भारत में जल संसाधन, विशेष रूप से जल की गुणवत्ता और जल प्रदूषण की समस्या बहुत गंभीर है। देश अपने नागरिकों को स्वच्छ पानी की सुरक्षित और पर्याप्त आपूर्ति नहीं करा पा रहा है। हर साल चेन्नई, बेंगलुरु, शिमला, दिल्ली, लातूर जैसे कई अन्य शहरों और गांवों में पानी की किल्लत से लोग हलकान हैं। 2018 में भारत सरकार की स्वयं की रिपार्ट के अनुसार भारत वर्तमान में सबसे खराब जल संकट से गुजर रहा है, क्योंकि 84 फीसद ग्रामीण घरों में पानी की पहुंच नहीं है और 70 फीसद से भी ज्याद हमारे जल संसाधन दूषित हैं। दूषित स्त्रोत से सुरक्षित पानी की आपूर्ति करना बहुत महंगा और तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण है। इसके अतिरिक्त, पानी की आपूर्ति के बुनियादी ढांचे पुराने और लीकेज युक्त हैं। नगरपालिका एजेंसियों के पास सीमित क्षमता और संसाधन हैं और किसी की भी कोई निश्चित जिम्मेदारी नहीं है। दूषित जल के लिए भारत की जल उपचार क्षमता केवल 33 फीसद है और शेष दूषित जल को सीधे नदियों, झीलों और यहां तक की भूमिगत जलवाहकों में डाल दिया जाता है। बिहार और पश्चिम बंगाल में कई जिले जहरीले आर्सेनिक के मिश्रण वाले दूषित जल से प्रभावित हैं। वहीं ओडिशा और असम के लोग लोहा युक्त पानी पीने को मजबूर हैं। गुजरात और राजस्थान के लोग फ्लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं और पंजाब का पानी घातक यूरेनियम और सेलेनियम से दूषित है। इन सभी को वैकल्पिक आपूर्ति या महंगे उपचार की आवश्यकता है।
प्रदूषित पानी की खपत के प्रभाव सीधे या खाद्य आपूर्ति के माध्यम से विनाशकारी होते हैं। इसके परिणामस्वरूप खराब स्वास्थ्य, पोषण, पेट व त्वचा के रोगों और महामारियों और यहां तक कि मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है। इससे बंद बोतल में पानी का व्यापार तेजी से फल-फूल रहा है। जिसे गरीब भी खरीदने को मजूबर हैं। अधिक चिंता की बात यह है कि गरीबों, बच्चों, बुजुर्गों और झुग्गियों और काॅलोनियों में रहने वोल बीमार लोगों को और गरीबी में धकेल दिया जाता है।
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