कुछ समर्पण, कुछ अकल, कुछ पसीना चाहिए देश का पर्यावरण सुधारने के लिये। कैलेंडर के पन्ने भी जुड़ जाएँ तो कोई हर्ज नहीं पर केवल कैलेंडर ताकते रहने से कुछ होगा नहीं। समय बीतते देरी नहीं लगती। सन 2000 भी देखते-देखते आएगा-जाएगा। कुछ करेंगे नहीं तो पर्यावरण की हालत जैसी की तैसी ही नहीं और भी खराब हो जाएगी। तब हमें सन 2000 में तीन शून्य भी दिख सकेंगे। अच्छा हो हम इन शून्यों को भरने का काम करें।
साफ माथे का समाज(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
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