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टिकाऊ खेती एवं बेहतर मृदा स्वास्थ्य हेतु जैविक उर्वरक (भाग 2)

"टिकाऊ खेती" का अंग्रेजी में अर्थ "Sustainable Agriculture" होता है. यह एक ऐसी कृषि प्रणाली है जो पर्यावरणीय सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए पौधों और जानवरों के उत्पादन को समन्वित करती है। भाग 2 में जानिए कैसे करें इस्तेमाल जैविक उर्वरकों का

Author : डॉ. वीरेन्द्र कुमार

कैसे करें जैविक उर्वरकों का उपयोग 

जैविक उर्वरकों की प्रयोग विधि निम्नलिखित हैं: 

1. बीज उपचार विधि 

जैविक उर्वरकों की यह विधि सबसे सुगम और आसान है। सर्वप्रथम फसल की आवश्यकतानुसार जैविक उर्वरक का चुनाव कर लें। बीज उपचार के लिए 1/2 लीटर पानी में लगभग 50 ग्राम गुड़ या शक्कर अच्छी तरह मिलाकर घोल बना लें। फिर इसमें जैविक उर्वरक की उचित मात्रा मिला लें। सामान्यतः 50 किलोग्राम बीज के लिए 500 ग्राम जैविक उर्वरक की आवश्यकता होती है। फिर इस घोल को बीज पर अच्छी तरह से छिड़क कर मिला । जिससे प्रत्येक बीज पर घोल की परत चढ़ जाए। उपचारित बीज को छाया में आधा घंटे तक सुखा लें। बीजों की बुवाई सूखने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए।

2. मुदा उपचार विधि 

एक किलोग्राम जैविक उर्वरक को अच्छी प्रकार से सड़ी हुई 10 किलोग्राम गोबर की खाद व 20 किलोग्राम मिट्टी के साथ अच्छी तरह से मिला लें। इस मिश्रण को फसल की बुवाई के समय या अंतिम जुताई के समय खेत में समान रूप से छिड़क दें। फसल से अधिक लाभ हेतु बुवाई के समय 5-10 किलोग्राम/हैक्टेअर जैविक उर्वरक उपयोग करें। 

3. पौध जड़ उपचार विधि 

धान तथा सब्जी वाली फसलें जिनकी रोपाई की जाती है, उनके लिए यह विधि उपयुक्त है। इस विधि में 200 ग्राम जैविक उर्वरक को एक बड़े मुंह वाले बर्तन या बाल्टी में 50 लीटर पानी में घोल लें। इसके बाद नर्सरी से पौधों को उखाड़ कर 15-20 मिनट के लिए पौधों की जड़ों को उस घोल में डुबाएं। इसके तुरंत बाद रोपाई कर दें। यह सारी प्रक्रिया छाया में ही करनी चाहिए। 

4. कंद उपचार विधि

इस विधि में गन्ना, अदरक, घुइयां व आलू जैसी फसलों में जैविक उर्वरकों के उपयोग हेतु कंदों को बुवाई पूर्व उपचारित किया जाता है। इसके लिए एक किलोग्राम जैविक उर्वरक का 30-40 लीटर पानी में घोल बना लेते हैं। इसके बाद कंदों को 15-20 मिनट तक घोल में डुबोकर रखने के पश्चात बुवाई कर देनी चाहिए। 

धान की फसल में जैविक उर्वरक का उपयोग 

धान की फसल में नील हरित शैवाल की 10-12 किलोग्राम मात्रा प्रति हैक्टेअर की आवश्यकता होती है। धान की रोपाई के एक सप्ताह पश्चात जब पौध अच्छी तरह से रोपित हो जाए तब इसको खेत में एक समान रूप में फैला दिया जाता है। इस कल्चर का प्रयोग मृदा में सुबह या शाम के समय मंद धूप में करना चाहिए। कल्चर का प्रयोग करते समय धान के खेत में पानी अवश्य रहना चाहिए तथा यह पानी 5-6 दिनों तक लगातार भरा रहना चाहिए। यह 25-30 किलोग्राम प्रति हैक्टेअर की दर से पौधों को नाइट्रोजन उपलब्ध कराता है। 

तरल जैविक उर्वरकों का विकास 

हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, के नई दिल्ली स्थित सूक्ष्म जीव विज्ञान संभाग ने तरल जैविक उर्वरकों का उत्पादन भी शुरू कर दिया है। इनका जीवन काल एक वर्ष से अधिक है। इनमें बैक्टीरिया की उच्च संख्या होती है। साथ ही इनका भंडारण व प्रयोग विधि बहुत ही आसान है। इनका प्रयोग बुवाई के लिए बीज उपचारित करने, पौध रोपण के लिए जड़ उपचारित करने तथा वृक्षों के लिए मृदा को उपचारित करने के लिए किया जाता है। आजकल निम्न तरल जैविक उर्वरक पूसा संस्थान में उपलब्ध हैं। इसके अलावा नेशनल रिसर्च डिवेलपमेंट कारपोरेशन (एनआरडीसी), नई दिल्ली के पास भी जैविक उर्वरकों की कई प्रौद्योगिकियां व्यावसायीकरण हेतु उपलब्ध हैं। 

1. एजोटोबैक्टर-सभी अनाज वाली फसलों व बागवानी फसलों के लिए 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन/हैक्टेअर मृदा में उपलब्ध कराता है। 

2. पोटाश विलायक-सभी फसलों के लिए 5-10 किलोग्राम पोटाश/हैक्टेअर उपलब्ध कराता है। 

3. जिंक विलायक- इसके प्रयोग से सभी फसलों जैसे अनाजों, सब्जियों और फलों में जिंक पोषण में सुधार होता है।

कहां से प्राप्त किए जा सकते हैं जैविक उर्वरक 

विभिन्न प्रकार के जैविक उर्वरकों के तैयार पैकेट सभी राज्यों में स्थित कृषि विश्वविद्यालय के सूक्ष्म जैव संभागों, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान स्थित सूक्ष्म जैव विज्ञान संभाग, कृषि सेवा केंद्रों व सहकारी समितियों से प्राप्त किए जा सकते हैं।

सारांश 

संधारणीय खेती एवं मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जैविक उर्वरकों का उपयोग अति आवश्यक है। जैविक उर्वरक कम खर्च पर आसानी से उपलब्ध हैं तथा इनका उपयोग भी बहुत सुगम हैं। जैविक उर्वरकों के इस्तेमाल से विभिन्न फसलों की उपज में 10 से 25 प्रतिशत का शोषण कर सकता है। इसके अलावा बैक्टीरिया उर्वरक पौधों की जड़ों के आसपास (राइजोस्फिअर) वृद्धिकारक हार्मोन उत्पन्न करते हैं। जिससे पौधों की वृद्धि व विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। जैविक उर्वरकों का चयन फसलों की किस्म के अनुसार ही करना चाहिए। खेती में उपर्युक्त बैक्टीरिया उर्वरकों से बीजों को उपचारित करने पर नाइट्रोजन व फॉस्फोरस उर्वरकों के इस्तेमाल में 10-20 प्रतिशत की कम जरूरत पड़ती है। 

जैविक उर्वरकों के उपयोग में सावधानियां 

जैविक उर्वरकों का उपयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियां रखनी चाहिएः 
1. जैविक उर्वरकों को धूप व गर्म हवा से बचाकर रखना चाहिए। 
2. फसलों की किस्म के अनुसार ही जैविक उर्वरकों का चयन करें। 
3. जैविक उर्वरकों का पैकेट उपयोग के समय ही खोलना चाहिए।
4. रासायनिक उर्वरकों, शाकनाशियों व कीटनाशी दवाओं के साथ जैविक उर्वरकों का कभी भी इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। 
5. जैविक उर्वरक उपयोग करते समय पैकेट के ऊपर उत्पादन तिथि, उपयोग की अंतिम तिथि व जैविक उर्वरक का नाम अवश्य देख लें।

संपर्क - 
डॉ. वीरेन्द्र कुमार मुख्य तकनीकी अधिकारी, जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली-110012 
ई-मेल: v.kumardhama@gmail.com

यह आलेख दो भागों में है

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