ होगा। अधिक जनसंख्या अर्थात नई-नई इमारतों का निर्माण। अधिक इमारतों का अर्थ कंक्रीट का जंगल। इन इमारतों के कारण उस इलाके के तापमान में वृद्धि होगी। इसके समाधान के लिए आजकल कई देशों में पर्यावरण के अनुकूल इमारतों का निर्माण हो रहा है। इन इमारतों की विशेषता यह है कि ये गर्मी में ठंडी तथा सर्दी में गर्म रहती हैं। आजकल एयर कंडीशनर का प्रचलन बहुत बढ़ गया है। पर इसके प्रभाव से भले ही कुछ कमरे ठन्डे हो जाते हों पर इससे निकलने वाली ऊष्मा आस-पास के इलाकों को गर्म करती रहती है। अतः हर वक्त एयर कंडीशनर चलाने की बजाय हल्के कपड़े पहनें और पंखे का इस्तेमाल करें। पानी का प्रयोग विवेक से करें विशेषकर पीने के पानी का उतना ही इस्तेमाल करें, जितना आवश्यक हो तथा फेंकना न पड़े। अपने फ्रिज का दरवाजा देर तक खुला न रखें, इससे बिजली की बचत होती है। रोजमर्रा की जरूरत के हिसाब से ही पानी का उपयोग करें ताकि पानी की बर्बाद न हो।
ईंधन बचाने के लिए अपने वाहन के इंजन को दुरुस्त रखें साथ ही साथ उसके पहियों में हवा का दबाव उचित मात्रा में रखें। बिजली अथवा बैटरी से चलने वाले वाहन पर्यावरण की स्वच्छता की दृष्टि से श्रेष्ठ हैं, हो सके तो इसका प्रयोग करें। कार पूल करें। सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करें। कम दूरी की यात्रा करनी हो तो साइकिल का प्रयोग करें अथवा पैदल चलें। इसके लिए स्वयं भी जागरूक रहें और अन्य लोगों को भी जागरूक करें।
हम सबको पर्यावरण का मित्र बनना होगा। लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूकता, ज्ञान, प्रतिबद्धता, पर्यावरण की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता से अवगत कराना होगा। इसके लिए लोगों को जल और स्वच्छता, ऊर्जा, जैव-विविधता और हरियाली, कचरा प्रबंधन तथा सांस्कृतिक विरासत जैसे विषयों के प्रति सजग बनाना आवश्यक है। ऐसे में वैज्ञानिक समुदाय को महत्वपूर्ण पहल करनी चाहिए। हमें अपनी नई पीढ़ी को भी इसके प्रति सजग बनाने के लिए स्कूली बच्चों को लक्ष्य बनाना होगा। इसके लिए अध्यापकों को विशेष भूमिका निभानी होगी। इस प्रकार की नई चुनौती का सामना करते समय हमें पूरी हिम्मत, विश्वास तथा तल्लीनता के साथ आगे बढ़ना होगा ताकि हम अपने तथा अपने आस-पास के पर्यावरण के साथ पूर्ण रूप से न्याय कर सकें। इसमें न सिर्फ हमारी भागीदारी आवश्यक है अपितु हम सबका योगदान सम्मिलित रूप से आवश्यक है। ऐसे अनेक उपाय हैं जिनपर अमल करके हम अपने पर्यावरण को असंतुलित होने से बचा सकते हैं। यह हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि हम उसकी रक्षा करें, न सिर्फ अपने अस्तित्व के लिए अपितु सम्पूर्ण पृथ्वी के प्राणियों के लिए, आज के लिए तथा भविष्य के लिए। अतः सोचिए मत और अभी से इस नेक अभियान में सम्मिलित हो जाइए।