मिर्ज़ापुर (उत्तर प्रदेश): वाराणसी से महज़ 50 किमी की दूरी पर मौजूद मिर्ज़ापुर ज़िला विंडहम फ़ॉल और लखनिया दरी जैसे प्राकृतिक झरनों के लिए मशहूर है। मानसून के दिनों में ये झरने पानी से लबालब रहते हैं, पर गर्मी के दिनों में यहां पानी की मात्रा बहुत कम रह जाती है। गर्मी के मौसम में इन झरनों को नदी से भरपूर पोषण नहीं मिल पाता है, जिसकी वजह से आस-पास के क्षेत्रों में भी पानी की कमी हो जाती है। ऐसे में बीते एक दशक से इस इलाके के हरे-भरे क्षेत्रों खास-कर विंडहम झरने के पानी पर एक बड़ा खतरा बन रहा है। वह है मिर्ज़ापुर के ददरी में बन रहा कोयला विद्युत प्लांट।
ज़रा सोचिए, जो नदियां खुद अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं, उन पर एक और जिम्मेदारी लादने की तैयारी है। वो है निर्माणाधीन पावर प्लांट की पानी की ज़रूरत को पूरा करना। प्रस्तावित व्यवस्था के तहत जब स्थानीय नदी का पानी जब विद्युत परियोजा को दिया जाएगा, तब न केवल विंडहम फ़ॉल को बल्कि लगभग 5000 किसान परिवारों को पानी पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलेगा। यही नहीं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के बरकछा परिसर में भी पानी की आपूर्ति प्रभावित होगी।
नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र की कंपनी वेलस्पन एनर्जी ने मार्च 2013 में पहली बार मिर्ज़ापुर में कोयले से 1320 मेगावाट बिजली बनाने की परियोजना लगाने के लिए एनवायर्नमेंटल क्लीयरेंस (ईसी) मांगी। एक्सपर्ट अप्रेज़ल कमिटी ने इसे स्थगित कर दिया। इसी साल नवंबर में फिर ईसी के लिए आवेदन हुआ और फिर उसे स्थगित किया गया। अगले साल अगस्त में परियोजना को क्लीयरेंस दे दी गई पर दिसंबर 2016 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इसे रद्द कर दिया क्योंकि ईसी देने की प्रक्रिया को कानून के मुताबिक सही नहीं पाया गया। ट्रिब्यूनल ने कंपनी को तुरंत काम बंद करने और इलाके को पहले जैसा करने का आदेश दिया।
अडानी पावर लिमिटेड की सहायक कंपनी मिर्ज़ापुर थर्मल एनर्जी (यूपी) प्राइवेट लिमिटेड, मिर्ज़ापुर के ग्राम ददरी खुर्द, मड़िहान वन रेंज में 2×800 मेगावाट कोयला आधारित अल्ट्रासुपर क्रिटिकल थर्मल पावर प्लांट (टीपीपी) विद्युत उत्पादन के लिए प्रस्तावित है, 1600 मेगावाट क्षमता के प्रस्तावित विद्युत स्टेशन के लिए लगभग 365.19 हेक्टेयर भूमि की आवश्यकता है।जिसमें से 364.57 हेक्टेयर गैर वन भूमि है और 0.62 हेक्टेयर संयंत्र सीमा के अंदर वन भूमि है। निर्माण के बाद जब यह पावरप्लांट चालू होगा तब यहां बिजली बनाने के लिए संयंत्र को 36 एमसीएम मिलियन क्यूबिक मीटर (Million Cubic Meters) पानी यानि कि 360 करोड़ लीटर पानी की आवश्यकता होगी। इस पानी की आपूर्ति गंगा नदी से की जाएगी। यहॉं से पानी निकाल कर अपर खजुरी जलाशय में ले जाया जाएगा इसके बाद अपर खजुरी जलाशय से पानी निकाल कर ददरी स्थित पावर प्लांट पर ले जाकर विद्युत उत्पादन के उपयोग में लिया जाएगा।
आने वाले समय में पानी की कमी की वजह से आने वाली दिक्कतों को देखते हुए किसान संगठन अपर खजुरी जलाशय से अडानी ग्रुप के पानी लेने का विरोध जता रहे हैं। इस विरोध का कारण समझने से पहले इस पूरे इकोलॉजिकल सिस्टम को समझते हैं।
विधन जलप्रपात खजूरी नदी पर स्थित एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक जलप्रपात है। यहां वन विभाग का प्राकृतिक पार्क भी है। अपर और लोवर खजूरी जलाशय के बीच नदी की लंबाई लगभग 10 किमी है। लोवर खजूरी जलाशय का पानी बीएचयू दक्षिण परिसर के लिए पेयजल का स्रोत है। ऊपर खजूरी नदी के जल से ही विन्धम फॉल और खड़ंजा फॉल और लोअर खजूरी जलाशय का अस्तित्व है। दोनों ही सिंचाई परियोजनाएँ हैं। इन दोनों बांधो के पानी से होने वाली खेती से 1 लाख से अधिक लोगों की जीविका चलती है।
मिर्ज़ापुर से सड़क मार्ग द्वारा अपर खजुरी जलाशय की दूरी करीब 24 किलोमीटर है और अपर खजुरी जलाशय से प्रस्तावित स्थल की दूरी 7 किलोमीटर है। प्रस्तावित परियोजना स्थल की ऊँचाई 630 फीट है, जबकि अपर खजुरी बाँध और गंगा नदी की ऊँचाई क्रमशः लगभग 510 फीट और 260 फीट है।
यहां की पाइपलाइन बरकछा रिजर्व फॉरेस्ट, दांती रिजर्व फॉरेस्ट, मड़िहान रिजर्व फॉरेस्ट और पटेहरा जैसे कई आरक्षित वनों से होकर गुजरती है, जहाँ स्लॉथ बियर, चिंकारा और गिद्धों सहित अनुसूची की कम से कम छह प्रजातियाँ पाई जाती हैं। दलदली हिरण और मगर मगरमच्छों की संख्या भी जलाशय में बहुत कम है।
ज़रा सोचिए ऊपरी खजूरी जलाशय में अगर किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जाता है तो उसका सीधा प्रभाव निचले खजूरी जलाशय पर पड़ेगा क्योंकि दोनों ही खजूरी नदी से जुड़े हुए हैं।
वर्ष 1937 में लगभग 64 लाख की लागत से क्षेत्र के 42 गांवों के सिंचाई के लिए वर्षा पर आधारित अपर खुजरी बांध का निर्माण कराया गया था। क्षमता से अधिक पानी भर जाने की स्थिति में जल निकासी के लिए 11 फाटक लगाए गए, लेकिन कई वर्षो से अच्छी बरसात न होने के कारण बांध भर नहीं पाता है।
बांध में पानी पहले ही कम है इस वजह से क्षेत्र के किसानों को पानी न मिलने के कारण खेतों में सूखे की स्थिति पैदा हो रही है। अपर खजुरी बांध से सिंचाई के लिए कुल रकबा कृषि की भूमि कुल 8367.5 हेक्टेयर है, वहीं बांध की जल संग्रह क्षमता 44.74 एमसीएम (440 करोड़ लीटर) है। इसमें से 36 एमसीएम पानी पावर प्लान्ट को देने की बात चल रही है। किसानों की सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि ऐसा होने पर उनके खेतों में फसल कभी उगेगी ही नहीं। आपको बता दें कि यहां प्रमुख खेती धान,गेहूं, चना, अरहर की होती है और इसमें सबसे ज्यादा पानी की जरूरत धान की खेती में होती है।
ऊपरी खजूरी जलाशय एक महत्वपूर्ण विशेषताओं और उपयोगों को ध्यान में रख कर बनाया गया था। जलाशय का पानी खजूरी नदी के माध्यम से निचले खजूरी जलाशय से जुड़ा है। खजूरी नदी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के दक्षिणी परिसर (राजीव गांधी दक्षिणी परिसर) के पास से बहती है और मिर्ज़ापुर के दो प्रसिद्ध जलप्रपातों, विंडम फॉल और खरंजा फॉल से मिलती है।
इस परियोजना के बनने के बाद यहां के किसानों को पानी की भारी किल्लत झेलनी पड़ेगी, जिसे देखते हुए विरोध शुरू हुआ और जय जवान जय किसान जागरण मंच के अध्यक्ष शारदा प्रसाद मिश्रा ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा। पत्रक के माध्यम से उन्होंने कहा, "मिर्ज़ापुर नहर प्रखंड के अंतर्गत अपार खजूरी बंद बहुत पुराना है। इस बांध से सिंचाई करने के लिए निकाली गई नहरें, अपर खजुरी से अपर खजुरी राइट, लोवर खजूरी प्रणाली, एवं भरपुरा रजवाहा नहर को पानी दिया जाता रहा है, लेकिन इस परियोजना के साथ किसानों के हक का पानी पावर प्लांट को दिए जाने का प्रस्ताव बनाया गया है। इसी बांध से हर घर जल से नल योजना का पानी भी पहुँचाया जाता है। किसान संगठन के अध्यक्ष शारदा प्रसाद मिश्रा ने कहा कि अगर जलाशयों का पानी अडानी ग्रुप को दे दिया गया तो किसान अपने खेतों की सिंचाई कैसे करेंगे। इस वजह से पहाड़ी ब्लाक एवं सिटी ब्लॉक के किसानों को बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा।"
इंडिया वॉटर पोर्टल से बातचीत में कोटवा पाण्डेय गांव के रहने वाले किसान शिव शेखर बौद्ध (37) ने कहा, "हमारे पास 1.5 बीघा खेती है, हम अपर खजुरी बांध के पानी से खेती करते हैं। इस क्षेत्र में पानी पहले ही बहुत कम है। तीन साल बाद इस बार गर्मी में पानी सिंचाई के लिए बांध से मिला था। जब अडानी कंपनी बांध का पानी ले लेगी तो आसपास के झरने, नदी, नाले सब सूख जाएंगे। तब हम लोग खेती कहां से करेंगे? काफी लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। किसानों के सामने बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। लाखों लोग इसकी वजह से प्रभावित होंगे।”
शिव शेखर ने आगे कहा कि खेती के अलावा बाकी रोजगार भी प्रभावित होगा। अब पर्यटन से जुड़े रोजगार ही ले लीजिए। यहां के झरनों पर भारी संख्या में पर्यटक आते हैं, लेकिन जब झरने सूख जाएंगे तो पर्यटन भी बंद हो जाएगा।
कंचनपुर गांव में करीब 5 बीघा खेत के मालिक व किसान बाबूलाल मौर्य (55) ने इंडिया वॉटर पोर्टल से कहा, "अपर खजुरी बांध से इस बार की गर्मी में सिंचाई के लिए पानी मिला था। लेकिन जब अडानी प्लांट गंगा का पानी अपर खजुरी जलाशय में ले जाएगा तो उसकी वजह से जलाशय का पानी गंदा हो जाएगा। बांध की वजह से चुनरी नदी है और विंडम फाल का अस्तित्व अपर खजुरी बांध से है। अपर खजुरी बांध में जब पानी रहता है तो पानी का जलस्तर भी सामान्य रहता है। लेकिन जब बांध में पानी नहीं रहता तो पीने के पानी की भी समस्या उत्पन्न हो जाती है।
अभी से सता रहा लोगों के पलायन का डर
इस क्षेत्र में खेतों में सिंचाई के लिए पानी पहले ही काफी कम पड़ता है। यहां यह समस्या पहले से ही गंभीर बनी हुई है। परियोजना आने के बाद क्या होगा यह सोच-सोच कर दांती गॉंव के किसान बनवारी लाल मौर्य (48) भी अक्सर परेशान हो जाते हैं। इंडिया वॉटर पोर्टल से बातचीत में बनवारी लाल ने कहा कि अपर खजूरी बांध की वजह से खड़ंजा फॉल और लोअर खजूरी बांध से सींचाई की जाती है। लेकिन जब अपर खजुरी बाध का पानी कंपनी ले लेगी तो हम किसानों को पानी पूर्ण रूप से नहीं मिलेगा। हम लोगों का गांव पहाड़ के ऊपर है और बांध का पानी नहीं मिलेगा तो खेती के लिए सिंचाई नहीं हो पाएगी। हम लोग ऐसे ही सूखे की मार झेलते रहते हैं और जब बांध का पानी कंपनी ली जाएगी तो हम किसानों को बहुत नुकसान होगा। उन्होंने आगे कहा कि उनके घर में 7 लोगो के बीच 4 बीघा खेती है। खेती के सहारे जीवन यापन करते हैं। अगर भविष्य में बांध का पानी नहीं मिलेगा तो मजबूरन उन्हें खेती छोड़कर पलायन करना पड़ेगा।
18 सितंबर 2013 को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) साउथ कैंपस के करीब 500 छात्रों के हस्ताक्षर अभियान के उस समय के तत्कालीन BHU रजिस्ट्रार ने वन एवं पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर थर्मल पावर प्लान्ट के विरुद्ध आपत्ति दर्ज करायी थी। पत्र के माध्यम से लिखा गया था कि मिर्ज़ापुर जिले के निकटवर्ती गाँव ददरी खुर्द गांव जो बरकछा स्थित बीएचयू के राजीव गांधी दक्षिण परिसर से 10 किलोमीटर दूर है, 1320 मेगावाट क्षमता की एक कोयला आधारित ताप विद्युत परियोजना स्थापित की जा रही है। जबकि राजीव गांधी दक्षिणी परिसर बीएचयू का एक घटक है, जहाँ 20 से अधिक स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम तथा अन्य शैक्षणिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं। परिसर में बड़ी संख्या में छात्र, शिक्षक और गैर-शिक्षण कर्मचारी तथा उनके परिवार के सदस्य निवास करते हैं।
पत्र में आगे लिखा गया कि इस परियोजना के नकारात्मक प्रभाव से राजीव गांधी दक्षिण परिसर में रहने वाले छात्रों, शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। हम इस तथ्य पर प्रकाश डालना चाहेंगे कि राजीव गांधी दक्षिण परिसर की संपूर्ण पेयजल आपूर्ति लोवर खजूरी बाँध से होती है, जिसे अपर खजूरी बाँध से पानी मिलता है। अपर खजूरी बाँध में कोई भी औद्योगिक गतिविधि हमारी जल आपूर्ति को खतरे में डाल देगी। इसलिए इस परियोजना को राजीव गांधी दक्षिण परिसर, बरकछा परिसर से दूर स्थानान्तरित करने पर विचार करें ताकि इस क्षेत्र का वातावरण और पर्यावरण अक्षुण्ण बना रहे।
ददरी खुर्द गांव के कुल 45 लोगों की जमीन की वेलस्पन कंपनी ने 2011 से 2012 तक रजिस्ट्री करायी थी। दलित और बनवासी समुदाय के लोगों से जमीन का इकरारनामा (एग्रीमेंट) भी कराया गया था। ग्रामीणों का आरोप है कि उन्हें लालच देकर, डरा धमका कर, झूठे मुकदमे का डर दिखाकर जबरदस्ती जमीन की रजिस्ट्री करायी गई। किसान कहते हैं, “हमारी जमीन चली गई, मुआवजा भी आधा अधूरा मिला, हमारे बच्चे आज अडानी प्लांट की वजह से भूखे मर रहे हैं। पहले प्लांट के अधिकारी कहते थे कि हर घर में नौकरी देंगे। अब कोई पूछने तक नहीं आता। दो वक्त खाने के भी पैसे नहीं बचे। यही हालत रही तो आत्महत्या करनी पड़ेगी। सरकार से मांग है कि या तो ये पावर प्लांट बंद हो या हमारी जमीन के पैसे दिए जाएं।" 40 साल की दलित महिला जड़ावती देवी मिर्ज़ापुर के सुखनई गांव की रहने वाली है। यहां बन रहे अडानी ग्रुप के थर्मल पावर प्लांट को लेकर बहुत खफा हैं।
हम जब ग्राउंड जीरो पर पहुंचे तो सुखनई गांव के रहने वाले अमृत लाल बिंद (32) ने इंडिया वॉटर पोर्टल से थर्मल पावर प्लांट के कार्य कर रही कंपनी पर आरोप लगाते हुए कहा, "हम लोग ददरी खुर्द गांव में रहते थे, उस गांव में हमारी 5 बीघा जमीन थी। हम लोग खेती किसानी करते थे। लेकिन 2011 में हमारे गांव में वेलस्पन कंपनी आई। कंपनी ने गांव के लोगों को डरा धमका कर जबरदस्ती हमारे लोगों को उठाकर ले जाते थे और जमीन 10 हजार रुपए बीघा की दर से रजिस्ट्री करवा ली। अब ददरी खुर्द गांव से तीन किलोमीटर की दूरी पर आकर रह रहे हैं। दूसरे लोगो की जमीन प्रति बीघा 5 हजार रुपए की दर से बटाई पर है। धान की खेती कर रहे हैं। हमारे गांव के लोगों ने जिलाधिकारी के यहां धरना प्रदर्शन भी किया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलने लखनऊ गए। वहां पर शिकायती पत्र दिया लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। "
सुखनई गांव की रहने वाली बितना देवी (45) ने इंडिया वॉटर पोर्टल से कहा कि बहुत पहले ग्राम प्रधान ने जमीन का पट्टा दिया था, लेकिन जब कंपनी आई तो पहले लालच दिया, जब लालच से काम नहीं बना तो, उनके बेटे को जबरदस्ती पकड़ कर ले जाकर जमीन की रजिस्ट्री करावा ली। उनका कहना है कि यहां के लोग प्लांट नहीं बनने देना चाहते हैं। बस वो अपनी जमीन वापस चाहते हैं। अस कार्य में उनकी कोई मदद नहीं कर रहा है। उन्होंने कहा कि उनकी 5 बीघा जमीन 20 हजार रुपए प्रति बीघा की दर से कंपनी ने रजिस्ट्री करा ली।
उन्होंने आगे कहा, "हम गरीबों को सरकार ने ये जमीन खेती के लिए दी थी। लेकिन अब उस पर भी बड़े लोगों की नजर पड़ गई। हमारी जमीन छिन गई। जीवन जीने का उपाय हम लोगों का जंगल में था, अब जीवन जीने का उपाय भी खत्म हो गया। दो बच्चों के साथ अब मजदूरी करना पड़ रहा है, रातों में नींद नहीं आती।"
सुखनई गांव के रहने वाले अमृत लाल बिंद ने पावर प्लांट के निर्माण के बाद क्षेत्र में प्रदूषण के बढ़ने की आशंका जताई है। इंडिया वॉटर पोर्टल से बातचीत में अमृत लाल ने कहा, "जो प्लांट यहां बन रहा है उससे इतना ज्यादा प्रदूषण होगा कि हम लोगों का जीना दुभर हो जाएगा, प्रदूषण कितना ज्यादा होगा की 5 किलोमीटर की एरिया में कोई रह नहीं पाएगा।" उन्होंने आगे कहा कि वन विभाग से सटे हुए इस पावर प्लांट में इतनी बड़ी चिमनी बन रही है कि उस चिमनी से भयंकर प्रदूषण होगा। प्रदूषण की वजह से हम लोग यहां पर भी नहीं रह पाएंगे। उन्होंने बताया कि गॉंव के लोगों ने जिलाधिकारी से मुलाकात की अपना मांग प्रत्र भी सौापा लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।
मिर्ज़ापुर में प्रस्तावित अडानी समूह का यह पावर प्लांट न सिर्फ पर्यावरणीय क्षति की आशंका में स्थानीय लोगों के विरोध का सामना कर रहा है, बल्कि इसके ऊपर फर्जी जनसुनवाई के आरोप भी लग रहे हैं। इस इलाके के महत्त्व को इस तरह देखें कि यह प्लांट जिस मड़िहान वन रेंज के बीच में निर्मित होना है, उस जंगल में कई संरक्षित वन्यजीव रहते हैं। 2019 में प्रभागीय वन अधिकारी (DFO) ने इस जंगल को ‘भालू संरक्षण रिजर्व’ घोषित करने के लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग को प्रस्ताव भी भेजा था। लेकिन राज्य सरकार ने आज तक उस प्रस्ताव पर कोई संज्ञान नहीं लिया है।
पूर्व में वेलस्पन एनर्जी पावर प्रोजेक्ट में पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी सामने आई थी, जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी को निरस्त कर दिया था। इसके बाद अडानी समूह ने वेलस्पन एनर्जी पावर प्रोजेक्ट को खरीद लिया, अब उसी अडानी कंपनी के थर्मल पावर प्रोजेक्ट को भी लेकर NGT और सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा चल रहा है।
प्रभागीय वन अधिकारी राकेश कुमार ने इंडिया वॉटर पोर्टल से बताया कि अडानी पावर समूह को अभी पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिली है। कागजी काम बाकी है उसी को पूरा करके भेजा गया है। सैद्धांतिक स्वीकृति के लिए अनुपालन आख्या भेजनी होती है, उसी में कागजी कार्रवाई बाकी है। जिसकी वजह से पर्यावरणीय मंजूरी (NOC) नहीं मिली है।
दरअसल अडानी ग्रुप के जिस संयंत्र का निर्माण हो रहा है उसका रास्ता जंगल के बीच होकर जाता है। इससे जुड़े सवाल पर राकेश कुमार कहते हैं, “हमारा वन का कच्चा मार्ग जंगल में जाने के लिए बनाया गया था। उसी कच्चे रास्ते का उपयोग कंपनी के लोग कर रहे हैं।”
इस वन क्षेत्र को भालू संरक्षण रिजर्व घोषित करने के लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग को प्रस्ताव भेजने के सवाल पर कहते है, "भालू संरक्षण रिजर्व घोषित करने के लिए वन विभाग को कोई प्रस्ताव नहीं भेजा गया है। वन विभाग ने अपने लिए एक पर्यावरणीय समिति से सर्वेक्षण करा के डॉक्यूमेंट के रूप में रखा है जिसमें भालू संरक्षण रिजर्व घोषित करने की बात है, प्रस्ताव जैसा कुछ नहीं भेजा गया है।”
अडानी ग्रुप द्वारा जंगल से पाइपलाइन बिछाकर अपर खजूरी बांध तक पानी ले जाने के सवाल पर वो बोले, "पाइपलाइन बिछाने के लिए कंपनी जमीन के अंदर से यानि अंडरग्राउंड पाइपलाइन बिछाने पर काम कर रही है। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड कंपनी को (EC) एनवायरमेंटल क्लीयरेंस दे चुका है। वन क्षेत्र से होकर प्रस्तावित संयंत्र तक जाने वाली जो सड़क बनाई जाएगी, उसके लिए भी कंपनी को कॉरिडोर बनाना होगा। उसका बायोडायवर्सिटी एसेसमेंट होगा। और यह बायोडायवर्सिटी एसेसमेंट वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया करता है, जिसको करने के लिए एक टीम दो महीने के लिए आती है। वह अपने असेसमेंट में जो भी निर्देश देगी उन सभी मानकों को कंपनी को पूरा करना होगा। नियम और शर्तों के तहत अडानी ग्रुप को स्पष्ट कहा गया है कि इस काम में WII की टीम से बायोडायवर्सिटी असेसमेंट कराना जरूरी है।"
अब सवाल यह उठता है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। दरअसल वर्तमान प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए, उच्चतम न्यायालय में यह अपील की गई थी कि चूंकि यहां स्लॉथ भालू संरक्षण रिज़र्व क्षेत्र प्रस्तावित है, इसलिए संयंत्र के निर्माण कार्य पर तत्काल रोक लगाई जाए।
याचिका में यह भी अपील की गई है कि न्यायालय द्वारा यह निर्देश दिया जाए कि प्रस्तावित स्लॉथ भालू संरक्षण रिज़र्व में स्थापित किए जाने वाले ताप विद्युत परियोजना के संबंध में दिनांक 23.09.2025 को प्रदान की गई पर्यावरणीय स्वीकृति तथा दिनांक 09.09.2025 को दी गई चरण-I वन स्वीकृति (फॉरेस्ट क्लीयरेंस यानि एफसी) किस प्रकार त्वरित रूप से प्रदान की गई, इसकी जांच की जाए— विशेष रूप से तब, जब इस पर न्यायालय द्वारा दिनांक 12.08.2025 को नोटिस जारी किया जा चुका था तथा उत्तर प्रदेश राज्य सहित सभी प्रतिवादियों के प्रत्युत्तर अब तक अभिलेख पर भी प्रस्तुत नहीं हुए थे—और यह जांच वर्तमान कार्यवाही के लंबित रहते हुए की जाए।
अब हम उन बिंदुओं पर एक नज़र डालेंगे जो इस क्षेत्र को भविष्य में होने वाले नुकसान को दर्शाते हैं। यदि यह विद्युत संयंत्र इस क्षेत्र में बन गया, तब विंडम फॉल व आस-पास के वन क्षेत्र को निम्न रूप से नुकसान पहुंचेगा। इन संभावित नुकसानों का जिक्र कोर्ट में प्रेषित दस्तावेजों में भी किया गया है।
कोर्ट में जमा दस्तावेज़ों के अनुसार, देश में पहले से स्थापित कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों से निकलने वाली फ्लाई ऐश, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और अन्य जहरीली गैसों के कारण क्षेत्र के तापमान में वृद्धि दर्ज की गई है।
इन उत्सर्जनों के कारण वन एवं वन्यजीव संरक्षण में गिरावट, वन भूमि की गुणवत्ता में कमी और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (ecosystem) पर नकारात्मक असर देखा गया है।
जल संरक्षण, भूजल पुनर्भरण (groundwater recharge) और सतही जल भंडारण की गुणवत्ता व मात्रा में गिरावट आती है।
नदियों की जल वहन क्षमता (water carrying capacity) और जल गुणवत्ता पर भी गंभीर असर पड़ता है।
स्थानीय आबादी में श्वसन संबंधी बीमारियों के मामलों में वृद्धि और पर्यटन एवं पुरातात्विक स्थलों पर प्रतिकूल प्रभाव दर्ज किए गए हैं।
इन अनुभवों को देखते हुए विशेषज्ञों ने वन क्षेत्र के क्षरण से मानव–वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में बढ़ोतरी की आशंका जताई गई है।
प्लांट तक कोयला पहुंचाने के लिए करीब 24 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन प्रस्तावित है, जो पूरी तरह रिज़र्व फॉरेस्ट से होकर गुजरेगी।
कोर्ट दस्तावेज़ों के अनुसार, इस रेलवे कॉरिडोर के लिए वन भूमि के डायवर्जन की कोई अनुमति आवेदन भी दाखिल नहीं किया गया है।
इसी वन मार्ग का उपयोग बिना फॉरेस्ट क्लीयरेंस के निर्माण सामग्री ढोने के लिए किया गया।
01 अप्रैल 2025 को इसी क्षेत्र में वनाग्नि की घटना दर्ज हुई, जिसमें लगभग 30 हेक्टेयर वन क्षेत्र के नष्ट होने की जानकारी दी गई है।
परियोजना के लिए गंगा नदी से पानी लाने हेतु 33 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन प्रस्तावित है, जो अपर खजुरी जलाशय होते हुए प्लांट तक जाएगी।
यह पाइपलाइन भी रिज़र्व फॉरेस्ट के बड़े हिस्से से होकर गुजरेगी, लेकिन Parivesh पोर्टल पर इसके लिए कोई सक्रिय फॉरेस्ट क्लीयरेंस आवेदन दर्ज नहीं है।
एक पुराना आवेदन (FP/UP/THE/14236/2015) मौजूद था, लेकिन वह अब MoEFCC के Parivesh पोर्टल पर लंबित परियोजनाओं की सूची में शामिल नहीं है।
प्लांट से उत्पादित बिजली को ग्रिड तक पहुंचाने के लिए हाई टेंशन ट्रांसमिशन लाइनों की आवश्यकता होगी, जो कई रिज़र्व फॉरेस्ट क्षेत्रों को पार करेंगी।
दस्तावेज़ों के अनुसार, इसके लिए भी कोई फॉरेस्ट क्लीयरेंस आवेदन दाखिल नहीं किया गया है।
21 जनवरी 2023 को शिकायतकर्ता ने मुख्य वन संरक्षक, मिर्ज़ापुर को शिकायत देकर बताया कि मौजूदा पगडंडी को भारी मशीनरी से तीन मीटर चौड़ी सड़क में बदला गया, जिससे वनस्पति और चट्टानी संरचनाओं को नुकसान पहुंचा।
इस शिकायत के बाद MoEFCC के हस्तक्षेप से निर्माण कार्य अस्थायी रूप से रोका गया।
जून 2024 में दोबारा अवैध निर्माण, भूमि समतलीकरण, पेड़–पौधों की कटाई, खुदाई और बाउंड्री वॉल निर्माण शुरू होने की जानकारी सामने आई।
शिकायतकर्ता द्वारा सचिव, MoEFCC और राज्य अधिकारियों को फोटो सहित शिकायत भेजे जाने के बावजूद कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई।
इस मामले की मीडिया रिपोर्टिंग के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया।
यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 30 नवंबर 2024 को परियोजना प्रवर्तक को शो-कॉज़ नोटिस जारी किया, क्योंकि निरीक्षण के दौरान प्रीकास्ट बाउंड्री वॉल और लेवलिंग का काम चलता पाया गया।
अब कुल मिलाकर देखा जाए तो अब इस क्षेत्र का भविष्य केवल न्यायालय और सरकार को तय करना है। स्थानीय लोग विंडम फॉल व आस-पास के वन क्षेत्र पर मंडरा रहे खतरे के विरुद्ध अपना विरोध बार-बार दर्ज कर रहे हैं। इन लोगों के साथ गैर सरकारी संगठन भी खड़े हैं जो समय-समय पर पर्यावरण पर आने वाले खतरे की घंटी बजाने का कार्य करते हैं।