स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद - 20वाँ कथन आपके समक्ष पठन, पाठन और प्रतिक्रिया के लिये प्रस्तुत है :
(स्वामी सानंद एक जमीदार परिवार में जन्मे। उस जमाने में इंजीनियर होना बड़ी बात थी। नौकरी भी उन्हें अच्छी-खासी ही मिली थी। लम्बे समय तक वह किसी ऐसे समाज सेवा के काम में भी नहीं रहे कि विवाह उसमें अड़चन होता; बावजूद इसके उन्होंने विवाह क्यों नहीं किया? मेरी इस जिज्ञासा का जो उत्तर मिला, वह क्या दर्शाता है? कृपया पढ़ें और अपने आकलन से हमें अवगत कराएँ। : प्रस्तोता)
मैंने पहले बताया था न कि हमारे परिवार में एक महात्मा आते थे; वही, जिन्होंने मेरा नाम रखा था। वह वेदान्ती थे। कहते थे-
‘कामिनी कंचन संग जो रहे, उसका उद्धार नहीं हो सकता।’
इधर घर में बाबाजी परिवार से भी थे और ब्रह्मचर्य के पक्षधर भी थे। इस तरह कुछ तो शुरू से ही साधुत्व की ओर रुझान रहा। जब मैं सन्यास लेने लगा, तो छोटे भाई ने कहा-
‘आप तो पहले से ही साधु हो। सन्यास लेने की क्या जरूरत है?’’
विवाह न करने का एक दूसरा कारण भी था। मैं 14 साल की उम्र में ही मुजफ्फरनगर चला गया था; अपनी चाची के पास। चाची को मैं अम्मा कहता था। चाचा को उनके बच्चे पापा कहते थे। मैं भी पापा ही कहता था। मुझे जैसा स्नेह अम्मा (चाची) से मिला, वैसा कहीं नहीं मिला। उनके स्नेह के आगे और किसी चीज का महत्त्व नहीं दिखता था।
यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के दौरान बनारस और रुड़की में रहा, तो भी मैं तरसता रहा अम्मा (चाची) के पास जाने के लिये। छुट्टी में जाता कांधला ही था, लेकिन दिल अम्मा (चाची) के पास ही रहता था। पापा जी (चाचा) ज्यादा शराब पीने लगे थे। मेरे मन में आया कि यदि पापा जी (चाचा) को कुछ हो गया, तो अम्मा (चाची) का क्या होगा? उनके बच्चों का क्या होगा? ...तो विवाह न करने के पीछे एक यह बात भी मन में जरूर थी, लेकिन असल तो बाबाजी और महात्मा के प्रभाव से ही हुआ।
52 वर्ष की उम्र में पापाजी (चाचा) का निधन हो गया। इस बीच विवाह के लिये दबाव भी पड़ा। मैंने अम्मा (चाची) के बेटे-बेटियों की शिक्षा...पढ़ाई में जब जैसी जरूरत हुई, किया। हालांकि मेरा अपने छोटे भाइयों से भी स्नेह रहा, लेकिन अम्मा (चाची) के बच्चों के साथ लगाव अधिक रहा। मैं आज भी जब कभी मुजफ्फरनगर जाता हूँ, तो अम्मा (चाची) के बेटे अनिल के यहाँ ही ठहरता हूँ। भाइयों के घर भी जाता हूँ, लेकिन ठहरता अनिल के घर ही हूँ। अनिल का बेटा चेतन एन्वायरोटेक में है। छोटा बेटा देहरादून में है। आज मेरी आवश्यकताओं को एसके गुप्ता (एन्वायरोटेक के संचालक) और चेतन ही देखते हैं।
हमारे परिवारों में आपस में काफी स्नेह है। पिछले वर्ष मैंने परिवार को भी चेतावनी दे दी थी कि जो मेरे स्वास्थ्य की बात करेगा, वह मेरा शत्रु होगा। मैंने कह दिया था कि आना, तो मेरी स्वास्थ्य की चिन्ता व चर्चा न करना।
(मुझे लगा कि पाठकों को स्वामी जी का पारिवारिक परिचय न मिला, तो यह शृंखला अधूरी रह जाएगी। इस बारे में जिज्ञासा पर स्वामी जी कुछ क्षण चुप रहे। तारीख - एक अक्टूबर, 2013; स्वामी जी के अनशन का 111वाँ दिन था। मैंने सोचा कि यदि अभी न मालूम हो सका, तो मालूम नहीं कल हो न हो। अतः कई बार अनुरोध करने पर उन्होंने थोड़ा-बहुत बताना स्वीकार किया। - प्रस्तोता)
मैं नहीं मानता कि एक व्यक्ति के नाते मेरा कोई महत्त्व है। मैं यह भी नहीं मानता कि मेरी कोई जीवनी लिखी जाये। हो सके, तो एयर पॉल्युशन (वायु प्रदूषण) के बारे में एन्वायरोटेक लिखे। (एन्वायरोटेक, दिल्ली में ओखला स्थित एक कम्पनी है, जिसके प्रमुख संचालक श्री एसके गुप्ता हैं।) पवित्र, पीएसआई (पीपुल्स साइंस इंस्टीट्युट, देहरादून) के हैं। उनके पास बहुत सामग्री है। जल-नदी प्रदूषण के बारे में पीएसआई लिखें।
आपने मेरे परिवार के बारे में पूछा है। मेरे पिता का नाम श्री आनन्द स्वरूप है और माता जी का नाम श्रीमती लीला देवी। तरुण मेरा दत्तक पुत्र है। मेरे हिस्से में जो भी सम्पत्ति है, वह मैंने तरुण को ही उत्तराधिकार में दी है।
मेरी एक बहन है - स्नेहलता। स्नेह के पति भिवाड़ी में इंजीनियर हैं। हम भाइयों में उत्तम स्वरूप अग्रवाल मेरा पाँचवाँ भाई है। एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग करके प्राइवेट एजुकेशन के क्षेत्र में है। चौथा, निरंजन स्वरूप अग्रवाल है। विकास स्वरूप, मेरा तीसरे नम्बर का भाई है। विकास स्वरूप, इमरजेंसी के दौरान कांधला में ज्यादा सक्रिय रहे। वह सीधे-सीधे जे पी (लोकनायक जयप्रकाश नारायण) को मानते थे। विकास स्वरूप के एक बेटा और एक बेटी है। दामाद, कम्प्युटर हार्डवेयर इंजीनियर है। बेटा, नोएडा स्थित शारदा यूनिवर्सिटी के कम्प्युटर इंजीनियरिंग विभाग का अध्यक्ष है। दूसरे नम्बर के भाई का नाम ओमप्रकाश है। ओमप्रकाश का बेटा, पॉलीटेक्निक कोचिंग करते हैं। बेटी-दामाद डॉक्टर हैं।
चौथे नम्बर वाले निरंजन खेती करते हैं। उनकी पहली पत्नी की पहली डिलीवरी में डेथ हो गई थी। बच्चा-जच्चा दोनों का देहान्त हो गया था। उससे निरंजन काफी विक्षिप्त हो गया था; एबनॉरमल। हम उनका दूसरा विवाह चाहते थे। उन्होंने विधवा से विवाह किया। जिससे विवाह किया, उनका एक बच्चा भी था; एक साल का। बच्चे के बाबा उसे अपने पास रखना चाहते थे। बच्चे की माँ ने कहा कि यदि मैं न होती, तो बच्चा भी न होता और शादी भी न होती।
तरुण ही वह बच्चा है। बच्चा घर आया। उसी वक्त मैंने आईआईटी छोड़ा था। मुझे तरुण से लगाव हो गया। उधर नई ब्याहता से निरंजन को लड़की हो गई। 1982 में लड़का भी हो गया। उसके बाद तरुण के प्रति निरंजन का रुख बदल गया। तरुण की पैदाइश सन 75 की है। 1982 में तरुण छह साल का हो गया था। तब मैं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की नौकरी में था। मेरी सगी बहन ने मुझे ये सब बताया। तरुण भी कहता था कि पिताजी बहुत परेशान करते हैं। मैं तरुण के भविष्य के प्रति चिन्तित हुआ।
मैंने सोचा कि मैं क्या कर सकता हूँ?
अगले सप्ताह दिनांक 05 जून, 2016 दिन रविवार को पढ़िए स्वामी सानंद गंगा संकल्प संवाद शृंखला का 21वाँ कथन
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