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लखनऊ में खुलेगा प्राकृतिक कृषि विश्वविद्यालय

लखनऊ में “प्राकृतिक खेती के विज्ञान पर क्षेत्रीय परामर्श कार्यक्रम” हुआ। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री के “धरती मां को रसायनों से बचाने” के स्वप्न को पूरा करते हुए हम पूरी कोशिश करेंगे कि आने वाले समय में किसान रसायन मुक्त खेती करें। कार्यक्रम की पूरी खबर यहां पढ़ें

Author : श्रीकृष्ण चौधरी

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 16 जुलाई 2024 को 'प्राकृतिक खेती के विज्ञान पर क्षेत्रीय परामर्श कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत सहित कृषि क्षेत्र के अनेक विशेषज्ञ एवं प्रदेश भर से आए अग्रणी प्राकृतिक किसानों की उपस्थिति रही। इस आयोजन में सभी इस बात पर एकमत नजर आए कि पर्यावरण, कृषि एवं खाद्य श्रृंखला से जुड़ी वर्तमान समस्याओं का समाधान प्राकृतिक कृषि में ही निहित है।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि देश के एक राज्य में कृषि कार्य में अत्यधिक फर्टिलाइजर के उपयोग का हश्र ये हुआ कि आज वहां से 'कैंसर ट्रेन' चलानी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि हरित क्रांति से कृषि उत्पादन जरूर बढ़ा, मगर ये अधूरा सच है।

आज फर्टिलाइजर की अधिकता के कारण एक 'धीमा जहर' हमारी धमनियों में घुस रहा है। ये दुष्प्रभाव केवल मनुष्यों पर ही नहीं पड़ा है, बल्कि पशु-पक्षी भी इससे बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। देश में कई इलाके ऐसे भी थे जहां प्राकृतिक ढंग से भी कृषि उत्पादन अधिक था।

हमें बीज से लेकर बाजार तक कृषि उत्पादों के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखना होगा। मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि यूपी में जल्द ही एक कृषि विश्वविद्यालय को प्राकृतिक खेती के लिए समर्पित किया जाएगा। हरित क्रांति का लाभ अन्न उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में हुआ है, मगर ये अधूरा सच है। हमें 17वीं और 18वीं सदी के भारत के उन प्रांतों में प्राकृतिक खेती से होने वाली उत्पादन दर को भी देखना होगा जब घरती अपने प्राकृतिक स्वरूप में थी और अन्न उत्पादन भी ज्यादा था।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हमें खेती को लेकर पिछले सी-डेढ़ सौ वर्ष में जो पढ़ाया गया है, उसमें और पुराने समय के विज्ञान में कितना अंतर है। हमें इतिहास के पन्नों को फिर से पलटना होगा। हरित क्रांति के बाद जब खेती में फर्टिलाइजर का उपयोग हुआ तो कुछ समय तक उत्पादन तो बढ़ा, मगर आज एक स्लो प्वाइजन के रूप में वह हमारी धमनियों में घुसता जा रहा है। सीएम योगी ने कहा कि फर्टिलाइजर का दुष्प्रभाव केवल मनुष्यों में ही नहीं देखने को मिल रहा बल्कि पशु-पक्षी भी इससे प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि अमरोहा में निराश्रित गोवंश आश्रय स्थल में 12 से 14 गाय अचानक मर गईं, जब वहां विशेषज्ञ भेजे गए तो ये पता लगा कि चारे में बड़े पैमाने पर फर्टिलाइजर मिला था, जिसके कारण उनकी मौत हुई। हमें समझना होगा कि जब गाय अत्यधिक फर्टिलाइजर को बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है तो मनुष्य की स्थिति क्या होगी। सीएम योगी ने कहा कि उनके पास मुख्यमंत्री राहत कोष से इलाज के लिए बड़ी संख्या में लोग धन की मांग करते हैं, इसमें सर्वाधिक मामले कैंसर के होते हैं। आज से कुछ साल पहले इतनी भयावह स्थिति नहीं थी। आज गांव-गांव में युवाओं में कोई किडनी, कोई हार्ट तो कोई कैंसर से पीड़ित हो गया है। इसका कारण है कि हमारा खानपान कहीं न कहीं प्रभावित हुआ है। जिसने नई-नई बीमारियों को जन्म दिया है। इससे बचाव का नया मंत्र पीएम मोदी ने प्राकृतिक खेती का दिया है। हमें बीज से लेकर बाजार तक कृषि उत्पादों के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखना होगा। यूपी में इसके लिए बड़ी संभावना है। हमारे पास देश की 12 प्रतिशत भूमि है। यूपी में देश की 17 प्रतिशत आबादी रहती है। हम देश के खाद्यान्न का 20 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। हमारे पास पर्याप्त जल संसाधन है। हमें आज की आवश्यकता के अनुरूप उस क्वालिटी पर ध्यान देना होगा जो हमारे हैपिनेस इंडेक्स को ऊंचाई पर ले जा सके। मुख्यमंत्री ने कहा कि यूपी सरकार ने इस दिशा में कार्य प्रारंभ किया है। हमारे पास अभी 4 कृषि विश्वविद्यालय हैं, पांचवां बनने जा रहा है। 86 कृषि विज्ञान केंद्र हैं और दो केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय हैं। हमने कह रखा है कि प्राकृतिक खेती से जो भी प्रोडक्ट आता है, उसके सर्टिफिकेशन के कार्यक्रम को तेज गति से आगे बढ़ाना है। बीज से इसकी शुरुआत हो और बाजार तक पहुंचने पर अच्छा दाम मिल सके, ऐसी व्यवस्था कर रहे हैं हम। हमने प्रदेश के कृषि विश्वविद्यालयों को कह दिया है कि सर्टिफिकेशन लैब्स को अपग्रेड कीजिए, धन सरकार देगी। सीएम योगी ने कहा कि यूपी में क्लाइमेटिक जोन हैं। हर क्लाइमेटिक जोन में कृषि विज्ञान केंद्र को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित करने के रूप में हमने आगे बढ़ाया है। इसमें हम खेती को प्राकृतिक पद्धति से आगे बढ़ा सकेंगे। यूपी में आज कृषि विज्ञान केंद्र देखने लायक हैं। 2017 से पहले इन केंद्रों पर जंगल उग गये थे। आज ये किसानों, पशुपालकों और कृषि के लिए कुछ न कुछ योगदान दे रहे हैं। यूपी में 1 लाख एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती को लेकर जनजागरण हुआ है। खासकर बुंदेलखंड में इसके परिणाम अच्छे दिखाई दे रहे हैं।

प्राकृतिक कृषि पर केंद्रित इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री के 'धरती मां को रसायनों से बचाने' के स्वप्न को पूरा करते हुए हम पूरी कोशिश करेंगे कि आने वाले समय में किसान रसायन मुक्त खेती करें ताकि आने वाली पीढ़ी स्वस्थ्य रहे। उन्होंने देश के किसानों का आह्वान किया कि वे अपने खेत के एक हिस्से पर प्राकृतिक खेती करें। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती से उगाए हुए अनाजों, फलों और सब्जियों की बिक्री से किसानों को डेढ़ गुना ज्यादा दाम मिल जायेंगे। देश के कृषि विश्वविद्यालयों में प्राकृतिक खेती के अध्ययन व खोज के लिए प्रयोगशालाओं को स्थापित किया जाएगा जिनकी मदद से देश में प्राकृतिक खेती को मदद मिलेगी और अन्न के भंडार भी भरेंगे। देश के एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में जागरूक किया जाएगा ताकि वे देश के हर कोने में जाकर इसका प्रचार कर सके। उन्होंने कहा कि कहा कि केंद्र सरकार सभी हितधारकों से परामर्श करके प्राकृतिक खेती के लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता अभियान चलाएगी।

प्राकृतिक कृषि को देश भर में प्रसारित करने में संलग्न गुजरात के राज्यपाल श्री आचार्य देवव्रत ने अपने संबोधन में कहा कि प्राकृतिक खेती और जैविक खेती दो अलग-अलग चीजें हैं और इस अंतर को समझना जरूरी है। उन्होंने प्राकृतिक खेती के फायदों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में पानी की कम जरूरत होती है और यह किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। उन्होंने कहा कि यह अच्छी बात है कि अब सरकार प्राकृतिक खेती के महत्व को समझ गई है।

इस अवसर पर उत्तर प्रदेश सरकार में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, कृषि राज्यमंत्री बलदेव सिंह औलख, लद्दाख के कार्यकारी सभासद कृषि स्टेनजिन चोस्फेल, उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह, कृषि उत्पादन आयुक्त डह देवेश चतुर्वेदी, केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव कृषि एवं किसान कल्याण डॉ. योगिता सहित विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतिगण, विशेषज्ञ और प्रगतिशील किसान मौजूद रहे।।

 -लेखक लोक भारती के राष्ट्रीय संपर्क प्रमुख एवं उ.प्र. कृषक समृद्धि आयोग के सदस्य हैं। और लोकसम्मान पत्रिका के कार्यकारी संपादक भी हैं।


 

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