लद्दाख की मंत्रमुग्ध कर देने वाली वादियों में, हिमालय की विशाल पर्वतमालाओं के बीच बसी यह भूमि अब नवाचार और सततता का एक अद्भुत प्रतीक बन चुकी है — आइस स्तूपा। ये बर्फ के ऊँचे-ऊँचे स्तूप, पारंपरिक बौद्ध स्तूपों से प्रेरित हैं और इन्हें लद्दाख के प्रसिद्ध इंजीनियर और पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक ने विकसित किया है। वांगचुक की यह अद्भुत खोज न केवल स्थानीय समुदायों की जल संकट की गंभीर समस्या का समाधान बनकर सामने आई है, बल्कि इसने वैश्विक स्तर पर लद्दाख की पर्यावरणीय चुनौतियों और वहाँ से उभरते अभिनव समाधानों की ओर ध्यान आकर्षित किया है। पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और समाज के सतत विकास को परिभाषित करते हैं आइस स्तूपा।
लद्दाख का भू-भाग उच्च हिमालय में स्थित एक शुष्क मरुस्थल जैसा है। यहाँ बारिश बहुत कम होती है और वर्ष के अधिकांश समय पानी की भारी कमी बनी रहती है। गर्मियों के सूखे महीनों में जल की मुख्य आपूर्ति ग्लेशियरों के पिघलने से होती है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों का तेज़ी से सिकुड़ना, इस संकट को और भी गंभीर बना रहा है। इसी समस्या के समाधान की तलाश में सोनम वांगचुक ने आइस स्तूपा के रूप में एक क्रांतिकारी उपाय विकसित किया।
बौद्ध धर्म के पवित्र स्तूपों से प्रेरणा लेते हुए, वांगचुक ने सर्दियों के महीनों में पानी को बर्फ के रूप में संरक्षित करने की एक अनोखी विधि तैयार की। इस तकनीक के अंतर्गत पास की नदियों से पानी को पाइपों के जाल के माध्यम से खींचा जाता है और उसे महीन बूँदों के रूप में छिड़का जाता है। उप-शून्य तापमान में ये बूँदें जमकर पारंपरिक स्तूपों जैसे विशाल शंकु आकार के बर्फीले ढांचे बना लेती हैं। वांगचुक की यह सरल लेकिन प्रभावशाली तकनीक लद्दाख के जल-संकटग्रस्त समुदायों के लिए आशा की किरण बन गई है।
आइस स्तूपों ने लद्दाख के पर्यावरण और स्थानीय लोगों को कई तरह से लाभ पहुँचाया है:
ये सर्दियों के दौरान पानी को जमाकर प्राकृतिक बर्फ भंडार के रूप में काम करते हैं। जब गर्मियों में पानी की कमी होती है, तब यही स्तूप जल का स्थायी स्रोत बनते हैं, जिससे सिंचाई संभव होती है और कृषि का मौसम बढ़ाया जा सकता है।
इन स्तूपों के निर्माण और देखरेख में स्थानीय समुदायों की सक्रिय भागीदारी रहती है, जिससे उनमें सहयोग की भावना और अपने संसाधनों की जिम्मेदारी लेने का भाव जागृत होता है। साथ ही, इससे रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं।
आइस स्तूपों के कारण ग्लेशियरों पर निर्भरता कम होती है, जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कुछ हद तक कम किया जा सकता है और लद्दाख की नाज़ुक पारिस्थितिकी को राहत मिलती है।
सोनम वांगचुक केवल एक इंजीनियर ही नहीं, बल्कि एक पर्यावरण योद्धा भी हैं। उनका प्रयास केवल आइस स्तूपों तक सीमित नहीं है। वे वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों, कचरा प्रबंधन, और स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने के लिए शिक्षा जैसे क्षेत्रों में भी सक्रिय हैं। उनका समग्र दृष्टिकोण न केवल लद्दाख बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा बन गया है। जून 2023 में उन्होंने लद्दाख की नाज़ुक पारिस्थितिकी और वहाँ के आदिवासी समुदायों की रक्षा के लिए संविधान की छठी अनुसूची लागू करने की माँग को लेकर नौ दिवसीय जलवायु उपवास भी किया।
आइस स्तूपा, जो परंपरा और नवाचार का अद्वितीय संगम हैं, सोनम वांगचुक की दूरदर्शिता और समर्पण का सजीव प्रतीक हैं। ये स्तूप न केवल मानव रचनात्मकता और जिजीविषा को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि सतत समाधान के माध्यम से हम प्रकृति की चुनौतियों का सामना कैसे कर सकते हैं।
नोट - यह लेख "Ice Stupas: Sonam Wangchuk's Remarkable Blend of Ingenuity and Sustainability" से प्रेरित है, जो मूल रूप से 29 जून 2023 को विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (VIF) की वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ था। लेख का स्रोत: VIF India – India Positive Series। सभी विचार और जानकारी मूल लेखक और स्रोत को ससम्मान समर्पित हैं।