जलवायु परिवर्तन

मानसून सत्र की शुरुआत में आफत की बारिश, जलवायु परिवर्तन के कारण

मौसम विज्ञानी और जलवायु वैज्ञानिक दोनों ही, एक बार फिर, चरम मौसम की घटनाओं में भारी वृद्धि के लिए ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते स्तर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। स्थिति को समझाते हुए स्काइमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन विभाग के उपाध्यक्ष, महेश पलावत ने कहा, “अत्यधिक भारी बारिश का चल रहा दौर तीन मौसम प्रणालियों के एक साथ होने का नतीजा है।

Author : प्रेम विजय पाटिल

बारिश की आमद गर्मी से राहत देने के लिए जानी जाती थी। मगर अब, यह राहत बन रही है आफत। भारत में चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि का पैमाना हर गुजरते साल के साथ नई ऊंचाई छू रहा है। साल 2023 की शुरुआत अगर सर्दी की जगह अधिक गर्मी के साथ हुई, तो फरवरी में तापमान ने 123 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया। आगे पूर्वी और मध्य भारत में अप्रैल और जून में उमस भरी गर्मी की संभावना जलवायु परिवर्तन के कारण 30 गुना अधिक हो गई थी। उसी दौरान चक्रवात बिपरजॉय अरब सागर में 13 दिनों तक सक्रिय रहा और लगभग दो हफ्तों की इस सक्रियता के चलते साल 1977 के बाद सबसे लंबी अवधि का चक्रवात बन गया।

फिलहाल पूरे उत्तर पश्चिम भारत में अत्यधिक भारी बारिश अपना कहर बरपा रही है। लगातार बारिश के कारण पूरे हिमाचल प्रदेश में अचानक बाढ़ और भूस्खलन हुआ है, जबकि दिल्ली में पिछले 40 वर्षों में सबसे अधिक बारिश दर्ज की गई है। मौसम विज्ञानी और जलवायु वैज्ञानिक दोनों ही, एक बार फिर, चरम मौसम की घटनाओं में भारी वृद्धि के लिए ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते स्तर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। स्थिति को समझाते हुए स्काइमेट वेदर में मौसम विज्ञान और जलवायु परिवर्तन विभाग के उपाध्यक्ष, महेश पलावत ने कहा,

“अत्यधिक भारी बारिश का चल रहा दौर तीन मौसम प्रणालियों के एक साथ होने का नतीजा है। यह तीन प्रणालियाँ है पश्चिमी हिमालय पर पश्चिमी विक्षोभ, उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों पर चक्रवाती परिस्थितियां, और गंगा के मैदानी इलाकों में चलने वाली मॉनसून की धुरी रेखा। इन तीनों का यहसंरेखण पहली बार नहीं हो रहा है और मानसून के दौरान यह एक सामान्य पैटर्न है। लेकिन अब ग्लोबल वार्मिंग के चलते मानसून के पैटर्न में बदलाव से फर्क पड़ा है। भूमि और समुद्र दोनों के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है, जिससे हवा में लंबे समय तक नमी बनाए रखने की क्षमता बढ़ गई है। इस प्रकार, भारत में बढ़ती चरम मौसम की घटनाओं में जलवायु परिवर्तन की भूमिका हर गुजरते साल के साथ मजबूत होती जा रही है।”

भारतीय मानसून पैटर्न पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कई शोध पहले ही स्थापित कर चुके हैं। मगर अब यह सब वायुमंडलीय और समुद्री घटनाओं से भी छेड़छाड़ कर रहा है। और ऐसा होने से ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों का असर और भी कई गुना बढ़ा गया है। आगे, आईआईटी-बॉम्बे में पृथ्वी प्रणाली वैज्ञानिक और विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. रघु मुर्तुगुड्डे बताते हैं, “यूं तो पहले भी चरम मौसम की घटनाएं हुई हैं, लेकिन 2023 एक अनोखा वर्ष रहा है। इन घटनाओं में ग्लोबल वार्मिंग महत्वपूर्ण योगदान तो दे ही रही है लेकिन कुछ दूसरी वजहें भी हैं। सबसे पहली वजह है कि अल नीनो ने आकार ले लिया है और यह वैश्विक तापमान को बढ़ा रहा है। अगली वजह है जंगल की आग जो कि इस बार तीन गुना बड़े क्षेत्रों में लगी है। इसका मतलब वायुमंडल में भी जंगल की आग से तीन गुना कार्बन उत्सर्जित हो रहा है और जमा हो रहा है। तीसरी वजह है उत्तरी अटलांटिक महासागर का गर्म अवस्था में होना। चौथा कारण है जनवरी के बाद से अरब सागर असाधारण रूप से गर्म हो गया है, जिससे उत्तर-उत्तर-पश्चिम भारत में अधिक नमी आ गई है। और पाँचवी वजह है ऊपरी वायुमंडल में हवा का बदला हुआ सर्क्युलेशन जिसके चलते धरती की सतह के ठीक ऊपर के सर्क्युलेशन पर असर डाल रहा है। इसके चलते उत्तर और मध्य भारत में बारिश भीषण बारिश हो रही है।”
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की 'भारतीय क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का आकलन' नाम की रिपोर्ट के अनुसार आने वाले समय में मानसूनी वर्षा न सिर्फ और अधिक तीव्र होगी, बल्कि उसका विस्तार क्षेत्र भी बढ़ेगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि तापमान के साथ वायुमंडलीय नमी की मात्रा में वृद्धि का भी अनुमान है। मध्य भारत में स्थानीय भारी बारिश की घटनाओं की आवृत्ति में भी काफी वृद्धि हुई है, जो आंशिक रूप से ग्रीनहाउस गैस आधारित वार्मिंग, एयरोसोल, और बढ़ते शहरीकरण के कारण नमी की उपलब्धता में बदलाव के कारण है। वैश्विक और क्षेत्रीय मॉडल जहां भारत में औसत मौसमी वर्षा में वृद्धि का अनुमान लगाते हैं, वहीं वह मानसून के कमजोर सर्क्युलेशन का भी अनुमान लगाते हैं। आगे बात करें तो बीसवीं सदी के मध्य से, भारत में औसत तापमान में वृद्धि के साथ चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि देखी गई है। और अब तो इस बात के पुख्ता वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि मानवीय गतिविधियों ने क्षेत्रीय जलवायु में इन परिवर्तनों को प्रभावित किया है।

भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के निदेशक, वैज्ञानिक-जी, कृष्णन राघवन ने भारतीय मौसम को प्रभावित करने वाले वैश्विक सर्कुलशनों पर शोध की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा, “ध्रुवीय क्षेत्र चिंताजनक दर से गर्म हो रहे हैं, जिससे हिमनदों की बर्फ पिघल रही है। इसके कारण, मिड लैटिट्यूड के सर्क्युलेशन पैटर्न मिड लैटिट्यूड और ट्रोपिकल क्षेत्रों में में वायुमंडलीय  सर्क्युलेशनपैटर्न को प्रभावित कर रहा है। हमें इस पर और अधिक शोध करने की आवश्यकता है क्योंकि भारत में मौसम के बदलते मिजाज में इसके योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता है।आर्कटिक अंप्लीफिकेशन नाम के एक कारक  पर ध्यान देने की ज़रूरत है।" आईपीसीसी रिपोर्ट ने , ' बदलती जलवायु में मौसम और जलवायु की चरम घटनाएं ' ने पहले ही चेतावनी दी थी कि गर्मी और मानसून की वर्षा भी बढ़ेगी और अधिक बार होगी। भारतीय उपमहाद्वीप में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में 20 प्रतिशत की वृद्धि होगी।

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