ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में इस क्षेत्र में एक वामदेव ऋषि रहा करते थे, जिनके नाम पर इसको बांदा कहा जाने लगा था। इस जिले की भूमि भी पहाड़ी, पठारी, ऊँची-नीची, खन्दकी है। खन्दकी खन्दकों जैसी भूमि होने से वर्षा ऋतु में समूचे खन्दक छोटे-छोटे तालाबों में तब्दील हो जाते हैं, भूमि दलदली हो जाती है।
बाघन नदी जिले को दो भागों-उत्तरी-पूर्वी एवं दक्षिणी-पश्चिमी में विभाजित करती है। जिले की नीची भूमि मार पड़ुआ एवं काली कावर है लेकिन जो ऊँची भूमि वाला क्षेत्र है, उसे पाठा क्षेत्र कहा जाता है। पाठा क्षेत्र में पानी का अभाव है, भूमि रेतीली-सी, अनुपजाऊ है। नदियों की कछारों और पहाड़ों की पटारों की भूमि गीली एवं दलदली रहती है, जिसमें धान की खेती अधिक होती है। बांदा में विभिन्न प्रकार का धान (चावल) पैदा किया जाता है जो जिले से बाहर दूर-दूर तक निर्यात किया जाता है।
पाठा क्षेत्र (Upland Area)-पाठा (पठारी) क्षेत्र कर्बी एवं मऊ तहसीलों के मध्य का भूभाग है। यह टौरिआऊ, पथरीला, पठारी, ऊँचा, पहाड़ी एवं जंगली क्षेत्र है। भूमि राँकड़ है। जहाँ कहीं थोड़ी-सी काबिल काश्त भूमि है वहाँ कोल, भील, कौंदर एवं सहरिया (बनवासी) आदिवासी जातियों की झोपड़ियों वाली बस्तियाँ हैं। यह बांदा जिले का आदिवासी बहुल क्षेत्र है। वर्षा ऋतु (खरीफ) के मौसम में इस पाठा क्षेत्र में कोदों पैदा हो जाता है।
इस क्षेत्र में विन्ध्य की पहाड़ियाँ फैली हुई हैं। पहाड़ी, पथरीला भूभाग होने से ही इसे ‘पाठा’ (Upland Area) कहा गया है। पठार के मध्य दूर-दूर भरके नुमा तालाब भी हैं। जिनका ही पानी आदिवासी लोग पीते हैं। आदिवासी महिलाएँ टौरियाँ पहाड़ियाँ चढ़ते-उतरते दूर-दूर से मिट्टी के घड़ों में पानी लाती हैं। पहाड़ियों और टौरियों के मध्य एक भौंरा तालाब है जिससे आदिवासी महिलाएँ पानी लाते भारी कष्ट सहती हैं। परेशान होकर वे कह उठतीं है, “भौंरा तेरा पानी गजब कर जाय। गगरी न फूटे खसम मर जाय।” पाठा क्षेत्र के लोग जंगली जलाऊ लकड़ी बेचकर उदरपोषण करते हैं। कहा जाता है, “यह पाठा के कोल, जिनका प्यास भरा इतिहास है। इनका भूख भरा भूगोल है।”
बांदा जिले की यमुना, केन, चन्द्रावल, बाघन, पयश्विनी, चान, बरदाहा एवं गरारा नदियों की कछारी दलदली भूमि में वर्षा ऋतु में धान की खेती की जाती है। जिले में जो तालाब हैं, वह खुदेलुआ एवं छोटे निस्तारी हैं जिनसे कृषि के लिये कम पानी लिया जाता है। प्रमुख तालाब निम्नांकित हैं-
1. नवाब टैंक बांदा- नवाब जुल्फिकार अली ने यह तालाब बनवाया था जो नगर का निस्तारी तालाब है।
2. अलवारा तालाब, राजापुर- चित्रकूट जनपद के ग्राम राजापुर में अलवारा जन निस्तारी तालाब है।
3. खार तालाब, सीमू- बवेरू परिक्षेत्र के सीमू ग्राम में खार तालाब है, जो खुदेलुआ है। एक बड़ी बँधिया-सा है, कम गहरा है। यह तालाब जाड़ों के अन्त तक सूख जाता है।
4. दुर्गा तालाब, तरौहा- दुर्गा तालाब कर्बी से 5 किलोमीटर की दूरी पर, तरौहा के निकट स्थित है। यह बड़ा तालाब है। जननिस्तारी तालाब होने के साथ ही इससे कृषि सिंचाई के लिये भी पानी लिया जाता है।
5. राजा तालाब, बांदा- राजा तालाब बांदा के बुन्देला राजा गुमान सिंह (भूरागढ़) ने बनवाया था। यह तालाब बस्ती के मध्य में था जिसके चारों ओर खिरकों के रूप में बस्ती थी। वर्तमान में बांदा नगर का विकास होने से इसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है।
6. फुटना तालाब, बड़ा कोटरा- यह चन्देली तालाब है। जो मऊ तहसील के अन्तर्गत है। यह तालाब फूट चुका है। इसीलिए लोग इसे फुटना तालाब कहते हैं।
7. कोठी तालाब, कटोेरा तालाब एवं गणेश तालाब, कर्वी- यह तालाब विनायक राव मराठा ने बनवाये थे। तालाब सुन्दर एवं जन निस्तारी है। गणेश तालाब पर गणेश मन्दिर है।
8. गौंड़ा का फूटा तालाब- यह तालाब नरैनी क्षेत्रान्तर्गत है जो चन्देल काल का है। यह दो पहाड़ों के मध्य छोटा बाँध बना कर बनाया गया है। यह सुन्दर बड़ा तालाब रहा, परन्तु जल भराव की अधिकता और देख-रेख की कमी के कारण फूट गया था जिससे इसे फूटा ताल कहा जाता है।
9. कालिंजर के तालाब- जिला बांदा तहसील नरैनी में कालिंजर पहाड़ पर कालिंजर किला है। किला की उत्तरी तलहटी में कालिंजर बस्ती है। कालिंजर किला भारत के प्रसिद्ध किलों में से एक है। कालिंजर पहाड़ के ऊपर, किले के अन्दर के प्रांगण में पत्थर काट-काटकर अनेक सुन्दर तालाबों का निर्माण किया गया था। चन्देल नरेशों के बनवाये तालाबों में गंगा सागर, मझार ताल, राम कटोरा, कोटि तीर्थ तालाब, मृगधारा शनिकुंड, पांडु कुण्ड, बुढ़िया का ताल, भैरों बाबा की झिरिया (भैरों कुण्ड), मदार तालाब, ब्राम्हण तलैया (बिजली तालाब) प्रसिद्ध हैं। पहाड़ के नीचे बस्ती में बेला ताल एवं गोपाल तालाब हैं।
10. लोखरी के तालाब- जिला बांदा, तहसील मऊ के अन्तर्गत लोखरी ग्राम है। ग्राम की कालिका देवी पहाड़ी की तलहटी में चन्देलकालीन प्राचीन तालाब है। इसी के पास कोटा कंडेला मन्दिर के पास भी एक छोटा तालाब है जो जन-निस्तारी है।
11. मड़फा के तालाब- नरैनी तहसील अन्तर्गत मड़फा पहाड़ पर कालिंजर के समकाल का विशाल चन्देली किला है। किले के अन्दर मन्दिर से संलग्न पत्थर काट कर विशाल सुन्दर तालाब का निर्माण किया गया था, जिसमें सदैव जल भरा रहता है। इसी के पास एक छोटा तालाब भी है, जिसमें केवल वर्षा ऋतु में पानी रहता है।
12. रासिन के तालाब- नरैनी तहसील अन्तर्गत के रासिन कस्बा है, जो चन्देल काल में पहाड़ी पर था। चन्देल काल का एक तालाब पहाड़ पर पत्थर काट कर बनाया गया था। जो लम्बाकार है। एक दूसरा छोटा तालाब पहाड़ी के नीचे बलन बाबा मार्ग पर है।
13. लामा के तालाब- बांदा से चिल्ला मार्ग पर 13 किमी. की दूरी पर लामा ग्राम है, जहाँ 5 तालाब हैं जो बोलवा, धोविहा, गुमानी, मदाईन एवं इमिलिहा हैं। यह सब निस्तारी तालाब हैं।
14. अरहर एवं मानिकपुरा ग्रामों में भी छोटे-छोटे एक-एक तालाब हैं।
बुन्देलखण्ड के तालाबों एवं जल प्रबंधन का इतिहास (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
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