जल संरक्षण

सूखे की समस्या से जूझ रहा ये गांव, पानी के लिए कई किलोमीटर करते हैं सफर

मीनाक्षी अरोड़ा, अंकित तिवारी

सोनबरसा जामोगरा,बरौआ, पियरी आदि क्षेत्र शामिल है। इन क्षेत्र के लोगों ने बताया कि अप्रैल-मई में पानी की सबसे ज्यादा दिक्कत हो जाती है क्षेत्र के पिछड़ा आदिवासी होने के कारण सरकार की योजना भी उन तक नहीं पहुंच पा रही है। बरौआ गांव के ग्रामीणों ने बताया कि नदी और तालाब गांव में  है तो जरूर लेकिन सूखे चुके है और जल निगम का पानी कभी-कबार ही ग्रामीणों को  मिल पाता हैं।  ग्रामीण बताते हैं कि वो इस समस्या को अपनी क्षेत्रीय विधायक के पास रखा था,लेकिन क्षेत्र के विधायक का कुछ आता पता नहीं है महिलायें बताती हैं कि पानी की समस्या इस कदर उनके क्षेत्र में हैं कि कई हफ्ते तक लोग नहाते भी नहीं हैं और जब अति हो जाए तो मजबूरी में नहर का पानी उपयोग मैं लाया जाता है लोग बताते हैं कि यहाँ एक सरकारी कुआँ हैं वो तो सही है। लेकिन पहाड़ी क्षेत्र और पथरीला होने की वजह से वो कारगर नहीं हो पाया।जिसकी वजह से पानी की समस्या जस की तस बनी हुई है।   

जामोरा दोहथा के लोगों ने बताया कि उनके गाँव में हैंडपंप तो हैं लेकिन  कई महीनों से खराब है कई बार इसकी शिकायत की जा चुकी हैं लेकिन  इसको किसी ने अभी तक ठीक  नहीं  किया है। वहीं सरकारी सौर ऊर्जा से संचालित पानी की टंकी गांव में जरूर हैं लेकिन उसका समय भी 10:00 बजे के बाद है इसलिए मजबूरी में कई किलोमीटर दूर एक गौशाला से पानी लाना पड़ता है लतीपुर के ग्रामीणों ने बताया कि 1 कुएँ पर पूरा गांव निर्भर रहता है कुछ गाँव ऐसे हैं जहाँ पानी के टैंकर से पीने का पानी पहुंचाया जाता हैं जिनमे सोनबरसा कुदरे बड़ोखर आदि क्षेत्र हैं। वही पृथ्वीराज बिलोनिया पहाड़ी क्षेत्र के लोगों ने बताया कि हैंडपंप का पानी आता जरूर हैं लेकिन पीने योग्य नहीं है आपको बता दे की 22 मार्च 2007 को विश्व जल दिवस के अवसर पर सयुक्त राष्ट्र और कृषि संगठन FAO के महानिदेशक जैक्स देओफ ने कहा था की 2025 तक विश्व की दो तिहाई आबादी को पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है मौजूदा समय में 1.2 अरब लोग ऐसे क्षेत्र में रह रहे है जहां पानी की अपर्याप्त आपूर्ति है।  

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