वर्षा जल संग्रहण समय की आवश्यकता,Pc-Wikipedia 
जल संरक्षण

वर्षा जल संग्रहण समय की आवश्यकता

भारत में पानी के प्रबंधन का अभाव है बहुत कम एजेंसियां इसके लिए काम करती हैं। यहाँ पर आबादी का घनत्व ज्यादा है, खेती के तरीके असंवेदनशील हैं और औद्योगीकरण बड़े स्तर पर हो रहा है। जल स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है वर्षा का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी नालों के जरिए नदी और नदियों के जरिए समुद्र में समाहित हो जाता है

Author :  जतिन मल्होत्रा, डॉ. मनोहर अरोड़ा एवं डॉ. राकेश कुमार

भारत में पानी की समस्या ने कई राज्यों को अपनी चपेट में ले रखा है। भूजल का स्तर लगातार नीचे जा रहा है। साल दर साल गर्मी का प्रकोप बढ़ रहा है और देश सूखे की गंभीर स्थिति का सामना कर रहा है आसमान आग उगल रहा है और धरती तप रही है उमस इतनी कि सांस लेने में दिक्कत है पारा पहले के मुकाबले और अधिक बढ़ता जा रहा है और उस पर बिजली भी कम सितम नहीं ढा रही है यह कहानी नहीं बल्कि भारत के कई हिस्सों की हकीकत है और इससे आम आदमी को हर दिन दो-चार होना पड़ता है जानकार कहते हैं कि पानी का मौजूदा संकट सिर्फ पानी की कमी और मांग के बढ़ने की वजह से ही नहीं है इसमें पानी के प्रबंधन का भी बहुत बड़ा हाथ है। भारत में पानी के प्रबंधन का अभाव है बहुत कम एजेंसियां इसके लिए काम करती हैं। यहाँ पर आबादी का घनत्व ज्यादा है, खेती के तरीके असंवेदनशील हैं और औद्योगीकरण बड़े स्तर पर हो रहा है। जल स्तर दिन-प्रतिदिन गिरता जा रहा है वर्षा का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी नालों के जरिए नदी और नदियों के जरिए समुद्र में समाहित हो जाता है वर्षा जल संचयन आज की जरुरत है। ऐसे में परंपरागत के साथ बड़े एवं आधुनिक जल अवसंरचनाओं की संतुलित व्यवस्था जरूरी है लेकिन पहली प्राथमिकता उस परंपरागत जल प्रबंधन प्रणाली को दी जानी चाहिए जिसकी स्थानीय लोगों को अच्छी समझ है और जिसका वे अपने श्रम और धन से प्रबंधन कर सकते हैं।

वर्षा जल संग्रहण वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को कहा जाता है विश्व भर में पेयजल की कमी एक संकट बनती जा रही है। वैज्ञानिक भाषा में भूमिगत जल के तल को बढ़ाना रिचार्ज कहा जाता है वर्षा के पानी का बाद में उत्पादक कामों में इस्तेमाल के लिए इकट्ठा करने को वर्षा जल संग्रहण कहा जाता है आपकी छत पर गिर रहे बारिश के पानी को सामान्य तरीके से इकट्ठा कर उसे शुद्ध बनाने का काम वर्षा जल का संग्रहण कहलाता है। पानी का कोई विकल्प नहीं है और न ही यह एक असीमित संसाधन है। जहां हमें भूजल के दोहन व उपयोग में बहुत सतर्कता बरतनी होगी वहीं दूसरी ओर युद्ध स्तर पर वर्षा जल संकलन, भंडारण व भूजल पुनर्भरण करना होगा।

जनसंख्या बढ़ने से दिन-प्रतिदिन जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता कम होती जा रही है जो आज हमारे लिए समस्या बनती जा रही है। देश में औद्योगीकरण के विकास के साथ ही जल की जरुरत पर निर्भरता और बढ़ी है। उपलब्ध जल संसाधन औद्योगिक, कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है और इस कारण उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता और सीमित होती जा रही है आज अच्छी गुणवत्ता वाले पानी की कमी चिंता का एक बड़ा कारण बन गई है। हालांकि, शुद्ध और अच्छी गुणवत्ता वाला वर्षा जल जल्द ही बह जाता है। इसी कारण वर्षा जल संग्रहण की आवश्यकता महसूस होती है।

  • कुछ क्षेत्रों में जल स्तर पर भारी गिरावट।
  • कुओं / बोरवैल का सूखना ।
  • ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि होना ।
  • तटीय क्षेत्रों में समुद्री जल का प्रवेश।
  • भूमि जल की गुणवत्ता में गिरावट आना।

भूमिगत जल की उपलब्धता को निश्चित करने के लिए वर्षा की कुछ मात्रा का हिस्सा भूमिगत जल को रिचार्ज करता है। इस संबंध में दुनिया भर के वैज्ञानिकों में आम राय यह है कि साल भर में होने वाली कुल बारिश का कम से कम 31 प्रतिशत पानी धरती के भीतर रिचार्ज के लिए जाना चाहिए तभी बिना हिमनद वाली नदियों और जल स्रोतों से लगातार पानी मिल सकेगा। शोध के मुताबिक कुल बारिश का औसतन 13 प्रतिशत पानी ही धरती के भीतर जमा हो रहा है। देश के पूरे हिमालयी क्षेत्र में भी कमोबेश यही स्थिति है जब हिमालयी क्षेत्र में ऐसा है, तो मैदानों को कैसे पर्याप्त जल मिलेगा ? धरती के भीतर पानी जमा न होने के कारण एक ओर नदियां व जल स्रोत सूख रहे हैं, तो दूसरी ओर बरसात में मैदानी इलाकों में बाढ़ की समस्या विकट होती जा रही है रिचार्ज का स्तर 31 प्रतिशत से थोड़ा नीचे रहे, तो ज्यादा चिंता की बात नहीं, लेकिन पर्वतीय क्षेत्र के वनों में पानी के रिचार्ज के संबंध में कराए गए एक अध्ययन के जो परिणाम निकले हैं, वे अनुकूल नहीं हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार आबादी तेजी से बढ़ने और वनों का क्षेत्रफल घटने से रिचार्ज का स्तर घट रहा है। भवनों, सड़कों तथा अन्य निर्माण कार्यों से अधिकांश भूमि कवर हो जाती है। ऐसे में बारिश का पानी धरती के भीतर नहीं जा पाता। इसलिए नगरीय क्षेत्रों में जल स्रोतों का पानी तेजी से कम होता जा रहा है। दूसरी तरफ सघन वनों में रिचार्ज का स्तर अधिक होता है, क्योंकि बारिश का पानी पत्तों से टकराकर धीरे-धीरे भूमि पर पहुंचता है और रिसकर भूमि के भीतर जमा हो जाता है। बर्फबारी से भी पानी का रिचार्ज बहुत अच्छा होता है बर्फ की मोटी परत जमने के बाद पानी बहुत धीरे-धीरे पिघलता है और रिसकर धीरे-धीरे जमीन के भीतर चला जाता है। इसके अलावा चौड़ी पत्ती वाले वन क्षेत्रों में रिचार्ज का स्तर अधिक होता है, जबकि वृक्ष रहित स्थानों आबादी क्षेत्रों में पानी तेजी से बहकर निकल जाता है। यह पानी नदियों के जरिए बहकर समुद्र में पहुंच जाता है। हिमालयी क्षेत्र में बारिश का अधिकांश पानी बह जाने से मैदानी इलाकों में बाढ़ की विकराल समस्या की वजह यही है।

  • भूजल या नगरपालिका के जल कनेक्शन से होने वाले पानी की सप्लाई जैसे अन्य स्रोतों का यह पूरक हो सकता है।
  • जिन क्षेत्रों में पानी का अन्य कोई स्रोत न हो, वहां निर्माण या खेती कार्य किया जा सकता हैं ।
  • उच्च गुणवत्ता जल शुद्ध, रसायन मुक्त होता है।
  • जलापूर्ति की कम लागत। 
  • बाढ़ के वेग को कम कर मृदा अपरदन को कम करता है।
  • भूजल कम है।
  • भूजल दूषित है।
  • जमीन विषम या पर्वतीय हो।
  • भूकम्प या बाढ़ संबंधी घटनाएं आम हों।
  • लवण युक्त पानी की आवाजाही जल में खतरनाक स्तर तक हो।
  • जनसंख्या घनत्व कम हो ।
  • बिजली और पानी के दाम बढ़ रहे हों।
  • पानीबहुत खारा हो या उसमें खनिज अधिक हों।
  • पीने, खाना पकाने या नहाने के लिए (फिल्टर वाली गुणवत्ता)।
  • शौच के लिए।
  • कपड़े धोने के लिए।
  • सिंचाई के लिए।
  •  मवेशियों की जरूरतों के लिए।
  • भूजल की मात्रा सतही जल से अधिक है।
  • भूजल आपूर्ति का दीर्घकालीन एवं विश्वसनीय स्रोत है।
  • भूजल पर प्रदूषण का प्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ता है।
  • भूजल प्रायः बैक्टीरिया रहित है।
  • भूजल में बीमारी पैदा करने वाले जीवाणु व कीटाणु नहीं होते।
  • उपयोग से पहले भूजल के शुद्धिकरण की आवश्यकता नगण्य होती है।
  • भूजल रंगहीन व गंदलापन रहित है। कम स्वच्छ सतही जल की तुलना में यह स्वास्थ्य के लिए अधिक उपयोगी है।
  • भूजल प्रायः सर्वत्र उपलब्ध है।
  • भूजल को तत्काल निकाला तथा उपयोग में लाया जा सकता है। जल आपूर्ति के दौरान भूजल की कोई क्षति नहीं होती है।
  • भूजल पर सूखे का प्रभाव कम पड़ता है।
  • सूखाग्रस्त व अर्ध सूखाग्रस्त क्षेत्रों में यही जीवन आधार है।
  • शुष्क मौसम में यह नदियों के जल प्रवाह का स्रोत है।

शहरी क्षेत्रों में इमारतों की छत पक्के व कच्चे क्षेत्रों से प्राप्त वर्षा जल व्यर्थ चला जाता है यह जल जलभृतों में पुनर्भरित किया जा सकता है व जरूरत के समय लाभकारी ढंग से प्रयोग में लाया जा सकता है वर्षा जल संचयन की प्रणाली को इस तरीके से डिज़ाइन किया जाना चाहिए कि यह संचयन / इकट्ठा करने व पुनर्भरण प्रणाली के लिए ज्यादा जगह न घेरे। शहरी क्षेत्रों में छत से प्राप्त वर्षा जल का भण्डारण करने की कुछ तकनीकों का विवरण नीचे दिया गया है :-

क)

ख)

ग)

घ)

ड)

च)

क)

  • मेडबन्दी (Bunding)
  • सीढ़ीदार खेत (Terracing)
  • वानस्पतिक समोच्च अवरोध (Vegetative contour barrier)
  • भूमि समतलीकरण (Land leveling )
  • समोच्च खाईयां (Contour ditching)
  • समोच्च खेती (Contour farming )
  • आवरण फसल (Cover crop ) एवं पलवार ( Mulching)
  • संरक्षण खेती एवं गहरी जुताई
  • समोच्च खत्तियां (Contour trenching)

ख)

  • छत के पानी का एकत्रीकरण/ खोदकर तालाबों का निर्माण एवं भंडारण टंकियां
  • टांके
  • खदीनें
  • अहरें / हवेलियां
  •  विपथक बांध / नालियां (Diversion bunds )
  • जल फैलाव (Water spreaders)

ग) धारा बहार / अपवाह संचय

  • नाला बंध निर्माण
  • गली नियंत्रण संरचनाएं / रोक बांध / बंधारे (weirs )
  • जल संचय बांध / ठहराव बांध
  • जल विपथक (water diversions)
  • रिसाव तालाब (Percolation Tanks )
  • नदी

घ)

  • उपसतही बांध / अवरोध
  • सतही बंधारे
  • डायफ्राम बांध

ड)

  • अंतःवेदिक (Inter terrace ) / अंतःभूखण्ड (Inter plot) जल संचय
  • संरक्षण सीढ़ीनुमा खेत
  •  जलागम (Micro watershed ) / सूक्ष्म भूखण्ड

च)

  • पक्के अपवाह क्षेत्र (Metalled Catchment)
  • प्लास्टिक शीट, बेंटोनाईट, रबड़ इत्यादि जैसी आवरण सामग्री का प्रयोग
  • जल अभेद्यता (Water proofing ) जल प्रतिरोध इत्यादि हेतु रसायन का प्रयोग
  • वर्षा जल संरक्षण का उदाहरण बनता राज्य

यदि पानी का संरक्षण एक दिन शहरी नागरिकों के लिए अहम मुद्दा बनता है तो निश्चित ही इसमें तमिलनाडु का नाम सबसे आगे होगा। लंबे समय से तमिलनाडु में ठेकेदारों और भवन निर्माताओं के लिए नए मकानों की छत पर वर्षा के जल संरक्षण के लिए इंतज़ान करना आवश्यक है। परंतु पिछले कुछ सालों से गंभीर सूखे से जूझने के बाद तमिलनाडु सरकार इस मामले में और भी प्रयत्नशील हो गई है और उसने एक आदेश जारी किया है जिसके तहत तीन महीनों के अंदर सारे शहरी मकानों और भवनों की छतों पर वर्षा जल संरक्षण संयंत्रों का लगाना अनिवार्य हो गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि सारे सरकारी भवनों को इसका पालन करना पड़ा। पूरे राज्य में इस बात को व्यापक रूप से प्रचारित किया गया।

नौकरशाहों को वर्षा जल संरक्षण संयंत्रों को प्राथमिकता बनाने के लिए कहा गया। यह चेतावनी भी दी गई कि यदि नियत तिथि तक इस आदेश का पालन नहीं किया जाता सरकार द्वारा उन्हें दी गई सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी, साथ ही दंड स्वरूप नौकरशाहों के पैसे से ही इन संयंत्रों को चालू करवाया जाएगा। इन सबके चलते सब कुछ तेजी से होने लगा। आजकल चेन्नई में पानी का पुनरूपयोग एक चलन बन गया हैं। स्थानीय नागरिक पानी को साफ करके शौचालयों और बगीचों में दोबारा इस्तेमाल में ला रहे हैं। चेन्नई के सबसे ज़्यादा विचारवान भवन निर्माताओं, जिन्होंने वर्षा जल संरक्षण को लगाना प्रशासन के आदेश से पारित होने के पहले से शुरू कर दिया था, में से एक एलेक्रिटी फाउंडेशन अब गंदे पानी के पुनर्चक्रण के नए संयंत्र लगा रही है उनका मानना है कि नालों में बहने वाले पानी का 80 प्रतिशत हिस्सा साफ करके पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। सौभाग्य से इस मामले में चेन्नई में सफलता की कई कहानियाँ हैं।

चेन्नई पेट्रोलियम जो एक बड़ा तेल शोधक कारखाना है और पानी का काफी प्रयोग करता है. ने पानी के पुनर्चक्रण में भारी सफलता हासिल की है। इसके लिए ये चेन्नई महानगरपालिका को प्रतिकिलो गंदे पानी के लिए आठ रुपए भी देते हैं ये इस पानी की गंदगी के टंकियों में नीचे बैठने के बाद उल्टे परासरण (Reverse Osmosis) का प्रयोग करके ठोस पर्दाथों को बाहर निकाल देते हैं। बाकी बचा पानी 98.8 प्रतिशत साफ होता है और कई कामों में प्रयोग में लाया जा सकता है जैसे कि शौचालयों की सफाई बगीचों में प्रयोग सफाई से निकली कीचड़ को वनस्पति कचरे में मिलाकर खाद बनाई जाती है जो उनके वृहद प्रांगण को हरा-भरा रखने में काम आती है ये काम बहुत बड़े स्तर पर किया जाता है प्रति घंटे 15 लाख लीटर पानी की सफाई की जाती है जो कारखाने की ज़रूरत का 40 प्रतिशत हिस्सा है और इससे शहर, व्यापार और पर्यावरण तीनों को लाभ होता है इस काम को करने में और भी कई कारखानों ने रुचि दिखाई है।

आज जिस स्तर का उदाहरण तमिलनाडु ने प्रस्तुत किया है कुछ ऐसा ही देश के अन्य राज्यों को भी करना है जल ही जीवन है यह हम सब जानते हैं आज समय की जरुरत है कि हम सब इस विषय पर बात करें। हमारी जिम्मेदारी है की हम वर्षा जल संचयन, संरक्षण व भूजल पुनर्भरण करने हेतु अपना योगदान दें न केवल समुदाय के लिये बल्कि हमारे अपने भविष्य के लिए।

स्रोत-

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