केदारघाटी में बार-बार आपदा (Needpix.com) 
आपदा

चेतावनी देती केदारघाटी

केदारघाटी में हाल ही में आई आपदा ने एक बार फिर से लोगों के दिल में डर का माहौल भर दिया है। 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद से इस क्षेत्र में पुनर्निर्माण कार्य तेजी से हो रहे हैं पर बार-बार आ रही आपदा हमें क्या बता रही है

Author : जगमोहन रौतेला

केदारनाथ के पैदल मार्ग पर गत 26 अगस्त 2024 को घोड़े खच्चरों की आवा-जाही शुरू हो गई। उस दिन 20 से अधिक घोड़ा-खच्चर पर राशन, सब्जी व अन्य सामग्री केदारधाम पहुँचाई गई। इसके बाद सरकार की मंशा अब केदारनाथ के पैदल मार्ग से यात्रा शुरू करने की है। गत 31 जुलाई 2024 को केदारनाथ के पैदल मार्ग पर बादल फटने के बाद से गौरीकुण्ड से केदारनाथ के लिए घोड़ा-खच्चरों का संचालन बंद कर दिया गया था। गौरीकुण्ड-केदारनाथ पैदल मार्ग 31 जुलाई की आपदा में 29 स्थानों पर क्षतिग्रस्त हो गया था।

लोक निर्माण विभाग ने लगभग 25 दिन के बाद पैदल रास्ते को आने-जाने लायक बना दिया है। एक ओर जहाँ केदारनाथ का पैदल मार्ग खुल रहा था, वहीं दूसरी ओर गत 26 अगस्त 2024 को ही बदरीनाथ, यमुनोत्तरी हाईवे समेत डेढ़ सौ सड़कें बंद चल रही थी। सड़कों के लगातार बंद होने की वजह से पर्वतीय क्षेत्रों में जनजीवन प्रभावित था। बद्रीनाथ का रास्ता नंदप्रयाग में 26 अगस्त को लगातार पाँचवें दिन भी बंद रहा। लोक निर्माण विभाग के अधीन 48 सड़क 26 अगस्त तक उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में बंद थी।

केदारनाथ घाटी में गत 31 जुलाई को हुई अति बारिश ने ऑल वैदर रोड की असलियत खोल कर रख दी। इसके साथ ही सरकार के आपदा प्रबंधन की भी पोल खुल कर सामने आ गई। ठीक 10 साल बाद केदार घाटी में हुई अतिवृष्टि ने एक बार फिर से 2013 की केदारनाथ आपदा की याद दिला दी। केदारनाथ ही नहीं प्रदेश भर में आपदा से हो रहे नुकसान ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि सरकार ने पिछली आपदाओं से जनता के हित में कुछ सीख नहीं ली है।

पर्यटन के नाम पर पहाड़ों में भारी भीड़ को न्यौता देने की नीति को उसने और जोर-शोर से अपना लिया है। सीख ली है तो केवल जोशीमठ आपदा से कि किस तरह सच को छिपा लिया जाए। सभी जानते हैं कि जोशीमठ भू-धंसाव मामले में केंद्र सरकार ने वैज्ञानिकों के बयान देने पर रोक लगा दी थी, ताकि आपदा के कारणों का सच सामने न आ सके। या केवल वही बातें सामने आएं, जिससे सरकार को शर्मिंदा न होना पड़े। पूरे प्रदेश में बारिश की अति ने ऑल वैदर रोड की असलियत भी खोल दी, तो सरकार के आपदा प्रबंधन की भी। उत्तराखण्ड के आपदा प्रबंधन विभाग के 14 अगस्त तक के आंकड़ों के अनुसार, तब तक प्राकृतिक आपदा में 53 लोगों की मौत हो चुकी थी। 35 लोग घायल हुए थे, जबकि दो लापता थे। इसके अलावा 95 बड़े और 198 छोटे पशु मर चुके थे। सड़क हादसों में 44 लोग अपनी जान गंवा चुके थे और 161 लोग घायल हुए थे। तब तक आपदा में 1,052 घर आंशिक रूप से, 197 घर बुरी तरह से और 19 घर पूरी तरह ध्वस्त हो चुके थे। केवल चार धाम यात्रा की बात करें तो विभाग के अनुसार, 14 अगस्त 2024 तक चारों धामों यमुनोत्तरी, गंगोत्तरी, केदारनाथ और बदरीनाथ में 21 लाख 67 हजार लोग आ चुके थे, जिनमें से विभिन्न कारणों से 180 की मौत हो चुकी थी। इनमें 177 लोगों की स्वास्थ्य खराब होने से मौत हो गई जबकि तीन प्राकृतिक आपदा के कारण जान गंवा बैठे। तब तक सात और आठ जुलाई की बारिश ने कुमाऊं के नैनीताल, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा में काफी नुकसान किया। 

मूसलाधार बारिश से कारण कई सड़कें बह गई और एक पुल को भी नुकसान पहुँचा। आठ लोगों की मौत हुई। बारिश से नुकसान इतना ज्यादा था कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खुद हल्द्वानी जाकर अधिकारियों के साथ बैठक करनी पड़ी। नैनीताल, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में नुकसान के बाद बारिश के कारण बर्बादी का आलम उधमसिंह नगर जिले में भी देखने को मिला। उधमसिंह नगर में मानसून के दौरान बारिश से मध्य अगस्त तक 9 लोगों की मौत हो चुकी थी और पूरे कुमाऊं मंडल में बारिश से तब प्रदेश में 2,596 सड़कें प्रभावित हुई थीं। सरकार का दावा है कि 2,435 सड़कों को चालू कर दिया गया है, बारिश और भूस्खलन के कारण सड़कें बार-बार बह और ढह जा रही हैं। अभी लगभग एक महीना और बारिश का दौर चलेगा। ऐसे में क्या हालात हो सकते हैं, इसकी कल्पना की जा सकती है। इस मानसून में प्रदेश के लगभग हर जिले से तबाही हुई, हालांकि देहरादून और हरिद्वार जिले में बारिश से नुकसान कम हुआ है।


तक 23 लोगों की मौत हो चुकी थी और लगभग 20 लोगों की मौत नदियों के उफान पर आने और बहने से हुई। पूरे अगस्त महीने तक की बात करें तो मरने और लापता होने वालों की संख्या इससे कहीं अधिक है। जो आर्थिक नुकसान भूस्खलन और नदियों के कटाव से हुआ, उसका आंकलन होना अभी बाकी है।

पूरा गढ़वाल मानसून के समय आपदा के प्रति बेहद संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है। इस बार की बारिश ने भी यह बताया कि सबसे अधिक नुकसान गढ़वाल क्षेत्र में होगा। इसकी शुरुआत गंगोत्तरी धाम में बादल फटने से हुई। धाम में पानी के 'तूफान' ने वहाँ के गंगा घाटों और आवासीय मकानों, सड़कों, बिजली लाइनों को भी काफी नुकसान पहुँचाया। गनीमत रही कि गंगोत्तरी धाम में किसी तरह की जनहानि नहीं हुई। इसके बाद टिहरी गढ़वाल के बूढ़ाकेदार में आपदा का 'रौद्र' रूप देखा गया।

इस भीषण आपदा में लोगों ने अपने घरों को पत्तों की तरह बिखरते हुए देखा। भूस्खलन की चपेट में आए टिहरी के पूरे तिनगढ़ गाँव को विस्थापित होना पड़ा है। टिहरी के बाद रुद्रप्रयाग जिले में भी कुदरत ने खूब 'हाहाकार' मचाया। 31 जुलाई 2024 की रात केदारनाथ पैदल यात्रा मार्ग पर मूसलाधार बारिश के कारण कई जगह भूस्खलन हुआ, जबकि कई जगह रास्ता पूरी तरह बह गया। इससे केदारनाथ धाम और यात्रा मार्गों पर हजारों तीर्थ यात्री फंस गए। कई लोग बारिश के डर से अपनी जान बचाने के लिए जंगलों की तरफ बढ़े और रास्ता भटक गए। चार धाम यात्रा रोकी गई। इसमें आश्चर्यजनक बात यह है कि इस वर्ष रुद्रप्रयाग प्रशासन ने रात के समय भी यात्रा जारी रखी थी, जबकि पहले शाम 3-4 बजे तक केदारनाथ धाम से नीचे या गौरीकुंड से ऊपर यात्रियों को रोक दिया जाता था।

31 जुलाई 2024 को हुई अतिवृष्टि में सैकड़ों लोग केदारनाथ और गौरीकुंड केदारनाथ के बीच पैदल मार्ग में फंसे हुए थे। सरकार फंसे यात्रियों की संख्या अलग-अलग बताती रही। रेस्क्यू लोगों की सरकार ने समय-समय पर जो तादाद बताई उससे साफ लगा कि सरकार कुछ तो छिपा रही है। सरकार ने रेस्क्यू ऑपरेशन के साथ सेना की मदद से सर्च अभियान भी शुरू किया। यात्रा मार्ग पर लिनचोली के पास दो स्निफर डॉग की मदद से लापता लोगों की
खोजबीन की। इस बीच सवाल उठने लगे कि क्या सरकार के पास ये आंकड़े हैं कि 31 जुलाई के आसपास केदारनाथ में ठीक-ठीक कितने तीर्थयात्री मौजूद थे? उदाहरण के तौर पर एक अगस्त 2024 को रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी सौरभ गहरवार के एक्स हैंडल पर करीब 200-300 लोगों के केदार धाम के आसपास होने की जानकारी साझा की। अगले ही दिन 2 अगस्त की शाम तक ये आंकड़ा 7,000 पार कर गया। आपदा प्रबंधन और पुनर्वास सचिव विनोद कुमार सुमन ने दावा किया कि 2 अगस्त तक कुल 7,234 यात्रियों को रेस्क्यू किया गया। 3 अगस्त को 1,865 यात्री रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाये गये। 3 अगस्त तक कुल 9,099 यात्रियों को रेस्क्यू किया जा चुका था।

चार अगस्त को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश के एक बड़े अखबार के कार्यक्रम में दावा किया कि लगभग 17 हजार लोगों को रेस्क्यू किया गया। वहीं उसी दिन सरकारी विज्ञप्ति में संख्या 10,347 बताई गई। इसके विपरीत छह अगस्त को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने बयान जारी कर 15 हजार से अधिक जिंदगियाँ बचाने का दावा किया। सात अगस्त को भाजपा विधायक विनोद चमोली ने रेस्क्यू किए गए लोगों की तादाद 16 हजार से अधिक बताई तो 12 अगस्त को भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी ने रेस्क्यू लोगों की तादाद 20 हजार से अधिक बता दी।
आपदा प्रबंधन विभाग ने तब केवल 3 लोगों की मौत और 6 लोगों के लापता होने की पुष्टि की, जबकि स्थानीय लोग कुछ और ही दावा करते दिखाई दिए। चारधाम यात्रा से पहले सरकार सौ फीसद पंजीकरण की बात करती दिखती थी, लेकिन जब आपदा आई तो सारे दावे धरे के धरे रह गए। सरकार यात्रा में फंसे लोगों की सही संख्या ही नहीं बता पाई। आपदा प्रबंधन के अपर सचिव आनंद स्वरूप ने कहा कि पर्यटन विभाग ने आपदा प्रबंधन विभाग को केदारनाथ धाम पर आने वाले तीर्थ यात्रियों के संबंध में किसी तरह का कोई डेटा साझा नहीं किया। उन्होंने कहा कि केदारनाथ मार्ग पर फंसे यात्रियों को केवल प्रत्यक्षदर्शियों और मौके पर मौजूद हालातों के आधार पर ही चिन्हित किया जा रहा है।

उल्लेखनीय कि 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद साल 2021 में उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग ने चारधाम यात्रा में आने वाले यात्रियों के रियल टाइम मॉनिटरिंग और परिस्थितियों में यात्रियों की स्थिति जानने के लिए पंजीकरण और उनके वेरिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू की थी। यह इसलिए भी किया गया था कि क्योंकि 2013 में भी केदारनाथ में कितने यात्री मौजूद थे, इसकी जानकारी किसी विभाग के पास नहीं थी। दोबारा ऐसी स्थिति न बने, इसके लिए चारधाम यात्रा पर आने वाले यात्रियों का रजिस्ट्रेशन और उनके वेरिफिकेशन की कवायद की गई थी।

पिछले दो सालों से यह प्रक्रिया लगातार सवालों के घेरे में रही और इस साल जब 31 जुलाई की रात केदारनाथ पैदल मार्ग पर बादल फटा तो उस समय केदार घाटी में कितने लोग मौजूद थे? यह जानकारी किसी के पास नहीं थी। इससे सरकारी इंतजाम की पोल खुल गई और वह इस मामले में पूरी तरह से लापरवाह नजर आया। रुद्रप्रयाग जिला पर्यटन अधिकारी राहुल चौबे ने तो पल्ला झाड़ने के अंदाज में कहा कि यात्रियों का पूरा डाटा निदेशालय में ही संकलित किया जाता है। उन्हें इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। सत्ता पक्ष इस दौरान हेडलाइन मैनेजमैंट में लगा रहा और लगातार यह रट लगाता रहा है कि सरकार ने रेस्क्यू ऑपरेशन में अपनी पूरी ताकत झोंकी है। केदारघाटी में लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन चल रहा है। 

सत्ता पक्ष की अपने ही नियमों की धज्जियां उड़ाने का आलम तो यह रहा कि जहाँ सरकार ने आपदा के कारण चार धाम यात्रा रोकी थी और लोगों को निकालने के लिए हेलीकॉप्टर, सेना, वायुसेना एसडीआरएफ, एनडीआरएफ की मदद ली, वहीं पूर्व मंत्री व भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक हैलीकॉप्टर में परिवार समेत केदारनाथ दर्शन के लिए पहुँच गए। उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया में वायरल हुई तो सरकार को विवाद से पल्ला छुड़ाना मुश्किल हो गया।

जब सरकार ने चार धाम यात्रा पर रोक लगाई थी तो मदन कौशिक हेलीकॉप्टर से आपदा के समय कैसे सपरिवार केदारनाथ पहुँच गए? क्या यह प्रशासनिक स्तर पर घोर लापरवाही नहीं है? साथ ही एक सवाल यह भी है कि जब एक बड़े स्तर पर सेना की मदद से केदारनाथ के रास्ते में फंसे लोगों को हेलीकॉप्टर से निकालने का काम किया जा रहा था, तब ऐसी स्थिति में मदन कौशिक का परिवार हेलीकॉप्टर से उड़कर केदार धाम कैसे पहुँचा। उन विषम परिस्थितियों में अगर मदन कौशिक व उनके परिवार के साथ कोई हादसा हो जाता तो उसकी जिम्मेदारी किसकी होती? क्या स्वयं मदन कौशिक की? स्थानीय प्रशासन की या प्रदेश सरकार की? और इससे भी बड़ा सवाल यह है कि उन असामान्य परिस्थितियों में मदन कौशिक को सपरिवार केदारनाथ जाने की क्यों सूझी ? उन्हें इतनी हड़बड़ी केदारनाथ जाने की क्यों थी? क्या हालात सामान्य हो जाने के बाद केदारनाथ के दर्शनों के लिए नहीं जाया जा सकता था?

मानसून की बारिश के कारण इस साल 20 अगस्त 2024 तक उत्तराखण्ड में अकेले ऊर्जा निगम को ही करीब 126 करोड़ रुपये का नुकसान पहुँचा है। आपदाग्रस्त क्षेत्रों में करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर लंबी विद्युत लाइनें और तीन हजार से अधिक पोल क्षतिग्रस्त हो गए। इसके साथ ही प्रदेश भर में 400 से अधिक ट्रांसफार्मर को नुकसान पहुँचा। इसमें सर्वाधिक नुकसान रुद्रप्रयाग जिले की केदारघाटी में हुआ। वहाँ बिजलीघर से लेकर अन्य उपकरणों विद्युत लाइन, पोल और ट्रांसफार्मर को भारी क्षति पहुँची है। अतिसंवेदनशील रुद्रप्रयाग जिले में इस मानसून सीजन में 20 अगस्त तक 27 किलोमीटर से अधिक लंबाई की विद्युत लाइनें, कुल 236 बिजली के पोल, 10 ट्रांसफार्मर क्षतिग्रस्त हुए थे। इस साल यह देखा गया कि प्रदेश सरकार का ज्यादा ध्यान आपदा प्रबंधन से अधिक आपदा की खबरों के प्रबंधन पर रहा। इसका नतीजा मुख्यधारा के मीडिया में भी नजर आया, जिसने आपदा के प्रभाव और लोगों की परेशानियों को लेकर बहुत दिलचस्पी नहीं दिखाई। इस बारे में बहुत कम खबरें और रिपोर्टिंग देखने को मिली। न्यूज पोर्टलों का हाल तो इससे भी बुरा था। वह जय-जय कार के अलावा और कुछ नहीं कर रहे थे।

इसी कारण केदारनाथ घाटी में हुई आपदा की असल तस्वीर अभी भी सामने नहीं आई है। इसको एक छोटी सी घटना से समझा जा सकता है जब सरकार ने दावा किया कि वहाँ फंसे सभी लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है और बहुत अधिक मौत नहीं हुई हैं। व्यापक छानबीन के बाद अब वहाँ कोई शव नहीं है। पर इन सब दावों के 15 दिन बाद 16 अगस्त को उस क्षेत्र से 3 शव बरामद हुए। ऐसी स्थिति में फिर यह सवाल उठता है कि क्या केदार घाटी के मलबे में अभी भी और कुछ लोगों के दबे होने की आशंका है? जिनके शव उनको निकाले जाने का इंतजार कर रहे हैं? सरकार आपदा के प्रति कितनी गंभीर थी? इसका अंदाजा इन्हीं बातों से हो जाता है कि बरसात से काफी पहले 25 अप्रैल को ही देहरादून मौसम केंद्र के निदेशक डॉ विक्रम सिंह ने उत्तराखण्ड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (यूएसडीएमए) की ओर से मानसून की तैयारियों को लेकर विभिन्न विभागों के लिए आयोजित प्रशिक्षण शिविर में मानसून में सामान्य से सात फीसद अधिक बारिश होने का पूर्वानुमान व्यक्त करते हुए राज्य सरकार को तैयारियाँ शुरू करने की सलाह दे दी थी। 17 जून को वर्ष 2023 की केदारनाथ आपदा की 11 वीं बरसी पर राज्य की आपदाओं को लेकर पर्यावरण से जुड़े विशेषज्ञों के बीच वृहद मंथन में कहा गया था कि केदारनाथ में 2013 के से हालत फिर से बनते हैं तो बदरीनाथ और केदारनाथ में हो रहे भारी निर्माण के कारण इस बार नुकसान पहले से भी ज्यादा होगा।

विशेषज्ञों के बीच इस बात पर भी चर्चा की गई कि जिस तरह सरकार बिना आपदाओं की परवाह किए निर्माण कार्य को मंजूरी दे रही है, चार धाम यात्रा को भी रेगुलेट नहीं किया जा रहा है, उससे यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में आपदाओं के लिहाज से प्रदेश की मुसीबत बढ़ने वाली है। यही नहीं 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद सर्वोच्च
न्यायालय के आदेश पर बनी हाईपावर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में हर एक धाम की आपात स्थिति में बाहर निकालने की योजना बनाने के लिए कहा था। ऐसा सुझाव इसलिए दिया गया था कि चारों धाम तक पहुँचने के लिए जैसे-जैसे ऊपर जाया जाता है, रास्ते संकीर्ण होते जाते हैं। हर धाम की एक आपात निकासी योजना होनी चाहिए। 

इस सब के बाद भी राज्य सरकार और प्रशासन पूरी तरह लापरवाह बना रहा। जुलाई-अगस्त के महीने बारिश और भूस्खलन के लिहाज से वैसे ही बेहद संवेदनशील होते हैं। उत्तराखण्ड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में पिछले करीब 200 सालों से कोई बहुत बड़ा भूकंप नहीं आया है। हिमालयी क्षेत्रों में इंडियन और यूरेशियन टैक्टोनिक प्लेटों के घर्षण से जमीन के नीचे ऊर्जा एकत्र हो रही है। अध्ययन से पता चला है कि यह ऊर्जा कभी भी एक बड़ा भूकंप ला सकती है। ऐसे में प्रदेश में खासकर हिमालयी क्षेत्रों में विकास के नाम पर जिस तरह से अनियंत्रित निर्माण हुए हैं, उससे यह साफ है कि जल्द ही यदि कोई बड़ा भूकंप आया तो भीषण तबाही लाएगा। भूकंप भूस्खलनों को बहुत तेज कर देंगे। ऐसे में नदियों में मलबे से बने बांध टूटकर बाढ़ जैसी स्थिति बना सकते है।

इतना ही नहीं करीब दो महीने पहले ही तमाम वैज्ञानिक संस्थानों ने चेताया था कि उत्तराखण्ड की 13 ग्लेशियर/झीलें खतरे की जद में हैं। इन झीलों का फैलाव तेजी से बढ़ रहा है, जो भविष्य में केदारनाथ आपदा जैसे बड़े नुकसान का सबब बन सकता है। गंगोत्तरी ग्लेशियर के साथ बहुत सी झीलें हैं, जो अत्यधिक जोखिम में आ रही हैं। इसी प्रकार, वसुधारा ताल में भी जोखिम लगातार बढ़ रहा है। केदारताल, भिलंगना व गौरीगंगा ग्लेशियर का क्षेत्र भी निरंतर बढ़ता जा रहा है, जो कि आने वाले समय में आपदा के जोखिम के प्रति संवेदनशील है। मानसून को लेकर सरकारी तैयारी के ये हाल रहे कि जब मानसून सिर पर था, यानी गर्मियाँ चल रही थी तो सचिव आपदा प्रबंधन जापान के दौरे पर थे और उसी दौर में आपदा प्रबंधन के 20 से ज्यादा लोग नौकरी छोड़ चुके थे।

खैर, इस बार के आम बजट में केंद्र सरकार ने बादल फटने और भारी भूस्खलन के कारण उत्तराखण्ड को हुए नुकसान के लिए सहायता उपलब्ध कराने की बात कही है। अब देखना है कि आपदा की चोट के मरहम के लिए केंद्र अपनी पोटली से कितनी रकम जारी करता है? यह भी देखा जाना है कि क्या सरकार उत्तराखण्ड में आपदा प्रबंधन को बेहतर करने के लिए पहाड़ के कंधों को छील ऑल वैदर रोड जैसी चौड़ी सड़कें बनाने और पहाड़ में भीड़ बढ़ाने की अपनी नीति को पर्यावरण संरक्षण के नजरिए से बदलती है या फिर समय से साथ सबकुछ भूल पुराने ढर्रे पर कायम रहती है।

स्रोत -  युगवाणी, सितंबर-2024

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