एक सामाजिक व्यवस्था जिसके अंतर्गत किसी समाज में विभिन्न संस्थाएं अपने-अपने पूर्वनिश्चित अथवा मान्य उद्देश्यों के अनुसार कार्यों में संलग्न होती हैं। इसके अंतर्गत उन समस्त प्रक्रियाओं को सम्मिलित किया जा सकता है जो सामूहिक जीवन का निर्माण करती हैं और उसे संकट तथा संघर्ष की स्थितियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करती हैं। सामाजिक संगठनों का समाज के सदस्यों पर नियंत्रण होता है जिसे वह आचरणों, रीति-रिवाजों, परंपराओं, धार्मिक अनुष्ठानों, संस्थाओं आदि के माध्यम से लागू करता है। परस्पर संबंद्ध सामाजिक संरचना, सदस्यों का एकमत (मतैक्य) होना, कार्यात्मक संगठन तथा सामाजिक नियंत्रण इसके आवश्यक तत्व हैं, जिनमें शिथिलता आने पर समाज विघटित होने लगता है।
1. किसी संस्कृति अथवा समाज का गठन।
2. मानव द्वारा निर्मित वह संगठन जिसेक अंतर्गत उनके दैनिक जीवन के समस्त सांस्कृतिक एवं आर्थिक कार्यों में परस्पर संबंध स्थापित होता है।