आज समस्त विश्व पेयजल की कमी से जूझ रहा है। पृथ्वी पर पीने योग्य जल की मात्रा 1% से भी कम है जबकि पृथ्वी पर जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण पृथ्वी पर जल की मांग में भी दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। इसी अनुपात में पीने योग्य जल की मांग में भी दिन-प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। ऐसा नहीं है कि जल कम हो रहा है, जल तो पृथ्वी पर करीब 71% है, लेकिन पीने योग्य जल की मात्रा अब कम होती जा रही है। हमारे दैनिक कार्यों के कारण पेयजल कम होता जा रहा है। उपलब्ध जल भी हमारे दैनिक कार्यों, फैक्ट्रियों के प्रदूषित जल, पॉलिथीन के प्रयोगों, दैनिक जीवन में रसायनों के प्रयोग तथा मानव एवं जानवरों के दैनिक अपशिष्ट को जल में प्रवाहित करने से प्रदूषित होता जा रहा है।
कृषि, औद्योगिक तथा दैनिक आवश्यकताओं के लिए जल के अंधाधुंध दोहन से जल की उपलब्धता कम होती जा रही है। यदि हमने अभी से इसे नहीं रोका तो भविष्य में पीने योग्य जल उपलब्ध ही नहीं रहेगा। ऐसे में हमारा जीवन ही खतरे में होगा।
पीने योग्य जल का सही एवं उचित प्रयोग, इसमें जल की बर्बादी को रोकना, कृषि में सिचाई के आधुनिक तरीकों का प्रयोग करना, जल का प्रदूषण रोकना एवं आधुनिक बायोडिग्रेडेबल टॉयलेट का प्रयोग करना आदि शामिल हैं।
जिसमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग अर्थात वर्षा जल संरक्षण शामिल है। भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न समय पर बहुत अधिक वर्षा होती है। इसकी अधिक मात्रा के कारण एक ही समय पर दो भिन्न स्थलों पर बाढ़ और सूखे की समस्याओं के कारण हानि का सामना करना पड़ता है। यदि हम वर्षा जल संग्रहण का उचित प्रबंधन करें तो हम पेय जल, कृषि जल एवं जल विद्युत का उचित ढंग से प्रबंधन कर सकते हैं।
इससे हम जगह-जगह वर्षा जल को एकत्रित कर सकते हैं। यह जल पृथ्वी के जल को पुनःपूरित करके भूजल की मात्रा में वृद्धि करेगा। यह जल कृषि तथा जानवरों के पीने के लिए भी उपलब्ध होगा। इसमें हमें ज्यादा जगह की भी जरुरत नहीं होगी तथा यह बाढ़ को रोकने में भी सहायक सिद्ध होगा।
पहले कृषि के लिए कुओं का निर्माण किया जाता था। कालान्तर में इन कुओं को बन्द कर दिया गया। हम इन कुओं का नवीनीकरण करके एवं जगह-जगह नए कुओं का निर्माण करके वर्षा जल का प्रयोग पृथ्वी जल को पुनःपूरित करने में कर सकते हैं। ये कुएं रिचार्ज वेल का काम करेंगे जिनसे वर्षा जल सीधे पृथ्वी के अंदर जा सकेगा यह कुएं वर्षा जल संग्रहण में मील का पत्थर साबित होंगे।
वर्षा जल संग्रहण के लिए हमें जगह-जगह नदियों पर छोटे-छोटे बांध बनाने होंगे। भारत नदियों का देश है, वर्षा का जल इन्हीं नदियों से होकर बाढ़ का रूप ले लेता है जिससे हमें जान-माल की भयंकर हानि का सामना करना पड़ता है।
छोटे-छोटे बांधों के निर्माण में पूंजी भी कम लगती है तथा इनका निर्माण भी सरल है। इनसे बाढ़ की समस्या, सिंचाई हेतु आवश्यकतानुसार जल की उपलब्धता, भूजल का पुनःपूरण, लघु जल विद्युत परियोजनाओं से विद्युत उत्पादन तथा हमारी पेय जल की समस्या का समाधान होगा।
वर्षा जल संरक्षण में बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण भी महत्वपूर्ण है। बड़े बाँध बाढ़ को रोकने में सहायक होते हैं। इनसे वृहत्त मात्रा में विद्युत उत्पादन होता है। यह भूजल को पुनः पूरित भी करते हैं। इनसे पूरे वर्ष कृषि के लिए जल उपलब्ध रहता है तथा यह शहरों के लिए पेय जल आपूर्ति का एक प्रमुख साधन भी हैं। हम पहाड़ों पर भी आसानी से बड़े बाँधों का निर्माण कर सकते हैं।
यदि हम नदियों को आपस में जोड़ दें तो हमें पूरे देश में पूरे वर्ष जल मिलता रहेगा तथा बाढ़ की समस्या का निदान भी हो जायेगा। भारत में अलग-अलग समय में अलग-अलग जगह पर वर्षा होती है। जिसके कारण देश को एक ही समय पर बाढ़ एवं सूखे का सामना करना पड़ता है। यदि देश की मुख्य नदियों को परस्पर जोड़ दिया जाए तो बाढ़ की समस्या का निदान भी हो जायेगा और वर्षा जल संग्रहण भी हो जायेगा। इससे पूरे भारत में पेय जल की समस्या का निदान भी हो जायेगा।
यदि सरकार नियम बना दे तथा लोगों को प्रेरित करे कि वह अपने मकान के बेसमेंट में (भूतल से नीचे) एक बड़ा जल संचयन टैंक बनाना शुरू कर दें तो इससे हमारी अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। इसमें वर्षा के समय जल संग्रहण किया जा सकता है। इसमें दो टैंक बनाने होंगे एक टैंक में जल संग्रहण होगा दूसरे टैंक से अतिरिक्त जल भूजल को पुनःपूरित करेगा। इस जल का प्रयोग हम पेड़-पौधों को जल देने में, कार को धोने में, फ्लोर को धोने में तथा टॉयलेट फ्लश करने आदि में कर सकते हैं।
यदि हम सभी स्कूल, कॉलेज और सरकारी भवनों में जल संचयन अनिवार्य कर दें तो हम वृहत्त मात्रा में जल का संरक्षण और संग्रहण कर सकते हैं। इस कार्य के लिए हमें सभी को प्रेरित करना होगा। भवन निर्माण में इसे आवश्यक बनाना होगा ताकि सभी भवनों में जल संरक्षण किया जा सके। इस जल का प्रयोग नर्सरी में पानी देने, पेड़ पौधों में पानी देने, फर्श की सफाई करने एवं टॉयलेट फ्लश करने आदि में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त हम ऑनलाइन-ऑफलाइन शपथ एवं क्विज, रैलियों, नुक्कड़ नाटकों, सोशल मीडिया, वाल पेंटिंग, वाद-विवाद, प्रदर्शनी आदि के द्वारा भी जन जागरूकता फैला सकते हैं। हमने अभी तक करीब 36,000 से ज्यादा व्यक्तियों, छात्रों एवं शिक्षकों के साथ ऑनलाइन जल संरक्षण शपथ तथा विभिन्न स्कूलों में करीब 20,000 छात्रों एवं शिक्षकों के साथ ऑफलाइन शपथ का आयोजन किया है तथा मैं फेसबुक पर "सेव वाटर सेव फ्यूचर" नामक एक अन्तर्राष्ट्रीय समूह का संचालन कर रहा हूँ। जिसमें 859 सदस्य हैं तथा एक पेज सेव वाटर सेव फ्यूचर है। जन जागरूकता के लिए हम ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों माध्यम से शपथ, क्विज, पेंटिंग प्रतियोगिता, वाल पेंटिंग, प्रदर्शनी, वेबिनार, वाद-विवाद, विशेषज्ञ सत्र, रैली आदि का भी आयोजन कर रहे हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस मुहिम से जोड़कर जल संरक्षण कर सकें। जन जागरूकता से ही यह कार्य संभव हो सकता है।
सपंर्क करेंः विपिन कुमार त्यागी, केन्द्रीय विद्यालय, बावली, बागपत उत्तर प्रदेश-250 621