पूर्वोत्तर राज्यों की बढ़ती बिजली ज़रूरतों को पूरा करने के लिए असम-मेघालय सीमा की कुलसी नदी पर प्रस्तावित 55 मेगावाट की उकियाम जलविद्युत परियोजना को लेकर विरोध तेज़ होता जा रहा है। स्थानीय आदिवासी समुदायों का कहना है कि इस परियोजना से बड़े पैमाने पर भूमि डूब क्षेत्र में आ सकती है, जिससे उनके घर-गांव और पारंपरिक जीवन-व्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा।
द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, असम-मेघालय सीमा पर प्रस्तावित यह बांध गुवाहाटी से लगभग 80 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। यह क्षेत्र इसलिए संवेदनशील है क्योंकि द्रोण, श्री और डिल्मा नदियों की धाराएं इसी स्थान पर मिलकर कुलसी नदी का निर्माण करती हैं। आगे चलकर यही नदी ब्रह्मपुत्र में मिलती है, जिससे इसका जल-तंत्र व्यापक नदी प्रणाली से जुड़ जाता है। इस क्षेत्र में बांध निर्माण से नदी के प्राकृतिक प्रवाह, मौसमी जल-चक्र और तलछट के वितरण में बदलाव आ सकता है, जिसका असर न केवल स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर बल्कि निचले इलाक़ों में रहने वाले नदी पर निर्भर समुदायों पर भी पड़ सकता है।
कुलसी नदी के ऊपरी हिस्से में इस परियोजना का विचार पहली बार क्षेत्रीय ऊर्जा योजना के तहत सामने आया, ताकि असम-मेघालय सीमा क्षेत्र में बिजली आपूर्ति को मज़बूत किया जा सके।
प्रारंभिक सर्वे और प्री-फिज़िबिलिटी स्टडी (2019-2020): असम सरकार की ऊर्जा योजना के तहत कुलसी नदी घाटी में जलविद्युत संभावनाओं का प्रारंभिक सर्वे और प्री-फिज़िबिलिटी अध्ययन किया गया। इसी चरण में उकियाम को संभावित परियोजना स्थल के रूप में चिन्हित किया गया।
प्रस्ताव और टेक्निकल डिटेल रिपोर्ट (2021-2022): इन वर्षों में परियोजना को लेकर प्रस्ताव और तकनीकी अवधारणा सार्वजनिक हुई। इसके बाद पर्यावरणविदों और स्थानीय आदिवासी संगठनों और ग्रामीण समुदायों ने संभावित सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर आपत्तियां दर्ज करानी शुरू कर दीं।
अंतिम स्वीकृति नहीं मिली (2023-2024): बढ़ते जन-विरोध और पर्यावरणीय चिंताओं के बीच सरकार ने यह स्पष्ट किया कि उकियाम हाइड्रो पावर परियोजना पर अंतिम स्वीकृति नहीं दी गई है और आगे की कार्रवाई सामाजिक-पर्यावरणीय परामर्श और आकलन के बाद ही होगी।
राजनीतिक घोषणा और सीमा संदर्भ (2025): 2 जून 2025 को असम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों की बैठक के बाद इस 55 मेगावाट की परियोजना की औपचारिक घोषणा की गई। इस घोषणा को दोनों राज्यों के बीच 885 किलोमीटर लंबे सीमा विवाद को सुलझाने की प्रक्रिया के व्यापक राजनीतिक संदर्भ में भी देखा गया।
कुलसी नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में प्रस्तावित इस मध्यम आकार वाली उकियाम जलविद्युत परियोजना में मिट्टी और कंक्रीट का बांध, जलाशय (रिज़र्वायर), पानी ले जाने वाली सुरंग/चैनल, पावर हाउस और ट्रांसमिशन लाइन जैसी बुनियादी संरचनाएं शामिल होंगी।
परियोजना का मुख्य उद्देश्य पूर्वोत्तर, विशेषकर असम-मेघालय सीमावर्ती क्षेत्र में बिजली उत्पादन बढ़ाकर ऊर्जा आपूर्ति को स्थिर करना और सिंचाई की संभावनाएं बढ़ाना है। इसे असम सरकार की राज्य स्तरीय जलविद्युत एजेंसी एपीजीसीएल द्वारा विकसित किया जाएगा, जबकि निर्माण और तकनीकी मार्गदर्शन में राज्य जल संसाधन विभाग और नामित विशेषज्ञ एजेंसियों की भूमिका होगी। निर्माण पूरा होने के बाद इसका संचालन और रख-रखाव भी एपीजीसीएल या सरकार द्वारा नामित सार्वजनिक एजेंसी करेगी। सरकार का दावा है कि परियोजना से स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन बढ़ेगा, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता घटेगी और स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर सृजित होंगे।
उकियाम हाइड्रो पावर परियोजना के खिलाफ स्थानीय आदिवासी और वनवासी समुदायों का विरोध मुख्यतः परामर्श की कमी और संभावित सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के कारण है। गारो नेशनल काउंसिल (जीएनसी) और राभा नेशनल काउंसिल (आरएनसी) का कहना है कि सरकार केवल 15 गांवों के प्रभावित होने का दावा कर रही है, जबकि वास्तविक प्रभाव असम के ब्रह्मपुत्र मैदानों से लेकर मेघालय के गारो और खासी पहाड़ियों तक व्यापक होगा। इस बांध के बनने से तीनों नदियों का इको सिस्टम प्रभावित होगा। साथ ही इससे इस इलाक़े में रहने वाले जनताजीय लोगों के बेघर होने और इन नदियों पर आश्रित समुदायों की रोज़ी-रोटी छिनने का भी ख़तरा है। इसे लेकर बीते दिनों (25 सितंबर, 2025) इन लोगों ने एक जनसभा कर अपना विरोध दर्ज़ कराया। गारो नेशनल काउंसिल (जीएनसी) और राभा नेशनल काउंसिल (आरएनसी) जैसे समूहों ने असम-मेघालय संयुक्त संरक्षण समिति के बैनर तले आयोजित इस बैठक में बांध से होने वाले दुष्प्रभावों पर चिंता जताते हुए इस परियोजना का विरोध किया।
आरएनसी के मुख्य संयोजक गोबिंदा राभा ने आंकड़ों का हवाला देते हुए चेताया है कि इस पावर प्रोजेक्ट के बनने से लगभग 1.9 लाख बीघा (25,418 हेक्टेयर) भूमि पानी में डूब जाएगी। उन्होंने कहा कि असम सरकार स्थानीय सहमति के बिना इतने बड़े आदिवासी क्षेत्र में इस परियोजना को जबरन लागू कर रही है। जनजातीय और वनवासी लोगों की आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि परियोजना को लागू करने से पहले पारदर्शी और सहभागी परामर्श नहीं किया गया। इससे व्यापक विरोध देखने को मिल रहा है। यदि परियोजना पूरी होती है, तो इसके प्रभाव कई रूपों में दिखाई देंगे।
सरकार स्थानीय लोगों की सहमति के बिना इतने बड़े आदिवासी क्षेत्र में कुल्सी जलविद्युत परियोजना को जबरन लागू कर रही है। यह परियोजना भी इस क्षेत्र की दो अन्य परियोजनाओं कुकुरमारा-पलाशबाड़ी में डोराबिल लॉजिस्टिक्स पार्क और बोरदुआ में बनाई गई सैटेलाइट टाउनशिप की तरह पर्यावरण को स्थायी और गंभीर नुकसान पहुंचाएगी।गोबिंदा राभा, मुख्य संयोजक, आरएनसी
प्रस्तावित परियोजना के प्रभाव क्षेत्र में असम और मेघालय के कई इलाक़े आते हैं, जहां रहने वाले आदिवासी समुदाय पर इसका इसका सामाजिक और अर्थिक प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है। यह इलाक़े कुछ इस प्रकार हैं-
विस्थापन और आजीविका पर असर: भूमि डूब क्षेत्र में घर, गांव और खेत प्रभावित होंगे।
कृषि और मछली पकड़ना: नदी और बाढ़-मैदान पर निर्भर गतिविधियां प्रभावित होंगी, बाढ़ पैटर्न बदलने से फसल चक्र और मछलियों की प्रजनन प्रक्रिया अस्थिर हो सकती है।
वन और लघु वनोपज: जलाशय और निर्माण के लिए जंगल कटाई से ईंधन लकड़ी, चारा और अन्य संसाधनों पर निर्भर परिवारों की आजीविका प्रभावित होगी।
स्थानीय व्यापार और पर्यटन: जलस्तर और प्राकृतिक सौंदर्य में बदलाव से नाविक, दुकानदार और गाइड जैसी आय पर नकारात्मक असर पड़ेगा। समाज और पर्यावरण पर इतने व्यापक प्रभावों के बावजूद समुदायों से पर्याप्त परामर्श और संवाद नहीं किया जाना स्थानीय विरोध का मुख्य कारण है।
प्रस्तावित परियोजना के प्रभाव क्षेत्र में असम और मेघालय के कई इलाक़े आते हैं, जहां रहने वाले आदिवासी समुदाय पर इसका इसका सामाजिक और अर्थिक प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है। यह इलाक़े कुछ इस प्रकार हैं-
असम के प्रभावित इलाके
उकियाम: प्रस्तावित परियोजना स्थल के रूप में सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्र के रूप में चर्चित।
चायगांव: कुल्सी नदी घाटी का प्रमुख कस्बा, जो चाय के बाग़ानों के लिए मशहूर है। यहां परियोजना के कारण नदी के निचले प्रवाह पर असर होने की आशंका है।
निज-चायगांव: कृषि, चाय व नदी-आधारित आजीविका वाला जनजातीय इलाका।
बर्दुआर: चाय के बाग़ानों, नदी-तटीय खेती और मछली पकड़ने पर निर्भर आदिवासियों का इलाक़ा।
लोहोरघाट: धान, गन्ना और अन्य नकदी फसलों की खेती वाला बाढ़-मैदान क्षेत्र।
मेघालय के प्रभावित इलाके
नॉर्थ खासी हिल्स ज़िला: जनजातीय बहुल ज़िले का सीमावर्ती इलाक़ा।
उमियाम-उकियाम बेल्ट: खासी समुदाय के गांव, जहां से नदी का ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) जुड़ा है।
पिलियांग क्षेत्र: पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण वनों और झरनों वाला इलाक़ा, जिससे जनजातीय समुदायों की आजीविका जुड़ी हुई है।
चंदूबी झील वेटलैंड: कुल्सी नदी से जुड़े निचले इलाके और आर्द्रभूमियां (वेटलैंड्स), जिनमें चंदूबी झील का वेटलैंड व उसका प्रभाव क्षेत्र भी शामिल है।
उकियाम हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को लेकर गंगा डॉल्फिन के आवास पर गंभीर चिंता जताई जा रही है। कुलसी नदी, असम की उन चुनिंदा नदियों में है, जहां इस प्रजाति की नियमित उपस्थिति दर्ज की गई है। शोध के अनुसार उकियाम से चायगांव तक लगभग 25-30 किलोमीटर लंबा नदी-खंड गहरे गड्ढे, मोड़ और शांत धाराओं के कारण डॉल्फिन के लिए महत्वपूर्ण प्रजनन और भोजन स्थल माना जाता है।
बांध निर्माण से नदी का न्यूनतम पर्यावरणीय प्रवाह घटने और जलाशय बनने की संभावना है, जिससे गहरे जल क्षेत्र सिकुड़ सकते हैं। इसके साथ ही मछलियों की प्रजातीय विविधता पर असर पड़ेगा, जिससे पूरी तरह मछलियों पर निर्भर गंगा डॉल्फिन की जीवित रहने, ऊर्जा संतुलन और प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है। निर्माण के दौरान होने वाला तेज़ शोर और कंपन भी उनकी इकोलोकेशन प्रणाली को बाधित कर सकता है। यदि नदी का प्राकृतिक बहाव और गहराई पैटर्न बदला गया, तो स्थानीय स्तर पर गंगा डॉल्फिन की आबादी का विलुप्त होना संभव है, जिससे परियोजना दीर्घकालिक जैव विविधता जोखिम पैदा कर सकती है।
हालांकि एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के इस स्पष्टीकरण पर जीएनसी के अध्यक्ष इनिंद्रा मारक का कहना है कि असम में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार जन विरोध को दबाने के लिए इस परियोजना को सालभर के लिए टाल सकती है। इसके बावज़ूद हम लोग "किसी भी परिस्थिति में" इस परियोजना का विरोध करेंगे। संरक्षण समिति के नेता का कहना है कि कुलसी परियोजना के खिलाफ उनके द्वारा सौंपे गए कई ज्ञापनों पर दोनों सरकारों ने उदासीनता दिखाई है। परियोजना का मेघालय वाला हिस्सा कुछ हद तक सुरक्षित है, क्योंकि वहां की भूमि कार्यकाल प्रणाली के तहत पारंपरिक प्रमुखों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) लेना अनिवार्य है। लेकिन, असम में इसे लेकर पर्यावरणीय चिंताएं काफ़ी गंभीर हैं। उकियाम जलविद्युत परियोजना न केवल बिजली उत्पादन का एक प्रयास है, बल्कि स्थानीय समुदायों, पर्यावरण और जैव विविधता पर पड़े प्रभावों के कारण यह विवादास्पद और संवेदनशील मामला बन चुकी है। इसका भविष्य पारदर्शी संवाद और संतुलित निर्णय पर निर्भर करेगा।