हर साल मानसून में आने वाली दुश्वारियों से निपटने के लिए अभी से कार्ययोजना बनाई जानी चाहिए और इसे धरातल पर उतारने की प्रतिबद्धता भी दिखाई दे। उत्तराखण्ड में मानसून विदाई बेला पर है। मौसम विभाग के अनुसार इस बार प्रदेश में बारिश सामान्य से 23 फीसद कम रही है। पौड़ी और टिहरी जिलों में यह औसत से लगभग 50 फीसद तक नीचे है। वहीं देहरादून और हरिद्वार में यह आंकड़ा सामान्य से क्रमशः 38 और 29 फीसद कम रहा। हालाकि अभी मानसून की विदाई की घोषणा नहीं की गई है और छिटपुट बारिश का दौर जारी है। उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले दिनों में बारिश सामान्य के करीब पहुँच जाए। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि यदि हालात ऐसे ही रहे तो इन कृषि प्रधान क्षेत्रों में बारिश की बेरुखी आने वाले समय में कुछ हद तक चिन्ता का सबब बन सकती है। हांलाकि ऊधमसिंह नगर में बारिश सामान्य के करीब रही। यहाँ औसत से आठ फीसद कम बारिश रिकार्ड की गई। प्रदेश पर इसका क्या और कितना प्रभाव पड़ेगा, यह तो सर्वेक्षण के बाद ही पता चलेगा, लेकिन जरूरी है कि सरकार को इसके लिए त्वरित कदम उठाने चाहिए ताकि वक्त पर प्रभाव का सही आकलन किया जा सके।
पहाड़ों से मानसून का रिश्ता सिर्फ इतना ही नहीं है। चैमास में कुदरत अक्सर पहाड़ों से कुपित रहती है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। देहरादून जिले के आराकोट क्षेत्र को बारिश कभी न भूलने वाला दर्द दे गई। अब भी वहाँ के प्रभावितों का जीवन पटरी पर नहीं आ पाया है। दरअसल देखा जाए तो बरसात का समय पहाड़ों के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। यह परीक्षा आम आदमी की है तो सरकारी महकमों की भी। बाढ़ और भूस्खलन अक्सर जनजीवन का रास्ता रोकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में मरीज को अस्पताल पहुँचाने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता है। चमोली हो या पौड़ी अथवा पिथौरागढ़ सब जगह हालात एक से रहते हैं। यह कहानी एक साल की नहीं है, हर वर्ष यह नजारा देखने को मिलता है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब हर बार मौसम की मार गहरे जख्म देती है तो सिस्टम इसके लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाता। कई मर्तबा सिस्टम की असंवेदनशीलता जख्मों पर नमक छिड़कने का कार्य करती है। शायद यही वजह है कि चमोली और पिथौरागढ़ के गाँव के लोगों को नदी के कटाव से बचने के लिए स्वयं पहल करनी पड़ी। जाहिर है अब सरकार को अधिक सजग होना पड़ेगा। इसके लिए जरूरी है कि आने वाले समय का सदुपयोग किया जाए।